मार्च 2020 में कोविड-19 महामारी की शुरुआत और उसके बाद देश भर में लगे लॉकडाउन ने भारत में गांव से शहरों की तरफ़ हुए पलायन की गम्भीरता और प्रवासी श्रमिकों एवं उनके परिवारों की वास्तविक दुर्दशा को सामने लाने का काम किया था। सामाजिक और आर्थिक रूप से वंचित ग्रामीण समुदायों के लिए काम के लिए शहरों में जाकर बसना एक मुख्य रणनीति रही है।
प्रवासी श्रमिकों के साथ काम करने के बाद हमारा अनुभव कहता है कि प्रवासन के चलते होने वाला विकास उस क्षेत्र की सामाजिक और आर्थिक छवि को प्रभावित कर सकता है। प्रवासी श्रमिकों द्वारा दिया गया धन गावों की अर्थव्यवस्था की सुगमता बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इससे न केवल प्रवासी श्रमिकों के परिवार लाभान्वित होते हैं बल्कि पूरे गांव की अर्थव्यवस्था को लाभ पहुंचता है। इससे जीवन स्तर बेहतर होता है, बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं के ज़रिए मानव विकास (ह्यूमन डेवलपमेंट) में निजी निवेश बढ़ता है, उत्पादन से जुड़े संसाधनों का बेहतर इस्तेमाल होता है और पैदावार में वृद्धि होती है। इसके अलावा इस तरह से हुआ विकास लंबे समय तक चलता रह सकता है।
किसी आपदा या संकट के कारण होने वाले प्रवास और रोज़गार के नए मौक़े खोजने के लिए किए गए प्रवास के बीच अंतर करना ज़रूरी है। इन दोनों को अलग करने वाली चीज़, लोगों में प्रवास से जुड़े फ़ैसलों को नियंत्रित करने की क्षमता है। इसे इस उदाहरण से समझ सकते हैं: जलवायु-संवेदनशील क्षेत्रों में प्रवास के विषय पर किए गए एक अध्ययन में जीवन को बचाने के लिए किए गए प्रवास और अनुकूलन के लिए किए गए प्रवास के बीच के अंतर को पहचाना गया—इसे दूसरे शब्दों में संकट से निकलने के लिए किया गया प्रवास और विकास के लिए किया गया प्रवास कहा जा सकता है।
साल 2019 से सेंटर फ़ॉर मायग्रेशन एंड इंक्लूसिव डेवलपमेंट (सीएमआईडी) और ग्राम विकास मिलकर ओडिशा में सुरक्षित और सम्मानजनक प्रवासन पर काम कर रहे हैं।
यह काम करते हुए साल 2019 से 2021 के बीच हम लोगों ने चार इंडिपेंडेंट एम्पिरिकल स्टडीज़ (स्वतंत्र प्रयोग और अनुभव आधारित अध्ययन) किए। ओडिशा के कुछ चुनिंदा जिलों में किए इन अध्ययनों का उद्देश्य देशभर में लगे लॉकडाउन से पहले यहां के परिवारों को मिलने वाली उस मासिक धनराशि का अनुमान लगाना था जो उन्हें उनके प्रवासी सदस्य भेजते थे। इन चुने हुए ज़िलों के परिवारों को मिलने वाली मासिक धनराशि अच्छी थी। एक अनुमान के अनुसार यह धनराशि गंजम में 124 करोड़ रुपए , कालाहांडी में 37 करोड़ रुपए, गजपति में 15 करोड़ रुपए और कंधमाल ज़िले में 16 करोड़ रुपए दर्ज की गई। कालाहांडी ज़िले के थुआमूल रामपुर प्रखंड में प्रवासियों के परिवारों को मिलने वाली धनराशि 30 करोड़ रुपए रही। यह धनराशि विभिन्न ग्रामीण विकास कार्यक्रमों के तहत सरकार द्वारा सालाना खर्च की जाने वाली राशि के बराबर है।
