June 20, 2024

यौन पहचान, स्वास्थ्य और अधिकारों से जुड़े 50 शब्द

यौन और प्रजनन स्वास्थ्य तथा अधिकारों के विभिन्न पहलुओं से संबंधित 50 शब्द, जो भारतीय और दक्षिण एशियाई संदर्भ के लिए प्रासंगिक हैं, नीचे दिए गए हैं।
11 मिनट लंबा लेख

जेंडर पहचान और यौनिक अभिव्यक्ति

लिंग – लिंग को अक्सर जन्म के समय जननांगों की उपस्थिति के आधार पर निर्धारित किया जाता है। यह लोगों की विभिन्न जैविक और शारीरिक विशेषताओं को संदर्भित करता है, जैसे कि प्रजनन अंग, गुणसूत्र, हार्मोन आदि। लिंग जेंडर के समान नहीं है।

जेंडर – समाज ‘महिला’ एवं ‘पुरुष’ को जैसे देखता है, जैसे उनमें अंतर करता है तथा उन्हें जो भूमिकाएं प्रदान करता है, उन्हें जेंडर कहते हैं। सामान्य तौर पर लोगों से यह उम्मीद की जाती है कि वे उन्हें दिए गए जेंडर को स्वीकार करें और उसी के अनुसार उचित व्यवहार करें। जहां जेंडर से जुड़ी भूमिकाएं सांस्कृतिक एवं सामाजिक अपेक्षाओं के आधार पर होती हैं, वहीं जेंडर पहचान व्यक्ति द्वारा स्वयं तय की जाती है कि वे स्वयं को पुरुष की श्रेणी में रखना चाहते हैं, महिला की श्रेणी में रखना चाहते हैं या किसी भी श्रेणी में नहीं रखना चाहते हैं। संकेतों के एक जटिल समूह के आधार पर किसी व्यक्ति का जेंडर तय किया जाता है जो हर संस्कृति में अलग हो सकता है। यह संकेत अनेक प्रकार के हो सकते हैं, जैसे व्यक्ति कैसे कपड़े पहनते हैं, कैसे व्यवहार करते हैं, उनके रिश्ते किसके साथ हैं और वे सत्ता का प्रयोग कैसे करते हैं।

पुरुषत्व पुरुषत्व कई प्रकार के हो सकते हैं। ये दैनिक भाषा में उपयोग की जाने वाली गतिशील सामाजिक-सांस्कृतिक श्रेणियां हैं जो संस्कृति के भीतर मान्यता-प्राप्त कुछ व्यवहारों और प्रथाओं को ‘पुरुषों’ की विशेषता के रूप में संदर्भित करती हैं। ये अवधारणाएं सीखी जाती हैं और यौन अभिविन्यास या जैविक सार का वर्णन नहीं करती हैं। ये संस्कृति, धर्म, वर्ग, समय के साथ और व्यक्तियों और अन्य कारकों के साथ बदलते हैं। पुरुषत्व कई हो सकते हैं – कभी-कभी देशों, क्षेत्रों और संस्कृतियों के भीतर भिन्न होते हैं – लेकिन अक्सर कुछ सामान्य या प्रमुख अवधारणाएं हो सकती हैं जो किसी को ‘पुरुष’ बनाती हैं। उदाहरण के लिए, कई संस्कृतियों में, पुरुषों की अपने परिवार को आर्थिक सहयोग देने की क्षमता, शारीरिक और भावनात्मक रूप से ‘ताकतवर ‘ होने, परिवार में सभी वित्तीय निर्णयों के लिए ज़िम्मेदार होने आदि में पुरुषत्व देखा जाता है।

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महिला – वो जो एक महिला के रूप में पहचान करते हैं और जिनके पास महिलाओं के जननांग और स्तन, योनि और अंडाशय जैसे प्रजनन अंग हो भी सकते हैं या नहीं भी।

पुरुष – वे जो एक पुरुष के रूप में पहचान करते हैं; उनके पुरुष जननांग, या लिंग, या वृषण जैसे प्रजनन अंग हो भी सकते हैं या नहीं भी।

जेंडर बाइनरी (जेंडर द्विचर) – यह विचार कि केवल दो जेंडर हैं और यह कि हर कोई इन में से एक जेंडर के है। यह शब्द उस प्रणाली का भी वर्णन करता है जिसमें समाज लोगों को पुरुषों और महिलाओं की जेंडर भूमिकाओं, जेंडर पहचान और विशेषताओं में विभाजित करता है।

जेंडर पहचान – लोगों की आंतरिक रूप से महसूस की गई, पुरुषत्व या लड़का/आदमी होने की अंतर्निहित भावना, अथवा स्त्रीत्व या लड़की/महिला होने की अंतर्निहित भावना, या कोई अन्य जेंडर (उदाहरण के लिए – जेंडरक्वीर, जेंडर नॉन-कन्फर्मिंग, जेंडर न्यूट्रल) होने की भावना जो किसी के जन्म के समय दिए गए जेंडर के अनुरूप हो भी सकता है और नहीं भी। चूंकि जेंडर की पहचान आंतरिक होती है, इसलिए ज़रूरी नहीं कि किसी की जेंडर पहचान दूसरों के लिए स्पष्ट हो।

सिस्जेंडर – सिस्जेंडर (अक्सर संक्षिप्त में सिस) लोग वे लोग होते हैं जिनके जन्म के समय उन्हें दिए गए जेंडर, उनके शरीर और उनकी जेंडर पहचान के बीच एक मेल होता है। उदाहरण- कोई व्यक्ति जो एक आदमी के रूप में पहचान करता है और उसे जन्म के समय पुरुष-जेंडर ही दिया गया था। दूसरे शब्दों में, वे जिनकी जेंडर पहचान या जेंडर भूमिका को समाज उनके लिंग के लिए उपयुक्त मानता है।

