महामारी के दौरान शिक्षकों को किस चीज ने प्रेरित किया?

ऐसी कौन सी चीज थी जिसने शिक्षकों को पिछले 18 महीनों तक प्रेरित किया? उन्होनें कैसे इस महामारी का सामना किया, वे स्कूल न जा पाने की स्थिति में थे और अचानक आई ऑनलाइन की जरूरतों और सीखने और सिखाने की इस मिश्रित तरीके की आवश्यकता से कैसे जूझे? इस अप्रत्यासित स्थिति से तालमेल बैठाने के लिए शिक्षकों ने किन रणनीतियों का उपयोग किया? और सबसे महत्वपूर्ण, ये सभी रणनीतियाँ और अभ्यास भविष्य में शिक्षकों की बेहतर मदद के संदर्भ में हमें क्या बताती हैं?

STiR एजुकेशन में हम लोग दिल्ली, तमिल नाडु और कर्नाटक राज्य के सरकारी स्कूलों के अधिकारियों और शिक्षकों के साथ काम करते हैं, और ये सभी सवाल हमारे दिमाग में थे क्योंकि हमने महामारी की प्रतिक्रिया के रूप में उनकी सहायता की थी। हमारे दृष्टिकोण में अधिकारियों और शिक्षकों का एक सहकर्मी नेटवर्क बनाना, शिक्षकों को कक्षा में प्रयुक्त होने वाली रणनीतियों को बनाने का एकाधिकार देना, सहकर्मियों से मिलने वाली प्रतिक्रिया देना और इस पर सोच को सक्षम बनाना आदि शामिल है। जब कोविड-19 के समीकरण से स्कूलों को हटा दिया गया था तब हमें इसे डिजिटल रूप में चलाने के लिए संघर्ष करना पड़ा था। बिना कक्षा वाले अभ्यास के साथ शिक्षक किस विषय पर सोचेंगे? और अधिकारी और उनके सहकर्मी किस चीज पर अपनी प्रतिक्रिया देंगे?

जहां एक तरफ यह एक कड़ा आदेश था वहीं शिक्षकों ने यह चुनौती स्वीकार की। वे सीखने और सिखाने की ऐसी रणनीतियों के साथ आए जिन्हें लेकर उन्हें लगता था की इससे उनकी गुणवत्ता में सुधार हुआ है और एक शिक्षक के रूप में वे समृद्ध हुए हैं। छात्रों को सीखने में सहायता देने के लिए नए तरीकों को खोजने वाले शिक्षकों और जिला एवं प्रखण्ड-स्तर के अधिकारियों की इच्छा और कोशिशों को देखकर हम आश्चर्यचकित थे।

अब जब वे स्कूल वापस लौट गए हैं, फिर भी शिक्षकों का कहना है कि वे इनमें से कुछ अभ्यासों को जारी रखना चाहते हैं। चूंकि स्कूल अब दोबारा से खुलने लगे हैं, नीतिनिर्माता सरकारी स्कूल के शिक्षकों के लिए एक सहायक और अधिक मज़बूत शिक्षक समुदाय के निर्माण के लिए ये छ: कदम उठा सकते हैं।

1. शिक्षकों की स्वायत्ता को बढ़ाया जाए

बहुत लंबे समय तक भारत के शिक्षक अतिरिक्त भार वाले पाठ्यक्रम, पहले से तय किताबें, और सेवा में दी जाने वाले एक ही आकार में निहित सभी सोच का अनुसरण करने वाली शिक्षक प्रशिक्षण स्वरूपों द्वारा सीमित हैं। हालांकि ऐसा नहीं था कि इसमें चुनौतियाँ नहीं थी लेकिन फिर भी इस महामारी ने शिक्षकों को स्वायत्ता दी है जिससे कि वे विभिन्न तरीकों से अपने छात्रों तक पहुँच पाते हैं। शिक्षक कई सामग्री आधारित प्रारूपों के साथ सामने आए जिनमें बुकलेट, वर्कशीट, छोटे ऑडियो रिकॉर्डिंग शामिल थे और जिन्हें व्हाट्सएप के माध्यम से भेजा जा सकता था और इसके लिए पाठ्यपुस्तकों और आमने-सामने बैठकर पाने वाली शिक्षण की जरूरत नहीं थी। लॉकडाउन के ख़त्म होने के बाद शिक्षकों ने समुदायों का दौरा करना शुरू कर दिया और मिलने वाले बच्चों के बीच पढ़ाई की सामग्री को बांटा। जिन बच्चों के पास फोन और इंटरनेट की उपलब्धता थी वहाँ शिक्षकों ने ऑनलाइन कक्षाओं का आयोजन किया। छात्रों को अपनी भावनाओं को साझा करने वाली और उसके बारे में सोचने के लिए प्रोत्साहित करने वाली हमारी एक गतिविधि के दौरान हमने देखा कि शिक्षकों ने इसे छात्रों की जरूरत के संदर्भ में बदल दिया था। कुछ बच्चों ने चित्रकारी की, कुछ ने लिखा, कुछ ने ऑडियो रिकॉर्ड किया और कुछ बच्चों ने अपनी डायरियाँ टाइप कीं। जैसा कि एक शिक्षक ने हमें बताया, “चूंकि हमें किसी एक रणनीति का इस्तेमाल करने के लिए बाध्य नहीं किया गया था इसलिए स्थानीय जरूरतों के हिसाब से हम इसमें नयापन लेकर आए। यह काम चुनौतीपूर्ण था और बहुत अधिक समय की मांग वाला भी। लेकिन छात्रों की प्रतिक्रियाएँ सकारात्मक थीं और इससे हम लोग और अधिक बेहतर तरीके खोजने के लिए प्रेरित हुए।”