इस अध्ययन से यह भी सामने आया कि यदि लोगों को उनके गांव में ही 10,000–12,000 रुपए की मासिक आय देने वाला कोई काम मिल जाए तो उनमें से ज्यादातर अपना घर छोड़कर बाहर नहीं जाना चाहेंगे। हालांकि आर्थिक गतिविधियों के निम्न स्तर को देखते हुए निकट भविष्य में देश के अधिकांश इलाक़ों में यह सम्भव होता दिखाई नहीं पड़ता है। इसके साथ ही, जलवायु परिवर्तन जैसी नई उभरती चुनौतियों के कारण और ज्यादा लोगों को आजीविका के लिए दूसरी जगह जाने पर बाध्य होना पड़ रहा है। यह सही है कि प्रवासी कामगार भारत के महानगरों की रीढ़ हैं और उनके गांव छोड़ देने के कारण ही पीछे रह गए लोगों को तत्कालिक आर्थिक समाधान मिल पाता है। लेकिन प्रवासियों और उनके परिवारों को इसकी भारी क़ीमत चुकानी पड़ती है।
भारत के अधिकतर राज्यों में राशन कार्ड व्यक्तिगत रूप से आवंटित न करके पूरे घर को आवंटित किया जाता है, जिससे समस्या और अधिक जटिल हो जाती है।
वैसे तो सरकारी नीतियां लोगों को जीवन के अनुकूल वातावरण प्रदान करती हैं लेकिन इनसे प्रवासियों के जीवन में कोई संतोषजनक अंतर नहीं आया है। उदाहरण के लिए, अंतरराज्यीय प्रवासी कामगार विनियमन अधिनियम (1979) ठेकेदारों के लिए लाइसेंस और उनके अपने राज्यों से बाहर के श्रमिकों को काम पर रखने के लिए प्रतिष्ठानों का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य बनाता है। इसके साथ ही यह श्रमिकों के लिए कई अन्य कल्याणकारी साधन प्रदान करता है। इन साधनों में विस्थापन भत्ता, यात्रा भत्ता, स्थानीय श्रमिकों के बराबर मज़दूरी और बिना किसी लिंग-भेद के मज़दूरी दिया जाना शामिल है। हालांकि यह प्रवासी मज़दूरों के लिए बहुत अधिक उपयोगी साबित नहीं हुआ। संबंधित क्षेत्र के श्रम विभाग में सीमित मानव संसाधन, नियमों के ख़राब क्रियान्वयन, भ्रष्टाचार, सीएसओ और ट्रेड यूनियनों के सीमित प्रभाव, जागरूकता की कमी और प्रवासी श्रमिकों की अपने अधिकारों को लेकर बातचीत कर सकने की अयोग्यता जैसे कारक भी इस स्थिति के मुख्य कारण हैं। अनौपचारिक रूप से नियुक्त होने के कारण इन श्रमिकों को कर्मचारियों के राज्य बीमा या भविष्य निधि सुविधाओं का लाभ भी नहीं मिलता है।
हालांकि वन नेशन वन राशन कार्ड (ओएनओआरसी) योजना पोर्टबिलिटी (देश के किसी भी राज्य में राशन कार्ड के इस्तेमाल की योग्यता) की सुविधा प्रदान करता है लेकिन इससे अभी तक प्रवासी श्रमिकों को उनके काम वाली जगहों पर राशन प्राप्त करने में कुछ ख़ास मदद नहीं मिल सकी है। ज़्यादातर योजनाओं की तरह ही इस पहल को भी सही तरह से प्रचारित न किए जाने के चलते सम्भावित लाभार्थियों में इसे लेकर कोई जागरुकता नहीं है। भारत के ज़्यादातर राज्यों में राशन कार्ड व्यक्ति विशेष के लिए न होकर पूरे परिवार के लिए आवंटित किया जाता है जो इस तरह के मामलों को और अधिक जटिल बना देता है। ओएनओआरसी के तहत राशन को मूल निवास और प्रवास स्थान के बीच विभाजित किया जा सकता है लेकिन इस तरह की समझ के साथ काम किया जाना उतने बड़े स्तर पर संभव नहीं हो पाया है।
