September 14, 2022

लड़कों और पुरुषों के साथ लैंगिक बराबरी पर काम करने के लिए एक गाइड

महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा को ख़त्म करने के लिए, पुरुषों और लड़कों के साथ काम करने वाले लैंगिक कार्यक्रमों पर दो वर्ष लम्बा एक अध्ययन किया गया। इस अध्ययन से क्षेत्र में काम करने वालों को कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां मिलती हैं।
13 मिनट लंबा लेख

1990 के दशक के आरम्भ से ही पुरुषों के साथ मिलकर काम करने वाले जेंडर प्रोग्राम्स (लैंगिक बराबरी अभियानों) की शुरुआत हो चुकी थी। राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय, दोनों स्तरों पर ‘मेल इंगेजमेंट’ यानी पुरुषों की भागीदारी वाले शुरूआती कार्यक्रमों का उद्देश्य महिलाओं और लड़कियों के साथ होने वाली हिंसा (वायलेन्स अगेन्स्ट वीमेन एंड गर्ल्स – वीएडबल्यूजी) के मुद्दे पर बात करना था। जैसा कि इस रिपोर्ट में कहा गया है कि महिलाओं और लड़कियों के साथ होने वाली हिंसा के अधिकांश अपराधी पुरुष होते हैं और इसमें आश्चर्य जैसी कोई बात भी नहीं है। फिर भी, जब लैंगिक मुद्दों की बात आती है तब पुरुषों के साथ काम करने का महत्व हिंसा पर संवाद करने से कहीं अधिक होता है।

‘मेल इंगेजमेंट’ प्रोग्राम्स, वे विशेष कार्यक्रम हैं जो लैंगिक समानता के लिए पुरुषों और लड़कों के साथ मिलकर काम करते हैं। (मेल इंगेजमेंट और इससे जुड़ी शब्दावली की औपचारिक परिभाषा के लिए यहां देखें।) लैंगिक बराबरी के मुद्दों पर पुरुषों और लड़कों को शामिल करने के कई लाभ हैं। इसका एक उदाहरण यह है कि बेहतर लैंगिक बराबरी वाले समाज में पुरुषों के अवसाद में जाने, आत्महत्या करने या हिंसा का शिकार होने की घटनाएं कम देखने को मिलती हैं। इसके साथ ही, लैंगिक बराबरी वाले देशों के किशोरों में साइकोसोमैटिक (मनोदैहिक) शिकायतें कम होती हैं।1

2019 में रोहिणी निलेकनी फ़िलांथ्रपीज (आरएनपी) ने पुरुष भागीदारी वाले कार्यक्रमों (स्वयंसेवी संस्थाओं के दृष्टिकोण से जो इन कार्यक्रमों का संचालन भी करते हैं और इसके प्रतिभागी भी होते हैं।) और उनके अनपेक्षित परिणामों के लाभों को समझने के लिए एक अध्ययन शुरू किया था। इस अध्ययन में तीन साल तक भारत में, आरएनपी द्वारा चलाए जा रहे मेल इंगेजमेंट कार्यक्रमों पर पहले और दूसरे दर्जे का शोध करना शामिल था। 2019 में यह शोध आठ कार्यक्रमों के साथ शुरू हुआ था और 2020 में 10 तक पहुंच गया।2 थ्योरी ऑफ चेंज वर्कशॉप के अलावा प्राथमिक शोध के अन्य तरीक़ों में प्रतिभागियों और उनके परिवार की महिला सदस्यों या दोस्तों के साथ इंटरव्यू और ग्रुप डिस्कशन शामिल थे।

इस लेख में बताई गई बातें, अनुभव और शोध पर आधारित हैं। साथ ही, इसका उद्देश्य शोध की टिप्पणियों के साथ-साथ उन विचारों को भी उजागर करना है जो मेल इंगेजमेंट प्रोग्रामिंग के क्षेत्र में महत्वपूर्ण हैं। समाधान बताने के बजाय यह लेख अधिक से अधिक संगठनों को मेल इंगेजमेंट के क्षेत्र में आने और इस पर संवाद करने के लिए प्रोत्साहित करता है। ऐसा करने के लिए उन्हें शोध और व्यवहार दोनों से ही मिली सूचना देने की भी बात करता है।

