मैं एक जिद्दी बच्ची थी जो अपने माता-पिता द्वारा तय पेशेवर जीवन की उन योजनाओं पर नहीं चलना चाहती थी जिसका लक्ष्य सरकारी नौकरी तक पहुँचना होता है और जो नागालैंड में एक कानून की तरह है। फिर भी उनके दबाव के कारण मैं 2011 में अपने बीए की पढ़ाई पूरी करने के बाद एक प्रतियोगिता परीक्षा में शामिल हुई। लेकिन मैं 30 मिनट में ही परीक्षा हॉल से बाहर निकल गई। मुझे पता था कि मैं कुछ और करना चाहती थी। मैं लोगों के लिए काम करना चाहती थी—सामाजिक क्षेत्र में। लेकिन यहाँ दीमापुर में हमारे पास इस तरह के व्यवसायों में आगे बढ़ने के लिए ज़रूरी मार्गदर्शन नहीं था।
और फिर मैं एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में काम करने के लिए बैंग्लोर चली गई। मैंने कुछ सालों तक नौकरी की और विदेश के क्लाईंट (ग्राहकों) की मदद की। लेकिन मेरे अंदर हमेशा यह बात चलती रहती थी कि यह काफ़ी नहीं है। मैं अपने समुदाय के लोगों के लिए कुछ करना चाहती थी।
उसी दौरान मेरी मुलाक़ात यूथनेट के निदेशक से हुई। यूथनेट एक स्वयंसेवी संस्था है जो नागालैंड में युवाओं के लिए काम करती है और उन्हें नौकरी के बाजार के लिए ज़रूरी हुनर के साथ तैयार होने में उनकी मदद करती है। मैं कई सालों से इस संस्था के काम के बारे में सुन रही थी और फिर 2017 में मैंने जोखिम उठाने का फैसला कर लिया। मैं नागालैंड वापस चली गई और यूथनेट के नौकरी केंद्र एवं करियर विकास केंद्र में एक संचालन पर्यवेक्षक (ऑपरेशन सुपरवाइजर) के रूप में काम करने लगी। वर्तमान में मैं इन केन्द्रों के प्रबंधन का काम देखती हूँ।
नागालैंड का छोटा सा नौकरी-बाजार महामारी के कारण और अधिक सिकुड़ गया है।
नौकरी खोजने वाले लोग हमारे केन्द्रों में अपना पंजीकरण करवाते हैं और हम लोग उन्हें बायोडाटा लेखन, साक्षात्कार शिष्टाचार (इंटरव्यू एटीकेट) और इस तरह के कौशलों का प्रशिक्षण देते हैं। हम नौकरी दिलवाने में भी उनकी मदद करते हैं। हम लोग विभिन्न प्रकार के लोगों के साथ काम करते हैं—जिसमें निरक्षर लोगों से लेकर स्नातक (बीए) की पढ़ाई करने वाले शामिल हैं।
सुबह 10.00 बजे: मैं अपने दिन की शुरुआत सहकर्मियों, नियोक्ताओं और नौकरी खोजने वाले लोगों से मिले ईमेल को देखने से करती हूँ। एक उत्साही सहकर्मी ने हमारी टीम को एक ईमेल भेजा है जिसमें उसने नागालैंड में युवाओं के स्व-रोजगार को लेकर अपने विचार रखे हैं। आजकल हमारी कोशिश का मुख्य केंद्र कोविड-19 के कारण पैदा हुई नौकरी के संकट से निबटना है। नागालैंड का छोटा सा नौकरी-बाजार महामारी के कारण और अधिक सिकुड़ गया है। इसलिए हमारी टीम आम ढर्रा से बाहर निकलने और रोजगार अवसर के निर्माण के नए तरीके के बारे में सोचने की कोशिश कर रही है। यह कहने की जरूरत नहीं है कि इसने हमारे काम करने के तरीके को भी बदल दिया है।
