माली बनते हैं या पैदा होते हैं? इस प्रसिद्ध सवाल का जवाब जानने के लिए महाराष्ट्र के सतारा में जाएं और निकमवाड़ी गांव के गुलदाउदी और गेंदे के फूलों के खेतों पर नज़र डालें। जहां तक नजर डालो, वहां तक फूलों के रंग-बिरंगे खेत फैले हुए हैं, जिन पर पीले और नारंगी रंग के कालीन बिछे हुए हैं। लगभग दो दशक पहले, कृष्णा नदी बेसिन के इस गांव के किसान केवल दो नकदी फसलें, गन्ना और हल्दी उगाते थे, जिससे औसत उत्पादक का बस गुजारा भर हो पाता था।
हालांकि ये दोनों अब भी उगाई जाती हैं, लेकिन फूल निकमवाड़ी में खुशी और समृद्धि ला रहे हैं।
‘फूलांचा गांव’ की पुष्पित कथा
इसकी शुरुआत 2005 में हुई। धर्मराज गणपत देवकर, जिनकी आयु अब 60 वर्ष है, के नेतृत्व में मुट्ठी भर किसानों ने एक कृषि अधिकारी की सलाह पर ध्यान दिया और विश्वास की एक कठिन छलांग लगाते हुए पहली क्यारी में गेंदा के पौधे लगाए। यह 170 से ज्यादा घरों वाला गांव आज ‘फुलांचा गांव’ (फूलों का गांव) के नाम से प्रसिद्ध है, जिसमें 200 एकड़ से ज्यादा भूमि पूरी तरह से फूलों की खेती के लिए समर्पित है। दोपहर की धूप में चमकते फूलों की ओर इशारा करते हुए, 37 वर्षीय किसान विशाल निकम कहते हैं – “यहां किसी भी मौसम में आइये, झेन्दु (गेंदा) और बहुरंगी शेवंती (गुलदाउदी) के फूलों से लदे हरे-भरे खेत देखने को मिलेंगे।”

निकमवाड़ी और उसके आस-पास के गांवों में ‘पूर्णिमा व्हाइट’, ‘ऐश्वर्या येलो’ और ‘पूजा पर्पल’ जैसी आठ किस्म की संकर गुलदाउदी उगाई जाती हैं। गुलदाउदी एक सर्दियों की फसल है, जिसका मौसम दिसंबर से मार्च तक, 120 दिनों का होता है। बारहमासी गेंदा वर्ष भर उगता है। इलाके में फैली सैकड़ों नर्सरियों में से एक, ‘ओम एग्रो टेक्नोलॉजी नर्सरी’ के शालिवान साबले कहते हैं – “’पीताम्बर येलो’, ‘बॉल’ और ‘कलकत्ता येलो’ ग्राहकों की पसंदीदा छह किस्मों में से हैं। हम सालाना करीब 20 लाख पौधे बेचते हैं।”
मैरीगोल्ड रश और कुरकुरे नोट्स
प्रकृति की सुन्दरता अद्भुत है – यह उपहार सोने के बराबर है। लेकिन इस खजाने को निकालने के लिए, किसी भी कृषि पद्धति की तरह, बहुत ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है – पौधे लगाना, निराई करना, सिंचाई करना और सुबह से शाम तक फूल तोड़ना। और फिर शाम को बाज़ार के लिए निकलने से पहले पिक-अप ट्रकों में फूल भरना। हालांकि दिन के आखिर में, पैसा ही सुखदायक मरहम बनता है।