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युवा लड़कों का समूह-महिला हिंसा
जहां एक तरफ़ पुरुषों के साथ काम करने के लाभ स्पष्ट हैं वहीं जब लैंगिक बराबरी की बात आती है तो कम उमर से ही साथ काम करने की ज़रूरत बढ़ती नज़र आ रही है। | चित्र साभार: एफ फ़ियोनडेला (आईआरआई/सीसीएएफ़एस)/सीसी बीवाई

साक्ष्यों को देखें और उसके अनुसार प्रोग्रामिंग तय करें

साक्ष्य बताते हैं कि मातृत्व और नवजात स्वास्थ्य से संबंधित सेवाओं में पिता को शामिल करने से गर्भावस्था के दौरान महिलाओं के लिए काम के बोझ को कम करने में मदद मिलती है। इसके अलावा, ऐसा करने से महिलाओं को अधिक भावनात्मक सहयोग मिल पाता है और बच्चे के जन्म की तैयारी और प्रसव के बाद की देखभाल की स्थिति में सुधार हो सकता है।

इसलिए पहले से मौजूद साक्ष्यों के आधार पर अपने कार्यक्रमों को तय करने की इच्छा रखने वाले, दानदाताओं और स्वयंसेवी संस्थाओं को इस तरह के सुझावों को ध्यान में रखना चाहिए। अन्य क्षेत्रों में, जहां प्रमाण कम उपलब्ध हैं वहां प्रोग्रामिंग और फ़ंडिंग को इस तरह तैयार किया जाना चाहिए कि सीखने और बदलाव लाने की गतिविधियों को तेज़ी से किया जा सके।

मेल इंगेजमेंट के विषय पर काम करते समय विभिन्न आयु वर्गों के साथ मिलकर काम करना और प्रोग्रामिंग को उसके अनुसार तय करना महत्वपूर्ण होता है

जब लैंगिक बराबरी की बात आती है तब पुरुषों (विशेष रूप से पिताओं) के साथ मिलकर काम करने के फ़ायदे स्पष्ट हैं लेकिन स्वयंसेवी संस्थाओं ने इस ओर ध्यान दिलाया है कि कम उम्र में शुरुआत करने की ज़रूरत बढ़ रही है। स्कूलों में लैंगिक अलगाव का, व्यवहार और हावभाव पर नकारात्मक प्रभाव और यौन शिक्षा तक पहुंच की कमी (अश्लील साहित्य के अलावा अन्य स्रोतों तक पहुंच) सहित कई अन्य चिंताओं ने इस दृष्टिकोण को जन्म दिया है। लेकिन, इस तरह के सुझाव देते समय, खास आयु वर्ग के लिए तय प्रोग्रामिंग को देखना जरूरी है। किसी विशिष्ट कार्यक्रम में छोटे बच्चों से मिलने वाली प्रतिक्रिया, उसी कार्यक्रम के लिए मध्य-किशोरावस्था में किशोरों से मिलने वाली प्रतिक्रिया से अलग हो सकती है और अंत में ऐसा होना परिणामों को प्रभावित करता है।

कार्यक्रम तब अधिक प्रभावी होते हैं जब प्रतिभागी 14 वर्ष से कम आयु के होते हैं और मध्यम किशोरों के लिए एक अलग दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है।