ट्रांसजेंडर – अपने शारीरिक जेंडर को स्वीकार न करते हुए स्वयं को दूसरे जेंडर का मानने वाले लोगों को ट्रांसजेंडर लोग कहते हैं। ट्रांसजेंडर लोग स्वयं को ‘तीसरे जेंडर’ का मान भी सकते हैं और नहीं भी। ट्रांसजेंडर लोग शारीरिक रूप से पुरुष हो सकते हैं जो स्वयं को महिला मानते हैं और महिलाओं की तरह कपड़े पहनते हैं और बर्ताव या व्यवहार करते हैं। उसी प्रकार, वे शारीरिक रूप से महिलाएं हो सकते हैं जो स्वयं को पुरुष मानते हैं और पुरुषों की तरह कपड़े पहनते हैं और बर्ताव या व्यवहार करते हैं। यह ज़रूरी नहीं है कि सब ट्रांसजेंडर लोग स्वयं को समलैंगिक मानें।

नॉन-बाइनरी – एक जेंडर पहचान जो पुरुष/महिला जेंडर द्विचर से परे है। गैर-द्विचर लोग कई रूपों में पहचान कर सकते हैं – ट्रांसजेंडर, बिना किसी जेंडर वाले या कई जेंडर वाले (उदाहरण के लिए, बाई-जेंडर, जेंडरक्वीर) या फ़िर एक ऐसे जेंडर के जो किसी बाइनरी में बड़े करीने से फिट नहीं होते है (उदाहरण के लिए, डेमीबॉय, डेमीगर्ल)। कुछ लोग “नॉन-बाइनरी” के लेबल का भी अपनी जेंडर पहचान के लिए सक्रिय रूप से प्रयोग करते हैं।

इंटरसेक्स – ज़्यादातर बच्चे जब पैदा होते हैं तो उनके बाहरी यौनांगों को देखकर डॉक्टर द्वारा तय किया जाता है कि वे लड़कें हैं या लड़की। पर कुछ बच्चों के यौनांगों को देखकर यह बता पाना मुश्किल होता है कि वे लड़कें हैं या लड़कियाँ। हो सकता है कि उनके कुछ बाहरी यौनांग लड़के और कुछ लड़की की तरह हों या हो सकता है उनके बाहरी यौनांग लड़के की तरह हों पर भीतरी जननांग लड़की की तरह या इसके विपरीत। अतः यह शब्द उन लोगों के लिए प्रयोग होता है जिनके यौनांगों में ये विविधताएं होती हैं।

विषमलैंगिक – जो लोग मुख्य रूप से भावनात्मक, शारीरिक और/या यौनिक रूप से किसीदूसरे जेंडर के सदस्यों के प्रति आकर्षित होते हैं, जिसे अक्सर गलती से “विपरीत लिंग” कहा जाता है।

लिंग और जेंडर समान नहीं है। | चित्र साभार: विकीमीडिया कॉमन्स

समलैंगिक (होमोसेक्शुअल) – होमोसेक्शुअल लोग अपने ही जेंडर के लोगों की ओर आकर्षण महसूस करते हैं (महिलाएं जो दूसरी महिलाओं की ओर आकर्षित होती हैं उन्हें लेस्बियन और पुरुष जो दूसरे पुरुषों की ओर आकर्षित होते हैं उन्हें गे कहते हैं)।

गे – जो लोग अपने जेंडर के सदस्यों के प्रति भावनात्मक, रोमांटिक और/या यौन रूप से आकर्षित होते हैं। पुरुष, महिलाएँ और गैर-बाइनरी लोग इस शब्द का उपयोग स्वयं का वर्णन करने के लिए कर सकते हैं, हालांकि यह शब्द आमतौर पर उन पुरुषों का वर्णन करने के लिए उपयोग किया जाता है जो अन्य पुरुषों के प्रति आकर्षित होते हैं।

लेस्बियन एक महिला जो अन्य महिलाओं के प्रति यौनिक रूप से आकर्षित होती है और/या एक लेस्बियन के रूप में पहचान करती है। लेस्बियन के रूप में पहचान करने वाले लोगों के बारे में आम गलत धारणाएं हैं कि वे ‘पुरुषों से नफरत’ करते हैं’, या उनके पुरुषों के साथ ‘बुरे यौन अनुभव’ रहे हैं जो उन्हें लेस्बियन महिलाओं में ‘बदल’ देते हैं, या यह कि यह एक पश्चिमी आयात है जिसकी भारत या एशियाई संदर्भ में कोई प्रासंगिकता नहीं है।ये धारणाएं गलत हैं और अक्सर इनका उपयोग लेस्बियन के रूप में पहचान करने वालों के खिलाफ हिंसा को सही ठहराने के लिए किया जाता है। एक लेस्बियन का उनके कपड़ों या तौर-तरीकों के आधार पर ‘पहचान’ करना भी संभव नहीं है (उदाहरण के लिए, “जो महिलाएं मर्दानी हैं वे लेस्बियन हैं” एक गलत और आपत्तिजनक मान्यता है)।

द्विलिंगी ( बाईसेक्शुअल) – जो लोग अपने ही जेंडर के लोगों और अपने स्वयं के अलावा किसी अन्य जेंडर के लोगों के प्रति यौन रूप से आकर्षित होते हैं।