महामारी के पहले हम लोग स्कूल और कॉलेजों में जाकर छात्रों से बात करते थे और करियर के चुनाव संबंधी उनके सवालों का जवाब देने और मदद करने की कोशिश करते थे। कुछ छात्रों का कहना था, “मैं 12वीं कक्षा के बाद पढ़ाई नहीं करना चाहता हूँ। मैं अभी पैसे कमाना चाहता हूँ।” हम ऐसे लोगों को समझाते हैं और यह सलाह देते हैं कि अधिक शिक्षा हासिल करने से रोजगार के अवसर भी बढ़ जाते हैं।
2020 में जब लॉकडाउन की घोषणा हुई तब हमें लगा था कि यह एक से दो महीने तक रहेगा। कर्मचारियों के हितों पर महामारी के प्रभाव से निबटने के लिए हमने एक महीने तक अपने काम को रोक दिया था। हालांकि हमें जल्द ही इस बात का एहसास हो गया कि हमें इसके बीच में ही काम करना पड़ेगा। हमारा दफ्तर कई महीनों तक खुला हुआ था और हमारी टीम लोगों से आमने-सामने मिलती थी, लेकिन प्रशिक्षण सत्र से जुड़े कामों का आयोजन ऑनलाइन ही किया जाता था।
सुबह 11.00 बजे: मैंने प्रदर्शन (प्रेजेंटेशन) और संवाद (कम्यूनीकेशन) कौशल पर प्रशिक्षित करने के लिए नौकरी खोजने वाले एक समूह के साथ 90 मिनट वाले एक वीडियो सत्र में हिस्सा लिया। नए आने वाले लोग खुद को नौकरी के बाजार के लिए तैयार मानते हैं। इसलिए अक्सर मुझे उन्हें विस्तार से समझाना पड़ता है कि नए कौशल सीखना बहुत ही जरूरी है। वह चाहते हैं कि पहली नौकरी से उन्हें 15 से 20,000 रुपए का वेतन मिले, वहीं ज़्यादातर नियोक्ता नए आए लोगों (फ्रेशर) को 6 से 7,000 रुपए देना चाहते हैं। ज्यादा वेतन के लिए नियोक्ताओं को अधिक अनुभवी लोगों की चाह होती है। हमनें पाया कि बीच का रास्ता ऐसे फ्रेशर को तैयार करना है जिनके पास कौशल हो।
नागालैंड का नौकरी बाजार परंपरागत रूपरेखा से निकलकर अधिक पेशेवर हो गया है, इसलिए नौकरी खोजने वालों को इसके मांग के अनुकूल तैयार होने की जरूरत है। ऐसे कई नवागंतुक (फ्रेशर) हैं जिन्होनें कंप्यूटर की पढ़ाई की है लेकिन अगर आप उन्हें कंप्यूटर ऑन करने कहेंगे तो वे घबरा जाते हैं।
मैं यह कहना चाहती हूँ कि कोविड-19 ने हमारे काम की मुश्किलों को दोगुना कर दिया है। 2020 में पहले लॉकडाउन के दौरान जब हम लोग अपने प्रशिक्षण सत्रों का आयोजन ऑनलाइन करते थे तब यह एक आपदा की तरह था। प्रशिक्षुओं के लिए लैपटाप या मोबाइल पर प्रशिक्षण लेना बिलकुल नया अनुभव था और ऐसा ही कुछ हाल प्रशिक्षकों का भी था। कुछ सत्रों के अंत तक केवल एक या दो प्रशिक्षु ही बच जाते थे। उसी दौरान हमें इस बात का एहसास हुआ कि हमें बाहरी मदद की जरूरत है। हमनें क्वेस्ट अलायंस नाम के एक स्वयंसेवी संस्था से संपर्क किया जिन्होनें स्व-प्रशिक्षण और डिजिटल प्रशिक्षण के क्षेत्र में कई सालों तक काम किया है। उन्होनें इस अज्ञात क्षेत्र में रास्ता बनाने और इससे बाहर निकलने में हमारी मदद की। दूसरी चीजों के साथ हमने यह भी सीखा कि चूँकि आभासी बातचीत में लोगों का ध्यान कम समय के लिए ही केन्द्रित हो पाता है इसलिए ऑनलाइन प्रशिक्षण सत्र बहुत लंबे नहीं हो सकते हैं। राज्य की कमजोर इंटरनेट कनेक्टिविटी को ध्यान में रखते हुए हमने सत्रों की रिकॉर्डिंग शुरू कर दी। हम लोग व्हाट्सएप के माध्यम से अपने प्रशिक्षुओं को ये रिकॉर्डिंग भेज देते हैं ताकि वे अपनी सुविधा के अनुसार इसे देख सकें।