ऐसा एक उदाहरण महाराष्ट्र में आयोजित एक कार्यक्रम में 13–14 साल के लड़कों के समूह के साथ देखने को मिला। इन लड़कों द्वारा देखे जाने वाली पोर्नोग्राफ़ी और हिंसक मनोरंजन के दर को कम करने के प्रयास के दौरान, उन्हें सुझाव दिया गया कि इस तरह की सामग्री देखने से पहले उन्हें गंभीरता से सोचना चाहिए। लेकिन सुझाव का यह तरीक़ा कारगर नहीं रहा। इसका वास्तविक कारण पुरुष संज्ञानात्मक विकास से संबंधित हो सकता है – लड़कों के मामले में केवल 15 साल की उम्र से लेकर शुरुआती वयस्कता के दौरान ही वे लैंगिक मानदंडों और भूमिकाओं के बारे में सवाल करने, सोचने और अपने विचार बनाने की क्षमता विकसित करते हैं। इसे देखते हुए इस पर विचार किया जाना चाहिए कि क्या 13-14 वर्ष के बच्चों द्वारा पोर्नोग्राफ़ी और हिंसक मनोरंजन के इस्तेमाल में कमी लाने के लिए स्वयं लड़कों के बजाय उनके माता-पिता को शामिल करने वाली रणनीति अधिक प्रभावशाली होगी।

इसके विपरीत, ऑस्ट्रेलिया, यूरोप और उत्तरी अमेरिका के शोध में पाया गया कि किशोर प्रतिभागियों की तुलना में मध्यम किशोरों (आमतौर पर 14-17 वर्ष के बच्चों) में बदमाशी (बुलीइंग) को रोकने वाले कार्यक्रमों का कम असर होता दिख रहा है। इससे पता चला कि ये कार्यक्रम तब अधिक प्रभावी होते हैं जब प्रतिभागी 14 वर्ष से कम आयु के होते हैं और मध्यम किशोरों के लिए एक अलग दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है।

सुझावों या तरीकों को डिज़ाइन करते समय परिणामों को हासिल करने के लिए कार्यक्रमों की समयावधि की भूमिका को ध्यान में रखा जाना चाहिए

ऐसे तो कार्यक्रम के जरिए हासिल किए जाने वाले परिणाम को पहले तय किया जाना चाहिए और फिर इसके अनुसार समयावधि को निर्धारित किया जाना चाहिए। कुछ मामलों में जब डोनर या स्वयंसेवी संस्था के पास निवेश के लिए सीमित समय होता है तब ऐसे कार्यक्रम को चुनना बेहतर होता है जिसे दिए गए समय में पूरा किया जा सके। यहां पर इस बात को ध्यान में रखना जरूरी है कि थोड़ी समयावधि वाले कार्यक्रमों से कोई दीर्घकालिक परिणाम हासिल करने का लक्ष्य हमें असफलता की ओर धकेलता है।

चलिए, एक ऐसी स्वयंसेवी संस्था का उदाहरण लेते हैं जो इस अध्ययन का हिस्सा थी। संस्था अपने कार्यक्रम से किशोर लड़कों को ऐसा उदाहरण बनने के लिए प्रेरित करती है जो लैंगिक रूढ़ियों और महिलाओं या लड़कियों के ख़िलाफ़ हिंसा का विरोध करने वाला हो। ऐसा करने से किशोर, सार्थक और स्वस्थ संबंधों का, तथा महिलाएं और लड़कियां लैंगिक समानता का अनुभव कर सकती हैं। इस कार्यक्रम को उस संस्था द्वारा महिलाओं और लड़कियों के लिए किए जाने वाले काम के साथ जोड़ा गया।

हमारे अध्ययन के दौरान बच्चों या किशोरों के साथ काम करने वाले संगठनों ने प्रतिक्रिया को उनके कार्यक्रमों का लगातार अनपेक्षित परिणाम बताया।