प्रवासन के दर में होने वाली वृद्धि की सम्भावना और नीतियों के कार्यान्वयन में उपस्थित कमियों को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि परिवारों के सुरक्षित, सम्मानजनक और समावेशी प्रवासन को सुनिश्चित करने में स्वयंसेवी संगठन अपनी स्पष्ट भूमिका निभा सकते हैं। महामारी के दौरान इन मुद्दों पर काम के अपने अनुभवों के आधार पर हम कुछ उपाय सुझा रहे हैं जिनका उपयोग स्वयंसेवी संस्थाएं प्रवासियों के साथ काम करने के दौरान कर सकती हैं।
मूल निवास से प्रवास स्थान (सोर्स-डेस्टिनेशन कॉरिडोर) तक पहुंचने में मध्यस्थता करना
सोर्स-डेस्टिनेशन कॉरिडोर के विचार में मूल निवास से प्रवास स्थान तक की पूरी प्रक्रिया और अनुभव की जानकारी होती है। इससे प्रवासियों, उनके परिवारों और दोनों ही संदर्भों में एक बड़े समुदाय के सामने आने वाले अवसरों और चुनौतियों की पहचान करने में मदद मिलती है।
मूल निवास और प्रवास स्थान दोनों ही क्षेत्रों को शामिल कर मध्यस्थता करना सिर्फ़ एक क्षेत्र को शामिल करने वाली मध्यस्थता की तुलना में अधिक असरदार होता है। प्रवास के दोनों सिरों पर ध्यान देना श्रमिकों और उनके परिवार के सदस्यों के लिए अंतरराज्यीय समन्वय और सेवाओं तक निर्बाध पहुंच को सुविधाजनक बनाता है। यह तरीका उस स्थिति में अधिक कारगर होता है जब या तो संगठन की उपस्थिति मूल निवास और प्रवास स्थान दोनों ही जगहों पर होती है या फिर मूल निवास और प्रवास स्थानों पर काम कर रहे संगठनों के बीच समन्वय होता है।
उदाहरण के लिए, राजस्थान, सूरत, अहमदाबाद और मुंबई में काम कर रही आजीविका ब्यूरो नाम की स्वयंसेवी संस्था कामकाज के लिए राजस्थान के ग्रामीण इलाक़ों से उदयपुर, अहमदाबाद या मुंबई जाने वाले प्रवासी श्रमिकों की मदद करती है।
ग्राम विकास एवं सीएमआईडी मूल निवास से प्रवास स्थान तक सुरक्षित प्रवास कार्यक्रम के लिए एक साथ मिलकर काम कर रहे हैं। जब ओडिशा के कालाहांडी ज़िले के श्रमिक काम के लिए केरल वापस नहीं लौट पा रहे थे तब ग्राम विकास ने दूसरे गांवों से प्रवासियों को लाने और उनकी यात्रा बीमा करवाने का प्रबंध किया था। ग्राम विकास से प्रवासियों की ज़रूरतों से संबंधित जानकारी मिलने के बाद सीएमआईडी ने वहां पहुंच रहे प्रवासी श्रमिकों के लिए सम्भावित औपचारिक रोज़गार अवसरों की पहचान का काम शुरू कर दिया। इसने ओडिशा से केरल की उनकी यात्रा की पूरी ज़िम्मेदारी उठाई और वहां पहुंचने के बाद श्रमिकों की कोविड-19 की जांच भी की गई। इसके अलावा श्रमिकों को बैंक खाता खुलवाने में भी मदद दी गई और किसी भी तरह की शिकायत का निवारण मिल-जुलकर कोशिश कर किया जाता था।