हालांकि शिक्षकों ने पढ़ाने के नए तरीके ढूंढ लिए हैं लेकिन वे अक्सर बिना किसी तैयारी के इसमें बदलाव कर देते हैं। स्कूलों के दोबारा खुलने के बाद, पाठ्यक्रम तैयार करने, समयसारिणी बनाने और पढ़ाने के तरीकों में शिक्षकों की बात को अधिक महत्व देने से शिक्षकों की प्रेरणा के स्तर में और उनके प्रदर्शन में सुधार होगा। इस महामारी ने हमें यह दिखाया है कि अधिक अनुभवी शिक्षक बच्चों तक पहुँचने के लिए ज्यादा कोशिश करते हैं। सरकारें सीखने और सिखाने की प्रक्रिया में शिक्षकों के हाथ में नियंत्रण देकर उनके अनुभवों और उनकी प्रतिबद्धता का लाभ उठा सकती हैं।

एक औरत की तस्वीर जिसमें वह अपने हाथ में मोबाइल फ़ोन पकड़े हुए है जिसपर एक वीडियो चल रहा है। हम उसकी साड़ी देख सकते हैं, उसके हाथ में चूड़ियाँ हैं और गले में परिचय पत्र लटक रहा है। जब हम डिजिटल लर्निंग से वापस स्कूल जाकर पढ़ने के पुराने तरीक़े पर लौटेंगे तब उस स्थिति में सरकारी स्कूलों और शिक्षकों के लिए अनुकूल वातावरण बनाने के लिए नीति निर्माता किस तरह के कदम उठा सकते हैं_शिक्षक
मिश्रित शिक्षा से शिक्षकों और छात्रों दोनों के लिए सिखाने और सीखने के तरीके में लचीलापन आ गया है, क्योंकि अब दोनों में कोई भी सिर्फ कक्षा तक सीमित नहीं है | चित्र साभार: STiR एजुकेशन

2. शिक्षकों को उनके अपने सीखने के लिए सुविधा देना

शिक्षकों को भौतिक कक्षाओं के लिए तैयार किए गए पाठों को बहुत ही तेजी से ऑनलाइन माध्यम के अनुसार बदलना पड़ गया था। इसे सफलता से करने के लिए एक अलग तरह के कौशल की जरूरत होती है और इसलिए शिक्षकों को अपने तकनीकी कौशल और वर्चुअल उपकरणों के बारे में ठीक से जानना होता है। हालांकि जहां एक तरफ यह अनिवार्य नहीं था, फिर भी हमारे नेटवर्क के कई शिक्षकों ने डिजिटल कौशल और वर्चुअल उपकरणों के बारे में सीखने को लेकर हमारी सोच पर सकारात्मक प्रतिक्रिया दी। उन्होनें अपनी तरफ से सक्रिय पहल करके अपने सहकर्मियों और छात्रों के साथ मिलकर सीखने के अभ्यास को सभी तक पहुंचाने के लिए आवश्यक रणनीति के अभ्यास के काम में मदद की पेशकेश की थी। चाहे वह ऑनलाइन मीटिंग के लिए लिंक से जुड़ना हो, ऑनलाइन क्लास लेना हो, वीडियो और ऑडियो की रिकॉर्डिंग करनी हो या फिर फॉर्म्स, शिक्षकों ने सीखने का जिम्मा हो उन्होंने सबकुछ अपने ऊपर ले लिया था। 

शिक्षक अपने विकास से संबंधी जरूरतों और कौशल में आई कमियों के बारे में अच्छे से समझते हैं। केंद्रीय रूप से नियोजित एक तरफा प्रशिक्षण स्वरूप के बदले राज्य और शिक्षा मंत्रालय शिक्षकों के लिए पाठ्यक्रमों का एक गुलदस्ता तैयार कर सकते हैं जिनमें से शिक्षक अपनी रुचि और जरूरत के अनुसार पाठ्यक्रम का चुनाव कर सके। हमारे नीतिनिर्माताओं को शिक्षकों से यह पूछने पर लाभ मिलेगा कि वे किस तरह का समर्थन चाहते हैं और साथ ही वे शिक्षकों को नई सामग्रियाँ देकर उन्हें चुनौती दे सकते हैं।