शोध के दौरान उस समय साक्षात्कार में भाग लेने वाले पुरुष प्रतिभागियों ने औसतन दो से तीन साल तक कार्यक्रम में भाग लिया था। इस दौरान उन्होंने बाल-विवाह बंद कर दिया था, घर के कामों में योगदान देने लगे थे और सड़क पर होने वाले उत्पीड़न के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने लगे थे। इसके विपरीत, बाल यौन शोषण रोकथाम कार्यक्रम चलाने वाले एक अन्य संगठन को कम समय में ही अच्छे परिणाम हासिल हुए। उनके कार्यक्रम का समय दो से छः घंटे (एक घंटा प्रति दिन) होती है और हर दो से तीन साल में इसे बच्चों के एक ही समूह के साथ दोहराया जाता है। बाहरी और आंतरिक दोनों ही तरह के मूल्यांकन में यह पाया गया कि कम समयावधि वाला कार्यक्रम होने के बावजूद प्रतिभागियों का एक बड़ा प्रतिशत इसकी प्रमुख अवधारणाओं और संदेशों को याद कर पा रहा था। इसके अलावा, असुरक्षित परिस्थितियों का सामना करने वाले अधिकांश प्रतिभागी कार्यक्रम से सीखी गई बातों को लागू करके अपनी रक्षा करने में सक्षम थे।

अनपेक्षित परिणामों पर ध्यान दें

कई कार्यक्रमों को समय-समय पर अनपेक्षित परिणामों का सामना करना पड़ता है। ये नकारात्मक परिणाम होते हैं जो कार्यक्रम के साइड इफेक्ट के रूप में सामने आते हैं। 

हमारे अध्ययन के दौरान बच्चों या किशोरों के साथ काम करने वाले संगठनों ने प्रतिक्रिया को उनके कार्यक्रमों का लगातार अनपेक्षित परिणाम बताया। यहां, नकारात्मक परिणाम लड़कों और/या पुरुष किशोरों के खिलाफ प्रतिक्रिया को दर्शाता है जो लैंगिक समानता को चुनौती देने की कोशिश करते हैं। (जब महिलाएं पितृसत्तात्मक लिंग मानदंडों को चुनौती देती हैं तो यह पुरुषों द्वारा की जाने वाली प्रतिक्रिया से अलग होता है।) नकारात्मक परिणामों की संभावना को देखते हुए, किशोरों को शामिल करने वाले कार्यक्रमों में प्रतिक्रिया को कम करने के लिए पहले से ही बचाव की रणनीति पर विचार करना चाहिए। जेंडर प्रोग्रामिंग के संदर्भ में ऐसा करने का एक तरीका लड़के और लड़कियों दोनों से जुड़े उदाहरणों को शामिल करना है। अध्ययन में उत्तरदाताओं ने उल्लेख किया कि माता-पिता, शिक्षकों, स्कूल के प्रधानाचार्यों और गांव के नेताओं के साथ समय-समय पर बैठकें आयोजित करना इस तरह की प्रतिक्रिया को रोकने का एक प्रभावी तरीका है।

इसके अतिरिक्त, फील्ड टीमों को प्रशिक्षित करना महत्वपूर्ण है ताकि वे संभावित नकारात्मक परिणामों के प्रति अधिक चौकस हो सकें। एक बार जब वे अनपेक्षित परिणामों की पहचान करने लग जाते हैं तब वे और सीख पाते हैं और इसे कम करने की दिशा में कार्रवाई की अवधि का आकलन आसान हो जाता है।

समझें कि पुरुष किशोरों को आपके कार्यक्रम में शामिल रहने के लिए कौन से कारक प्रेरित कर सकते हैं

लैंगिक कार्यक्रमों की हाल की वैश्विक समीक्षा में पाया गया कि इस तरह के कार्यक्रमों में रुचि की कमी उन मुख्य कारणों में से एक थी, जिसके चलते किशोर लड़के या तो शामिल नहीं हुए या शामिल होने के बाद बाहर हो गए। इसके समाधान के लिए, हमारे अध्ययन में कुछ संगठनों ने अनुमान लगाया कि किशोर लड़कों को मर्दानगी से जुड़े कठोर लैंगिक मानदंडों को चुनौती देने का अवसर प्रदान कर प्रेरित किया जाएगा। यह उन्हें चुनाव करने और उन तरीकों से व्यवहार करने की अनुमति देगा जो वे चाहते हैं। अन्य संगठनों ने अनुमान लगाया कि कार्यक्रम में भागीदारी के जरिए किशोरों को कोई कौशल हासिल करने का मौक़ा दिया जाएगा जो उन्हें इसका हिस्सा बने रहने के लिए प्रेरित करेगा।