साक्ष्यों पर आधारित कार्यक्रम बनाएं (एविडेंस इंफॉर्म्ड इंटरवेंशन)
एक से दूसरी जगह पर प्रवासन के लिए कार्यक्रम बनाते हुए पहले उपलब्ध जानकारी और अनुभवों का इस्तेमाल कर इसे अधिक कारगर तरीक़े से किया जा सकता है। मूल निवास वाले स्थानों पर यह समझना कि कितनी बड़ी संख्या में लोगों को बाहर जाना है, सामुदायिकता के आधार पर अलग तरह से प्रवास की व्यवस्था और लोगों की उम्मीदों के मुताबिक़ मध्यस्थता की सुविधा दी जा सकती है। उदाहरण के लिए ग्राम विकास और सीएमआईडी द्वारा किए गए अध्ययन से यह सामने आया कि कालाहांडी और कंधमाल के ज़्यादातर श्रमिक केरल जाते हैं, वहीं गंजम ज़िले के मज़दूर प्रवास के लिए सूरत जाते हैं। इस तरह की जानकारियों से मूल निवास क्षेत्रों में कार्यरत संगठनों को सहयोग के लिए संबंधित प्रवास स्थानों पर कार्यरत संगठनों का पता लगाने में सुविधा होती है और वे अपने क्षेत्रों से जाने वाले श्रमिकों के कल्याण को सुनिश्चित कर पाते हैं।
श्रमिकों की मातृभाषा में वॉइस संदेश के माध्यम से सूचना देने से अनपढ़ लोग भी लाभान्वित हो सकते हैं।
प्रवास स्थानों पर, प्रवासी श्रमिकों की प्रोफाइल की जानकारी उपलब्ध होने से उन तक पहुंचने के लिए कारगर रणनीति तैयार करने में मदद मिल सकती है। उदाहरण के लिए, प्रिंट मीडिया में सूचना, शिक्षा और संचार सामग्री से अनपढ़ श्रमिकों को लाभ नहीं होगा। हालांकि ऐसे टारगेटेड समूहों तक उनकी मातृभाषा में तैयार किए गए वॉइस संदेश आसानी से पहुंच सकते हैं। केरल के एर्नाकुलम ज़िले में 40 फ़ीसदी प्रवासी मज़दूर पश्चिम बंगाल के मूल निवासी हैं, वहीं 20 फ़ीसदी असम और तमिलनाडु से और 12 फ़ीसदी प्रवासी श्रमिक ओडिशा के हैं। आगे बढ़कर काम करने वाले कार्यकर्ताओं की भर्ती और इन प्रवासी श्रमिकों के साथ प्रभावी संचार सुनिश्चित करने के लिए और एक उपयुक्त भाषा का चुनाव करने के लिए यह जानकारी महत्वपूर्ण है।
क्रॉस-कटिंग पार्टनरशिप बनाएं
प्रवासी श्रमिकों के कल्याण को सुनिश्चित करने में सरकारी-निजी साझेदारी की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। इस तरह की साझेदारी का लाभ प्रवास स्थानों पर प्रवासी श्रमिकों के स्वास्थ्य की देखभाल पर स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ता है। सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्रों पर आम तौर पर आउट पेशेंट सेवाओं या डॉक्टरों से सलाह लेने का समय और प्रवासियों के काम का समय एक ही होता है। ऐसे में उनके लिए दिन की मजदूरी खोए बिना मुफ्त स्वास्थ्य सेवा प्राप्त करना मुश्किल हो जाता है। इसके कारण उन्हें अपने काम के बाद बग़ैर डॉक्टरी सलाह के निजी फ़ार्मेसी से दवाएं लेने पर बाध्य होना पड़ता है। दवा की दुकानों पर अक्सर बिना जांच के ही प्रवासी श्रमिकों को दवा दे दी जाती है। इस तरह, तपेदिक से पीड़ित किसी श्रमिक को टीबी की जांच और उसके उचित इलाज की उचित सलाह मिलने की बजाय साधारण कफ सिरप भर मिलता है।