3. अभ्यास के समुदायों का निर्माण करना

अगर शिक्षकों के पास सहायक सहकर्मी और अधिकारिक नेटवर्क नहीं हैं तो उन्हें अपने स्वयं के सीखने और नवाचार करने के लिए दी जाने वाली स्वायत्ता पर्याप्त नहीं होगी। StiR के काम करने वाले मुख्य क्षेत्रों में एक काम स्कूलों और संस्थाओं में शिक्षकों का नेटवर्क स्थापित करना भी है ताकि शिक्षक अपने अभ्यासों के बारे में रणनीतियों पर बात कर सकें, अपने सहकर्मियों से उनकी प्रतिक्रियाएँ हासिल कर सकें और उन पर सोच सकें। वे एक बिना खतरे वाले वातावरण में अपने अनुभवों को साझा कर सकते हैं। यह सहायता व्यवस्था विशेष रूप से उस समय महत्वपूर्ण बन गई जब शिक्षक बच्चों तक पहुँचने के लिए संघर्ष कर रहे थे। कई शिक्षकों ने अपना अनुभव साझा करते हुए बताया कि कैसे कोविड-19 का दर और उससे पैदा होने वाली अनिश्चितता ने उन्हें भावनात्मक रूप से चुनौतीपूर्ण स्थिति में ला दिया था। उन्होनें इससे उबरने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली रणनीतियों के बारे में भी बात की और एक दूसरे को सुझाव और समर्थन दिया।

अभ्यास के ये समुदाय प्रखण्ड और जिला स्तर के ऐसे अधिकारियों के लिए भी खुले थे जिन्होने विभिन्न जिलों में हो रही गतिविधियों के बारे में समझने के लिए अपने साथियों की तरफ रुख किया और सर्वश्रेष्ठ अभ्यास (बेस्ट प्रैक्टिस) के बारे में बातचीत की। स्कूल और जिला स्तर पर अभ्यास के ऐसे समुदायों के निर्माण में राज्य सक्रिय​ भूमिका निभा सकते हैं। स्कूल की रोज की समयसारिणी में इन अभ्यासों के लिए जगह बनाने से सहकर्मियों का सहयोग बढ़ेगा और अधिकारियों और शिक्षकों को अकादमिक, सामाजिक और भावनात्मक समर्थन मिलेगा।

4. मिश्रित शिक्षा के लिए कौशल और बुनियादी ढांचे को मजबूत करना

महामारी के दौरान शिक्षकों को इस बात का एहसास हुआ कि प्रति दिन पढ़ाने के अभ्यास में तकनीक विभिन्न रूपों में सहायक हो सकती है। उन्होनें पाया कि कक्षा के बाद अतिरिक्त सामग्री के रूप में छोटे-छोटे ऑडियो और वीडियो बनाकर छात्रों को भेजे जा सकते हैं। कुछ शिक्षकों ने अभिभावकों के लिए निजी वॉइस नोट भी रिकॉर्ड किए थे। इससे अभिभावकों को अपने बच्चों के साथ बैठकर उनका काम पूरा करवाने और उस वीडियो को शिक्षकों को वापस भेजने के लिए प्रेरणा मिली। 

पढ़ने और पढ़ाने के डिजिटल उपकरणों के सजग इस्तेमाल के लिए शिक्षकों को समय, प्रशिक्षण और उपकरणों की जरूरत है।

मिश्रित व्यवस्था में चूंकि शिक्षक और छात्र दोनों ही कक्षा तक सीमित नहीं रह जाते हैं इसलिए इससे शिक्षक और छात्र दोनों को ही सीखने की प्रक्रिया के दौरान एक तरह के लचीलेपन का एहसास होता है। उदाहरण के लिए, एक शिक्षक ने किसी विषय पर कई छोटे-छोटे वीडियो तैयार किए और इसे पूरे महीने तक बच्चों को भेजती रही। उसने अपना अनुभव साझा करते हुए कहा कि “चूंकि मैं अब 45 मिनट वाली समयसारिणी से नहीं बंधी थी इसलिए मैंने इस विषय पर उपलब्ध विभिन्न सामग्रियों के साथ प्रयोग करने की छूट ली। लेकिन मैं इस काम को बेहतर तरीके से करने के लिए आधिकारिक प्रशिक्षण लेना चाहती हूँ।” तकनीक शिक्षकों पर से बहुत सारे प्रशासनिक बोझ को भी कम कर सकती है। “हम लोगों ने ज़्यादातर जांच बैठकों का आयोजन ऑनलाइन किया और इससे आवागमन में लगने वाला ढेर सारा समय बच गया। एक दूसरी शिक्षक ने अपनी बात जोड़ते हुए कहा। हमने पाया कि शिक्षक स्कूलों में इन मिश्रित शिक्षण प्रणाली का प्रयोग लगातार करना चाहते हैं। एक शिक्षक ने अपनी बात रखते हुए कहा, “अगर मैं अच्छे से योजना बनाऊँ और मेरे पास बेहतर संसाधन उपलब्ध हों तो तकनीक मेरे शिक्षण प्रणाली में मददगार हो सकती है। अब जब स्कूल दोबारा से खुल गए हैं हमें इस गति को नहीं खोना चाहिए।”