अलैंगिक (एसेक्शुअल) – अलैंगिक लोग किसी के भी प्रति यौनिक आकर्षण या तो बिलकुल नहीं महसूस करते हैं या आंशिक रूप से करते हैं, पर वे और लोगों की तरह रोमांटिक आकर्षण महसूस कर सकते हैं और गहरे भावनात्मक रिश्ते बना सकते हैं। अलैंगिकता एक स्पेक्ट्रम पर मौजूद है, और अलैंगिक लोगों को कम, कम या सशर्त यौन आकर्षण का अनुभव हो सकता है। निसंदेह, उनकी भावनात्मक ज़रूरतें हो सकती हैं और अन्य लोगों की तरह वे इनको कैसे पूरा करते हैं यह उनका व्यक्तिगत मामला है। वे डेट पर जा सकते हैं, लम्बे अरसे तक भावनात्मक रिश्ते/रिश्तों में रह सकते हैं या अकेले रहने का निश्चय भी कर सकते हैं।

क्वीर – वे लोग जो विषमलैंगिकता की प्रबलता पर सवाल उठाते हैं। क्वीर लोग समलैंगिक, लेस्बियन, गे, इंटरसेक्स या ट्रांसजेंडर हो सकते हैं। हालांकि इस शब्द को आक्रमक माना गया था, कई समूहों और समुदायों ने इस शब्द को सशक्तिकरण हेतु स्वीकारा है और इसका इस्तेमाल यह दावा करने के लिए किया है कि वे विषमलैंगिक नहीं हैं, गैर-अनुरूपतावादी हैं, एक प्रमुख विषमलैंगिक ढांचे के खिलाफ हैं।इसके अंतर्गत वो लोग भी आते हैं जो स्वयं पर इस्तेमाल किए गए ‘लेबल’ से असंतुष्ट हैं और जो विषमलैंगिक मानदंडों के अनुरूप जीवन नहीं जीते हैं।

एलजीबीटीक्यूआईए+ – लेस्बियन, गे, बाइसेक्शुअल (द्विलैंगिक), ट्रांसजेंडर, क्वीर, इंटरसेक्स, एसेक्शुअल (अलैंगिक) के लिए संक्षिप्तीकरण। जोड़ का चिह्न (प्लस) अन्य पहचानों और अभिव्यक्तियों को संदर्भित करता है जो “एलजीबीटीक्यू” परिवर्णी शब्द में शामिल नहीं हैं और जिनका अभी तक पूरी तरह से वर्णन नहीं हो सका है। यह एक छत्र-शब्द जिसे अक्सर समग्र रूप से इस पूरे समुदाय को संदर्भित करने के लिए उपयोग किया जाता है।

हिजरा – भारतीय उपमहाद्वीप में इस्तेमाल किया जाने वाला यह शब्द उन लोगों के समुदाय को संदर्भित करता है जिन्हें जन्म के समय “पुरुष” का जेंडर दिया गया था, लेकिन जो पुरुषों के रूप में पहचान नहीं करते, या जो लोग इंटरसेक्स हैं, और इसमें वे लोग भी शामिल हो सकते हैं जो बधिया करना चाहते हैं और/या करवाते हैं। हालांकि कुछ हिजरे स्त्रीलिंग सर्वनामों का प्रयोग करते हुए खुद को संदर्भित करते हैं, कुछ कहते हैं कि वे तीसरे जेंडर के हैं और न तो पुरुष हैं और न ही महिलाएं। ‘हिजरा’ एक जेंडर पहचान नहीं बल्कि एक सांस्कृतिक पहचान है। भारत में हिजरों के अपने दीक्षा अनुष्ठान और पेशे हैं, जिनमें भीख मांगना, यौन कार्य और शादियों में नृत्य करना या बच्चों को आशीर्वाद देना शामिल हैं। भारत में उन्हें कानूनी रूप से ट्रांसजेंडर लोग माना जाता है (भले ही समुदाय के कुछ सदस्य इस तरह से पहचान न करते हो), और वे कुछ सरकारों या राज्य विभागों द्वारा नौकरियों, शिक्षा आदि के लिए आवंटित आरक्षण तक पहुंचने में सक्षम हैं। दक्षिण एशिया के अन्य हिस्सों जैसे कि बांग्लादेश, नेपाल और पाकिस्तान में भी हिजरा समुदाय हैं। भारत के अन्य हिस्सों में समान (लेकिन समरूप नहीं) सांस्कृतिक समुदाय हैं, जैसे कि अरवनी (तमिलनाडु में), जोगप्पा (कर्नाटक में), और कोती (उत्तर भारत और महाराष्ट्र सहित देश के विभिन्न हिस्सों में)।

होमोनेगटिविटी – ‘होमोफोबिया’ शब्द से व्युत्पन्न, जो उन लोगों के भय, घृणा या असहिष्णुता का वर्णन करता है जो अपनी यौन और जेंडर पहचान और यौन अभिविन्यास या पारंपरिक जेंडर भूमिकाओं से बाहर होने वाले किसी भी व्यवहार में आदर्श से भिन्न होते हैं।‘होमोनेगटिविटी’ शब्द के प्रयोग को प्राथमिकता दी जाती है क्योंकि ‘होमोफोबिया’ का अर्थ है कि गैर-विषमलैंगिक लोगों के प्रति पक्षपाती और भेदभावपूर्ण व्यवहार एक ‘फोबिया’ (यानी डर) है – ऐसा कुछ जिसके लिए ‘होमोफोबिक’ व्यक्ति को सहानुभूति मिलनी चाहिए।यह शब्द होमोनेगटिव लोगों को कसूरदार नहीं ठहराता है।