सीएमआईडी के पास सार्वजनिक स्वास्थ्य में विशेषज्ञता थी और वे प्रवासी श्रमिकों की सुविधा के अनुसार अपनी सेवाएं भी दे सकते थे लेकिन उनके पास मोबाइल क्लिनिक को चलाने के लिए वित्तीय संसाधन उपलब्ध नहीं थे। मंगलोर रिफ़ायनरी एंड पेट्रोकेमिकल लिमिटेड (एमआरपीएल) एक सार्वजनिक क्षेत्र का उद्यम है। इसने मोबाइल क्लिनिक के रूप में इस्तेमाल किए जाने वाले वाहन को ख़रीदने में होने वाला खर्च अपने ज़िम्मे लेने का प्रस्ताव दिया। विप्रो लिमिटेड ने अपने सीएसआर पहल के अंतर्गत इस मोबाइल क्लिनिक के संचालन के लिए आर्थिक मदद देने की पेशकश की। इस खर्च में कर्मचारियों, दवाइयों, अन्य सामग्री तथा गाड़ी के लिए ईंधन की लागत शामिल थी। नेशनल हेल्थ मिशन (एनएचएम) ने इस कार्यक्रम के क्रियान्वयन के तकनीकी पहलुओं का ज़िम्मा अपने ऊपर लिया और साथ ही किसी भी अन्य प्रकार की दवाइयां और सामग्री को उपलब्ध करवाने का काम भी किया। एनएचएम ने रेफरल सेवाओं/फॉलो-अप की आवश्यकता वाले मामलों के प्रबंधन करने के लिए एर्नाकुलम में सार्वजनिक स्वास्थ्य संस्थानों के साथ जोड़े जाने की सुविधा प्रदान की। इससे सीएमआईडी बंधु क्लिनिक के संचालन में सक्षम हो सका। बंधु क्लिनिक एक ऐसा मोबाइल क्लिनिक है जो श्रमिकों को उनके काम के घंटे ख़त्म होने के बाद मुफ़्त प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध करवाता है। इस क्लिनिक ने कई ईंट भट्टों, मछली पकड़ने वाले तटों, प्लाईवुड कारखानों, मछली प्रसंस्करण इकाइयों, औद्योगिक समूहों, फुटलूज़ श्रम के आवासीय क्षेत्रों और एर्नाकुलम के बाजारों में 40,000 से अधिक प्रवासी श्रमिकों को अपनी सेवा प्रदान की है। इन मोबाइल क्लीनिकों ने 70,000 प्रवासी श्रमिकों को कोविड-19 का टीका लगवाने में भी प्रशासन की मदद की है।
ज़रूरत के मुताबिक सुविधा तंत्र बनाना
मूल निवास एवं प्रवास स्थान दोनों ही जगहों पर रिसोर्स सेंटर की उपयोगिता बहुत अधिक है। मूल निवास क्षेत्रों में ये केंद्र प्रवास से जुड़े निर्णय लेने की प्रक्रिया में संभावित प्रवासी श्रमिकों की मदद कर सकते हैं। साथ ही उन्हें रोज़गार अवसरों और आवश्यकताओं से जुड़ी सूचना देकर उन्हें एक अच्छी नौकरी तक पहुंचने के योग्य बना सकते हैं। वे यात्रा की योजना बनाने, टिकट आरक्षण और कोविड-19 टीका प्रमाणपत्र जैसे ज़रूरी काग़ज़ात तैयार करने में श्रमिकों की मदद कर सकते हैं। इसके साथ ही वे बैंक खाता खुलवाने और स्थानीय प्रशासनों से उनके सम्पर्क में भी मदद पहुंचा सकते हैं जिससे श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा से जुड़ी सुविधाएं मिल सके।