पढ़ने और पढ़ाने के डिजिटल उपकरणों के सजग इस्तेमाल के लिए शिक्षकों को समय, प्रशिक्षण और उपकरणों की जरूरत है। पर्याप्त तकनीकी मूलभूत संरचना और शिक्षक क्षमता निर्माण के साथ स्कूल व्हाट्सएप के माध्यम से अभिभावकों को गृहकार्य, डिज़ाइन प्रारूप और परीक्षाओं की याद दिला सकते हैं और इस तरह अभिभावक को उनके बच्चे की शिक्षा प्रक्रिया में शामिल कर सकते हैं। दुर्भाग्यवश, कई राज्यों के मध्यमिक और उच्च विद्यालयों में डेस्कटॉप और लैपटॉप हैं लेकिन तकनीक का सक्रिय प्रयोग शिक्षकों के रोज़मर्रा के काम का हिस्सा नहीं हो पाया है। कई मामलों में कंप्यूटर खराब पड़े हैं और प्रतिदिन इन्टरनेट तक पहुँचना एक चुनौती हो गया है। मिश्रित शिक्षा प्रणाली की सफलता के लिए सरकारों को प्रतिदिन की शिक्षण प्रणाली में क्रियान्वयन तकनीक को लाने और साथ ही मिश्रित शिक्षाशास्त्र के आसपास शिक्षक क्षमता निर्माण की आवश्यकता है।

5. विभेदित शिक्षण प्रणाली को सक्षम बनाने के लिए शिक्षकों की रिक्तियों को भरना

महामारी के दौरान शिक्षक लचीले हो गए और उन्होनें छात्रों की जरूरतों को पूरा करने के लिए अपने शिक्षण रणनीतियों में बदलाव कर दिया। उदाहरण के लिए, कई छात्र ऐसे थे जिनके पास फोन की उपलब्धता सिर्फ शाम के समय ही होती थी और हमनें कर्नाटक और तमिल नाडु में देखा कि शिक्षक कक्षाओं का आयोजन शाम में करते थे। कुछ बच्चों के पास पुराने फोन थे और इसलिए शिक्षक उनके लिए पाठ और गृहकार्य को रिकॉर्ड करते थे। वे एक-एक बच्चे को फोन करके उसके निजी विकास की जांच करते थे। पिछड़ रहे बच्चों को अलग से समय देकर पढ़ाया जाता था। “मैंने महसूस किया कि इस तरह हर बच्चे को अलग से समय देने से कमजोर बच्चे अच्छा करने लगते हैं और मैंने उनके लिए कुछ अच्छे पाठ्यक्रम तैयार करने की पूरी कोशिश की है। लेकिन एक बार जब स्कूल पूरी तरह से शुरू हो जाएगा तब मैं बच्चों को निजी तौर पर समय नहीं दे पाऊँगा। मेरी कक्षा में बच्चों की संख्या बहुत अधिक है और इसके अलावा अन्य प्रशासनिक काम भी करने होते हैं। अच्छा होता अगर मेरी कक्षा में कम बच्चे होते और साथ ही मेरे पास क्रियात्मक रणनीति के लिए थोड़ा अधिक समय होता,” एक शिक्षक ने कहा।

और अधिक शिक्षकों की नियुक्ति करके और शिक्षक-छात्र के अनुपात को बेहतर करके सरकार शिक्षकों पर बिना किसी अतिरिक्त बोझ के इस तरह की गतिविधियों को प्रोत्साहित कर सकती है। इससे यह सुनिश्चित होगा कि विशेष रूप से कमजोर और हाशिये के समुदायों के छात्रों पर अधिक ध्यान दिया जाए। इसमें सीखने के परिणामों को बढ़ाने के साथ-साथ शिक्षक और छात्र दोनों की प्रेरणा में सुधार लाने की संभावना भी है।

6. शिक्षकों के सामाजिक और भावनात्मक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देना