यौन एवं प्रजनन स्वास्थ और अधिकार के पहलू 

यौन स्वास्थ्य – यह यौनिकता के संबंध में शारीरिक, भावनात्मक और मानसिक खुशहाली की स्थिति है; यह केवल रोग, शिथिलता या दुर्बलता की अनुपस्थिति नहीं है। यौन स्वास्थ्य के लिए यौनिकता और यौन संबंधों के प्रति सकारात्मक और सम्मानजनक दृष्टिकोण की आवश्यकता होने के साथ-साथ आनंददायक और सुरक्षित यौन अनुभव होने की संभावना तथा ज़बरदस्ती, किसी भी प्रकार के सामाजिक भेदभाव और हिंसा से मुक्ति भी आवश्यक है। यौन स्वास्थ्य प्राप्त करने और बनाए रखने के लिए सभी व्यक्तियों के यौन अधिकारों का सम्मान, संरक्षण और पूर्ती होनी ज़रूरी है।

प्रजनन स्वास्थ्य – प्रजनन प्रणाली और इसके कार्यों और प्रक्रियाओं से संबंधित सभी मामलों में न केवल बीमारी या दुर्बलता की अनुपस्थिति, परन्तु पूर्ण शारीरिक, मानसिक और सामाजिक भलाई की स्थिति। प्रजनन स्वास्थ्य का तात्पर्य है कि सभी लोग एक संतोषजनक और सुरक्षित यौन जीवन जीने में सक्षम हैं और उनके पास प्रजनन करने की क्षमता है और के साथ-साथ यह तय करने की स्वतंत्रता भी है कि उन्हें यह करना है की नहीं, और यदि करना है तो कब और कितनी बार।

यौनिक अधिकार – इनमें सभी के, बिना किसी ज़बरदस्ती, भेदभाव तथा हिंसा के निम्नलिखित अधिकार शामिल हैं – यौनिक तथा प्रजनन स्वास्थ्य देखभाल तक आसानी से पहुँच, यौनिकता से संबंधित जानकारी, यौनिकता संबंधी शिक्षा, शारीरिक निष्ठा के लिए आदर, अपनी पसंद का साथी चुनना, यौनिक रूप से सक्रिय होने या न होने का निर्णय, आपसी सहमति से यौनिक संबंध, आपसी सहमति से विवाह, निर्णय लेना कि बच्चें चाहते हैं या नहीं और यदि चाहते हैं तो कब, और संतोषजनक, सुरक्षित तथा आनंदमय यौनिक जीवन व्यतीत करना।

प्रजनन अधिकार – वे अधिकार जो सभी लोगों को सुरक्षित, प्रभावशाली, सामथ्र्य के अनुकूल तथा अपनी पसंद के, स्वीकृत परिवार नियोजन उपायों के साथ-साथ परिवार नियोजन के लिए अपनी पसंद के अन्य तरीकों(जो कानून के विरूद्ध नहीं हैं) के विषय में सूचना एवं उन तक पहुंच प्रदान करते हैं। ये अधिकार उचित स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं पर पहुँच के अधिकार भी हैं जो गर्भधारण तथा प्रसूति की अवस्था को सुरक्षित रूप से पार करने में लोगों को सशक्त बनाते हैं और दम्पतियों को स्वस्थ शिशु पैदा करने की बेहतरीन संभावना प्रदान करते हैं। 

एसटीआई – ‘सेक्शुअली ट्रांसमिटेड इंफेक्शन’ को संक्षेप में एसटीआई कहते हैं जो उन संक्रमणों की ओर संकेत करता है जिनका संचार यौन संपर्क के द्वारा होता है। यह “गुप्त रोग” के नाम से ज़्यादा जाना जाता है।

आरटीआई – ‘रिप्रोडक्टिव ट्रैक्ट इंफेक्शन’ (प्रजनन पथ में होने वाले संक्रमण) को संक्षेप में आरटीआई कहते हैं। ये वे संक्रमण हैं जो प्रजनन प्रणाली को प्रभावित करते हैं, जो सामान्य रूप से योनि में मौजूद जीवों के अतिवृद्धि के कारण होता है या जब बैक्टीरिया या सूक्ष्म जीवों को यौन संपर्क के दौरान या चिकित्सा प्रक्रियाओं के माध्यम से प्रजनन पथ में प्रवेश कर जाते हैं। वे अनुचित तरीके से निष्पादित चिकित्सा प्रक्रियाओं जैसे असुरक्षित गर्भ समापन या खराब प्रसव प्रथाओं के कारण भी हो सकते हैं। आरटीआई के उदाहरणों में बैक्टीरियल वेजिनोसिस, यीस्ट इन्फेक्शन, सिफलिस और गोनोरिया शामिल हैं। इनमें से कुछ योग्य उपचारों द्वारा रोके जा सकते हैं।। जरूरी नहीं कि किसी में आरटीआई की उपस्थिति यौन गतिविधि को दर्शाए।

एचआईवी – ‘ह्यूमन इम्यूनो डेफिशियेंसी वायरस’, इस नाम की रचना इस प्रकार हुई – एच से ह्यूमन, यानि मनुष्य, आई से इम्यूनो डेफिशियेंसी, यानि रोग से लड़ने की क्षमता में कमी, और वी से वायरस या विषाणु। एचआईवी वायरस संक्रमित लोगों के शरीर में सीडी4 कोशिकाओं पर नियंत्रण कर लेता है और संक्रमित कोशिकाओं के माध्यम से अपने आप प्रजनन करने लगता है। हर संक्रमित सीडी4 कोशिका मरने से पहले वायरस की हज़ारों प्रतियां बना सकती है। एचआईवी से संक्रमित लोगों के शरीर में रोज़ लाखों एचआईवी विषाणु कण बन सकते हैं। एचआईवी अपने आप में कोई बिमारी नहीं है और हालांकि इससे आगे जाकर एड्स की स्थिति उत्पन्न हो सकती है, इस प्रक्रिया में कई साल लग सकते हैं। एचआईवी द्वारा संक्रमित लोग कई सालों तक एक स्वस्थ जीवन जी सकते हैं।

