हाशिए पर धकेले गए समुदाय अक्सर आत्म-संदेह, सामाजिक रूढ़ियों और अकेलेपन से जूझते हैं। उन्हें ऐसे परिवेश की जरूरत है, जहां वे खुलकर अपनी बात रख पायें और उनकी आवाज लगातार सुनी जाए।
हमारे देश में ग्रामदानी व्यवस्था पचास वर्षों से भी ज्यादा पुरानी है। लेकिन जो गांव उस दौर में ग्रामदान को स्वीकार कर चुके थे, वे अब उससे पीछे हटना चाहते हैं।
नारीवादी नजरिया कहता है आरोपी, पीड़ित और समाज तीनों के लिए न्याय की भावना बनी रहे, यह सुनिश्चित करने के लिए सिस्टम और व्यक्ति को साथ मिलकर काम करने की जरूरत है।
जनहित के लिहाज से सबसे जरूरी कानूनों को भी जिस तरह की हिंदी में लिखा जाता है, उसे समझने के लिए आम लोग तो छोड़िए हिंदी के जानकारों को भी कई बार शब्दकोश देखना पड़ सकता है।