महामारी ने दुनिया भर में शिक्षकों के सामाजिक और भावनात्मक स्वास्थ्य पर प्रकाश डालने का काम किया है। शिक्षकों के सामाजिक और भावनात्मक स्वास्थ्य पर आयोजित हमारे सत्रों को पहले की तुलना में ढाई गुना अधिक लोगों ने सुना था। पहली बार व्यवस्थित ढंग से शिक्षकों ने इन सत्रों में शामिल होकर अपने अनुभव साझा किए थे। कई शिक्षक समुदायों और छात्रों के घरों के दौरे पर गए थे जिससे उन्हें अपने छात्रों की पृष्ठभूमि को बेहतर ढंग से समझने का अवसर मिला।

दिल्ली महामारी के पहले से ही अपने स्कूलों में हॅप्पीनेस करीकुलम (खुशी का पाठ्यक्रम) आधारित पढ़ाई करवा रहा है और इस क्षेत्र में काम करने वाला पहला राज्य है। इसके माध्यम से शिक्षकों को सचेतन, ध्यान से सुनना और सामाजिक और भावनात्मक स्वास्थ्य के बारे में बताया गया। लेकिन कोविड-19 के दौरान ही इन अवधारणाओं ने जड़ें पकड़ीं और शिक्षक नेटवर्क बैठकों के केंद्र का हिस्सा बनीं जहां शिक्षक इन अवधारणाओं के बारे में बात करते थे और इसे प्रयोग में लाते थे। दूसरे राज्य भी अपने शिक्षकों के लिए परामर्श सेवा और सचेतन जैसे अभ्यासों का इंतजाम कर सकते हैं। यह शिक्षकों के लिए एक ऐसे मंच के रूप में काम करेगा जहां वे न सिर्फ अपने स्वास्थ्य के बारे में बातचीत कर सकते हैं बल्कि अपने छात्रों के सामाजिक और भावनात्मक स्वास्थ्य पर भी चर्चा कर सकते हैं।

कोविड-19 ने अब लगभग दो अकादमिक सत्रों के लिए शिक्षकों और छात्रों को स्कूल से बाहर रखा है। शिक्षकों को इस बदलाव को स्वीकार करने के लिए संघर्ष करना पड़ा लेकिन उन्होनें इस दौरान बहुत कुछ सीखा भी है—उनमें तन्मयता आई है, वे तकनीक के प्रति पैदा हुए डर से बाहर निकले हैं, उन्होनें नए उपकरणों का प्रयोग सीखा है, बड़े पैमाने पर नवाचार किया है, अपने सहकर्मियों से जुड़े हैं और उनके साथ मिलकर काम किया है और पेशेवर विकास के लिए समय निकाला है। हमारी शिक्षण प्रणाली को इन लाभों का फायदा उठाने और इन्हें लंबे समय तक टिकाऊ बनाने के लिए शिक्षकों का समर्थन करने की आवश्यकता है। बच्चों को स्कूल वापस लाना, सीखने की प्रणाली में आई असमानता को दूर करना और उनकी सामाजिक और भावनात्मक स्वास्थ्य को सुनिश्चित करना हमारी व्यवस्था और खास कर शिक्षकों के लिए एक मुश्किल और लंबी अवधि वाला काम है। ऐसा करने के लिए एक सक्षम वातावरण बनाने में लंबा रास्ता तय करना पड़ेगा।

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क्या हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि सभी बच्चे स्कूल वापस लौटें?

जब कोविड-19 महामारी भारत में पहुंची तब 12 साल की रेखा के पिता की नौकरी चली गई। परिवार की आय का स्त्रोत चला गया और उनका घर भी। उन्हें राजस्थान के अपने छोटे से गाँव वाले घर में लौटने पर मजबूर होना पड़ा जहां रेखा के लिए न तो कोई स्कूल था, न ही मिड-डे मील (मध्याह्न भोजन) में मिलने वाला खाना और न ही माहवारी की स्वच्छता से जुड़ी कोई चीज। हालांकि, सबसे अधिक चिंता उसके भविष्य से जुड़ी थी। जब एडुकेट गर्ल्स नाम की स्वयंसेवी संस्था के कार्यकर्ता इस परिवार से मिलने पहुंचे और उनसे यह सवाल किया कि वे अपने बच्चों को वापस स्कूल भेजना कब से शुरू कर रहे हैं, तब रेखा के पिता ने कहा, “मैं बहुत मुश्किल से अपने परिवार के लिए खाना जुटा पा रहा हूँ। अब मेरी प्राथमिकता मेरे बच्चों के लिए दो वक्त की रोटी जुटाना है।”

गहरी होती त्रासदी के साथ यह भारत के असंख्य परिवारों की सच्चाई बन चुका है और देश भर के स्वयंसेवी संस्थाएँ इसकी गवाह रही हैं। महामारी के पहले देश में 4.1 मिलियन से अधिक लड़कियां1 स्कूल नहीं जाती थीं। महामारी के दौरान 15 लाख स्कूल बंद हो गए जिसके कारण प्राथमिक और मध्यमिक स्कूलों में नाम लिखवाने वाले 247 मिलियन बच्चे बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं।