एड्स – ‘अक्वायर्ड इम्यून डेफिशियेंसी सिंड्रोम’, इसको यह नाम इन कारणों से दिया गया है – ए से अक्वायर्ड, क्योंकि यह एक अनुवांशिक स्थिति नहीं है, बल्कि एक बीमारी है, जो चार संचरण के माध्यम से होती है – 1) संक्रमित लोगों के साथ असुरक्षित यौन सम्बन्ध; 2) संक्रमित माता-पिता से शिशु को गर्भावस्था में; 3) बिना जांच का रक्त चढ़वाना, जो संक्रमित हो सकता है; 4) संक्रमित सुई या अन्य चिकित्सक उपकरणों के माध्यम से। आई से इम्यून, क्योंकि यह शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को प्रभावित करता है; डी से डेफिशियेंसी, क्योंकि यह इस प्रणाली को कमज़ोर करता है; और एस से सिंड्रोम, क्योंकि जो लोग एड्स के साथ जी रहे होते हैं, उन्हें विभिन्न बीमारियाँ और संक्रमण हो सकते हैं।

विंडो पीरियड – एचआईवी परीक्षण में शरीर में एचआईवी की उपस्थिति के लिए आम तौर पर जाँच नहीं की जाती है; वे प्रतिरक्षा प्रणाली द्वारा उत्पादित उन एंटीबॉडी की उपस्थिति के लिए जाँच करते हैं जो प्रतिरक्षा प्रणाली एचआईवी का सामना होने पर उत्पन्न करती है। एक ‘पाज़िटिव’ जांच परिणाम के लिए पर्याप्त एचआईवी एंटीबॉडी का उत्पादन करने में शरीर को 3 महीने तक लग सकते हैं। संक्रमण और सही परीक्षण परिणामों के बीच के इस तीन महीने की अवधि को विंडो पीरियड कहा जाता है। इस दौरान व्यक्ति पहले से ही संक्रमित हो सकते हैं और ऐसे में वे एचआईवी का प्रसार भी कर सकते हैं।

गर्भ समापन – गर्भावस्था के प्रेरित या सहज समाप्ति को गर्भ समापन कहते हैं।एक सहज गर्भ समापन तब होता है जब एक गर्भावस्था किसी भी चिकित्सा या शल्य चिकित्सा हस्तक्षेप के बिना समाप्त हो जाती है, जैसा ‘मिसकैरेज’ के मामले में होता है।प्रेरित गर्भ समापन में गर्भावस्था की समाप्ति के लिए शल्य चिकित्सा या चिकित्सा प्रक्रियाओं की मदद ली जाती है। “गर्भ समापन” का प्रयोग “गर्भपात” से अधिक उपयुक्त है। 

गर्भनिरोधक – इनका उद्देश्य गर्भावस्था को रोकना है। गर्भनिरोधक विकल्प होने से लोगों, विशेष रूप से महिलाओं, के लिए यह चुनने का अवसर बढ़ जाता है कि वे कितने बच्चे, कब पैदा करना चाहते हैं और बच्चे पैदा करना चाहते हैं या नहीं। गर्भनिरोधन के कुछ अस्थायी तरीके होते हैं (जैसे गर्भ निरोधक गोली और कंडोम) और कुछ स्थायी होते हैं (जैसे नसबंदी और नलबंदी), और कुछ लोग यौन संबंध को ‘सुरक्षित’ रखने के लिए महीने के कुछ दिन चुनते हैं – इस कम प्रभावी विधि को किसी की मासिक धर्म चक्र के “सुरक्षित दिन (सेफ डेज़)” कहा जाता है। 

इंद्रधनुष के रंग_यौनिकता शब्दावली
जेंडर की पहचान आंतरिक होती है, इसलिए ज़रूरी नहीं कि किसी की जेंडर पहचान दूसरों के लिए स्पष्ट हो। | चित्र साभार: सिद्धार्थ मचाडो / सीसी बाइ

अनुर्वरता – इसे 12 महीने के असुरक्षित यौन संबंध के बाद गर्भधारण करने में असमर्थता के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। इसका कारण दोनों सहभागियों में से किसी एक में या दोनों में भी हो सकता है। प्राथमिक अनुर्वरता तब होती है जब कोई व्यक्ति 12 महीने के असुरक्षित संभोग के बाद भी गर्भधारण नहीं कर पाता है। माध्यमिक अनुर्वरता एक ऐसी स्थिति को संदर्भित करती है जिसमें जिन लोगों का पहले शिशु हो चुका होता है, वे 12 महीने के असुरक्षित संभोग के बाद भी दोबारा गर्भधारण करने में असमर्थ होते हैं। ये चर्चाएँ महत्वपूर्ण हैं और इन पर नियमित रूप से ध्यान देने की आवश्यकता है, विशेष रूप से अधिकार-आधारित दृष्टिकोण से काम करते समय। “नपुंसकता” और “बांझपन” शब्दों का प्रयोग अनुपयुक्त और रूढ़िवादी है।