मिश्रितलिंग समूहों के साथ काम करने वालों ने कहा कि इस तरह की जगहें युवा पुरुषों और महिलाओं, या लड़कों और लड़कियों के बीच बातचीत को सामान्य बनाने लगते हैं।

हमारे शोध में पाया गया कि किशोर लड़कों ने कौशल हासिल करने के दृष्टिकोण को अधिक महत्व दिया। चूंकि कठोर लैंगिक मानदंडों को चुनौती देना मेल इंगेजमेंट का मुख्य केंद्र होता है। इसलिए हमारा सुझाव है कि प्रतिभागियों को शुरू में हस्तांतरणीय कौशल हासिल करने में सक्षम बनाने पर ध्यान केंद्रित किया जाए फिर उन इच्छाओं की पहचान की जाए जो मर्दवादी सोच के चलते दबा दी जाती हैं। इसके बाद उन पर काम किया जाए। उदाहरण के लिए हमारे शोध की सूची में शामिल एक कार्यक्रम प्रतिभागियों के बीच संवाद निर्माण और नेतृत्व कौशल के साथ शुरू हुआ था और बाद में इसने अपने प्रतिभागियों को बाल विवाह रोकने, घर के काम में भाग लेने और सड़कों पर होने वाले यौन उत्पीड़न के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने में सक्षम बनाया। 

एकल लिंग और मिश्रित-लिंग दोनों समूहों के साथ काम करने के अनूठे फ़ायदे हैं

अध्ययन के प्रतिभागियों को एक ही लिंग या मिश्रित लिंग वाले समूहों के साथ काम करने वालों के बीच समान रूप से विभाजित किया गया था। एकल या मिश्रित लिंग समूहों के साथ काम करने के प्रभाव को लेकर किसी तरह का ठोस परिणाम हासिल नहीं हुआ और इसमें किसी तरह का आश्चर्य नहीं है। एक तरफ़, एकल-लिंग समूहों के साथ काम करने का फ़ायदा यह है कि इससे पुरुष प्रतिभागी संवेदनशील विषयों पर भी खुलकर बात कर पाते हैं। दूसरी ओर, मिश्रित-लिंग समूहों के साथ काम करने पर महिलाओं और पुरुषों दोनों को ही एक दूसरे के विचार, दृष्टिकोण और ज़रूरतों को समझने का अवसर मिलता है और वे संवेदनशील मुद्दों पर भी एक दूसरे से बातचीत करते हैं।

अध्ययन में मिश्रित-लिंग समूहों के साथ काम करने वालों ने बताया कि इन जगहों ने किशोर पुरुषों और महिलाओं या लड़के और लड़कियों के बीच संवाद को सामान्य बनाना शुरू कर दिया है। वहीं एकल-लिंग समूहों के साथ काम करने वालों ने कहा कि ऐसा करने का एक कारण यह है कि पुरुष और महिला प्रतिभागियों को एक ही विषय पर अलग-अलग सामग्री की आवश्यकता हो सकती है, जैसे कि सहमति।

पहली बार मेल इंगेजमेंट कार्यक्रम को तैयार करने वाले डोनर और अन्य इकाइयों को दोनों विकल्पों के फ़ायदों के बारे में सोचना चाहिए और उसके बाद चुने जाने वाले विकल्प से संबंधित सूचनाएं इकट्ठा करनी चाहिए। 

स्केलिंग के कई तरीके हैं

हमारे अध्ययन में हमने पाया कि संगठनों ने नीचे दिए गए एक या अधिक दृष्टिकोणों का उपयोग करके स्केल करने का प्रयास किया है:

  1. विद्यालय: ‘प्रवर्तकों’ यानी शुरूआत करने वालों ने अपनी पहुंच को और अधिक स्कूलों तक विस्तारित किया है, और/या अपने कार्यक्रम को पाठ्यक्रम में एकीकृत किया है।
  2. समकक्ष समूह/मित्रमंडली: कार्यक्रम से मिलने वाले सबक को वर्तमान या पिछले प्रतिभागियों द्वारा अपने साथियों के समूहों तक पहुंचा दिया जाता है, और उन्हें कार्यक्रम के डिजाइन और वितरण पर काफी नियंत्रण होता है।
  3. प्रशिक्षकों का प्रशिक्षण: पेशेवरों (जैसे शिक्षक, स्वयंसेवी कर्मचारी, और परामर्शदाता) को उनके कार्यक्रमों को वितरित करने के लिए प्रवर्तकों द्वारा प्रशिक्षित किया जाता है। प्रवर्तक कार्यक्रम वितरण पर थोड़ा नियंत्रण बनाए रख सकते हैं।
  4. स्वयंसेवी संस्थाअन्य स्वयंसेवी संस्थाएं अपने संगठनात्मक और सामुदायिक संदर्भ में कार्यक्रम को लागू करती हैं। कार्यक्रम के डिजाइन और वितरण को लेकर इनकी स्वायत्ता का स्तर व्यापक होता है।
  5. जनता: अक्सर ऑनलाइन चैनलों का उपयोग करते हुए जनता द्वारा व्यापक रूप से धारण किए जाने वाले पितृसत्तात्मक विश्वासों को इसके विपरीत साक्ष्य और/या विचारों को प्रसारित करके चुनौती दी जाती है।3

कार्यक्रमों को तब तक स्केलिंग शुरू नहीं करनी चाहिए जब तक कि वे अपनी प्रभावशीलता का सबूत देने योग्य हो जाएं।

प्रारंभिक टिप्पणियों से संकेत मिलता है कि स्कूलों के माध्यम से स्केलिंग कार्यक्रम न्यूनतम समय में अधिकतम लोगों तक पहुंचने में सबसे प्रभावी रहे हैं। इसके लिए एक परिकल्पना यह है कि बच्चों को इकट्ठा करने की बजाय स्कूली बच्चों से संवाद करना आसान होता है। और, यदि वे एक ही प्रबंधन के अधीन हैं या एक समान पाठ्यक्रम साझा करते हैं तो सभी स्कूलों में छात्रों को एकत्रित करना संभव है।

अध्ययन में सामने आया एक अन्य मॉडल एक ऐसे संगठन का था जो एक नेतृत्व विकास कार्यक्रम चलाता है जो लिंग और अन्य सामाजिक मानदंडों पर ध्यान केंद्रित करता है। विविध क्षेत्रों में काम करने वाले स्वयंसेवी संगठन अपने कर्मचारियों को कार्यक्रम के लिए नामित करते हैं। इस दौरान उन्हें प्रवर्तक और उन्हें नामित करने वाली इकाई दोनों द्वारा सलाह दी जाती है। और, प्रतिभागियों के सहकर्मी समूह और उन्हें नामांकित करने वाले स्वयंसेवी शुरू से ही शामिल होते हैं। एक बार जब प्रतिभागी कार्यक्रम पूरा कर लेते हैं तब उनसे यह उम्मीद की जाती है कि वे अपने काम में लैंगिक और अन्य सामाजिक नियमों पर विशेष ध्यान दें। इस काम में उन्हें अपने समान प्राथमिकताओं वाले साथियों और मेंटॉर की मौजूदा व्यवस्था का साथ मिलता है।