लगभग 11 मिलियन लड़कियां अपनी पढ़ाई छोड़ने की स्थिति में हैं।

अब ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि देश भर में लगभग 11 मिलियन लड़कियां अपनी पढ़ाई छोड़ने की स्थिति में हैं। महामारी की चपेट में आने से पहले भी राजस्थान में प्रत्येक पाँच में से एक लड़की अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ देती थी, और अब कोविड-19 के कारण 14.9 प्रतिशत बच्चे स्कूल में अपना नामांकन तक नहीं करवा पाए हैं। उत्तर प्रदेश में भी ऐसा ही हाल है, जहां 54 प्रतिशत लड़कियां इस बात को लेकर आश्वस्त नहीं हैं कि महामारी के बाद वे कभी स्कूल वापस लौट भी पाएँगी या नहीं।

स्वयंसेवी संस्थाओं को हमारे बच्चों के भविष्य पर इस संकट के स्थायी प्रभाव की आशंका के साथ तत्काल बुनियादी जरूरतों को पूरा करने की सच्चाई के बीच संतुलन बनाना पड़ा था। महामारी और लगातार लगने वाले लॉकडाउन ने वर्ष 2020 में देश के लगभग 230 मिलियन लोगों को और ज्यादा गरीब कर दिया है। नतीजतन, भारत के दूर-दराज के हिस्सों में कई परिवारों को अपने खाने की मात्रा में कमी लानी पड़ी और उन्हें बाल श्रम का सहारा लेना पड़ा, कई युवा लड़कियों को मजबूरन जल्दी शादी करके परिवार के देखभाल करने वाली भूमिकाओं में आना पड़ा जिससे वे हिंसा और तस्करी का शिकार होने लगीं। 

कोविड-19 त्रासदी के दौरान, एडुकेट गर्ल्स में हमारे काम ने समुदाय को लेकर अच्छी समझ दी और हमें सीखने के एक तेज रास्ते पर निकलना पड़ा। पिछले 18 महीनों के दौरान, ग्रामीण-स्तर पर लड़कियों की शिक्षा को सुनिश्चित करने की कोशिश करने वाले 15,000 से अधिक सामुदायिक स्वयंसेवी (टीम बालिका) हमारे कैंप विद्या नाम के सामुदायिक प्रशिक्षक पहल से जुड़े। इस कार्यक्रम के तहत ये सदस्य राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के 21 जिलों के 20,000 गांवों में गए और वहाँ के 2.3 लाख बच्चों के साथ जुड़कर काम किया। भारत की स्कूल-से-बाहर रहने वाली 40 प्रतिशत लड़कियां इन्हीं इलाकों में रहती हैं।

महामारी से मिलने वाली सीख और आगे बढ़ने के लिए आवश्यक प्राथमिक चीजों के बारे में यहाँ कुछ बातें हैं ताकि कोविड-19 से प्रभावित बच्चे स्कूल वापस लौट सकें।

1. इस क्षेत्र को एक ऐसा बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाना होगा जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि एक भी बच्चा पीछे न छूटे

इस महामारी ने देश में पहले से मौजूद असमानता को और बढ़ा दिया और विभिन्न उपसमूहों को असमान रूप से प्रभावित किया है। इसलिए हम लोगों को एक ऐसे नियोजित, बहुआयामी दृष्टिकोण को अपनाने की जरूरत है जिससे यह तय किया जा सके कि विभिन्न रूपों में कोविड-19 से प्रभावित बच्चे अपनी स्कूली शिक्षा जारी रख सकें।

हमें उन बच्चों की पहचान करने की जरूरत है जो स्थायी रूप से स्कूल वापस न लौट पाने के खतरे से जूझ रहे हैं।