जेंडर-पक्षपाती लिंग चयन – गर्भावस्था की स्थापना से पहले जेंडर-आधारित लिंग चयन हो सकता है (उदाहरण के लिए, प्रीइम्प्लांटेशन लिंग निर्धारण और चयन, या इन-विट्रो निषेचन के लिए “शुक्राणु छँटाई”) या गर्भावस्था के दौरान (लिंग-चयनात्मक गर्भ समापन)। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि जहां प्रौद्योगिकी ने लिंग चयन के लिए एक अतिरिक्त विधि को सक्षम किया है, वहीं प्रौद्योगिकी समस्या का मूल कारण नहीं है। उन जगहों पर जहां बेटे की वरीयता नहीं देखी जाती है, इन तकनीकों की उपलब्धता से जेंडर-पक्षपातपूर्ण लिंग चयन में रुझान नहीं देखा गया है।

मातृ मृत्युदर – गर्भावस्था की अवधि और स्थान के निरपेक्ष, गर्भावस्था या उसके प्रबंधन से संबंधित किसी भी कारण (आकस्मिक कारणों को छोड़कर) से गर्भावस्था और प्रसव के दौरान या गर्भावस्था की समाप्ति के 42 दिनों के भीतर महिलाओं की मृत्यु की वार्षिक संख्या।

लिंगानुपात – लिंगानुपात 100 पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की संख्या है। इसका प्रयोग जेंडर पक्षपाती लिंग चयन, जन्म या बचपन में शिशु उपेक्षा या लड़कियों पर लड़कों के मुकाबले सांस्कृतिक वरीयता को इंगित करने के लिए संदर्भ के रूप में किया जा सकता है।

जेंडर परीक्षण – एक एथलीट, ज़्यादातर महिला एथलीटों, के जेंडर को “निर्धारित” करने के लिए परीक्षणों की एक श्रृंखला। ये परीक्षण अक्सर एथलीट के टेस्टोस्टेरोन हार्मोनस्तर को मापते हैं और यदि टेस्टोस्टेरोन का स्तर निर्धारित स्तर से अधिक है, तो एथलीट को इस आधार पर प्रतिस्पर्धा करने से प्रतिबंधित कर दिया जाता है कि उनके पास इंटरसेक्स भिन्नताएं हो सकती हैं और इसलिए वे एक महिला के रूप में प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकती हैं। इन परीक्षणों पर प्रतिबंध लगा दिया गया है और ये अब सिर्फ तब किये जाते हैं जबतब किसी एथलीट के प्रदर्शन के आधार पर “संदेह” की गुंजाइश होती है। कैस्टर सेमेया, दुती चंद और पिंकी प्रमाणिक जैसे एथलीट इन परीक्षणों के अधीन रहे हैं और उनकी भागीदारी, प्रदर्शन या जीत पर सवाल उठाया गया था या उसे निरस्त कर लिया गया था। इन परीक्षणों के खिलाफ काफी आलोचना हो रही है और इन्हें कानूनी रूप से कई संस्थानों में चुनौती दी गई है, जिसमें कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन फॉर स्पोर्ट भी शामिल है। 

विकलांगता – विकलांगता की कानूनी परिभाषा प्रत्येक देश के अनुसार अलग-अलग होती है, लेकिन विकलांगता मोटे तौर पर उस सामाजिक प्रभाव को संदर्भित करती है जिसका किसी व्यक्ति को किसी भी शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक या संवेदी क्षति के कारण सामना करना पड़ता है, जो विभिन्न बाधाओं के साथ जुड़कर समाज में उनकी पूर्ण और प्रभावी भागीदारी को समान रूप से बाधित कर सकता है। इसमें दूसरों के लिए उपलब्ध स्थानों और सेवाओं तक पहुँचने में बाधाएँ, कलंक और भेदभाव, दया या गैर-समावेशी होना शामिल हैं। विकलांगता का निर्माण सामाजिक रूप से भी किया जाता है, जिसमें सामाजिक और सांस्कृतिक वातावरण लोगों को उनकी दुर्बलता से अधिक अक्षम बनाता है। उदाहरण के लिए, श्रवण-बाधित लोग ‘विकलांग’ हैं क्योंकि ‘मुख्यधारा’ के समाज के अन्य लोग सांकेतिक भाषा (साइन लैंग्वेज) नहीं जानते हैं और उनके साथ संवाद नहीं कर सकते हैं। अधिकांश समाज सांकेतिक भाषा सीखने की आवश्यकता पर विचार नहीं करता है, जो एक श्रवण बाधित व्यक्ति और सामान्य रूप से विकलांग लोगों द्वारा सामना किये जाने वाले अनधिमान की बाधा को दर्शाता है। यह रवैया उन्हें अपने अधिकारों का दावा करने से रोकता है। भारत में, विकलांगता को विकलांग व्यक्तियों के अधिकार – राइट्स ऑफ़ पर्सन्स विथ डिसेबिलिटीज़ (RPD) – अधिनियम 2016 के तहत कवर किया गया है, जो 21 प्रकार की विकलांगताओं को मान्यता देता है, और मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम – मेन्टल हेल्थ केयर एक्ट – 2017 के तहत, जो मनोसामाजिक और बौद्धिक अक्षमताओं का वर्णन करता है।