इन उदाहरणों से संकेत मिलता है कि यह विचार करना महत्वपूर्ण है कि प्रारंभिक चरण में होने पर भी किसी कार्यक्रम को कैसे बढ़ाया जाना चाहिए। कहने का मतलब यह है कि कार्यक्रमों की तब तक स्केलिंग शुरू नहीं करनी चाहिए जब तक कि वे अपनी प्रभावशीलता का सबूत पेश करने योग्य न हो जाएं। इससे नकारात्मक अनपेक्षित परिणाम या तो कम हो जाते हैं या उन्हें ख़ारिज कर दिया जाता है।

फुटनोट:

  1. ऐन कार्पे, “वी ऑल बेनेफ़िट फ़्रॉम ए मोर जेंडर इक्वल सोसायटी। ईवेन मेन”, दी गार्डियन (2020) कोटेड इन आएशा गोनसाल्वेस, “ट्रैन्स्फ़ॉर्मिंग ‘मेन-टालिटीज”(2020)।
  2. इस अध्ययन में हिस्सा लेने वाले दस कार्यक्रम अर्पन, सेक्विनकोरोइक्वल कम्यूनिटी फ़ाउंडेशनप्रदानप्रोजेक्ट खेलस्वयंदी जेंडर लैबदी वाय पी फ़ाउंडेशन, और अनइनहिबिटेड हैं।
  3. यह तरीक़ा ‘कार्यक्रम के स्केलिंग’ की तुलना में अधिक लोगों तक पहुंच कर ‘विचार की स्केलिंग’ से संबंधित है। और इस काम को कार्यक्रम के संचालन को विस्तृत करने के साथ ही विभिन्न क्षेत्रों में पहुंच कर करना है।

इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ें

अधिक जानें

  • यह रिपोर्ट उन कार्यक्रमों के लिए जरूरी है जो किशोरों को शामिल करते हैं और उनकी प्रतिक्रिया को लेकर चिंतित हैं। यह इस बात की पहचान करता है कि किन हितधारकों से प्रतिक्रिया की उम्मीद है और क्यों, साथ ही शमन के लिए रणनीतियों पर भी बात करता है।
  • यदि पुरुष सहभागिता कार्यक्रम से जुड़े हैं तो इस प्रेजेनटेशन को देखें जिसमें योजना, मूल्यों, प्रशिक्षण और मूल कार्यक्रम के प्रति निष्ठा सुनिश्चित करने के लिए विशिष्ट कई विचार शामिल हैं।

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  • दानकर्ता: स्वयंसेवी भागीदारों के साथ बातचीत शुरू करें ताकि यह पता लगाया जा सके कि प्रोग्रामिंग में पुरुष सहभागिता के एकीकरण को आपके समर्थन में कैसे शामिल किया जा सकता है।
  • स्वयंसेवी संस्थाएं: अपने कार्यक्रमों में पुरुष सहभागिता को एकीकृत करने के तरीक़ों पर आंतरिक रूप से बातचीत शुरू करें।
  • ब्लॉग लिखने, वीडियो बनाने और पैनल चर्चाओं में होस्टिंग/भाग लेने के माध्यम से पुरुष सहभागिता कार्यक्रमों से मिलने वाले अनुभव और सीख साझा करें।

लेखक के बारे में
देवयानी श्रीनिवासन-Image
देवयानी श्रीनिवासन

देवयानी श्रीनिवासन एक स्वतंत्र शोध और एम एंड ई सलाहकार हैं। एक एम एंड ई सलाहकार के रूप में, वह इन विषयों पर काम करती है: 1) रूपरेखा तैयार करना जिसमें तर्क मॉडल/परिवर्तन के सिद्धांत और संकेतक शामिल हैं, 2) मूल्यांकन करना, और 3) एम एंड ई पर प्रशिक्षण प्रदान करना। देवयानी, नीलेकणी फ़िलैन्थ्रॉपी, ऑक्सफैम इन इंडिया और अफगानिस्तान और केन्या में आईएफएडी के साथ काम करती हैं। देवयानी ने वेस्लेयन विश्वविद्यालय से बीए और टोरंटो विश्वविद्यालय से प्लानिंग में एमएससी किया है।

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