उदाहरण के लिए, ऐसे बच्चे जो महामारी के पहले से ही स्कूल जाते थे, उनकी पहचान करने के लिए हमें स्कूलों में मौजूद दस्तावेजों की जांच करनी पड़ेगी और यह सुनिश्चित करना होगा कि उनमें से बिना किसी अपवाद के सभी बच्चे वापस स्कूल लौट जाएँ। उसके बाद, हमें ऐसे नए बच्चों की पहचान करनी होगी जो स्कूल जाने की उम्र में पहुँच चुके हैं और इनके साथ ही ऐसे प्रवासी मजदूरों के बच्चों पर भी ध्यान देना होगा जो छोटे अंतराल के बाद नई जगह विस्थापित होने के कारण स्कूल नहीं जा पाते हैं। हालांकि, यह बहुत मुश्किल है, लेकिन फिर भी हमें एक ऐसी व्यवस्था की जरूरत है जो इन में से प्रत्येक बच्चे की पहचान करे और उन्हें स्कूल जाने के लिए प्रोत्साहित करे। हमें ऐसे बच्चों पर भी ध्यान देने की जरूरत है जो प्राथमिक से मध्यमिक स्कूलों में जाने की उम्र में पहुँच चुके हैं, क्योंकि ऐसे बच्चों में लड़कियों के पढ़ाई बीच में ही छोड़ देने का दर बहुत ऊंचा होता है। अंत में, हमें ऐसे बच्चों के पहचान की जरूरत है जिन्हें लेकर यह खतरा है कि वे स्थायी रूप से वापस स्कूल नहीं लौट पाएंगे। इनमें कोविड-19 के कारण अनाथ हुए बच्चे और मुख्य धारा में शामिल होने योग्य बड़ी उम्र की लड़कियां शामिल हैं। उदाहरण के लिए, मार्च 2020 में 14 वर्ष की उम्र पूरा करने वाली लड़कियों को स्कूल वापस नहीं लौटने का खतरा सबसे अधिक है क्योंकि उन्होनें शिक्षा के अधिकार अधिनियम के अनुसार प्रवेश के लिए आयु पात्रता मानदंड को पार कर लिया है। बहुत अधिक संभावना यह है कि उनकी या तो शादियाँ कर दी गई हैं या उन्हें परिवार की देखभाल करने की भूमिका में ला दिया गया है, जिससे कि वे वापस स्कूल नहीं लौट पाने की स्थिति में आ गई हैं। ऐसे बच्चों के लिए हमें एक वैकल्पिक शिक्षा योजना बनाने की आवश्यकता है।

2. नीति निर्माताओं को बच्चों को स्कूल में वापस लाने के लिए प्रोत्साहन के तरीकों को खोजने पर ध्यान देना चाहिए

चूंकि हम लोग एक महामारी से उबरे हैं इसलिए नीतियों और नीति निर्माताओं को अपनी सोच और रणनीति के केंद्र में सबसे कमजोर समुदायों को रखने की आवश्यकता है। यह विशेष रूप से लड़कियों के लिए सच है क्योंकि वे अब लिंग आधारित हिंसा, कम उम्र में शादी, जबरन मजदूरी, तस्करी आदि की बड़े पैमाने पर शिकार होती हैं। इसलिए शिक्षा, सार्वजनिक स्वास्थ्य, और एजेंसी निर्माण में परिवर्तन बहुत महत्वपूर्ण है। लड़कियों के लिए व्यावसायिक प्रशिक्षण पर ध्यान केन्द्रित करना और स्कूलों में स्वास्थ्य देखभाल और स्वच्छता सुविधाओं के प्रावधान इस रणनीति के मूल घटक हो सकते हैं। सभी लड़कियों के लिए शिक्षा को अनिवार्य बनाने के लिए नीति-निर्माण के स्तर पर तत्काल हस्तक्षेप की भी आवश्यकता है।

सबसे महत्वपूर्ण यह है कि विभिन्न थिंक टैंक, शोधकर्ता और नीतिनिर्माता अपना ध्यान और प्रोत्साहन ऐसी सहायता योजनाओं पर केन्द्रित करें जिससे कि हाशिये पर जी रहे समुदाय के लोगों का ध्यान वापस शिक्षा की तरफ जाए। उदाहरण के लिए, रेखा जैसी कम आय वाले घरों से आने वाले बच्चों को समायोजित करने की क्षमता के आधार पर स्कूलों को प्रोत्साहित और पुरस्कृत किया जा सकता है। सरकारें स्नातक तक लड़कियों के लिए मुफ्त शिक्षा की योजना पर विचार कर सकती हैं; कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालयों जैसे सरकारी वित्त पोषित आवासीय स्कूलों की सीटें बढ़ाई जा सकती हैं; और ग्रामीण क्षेत्रों में स्कूलों को समायोजित करने और आवंटित करने की योजनाएँ बनाई जा सकती हैं जहां प्रवासी बच्चे वापस लौट आए हैं। ऐसा करने से विस्तारित आबादी के लिए पर्याप्त भोजन की व्यवस्था को सुनिश्चित किया जा सकता है।

बेहतर वापसी की तैयारी

एक बेहतर शिक्षा व्यवस्था के निर्माण के लिए हमारा लक्ष्य उन बच्चों को वापस शिक्षा दिलाने का होना चाहिए जो महामारी के दौरान शिक्षा से चूक गए हैं। हमें व्यवस्था के पुनर्निर्माण और सुधार को इस रूप में लाने पर ध्यान देने की जरूरत है जिसमें सभी बच्चों की जरूरतों के लिए जगह हो ताकि कोई भी पीछे न छूट जाये।