जातिवाद – प्रथाओं और विश्वासों का समूह जो लोगों को जाति पदानुक्रम में उनकी स्थिति के अनुसार असमान अभिकर्तृत्व, सामाजिक प्रतिष्ठा, संसाधनों पर नियंत्रण और ज्ञान तक पहुँच प्रदान करता है। जातिवाद अक्सर जाति पदानुक्रम में “उच्च” लोगों द्वारा जाति पदानुक्रम में पिछड़ी जातियों के लोगों के खिलाफ भेदभाव या हिंसा के रूप में दिखता है। भारत में जातिवाद के सामान्य उदाहरणों में अंतर्जातीय विवाह के खिलाफ होना, कार्यस्थल में किसी के साथ उनकी जाति के कारण भेदभाव करना, कुछ जातियों के लोगों के लिए कुछ पूजा स्थलों में प्रवेश की अनुमति नहीं देना आदि शामिल हैं।

बर्नआउट – बर्नआउट एक सिंड्रोम है जिसकी अवधारणा लंबे समय तक कार्य-सम्बन्धी तनाव के परिणामस्वरूप होती है जिसे सफलतापूर्वक प्रबंधित नहीं किया गया है। यह तीन आयामों की विशेषता है – ऊर्जा की कमी या थकावट की भावना; किसी के काम से मानसिक दूरी में वृद्धि, या किसी के काम से संबंधित नकारात्मकता या निंदा की भावनाएं; और यह उन क्षेत्रों में हमारी रुचि या उत्साहित होने की क्षमता को कम कर सकता है जिनसे हमारा गहराई से लगाव होता है या जो हमें प्रेरित करने वाले होते हैं।बर्नआउट के बारे में अक्सर भुगतान या औपचारिक काम के संदर्भ में बात की जाती है, लेकिन यह किसी भी तरह के काम पर लागू हो सकता है, भुगतान या अवैतनिक, औपचारिक या अन्यथा। उदाहरण के लिए, कोई परिवार के किसी बीमार सदस्य की देखभाल करते हैं या किसी आपदा के बाद राहत कार्य के लिए स्वेच्छा से काम करते हैं, उन्हे भी बर्नआउट हो सकता है।

व्यापक यौनिकता शिक्षा

व्यापक यौनिकता शिक्षा – (कॉम्प्रिहेंसिव सेक्शुएलिटी एजुकेशन/ सीएसई) यौनिकता के संज्ञानात्मक, भावनात्मक, शारीरिक और सामाजिक पहलुओं के बारे में सीखने और सिखाने की एक पाठ्यक्रम-आधारित प्रक्रिया है। इसका उद्देश्य बच्चों और युवाओं को ज्ञान, कौशल, व्यवहार और मूल्यों से लैस करना है जो उन्हें सशक्त बनाएगा – उनके स्वास्थ्य, खुशहाली और गरिमा के एहसास के लिए; सम्मानजनक सामाजिक और यौनिक संबंधों के विकास के लिए; उनके चुनाव उनकी अपनी खुशहाली और अन्य लोगों को कैसे प्रभावित करते हैं, इस विचारशीलता के लिए; और अपने जीवन भर में अपने अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए। (रिवाइज़्ड एडिशन ऑफ़ द इंटरनेशनल टेक्निकल गाइडेंस ऑन सेक्शुअलिटी एजुकेशन, यूनेस्को, २०१८)

यौनिकता – यौनिकता के सिद्धांत को कई सालों से परखा जा रहा है। यौनिकता की कई परिभाषाएँ हैं जो इसके कई अवयवों को सम्मिलित करती हैं। हालांकि, कोई भी एक परिभाषा सर्वमान्य नहीं है, फिर भी नीचे दी गई परिभाषा यौनिकता की एक मूलभूत एंव काफ़ी हद तक व्यापक समझ देती है। 

यौनिकता मनुष्य के सम्पूर्ण जीवन का मुख्य पहलु है जिसमें लिंग, जेंडर पहचान व भूमिका, यौन प्रवृत्ति, सुख, घनिष्ठता व प्रजनन सम्मिलित है। यौनिकता विचार, परिकल्पना, इच्छा, विश्वास, अभिवृत्ति, मूल्य, व्यवहार, अनुभव, सम्बन्ध में अनुभव व अभिव्यक्ति की जाती है। यद्यपि यौनिकता के अंतर्गत उपरोक्त सभी पहलु आते हैं परन्तु सभी एक साथ अनुभव व व्यक्त नहीं किए जाते। यौनिकता पर जैविक, मनोवैज्ञानिक, सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक, नैतिक, कानूनी, ऐतिहासिक, धार्मिक व आध्यात्मिक कारक का प्रभाव होता है। (वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाईज़ेशन ड्राफ्ट परिभाषा 2002)

सहमति – यौन संबंधों के संदर्भ में सहमति तब होती है जब सभी पक्ष एक-दूसरे के साथ शारीरिक और यौन रूप से शामिल होने के लिए सहमत होते हैं। इसमें शामिल सभी लोगों को चुनाव करने की स्वतंत्रता और क्षमता होती है। सहमति एक बार का समझौता नहीं है और इसे किसी भी समय निरस्त किया जा सकता है। अतः सच्ची सहमति के लिए ज़रूरी है कि सहमति स्पष्ट, सुसंगत, इच्छुक और निरंतर हो। सहमति के बिना, यौन गतिविधि यौन हमला या यौन हिंसा है।

बाल यौनशोषण – अगर कोई उम्र में बड़ा या ज़्यादा ताकतवर व्यक्ति नाबालिक लोगों के यौनांगों, स्तनों या शरीर के किसी और हिस्से को उनकी मर्ज़ी के बिना छुए या उनको अपने यौनांग दिखाए, उनके शरीर के साथ अपना शरीर रगड़े (कपड़े पहने हुए या बिना पहने हुए), फोन पर या आमने-सामने उनसे सेक्स-संबंधी बातें करें, उनको कपड़े बदलते हुए या नहाते हुए देखें, उनसे अपने यौनांग छुआए या उनके यौनांग छुए तो यह बाल यौन शोषण है – चाहे छूने वाला व्यक्ति अपने परिवार का हो या बाहर का।

