April 11, 2025

फील्ड वर्कर की डायरी: संघर्ष, सवाल और सैलरी का हिसाब!

समुदाय के साथ काम करते हुए, समाजसेवी संस्थाओं के जमीनी कार्यकर्ता कई बार ऐसी दुविधाओं से गुजरते हैं जब उन्हें समझ नहीं आता कि हंसे या नाराज हों, ऐसी ही कुछ झलकियां।
4 मिनट लंबा लेख

1

जब आप एक लाभार्थी को आवास योजना के लिए दो घंटे समझाएं, तीन दिन दस्तावेज बनाने में खपा दें और छह बार से अधिक पंचायत ऑफिस उनके साथ जाएं 

लाभार्थी –

पंचायत सीरीज़ का एक किरदार दूसरे से कहते हुए कि हम सोच रहे थे, आपको इतना सब करने में सैलरी कितनी मिलती होगी?_जमीनी कार्यकर्ता

2

जब आप समुदाय को जल, जंगल और जमीन के मुद्दे पर इकट्ठा करने में पूरी रात लगा दें लेकिन पंचायत में सुबह बस एक व्यक्ति दिखे

फेसबुक बैनर_आईडीआर हिन्दी

लाभार्थी –

पंचायत सीरीज़ का एक किरदार दूसरे से कहते हुए कि भैया, वो तो हम यहीं सो गए थे, सो आपको मिल गए_जमीनी कार्यकर्ता

3

जब आप पंचायत में पारदर्शिता की बात करते हैं – “यह फंड हमारे अधिकार हैं, इनका सही उपयोग हम सबकी जिम्मेदारी है!”

समुदाय से एक व्यक्ति-

पंचायत सीरीज़ का एक किरदार दूसरे से कहते हुए कि भैया, आप लोग हमें क्यों बीच में घसीटते हो सीधा सरकार को क्यों नहीं समझाते_जमीनी कार्यकर्ता

4

जब आपको किसी लाभार्थी को किसी योजना में जोड़ते-जोड़ते लंबा वक़्त लग जाए

लाभार्थी-

पंचायत सीरीज़ का एक किरदार दूसरे से कहते हुए कि भैया, अगर इनका ‘ऊपर तक’ जुगाड़ हो ना तो ये काम तीन दिन में हो जाता_जमीनी कार्यकर्ता

5

जब आप डिजिटल साक्षरता अभियान चलाने के लिए समुदाय के साथ एक बड़ी मीटिंग रखने का प्रस्ताव प्रतिनिधियों को दें

लाभार्थी-

पंचायत सीरीज़ का एक किरदार दूसरे से कहते हुए कि आप मोबाईल रिचार्ज की स्कीम भी रख देना साथ में, लोग आ जाएंगे इस बहाने_जमीनी कार्यकर्ता

लेखक के बारे में
राकेश स्वामी-Image
राकेश स्वामी

राकेश स्वामी आईडीआर में सह-संपादकीय भूमिका मे हैं। वह राजस्थान से जुड़े लेखन सामग्री पर जोर देते हैं। राकेश के पास राजस्थान सरकार के नेतृत्व मे समुदाय के साथ कार्य करने का एवं अकाउंटेबलिटी इनिशिएटिव, सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च मे लेखन एवं क्षमता निर्माण का भी अनुभव है। राकेश ने आरटीयू यूनिवर्सिटी, कोटा से सिविल अभियांत्रिकी में स्नातक किया है।

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