प्रति एकड़ लगभग 10 टन की औसत वार्षिक उपज के साथ, निकमवाड़ी के किसान सालाना लगभग 10 लाख रुपये कमाते हैं, जो गन्ने और हल्दी से होने वाली आय से कहीं ज्यादा है। इसमें कोई संदेह नहीं कि कई किसानों ने पानी की अधिक खपत वाली गन्ने की फसल को छोड़ दिया है। किसानों में चीनी मिलों के प्रति अविश्वास गहरा होने के कारण, हाल के वर्षों में गन्ने का रकबा कम हो गया है। उनका कहना है कि चीनी मिल उनकी उपज का वजन करने में धोखाधड़ी करती हैं तथा समय पर भुगतान नहीं करती हैं।
संजय भोंसले (55) ‘पूर्णिमा व्हाइट’ गुलदाउदी के अपने खेत की देखभाल से कुछ समय के लिए छुट्टी लेते हुए कहते हैं – “गन्ना मिलें लोगों को उनके पैसे के लिए 18 महीने से ज़्यादा इंतज़ार करवाती हैं। फूल उगाना फ़ायदेमंद है, क्योंकि हमें हर हफ़्ते भुगतान मिलता है।” निकमवाड़ी के किसान ड्रिप सिंचाई पद्धति का उपयोग करते हैं, जिसके अंतर्गत वे बावड़ियों से पानी प्राप्त करते हैं, जिसका पुनर्भरण कृष्णा नदी से आने वाली नहरों द्वारा होता है। इस तरह के बागवानी नवाचार खेतों को अधिक टिकाऊ, पर्यावरण-अनुकूल और स्वस्थ बना सकते हैं, तथा प्रकृति के साथ मानव के जटिल अंतर्संबंधों की रक्षा कर सकते हैं। आठ एकड़ के मालिक संतोष देवकर कहते हैं – “आजकल केवल मुट्ठी भर परिवार ही बड़े खेत के मालिक हैं, जो गन्ना उगाते हैं।” फूलों के बाज़ार में उतार-चढ़ाव के कारण वे एक एकड़ में गन्ना उगाते हैं।
फूल बाज़ार का पदानुक्रम
पुष्प अर्थव्यवस्था में पदानुक्रम चलता है। गुलाब, गुलनार और जरबेरा जैसे फूल अपनी आकर्षक कीमतों के मामले में प्रीमियम स्थान पर हैं, इसके बाद रजनीगंधा और ग्लेडियोलस जैसे बल्बनुमा फूल आते हैं।

गेंदा और गुलदाउदी सबसे निचले पायदान पर हैं। लेकिन निकमवाड़ी में फूलों की भारी मात्रा के कारण इसकी भरपाई हो जाती है। रोज सात पिकअप ट्रकों पर करीब 12 टन फूल, 100 किलोमीटर दूर पुणे के गुलटेकड़ी बाजार भेजे जाते हैं। हालांकि यह गांव मंदिर शहर वाई और जिला मुख्यालय सतारा के करीब है, लेकिन किसान पुणे को प्राथमिकता देते हैं, जहां मांग ज्यादा है। गणेश उत्सव से लेकर दिवाली और गुड़ी पड़वा तक त्योहारों के सीजन में मांग चरम पर होती है।
कृषि अधिकारी विजय वारले का कहना था कि निकमवाड़ी के किसान गुलदाउदी से प्रति एकड़ लगभग 2.5 लाख रुपये कमाते हैं, जबकि गेंदा से प्रति एकड़ लगभग 2 लाख रुपये की कमाई होती है। महाराष्ट्र में फूल एक फलता-फूलता व्यवसाय है, जहां 13,440 हेक्टेयर भूमि पर फूलों की खेती होती है। यह 1990 के दशक में फूलों की खेती की नीति बनाने वाला पहला राज्य भी है।
निकमवाड़ी, बाकी से बहुत आगे
पड़ोसी गांवों ने भी फूलों की खेती शुरू कर दी है, लेकिन जो बात निकमवाड़ी को अलग करती है, वह यह है कि यहां हर घर में फूल उगाए जाते हैं, चाहे किसी के पास दो-चार गुंठा (1000 वर्गफीट) हो, या कई एकड़।

यह उनकी सहभागिता की भावना और सामूहिक दृष्टिकोण ही है, जो निकमवाड़ी को एक आदर्श गांव बनाता है। वे एकल फसल उत्पादन के नुकसान से भी अवगत हैं। छोटे-छोटे क्षेत्रों में गन्ना और हल्दी जैसी नियमित फसलें उगाने के अलावा, बहुत से किसान फूलों के खेतों में अजवायन भी उगाते हैं, एक ऐसी जड़ी-बूटी जिसकी विदेशों और भारतीय महानगरों में बहुत मांग है। संजय भोंसले, जिनका पांच एकड़ का खेत बहु-फसल का एक उदाहरण है, कहते हैं – “हम रसोई के लिए धनिया और बेचने के लिए अजवायन की खेती करते हैं। हम 1.5 लाख रुपये खर्च करते हैं और उपज से आय 3.5 लाख रुपये होती है।”
यह लेख मूलरूप से विलेज स्क्वायर पर प्रकाशित हुआ था।
हीरेन कुमार बोस महाराष्ट्र के ठाणे स्थित पत्रकार हैं। वे सप्ताहांत में किसानी भी करते हैं।
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