भारत में बाल यौन शोषण यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (2012) – प्रोटेक्शन ऑफ़ चिल्ड्रन फ्रॉम सेकशुअल ओफ्फेंसेस एक्ट (2012) – के तहत दंडनीय है, जिसमें उन गतिविधियों का वर्णन भी है जो दुर्व्यवहार करने वाले और बच्चे के बीच ‘त्वचा से त्वचा’ के संपर्क से परे हैं। कानून के मुताबिक 18 साल से कम उम्र वाले लोगों को बच्चा माना जाता है।

पीडोफ़ीलिया – ऐसा यौन व्यवहार जिसमें कामोत्तेजना प्राप्त करने का पसंदीदा/एकमात्र तरीका बच्चों के साथ सेक्स या अन्य यौनिक क्रियाएं करना, या इसकी कल्पना करना है। सभी बाल यौन अपराधी पीडोफाइल नहीं होते हैं। बच्चों पर ऐसी क्रियाओं के दीर्घकालीन प्रभाव उनके मानसिक, भावनात्मक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक हो सकते हैं।

समता – यह मापने योग्य, समान राजनीतिक प्रतिनिधित्व, स्थिति, अधिकार और अवसरों को संदर्भित करता है। जेंडर समता का अर्थ समानता नहीं है, लेकिन समाज में सभी जेंडरों के लोगों की समान अहमियत और उन्हें समान अधिकार और उपचार दिया जाना है।

विविधता – एक पारिस्थितिकी तंत्र में जीवित जीवों की विविधता की विस्तृत श्रृंखला। लोगों और जनसंख्या समूहों का वर्णन करते समय, विविधता में आयु, जेंडर, यौनिकता, विकलांगता की स्थिति, जाति, नस्ल, जातीयता, राष्ट्रीयता और धर्म के साथ-साथ शिक्षा, आजीविका और वैवाहिक स्थिति जैसे कारक शामिल हो सकते हैं।

सुरक्षित स्थान (सेफ स्पेस) – यौनिकता के दृष्टिकोण से, एक सुरक्षित स्थान किसी लोगों के समूह के लिए उनकी यौनिकता और यौन व जेंडर अभिव्यक्ति के बिनह पर पक्षपात, निगरानी व नियंत्रण, पूर्वाग्रह, उत्पीड़न और हिंसा से मुक्त है। यह सम्मान, खुलेपन, ईमानदारी और विविधता को प्राथमिकता देता है, और उस तरह के भेदभाव को कायम नहीं रखता है जिसका लोगों को बड़े पैमाने पर समाज से और समाज में सामना करना पड़ सकता है।

समावेशी स्थान – एक स्थान (एक कार्यस्थल, एक शैक्षणिक संस्थान, एक समुदाय, एक बैठक) को ‘समावेशी’ माना जा सकता है, अगर यह विविध जेंडर और यौन पहचान; मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं के साथ जी रहे; शारीरिक, मनोसामाजिक या बौद्धिक अक्षमताओं के साथ जी रहे; विविध धर्मों, वर्गों और जातियों के; और कोई अन्य पहचान/जनसांख्यिकीय के लोगों को स्वीकार कर रहा हो। यह वह जगह है जहां लोग सुरक्षित, समर्थित और शामिल महसूस करते हैं, और जहां उनकी पहचान या अभिव्यक्ति (जैसे जेंडर और यौनिकता) अनुचित या अपमानजनक व्यवहार को जन्म नहीं देती है। यौन और प्रजनन अधिकारों के संदर्भ में, एक समावेशी स्थान यौनिकता और संबंधित मुद्दों पर विविध दृष्टिकोणों को भी समायोजित करता है, जैसे कि विवाह, यौन साझेदारों की संख्या, बाल-मुक्त रहने के निर्णय आदि, और इनके लिए लोगों को नकारात्मक रूप से नहीं देखता है।

विशेषाधिकार (प्रिविलेज) – एक अनर्जित संसाधन, सामाजिक अवस्था या जीवन की स्थिति जो केवल कुछ लोगों को उनके सामाजिक निर्धारकों के कारण आसानी से उपलब्ध होती है, जैसे कि एक विशेष जेंडर (पुरुष), या जाति, या राष्ट्रीयता, का होना; या विषमलैंगिक, या धनी होना आदि। यह अनेक संसाधनों तक पहुंच, सामाजिक लाभ और समाज के मानदंडों और मूल्यों को आकार देने के अभिकर्तृत्व के संबंध में लाभ प्रदान करता है। विशेषाधिकार वाले लोग एक आदर्श बन जाते हैं जिसके विरुद्ध दूसरों को परिभाषित किया जाता है।

यह आलेख मूलरूप से तार्शी डॉट नेट पर प्रकाशित हुआ था। इस शब्दावली को 2021 में इंटरन्यूज़ के सहयोग से विकसित किया गया था।

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तार्शी

तार्शी, दिल्ली स्थित एक समाजसेवी संस्था है जो मानवाधिकारों पर काम करती है। इसका काम लैंगिक और यौनिक पहचान, स्वास्थ्य और अधिकारों से जुड़ी जानकारी प्रदान करना है। जानकारी, ज्ञान और समझ बनाकर यह लोगों को उनके जीवन पर अधिक नियंत्रण और उनके अधिकार हासिल करने में सक्षम बनाती है।

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