ग्राम विकास, गंजम ज़िले में बेरहामपर रेलवे स्टेशन के पास श्रमिक बंधु सेवा केंद्र नाम का एक रिसोर्स सेंटर चलाता है। इस रेलवे स्टेशन से भारी संख्या में श्रमिक देश के अंदर और बाहर विभिन्न जगहों की यात्रा के लिए जाते हैं। यह सेंटर श्रमिकों को काम पर जाने या उनके वापस घर लौटने, दोनों ही समय में परिवहन से जुड़ी सुविधाएं मुहैया करवाता है।
कालाहांडी जिले के थुआमुल रामपुर ब्लॉक और कंधमाल जिले के दरिंगबाड़ी ब्लॉक में, ऐसे केंद्रों का एक नेटवर्क दूरदराज के गांवों के श्रमिकों को सूचना और दस्तावेज़ीकरण से जुड़ी सेवाएं प्रदान करता है। इन केंद्रों ने परिवार के सदस्यों को लापता श्रमिकों का पता लगाने, नियोक्ताओं द्वारा प्रवास स्थान पर जबरन हिरासत में लिये गए श्रमिकों की रिहाई करवाने और घर से दूर मरने वाले प्रवासी श्रमिकों के शवों की वापसी आदि जैसे कामों में मदद की है।
बैंक खाते खोलना और आंगनवाड़ी और स्कूलों में बच्चों के प्रवेश की सुविधा प्रदान करना उन सेवाओं में से हैं जिनका लाभ प्रवासी अपने प्रवास स्थान पर रिसोर्स सेंटर से प्राप्त कर सकते हैं।
प्रवास स्थान पर होने वाले रिसोर्स सेंटर विभिन्न सामाजिक कल्याणकारी योजनाओं में रजिस्ट्रेशन करवाने, सरकारी विभागों में शिकायत दर्ज करवाने और उनके निवारण के लिए समय-समय पर पूछताछ करने में श्रमिकों की मदद करते हैं। बैंक में खाते खोलना, आंगनवाड़ी और स्कूलों में बच्चों के प्रवेश की सुविधा, टीकाकरण के लिए नामांकन और श्रमिकों को नौकरी खोजने या कानूनी सहायता प्राप्त करने में मदद करना ऐसी कुछ सेवाएं हैं जो प्रवासी अपने प्रवास स्थान के रिसोर्स सेंटर्स से प्राप्त कर सकते हैं।
यह बात याद रखना महत्वपूर्ण है कि प्रवासन की प्रक्रिया में केवल प्रवासी श्रमिक ही एकमात्र हितधारक नहीं है बल्कि उनके पीछे छूट जाने वाला उनका परिवार भी उतना ही महत्वपूर्ण है। उनकी ज़रूरतें और चुनौतियां हमेशा ही बहुआयामी होती हैं और इसलिए उनकी मदद के लिए तैयार संसाधन भी बहुआयामी होने चाहिए। इसके लिए कई विषयों से संबंधित क्षेत्रों में काम करने और एजेंसियों के विविध समूह को एक साथ लाने की ज़रूरत है। मूल निवास के स्तर पर पंचायती राज संस्थान, सरकारी विभाग और वित्तीय संस्थान, यात्रा की सुविधा देने वाली संस्था, कौशल निर्माण संस्थान, पंचायती राज संस्थान, सरकारी विभाग और सेवा प्रदाता जैसे वित्तीय संस्थान, यात्रा सुविधा प्रदाता, कौशल संस्थान, भर्ती एजेंसियां और संसाधन केंद्र स्रोत स्तर पर प्रवासियों के लिए महत्वपूर्ण इकाइयां हैं। प्रवास स्थान पर नियोक्ता, उद्यम संघ, ट्रेड यूनियनों, मीडिया और यहां तक कि वहां के समाज की भूमिका भी महत्वपूर्ण होती है।
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