August 30, 2023

‘पानी बरसे आधा पूस, आधा गेंहू आधा भूस’

पर्यावरण पर भारतीय किसानों के परंपरागत ज्ञान की झलक दिखाती कुछ राजस्थानी कहावतें।
4 मिनट लंबा लेख

भारतीय किसान के पारंपरिक ज्ञान का भंडार इतना भरा-पूरा कहा जा सकता है कि न केवल हर इलाक़े की जलवायु के मुताबिक खेती-किसानी के तरीके बदल जाते हैं बल्कि इससे जुड़े हर सवाल का जवाब भी इसमें मिल जाता है। यहां तक कि मौसम का अंदाज़ा लगाने, आपदाओं की चेतावनी देने और फसल से जुड़ी भविष्यवाणी करने में यह ज्ञान काम आता है। यह देखना बड़ा दिलचस्प है कि परंपरागत किसान हवाओं के रुख, पशु-पक्षियों के व्यवहार और पारंपरिक लग्न-मुहूर्त की जानकारी के सहारे यह सब बता सकते हैं। 

राजस्थान, देश का एक ऐसा राज्य है जहां मौसम और भौगोलिक दुर्लभताएं अपने चरम पर दिखाई देती हैं और यही बात यहां के खेतिहरों के व्यवहारिक और परंपरागत ज्ञान में विविधता लाती है। इस आलेख में यहां के अलग-अलग इलाक़ों और समुदायों के आपसी संवाद में शामिल रहने वाले इसी ज्ञान की झलक है। चलिए, देसी कहावतों के ऐसे कुछ उदाहरणों पर गौर करते हैं जो मौसम और जलवायु से जुड़े अंदाज़े लगाते हुए कही जाती हैं।

1. पेड़-पौधों पर दिखते प्रभाव से

नीम्बी सूक्त नीम पर, पड़ै न नीचे आय
अन्न न निपजै एक कण, काल पड़ैलो आय

अगर नीम के फल यानी निम्बोली पककर जमीन पर गिरने की बजाय पेड़ पर ही सूख जाएं तो उस साल फसल अच्छी नहीं होगी और यह समझ जाइए कि अकाल पड़ने ही वाला है।

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2.  हवा की गति और दिशा से

सावण में तो सूरयो चालै, भादरवै परवाई
आसोजां में नाड़ां टांकण, भरभर गाड़ा लाई

सावन (जुलाई-अगस्त) के महीने में उत्तर-पश्चिम दिशा के बीच से, भादौं (अगस्त-सितंबर) के महीने में पूर्व दिशा से और आश्विन (सितंबर-अक्टूबर) के महीने में पश्चिम और दक्षिण दिशा के बीच से हवा चल रही हो तो उस साल अच्छी बारिश होने की संभावना होती है।

3. पशुपक्षियों और कीटों के व्यवहार से

चिड़िया नहाने धूल में, मेंढक बोले अपार
चींटी ले आंकड़ा चढ़ी तो बरखा होवे अपार

यानी चिड़िया अगर धूल-मिट्टी से नहाई हुई दिखने लगें, मेंढक लगातार आवाज़ें निकाल रहे हों और चींटी अपने अंडे लेकर भागती हुई दिख जाए तो समझिए बहुत जल्दी बारिश होने वाली है।

गिरगिट रंग बिरंग हौ, मक्खी चटका देह
मांकड़िया चह-चह करें, जद आतां जो मेह

गिरगिट बार-बार रंग बदलता दिखाई दे रहा हो, मक्खी लोगों के शरीर पर चिपकने लग जाए और मकड़ी बेचैनी से इधर-उधर घूमती दिखे तो बहुत अधिका बारिश होने की संभावना होती है।

खलिहान में हाथ में गेहूं के कुछ दानें_पर्यावरण राजस्थान
चित्र साभार: विकीमीडिया कॉमन्स

4. बादलों के रूपरंग से

दिनूंग्यॉ री छींतरी, संझ्या रहा गडमेल
रात्यॅू तारा निर्मला, औ काला रहा खेल

दिन के समय, बिखरे हुए बादल आसमान पर छाएं रहें और शाम के समय ये घटाएं आपस में मिल जाएं लेकिन रात के समय आसमान साफ हो जाए और तारे दिखाई देने लगें तो यह मानना चाहिए कि अकाल पड़ने वाला है।

बदली बादल में गमसै, सुण भड्डली पानी बरसै
बादल ऊपर बाद धावै, सुण भड्डली जल आतुर आवै

बारिश आने से पहले धुएं की तरह उफनते हुए बादलों का आना खुशी की बात है। बादल अगर एक-दूसरे पर चढ़ते हुए टकराते हुए देखे जाएं तो यह माना जाना चाहिए की बारिश ज़रूर होगी।

5. ग्रहनक्षत्र और हिंदी महीनों से

चौथा चमका बीजला पॉचा गाजे गाजसातो तूड़ नपजै बरखा बरसे ज़ोर से उगन्ता परभात

आषाढ़ (जून-जुलाई) के महीने की चौथी तिथि को सुबह-सुबह बिजली चमके, पंचमी को बाद गरजे तो यह मानना चाहिए कि सभी फसलों की पैदावार अच्छी होगी।

चांद के कूड़ों व दूसरे दिन बाजे उड़ो

अगर चंद्रमा के चारों तरफ गोलाकार घेरा सा दिखाई दे तो दूसरे दिन, दिनभर आंधी-तूफ़ान चलता रहता है। अगर उस घेरे में तारा भी दिखाई दे तो यह मानना चाहिए कि अगले दो-चार दिनों बहुत अच्छी बारिश होने वाली है।

पानी बरसे आधा पूस, आधा गेंहू आधा भूस

जनविश्वास है कि अगर पौष (दिसंबर-जनवरी) के महीने में आधे समय तक पानी बरसता रह जाए तो आधी पैदावार ही मिलने की संभावना होती है।

लेखक के बारे में
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आलोक व्यास

डॉ आलोक व्यास, सामाजिक विकास कार्यक्षेत्र में पिछले 18 वर्षों से काम कर रहे हैं। आलोक समाज के विभिन्न वर्गों से संवाद करते हुए सामाजिक विकास की चिंताओं और विभिन्न समुदायों के परंपरागत ज्ञान को समझने में रुचि रखते हैं। वर्तमान में स्वयंसेवी संस्था सिकोईडिकोन में उपनिदेशक पद पर कार्य करते हुए संस्थागत विकास कार्यक्रम से जुड़े हुए हैं। जलवायु परिवर्तन, सतत विकास जैसे वैश्विक विकास के विषयों पर ज़मीनी स्तर के जन संगठनों का क्षमतावर्धन का कार्य कर रहे हैं।

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