दोपहर 1.00 बजे: 30 मिनट के आराम के बाद शुरू होने वाले प्रशिक्षण के दूसरे सत्र में, आमतौर पर मैं एक विशेष व्याख्यान का आयोजन करती हूँ जिसमें हम लोग विषय संबंधी विशेषज्ञ या उद्यमियों को बोलने के लिए आमंत्रित करते हैं। पहले हम अपने प्रशिक्षुओं को उद्योग परिसर में लेकर जाते थे लेकिन अब इस सत्र का आयोजन भी हमें ऑनलाइन ही करना पड़ता है।
कर्मचारियों को उनके अधिकारों के प्रति सजग करना बहुत महत्वपूर्ण है।
हम लोग अपने प्रशिक्षुओं को सही सवाल तैयार करने के लिए कहते हैं और एक कर्मचारी के रूप में उनके अधिकारों के प्रति उन्हें सजग करते हैं। कर्मचारियों को उनके अधिकारों के प्रति सजग करना बहुत महत्वपूर्ण है। आपको भरोसा नहीं होगा कि कई बार हम लोगों ने किसी व्यक्ति को एक कंपनी में काम दिलवाया और बाद में हमें पता चला कि उसके साथ वहाँ नाइंसाफी हुई। कर्मचारियों को कम वेतन दिया जाता है और उनसे उम्मीद की जाती है कि वे विभिन्न प्रकार की जिम्मेदारियाँ उठाएँ। हम नियोक्ता के साथ ऐसे समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर करते और करवाते हैं जिसमें श्रम कानून और अधिकारों की बात स्पष्ट रूप से लिखी होती है। इसके बावजूद भी, कई बार ऐसा होता है कि कर्मचारियों पर काम का बोझ बढ़ा दिया जाता है क्योंकि जिम्मेदारियों का वितरण स्पष्ट नहीं होता है। पिछले साल हमारे द्वारा प्रशिक्षित एक आदमी की नौकरी एक रेस्तरां में मैनेजर के रूप में लगी थी और अंत में उससे बर्तन धोने का काम करने के लिए कहा गया। ऐसे मामलों में हम नियोक्ताओं से संपर्क करते हैं और उन्हें बताते हैं कि उनके द्वारा हस्ताक्षर किए गए समझौते के अनुसार उनका यह बर्ताव गलत है। हमें दोनों ही पक्षों को पेशेवर शिष्टाचार सिखाना पड़ता है।
नागालैंड एक उभरती हुई अर्थव्यवस्था है, जहां निजी क्षेत्र एक नई अवधारणा है। ज़्यादातर व्यापारों का मालिक कोई न कोई परिवार है और इनका संचालन भी उन्हीं परिवार द्वारा होता है। अपर्याप्त वेतन, बेहिसाब काम के घंटे, नौकरी की अनुचित ज़िम्मेदारी जैसी खराब प्रथाओं के कारण इन क्षेत्रों में कर्मचारियों के साथ होने वाले अत्याचार का दर ऊंचा होता है। हम लोग उद्योग के लोगों को उत्कृष्ट शिष्टाचार सिखाने के साथ नियोक्ता और कर्मचारी के बीच विश्वास का रिश्ता बनाने के बारे में भी सिखाने की कोशिश करते हैं। खुदरा बाजार के विकास और बिग बाज़ार, रिलायंस ट्रेंड्स, और वेस्टसाइड जैसे बड़े और स्थापित खिलाड़ियों के इस लड़ाई में प्रवेश के बाद हमने पाया है कि अत्याचार के दर में कमी आई है। इससे हमें यह बात समझ में आती है कि अगर व्यवस्था सुचारु ढंग से काम करे तो कर्मचारी लंबे समय तक जुड़े रहते हैं।
दोपहर 3.00 बजे: हमारी साप्ताहिक टीम-मीटिंग शुरू हो गई है और हम लोग उस कार्यक्रम के प्रदर्शन पर चर्चा कर रहे हैं जिसकी शुरुआत कुछ महीने पहले युवाओं को स्व-रोजगार बनने में उनकी मदद करने के लिए की गई थी। इस तरह के कार्यक्रम आज की जरूरत बन चुके हैं। महामारी के दौरान, अन्य राज्यों में काम करने वाले कई युवाओं ने अपनी नौकरियाँ छोड़ दी और नागालैंड वापस चले गए। हालांकि उनमें से कई अब वापस लौट गए हैं लेकिन बहुत सारे युवाओं ने नागालैंड में ही रुकने का चुनाव किया है और उनके लिए नौकरी ढूँढने में हमें कठिनाई हो रही है।
युवाओं को सुनने और उनसे सीखने, उनकी इच्छाओं को समझने और बेहतर आजीविका के लिए उन्हें प्रेरित करने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है।
हमारे डाटाबेस में 600 अधिक ऐसे लोग हैं जो नौकरी ढूंढ रहे हैं। हम यह समझते हैं कि कई कंपनियों के बंद हो जाने के कारण उन्हें पारंपरिक तरीकों से नौकरियाँ नहीं मिल सकती हैं। और हम लोग सिर्फ नौकरी ढूँढने वालों की ही नहीं बल्कि नौकरी देने वालों की भी मदद करना चाहते हैं। इस बात को ध्यान में रखते हुए, हमनें ‘नॉकडाउन द लॉकडाउन’ नाम से एक कार्यक्रम शुरू किया। इस कार्यक्रम में नौकरी ढूँढने वालों को छोटे स्तर के उद्यमियों में बदलने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। हमनें एक प्रतियोगिता का आयोजन किया जिसमें नौकरी ढूँढने वालों को नए उद्योग शुरू करने के उनके विचारों को पेश करने के लिए आमंत्रित किया गया। हम लोगों ने छ: समूहों का चुनाव किया और प्रत्येक को व्यापार चलाने के उद्देश्य से 45 दिनों के लिए 10,000 रुपए दिये। लोग कई नए विचारों के साथ हमारे पास आए थे। हमारी टीम ने स्थानीय पाइनवूड की लकड़ी से डाईनिंग टेबल और कुर्सी बनाई और बेचा, और हमें यह जानकर आश्चर्य हुआ कि महज 45 दिनों में उन लोगों ने 2 लाख की कमाई की! इस तरह की शुरुआत से न केवल नौकरी ढूँढने वालों में आत्मविश्वास जगा बल्कि हमरे टीम का उत्साह भी बढ़ा।
शाम 4.30 बजे: मैं दफ्तर में अपना काम ख़त्म करके घर की तरफ बढ़ती हूँ। थोड़ी देर आराम करने के बाद मैं अपने अगले दिन के सत्रों की तैयारी में लग जाती हूँ। मैं आत्मसंतुष्ट नहीं बनना चाहती हूँ और न ही प्रशिक्षण के दौरान एक टेप रिकोर्डर की तरह काम करना चाहती हूँ। इसलिए शाम में अक्सर अपना समय युवाओं को प्रशिक्षित करने के नए तरीकों को ढूँढने में लगाती हूँ। मैं यह भी कोशिश करती हूँ कि समय की मांग के अनुसार तैयार रहूँ ताकि मेरे सत्र प्रासंगिक और विषय से संबंधित हों।
युवाओं को सुनने और उनसे सीखने, उनकी इच्छाओं को समझने और बेहतर आजीविका के लिए उन्हें प्रेरित करने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है। हालांकि अब मैं दो विभागों के प्रबंधन का काम संभालती हूँ, फिर भी युवाओं के साथ काम करने से मुझे प्रेरणा मिलती है और मैं आगे बढ़ती हूँ।
जैसा कि आईडीआर को बताया गया।
इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ें।
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