COVID-19 के दौरान बच्चे क्लासरूम से बहार बैठकर पढ़ाई कर रहे हैं-एडूकेट गर्ल्स_COVID-19 स्कूल
थिंक टैंक, शोधकर्ताओं और नीति निर्माताओं को ऐसे प्रोत्साहन और सहायता कार्यक्रमों का निर्माण करने की आवश्यकता है जिससे कि हाशिये पर जीने वाले समुदायों का ध्यान वापस शिक्षा की तरफ लौट सके। चित्र साभार: एडुकेट गर्ल्स

हमारी कोशिशों में निम्नलिखित चीजें शामिल होनी चाहिए:

समावेशी वित्तपोषण सर्वोपरि होगा

हमें इस तथ्य की पहचान करने की जरूरत है कि शिक्षा के लिए वर्तमान राष्ट्रीय और वैश्विक वित्तपोषण पर्याप्त नहीं है। असंख्य विचारकों के अनुमान के अनुसार वित्तपोषण में आने वाली कमी प्रति वर्ष लगभग 75 बिलियन अमरीकी डॉलर है। और यह प्रत्येक बच्चे को सुनिश्चित रूप से मिलने वाली शिक्षा के रास्ते में एक कमी है।

वित्तपोषण समावेशी होना चाहिए और इन पहलों पर केन्द्रित होना चाहिए जो यह सुनिश्चित करे कि सबसे कमजोर बच्चों को अच्छी शिक्षा मिले। 

महामारी के दौरान सरकारी और गैर-सरकारी दोनों ही स्तरों पर वित्तपोषण की कई सारी गतिविधियां देखने को मिली। इन वित्तपोषण गतिविधियों में से ज़्यादातर सीधे राहत पहुँचने के तरीकों पर केन्द्रित थी। महामारी की शुरुआत में, इसका मुख्य ध्यान लोगों तक रोज़मर्रा की जरूरी चीजें पहुंचाना और शिक्षा के लिए डिजिटल सुविधाओं के इंतजाम पर था, लेकिन इसकी प्रकृति समावेशी नहीं थी। दूसरी लहर में, इसका ध्यान चिकित्सीय आपदा स्थितियों जैसे ऑक्सिजन सिलिंडरों और वेंटिलेटरों की आपूर्ति पर चला गया था। इन चीजों पर भारी मात्रा में गैर-आनुपातिक खर्च होने के कारण सबसे अधिक हाशिये पर रहने वाले लोगों के लिए शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे उपेक्षित हो गए।

अब, हमें इसके लिए कमर कसने की जरूरत है क्योंकि हम एक ऐसी शिक्षा व्यवस्था बनाना चाहते हैं जो भविष्य में मिलने वाले आघातों का सामना कर सके और यह सुनिश्चित कर सके कि एक भी बच्चा पीछे नहीं छूटेगा। हमें वैश्विक और घरेलू दानकर्ताओं को इस बात का भरोसा दिलाना होगा कि हमें और अधिक पैसों की आवश्यकता है। हालांकि, इसके साथ ही यह भी सुनिश्चित करना होगा कि यह वित्तपोषण समावेशी हो और ऐसी योजनाओं पर केन्द्रित हो जो सबसे कमज़ोर बच्चों के लिए उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा को सुनिश्चित करे। और सबसे कमजोर समुदायों के लिए शिक्षा और संसाधन तक पहुँचने की कमी से जुड़ी समस्याओं में गहरे उतरकर देखने के साथ ही अब समय आ गया है कि हम एक साथ मिलकर जमीनी स्तर पर इन समस्याओं को सुलझाएँ और लड़कियों की भलाई के काम को प्राथमिकता दें।

फुटनोट:

  1. मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार, 2017। इक्विटि के साथ प्रभावशीलता: कैमफेड के कार्यक्रम के माध्यम से हाशिये पर रहने वाली लड़कियों के लिए शिक्षा – समान पहुँच और शिक्षा के लिए शोध, 2018।

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सरकार के साथ काम करना: सामाजिक क्षेत्र के लिए रणनीतियाँ

डॉ रेड्डीज फ़ाउंडेशन (डीआरएफ़) में सरकार के साथ बड़े पैमाने पर काम करने का हमारा पहला अनुभव 2005 में ग्रामीण विकास मंत्रालय (एमओआरडी) के साथ था। हमने एमओआरडी के साथ इसकी पहली फ्लैगशिप कौशल योजना लाईवलीहूड एडवांसमेंट बिजनेस स्कूल (एलएबीएस) के तहत साझेदारी की थी। यह एक क्षेत्र-विशिष्ट कौशल के लिए 90 दिनों की अवधि वाला प्रशिक्षण था। जिसके तहत बेरोजगार युवाओं को मजदूरी आधारित रोजगार के लिए तैयार किया जाता था।

एमओआरडी के साथ डीआरएफ के सात सालों की साझेदारी और राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) और तीन राज्य सरकारों के साथ लंबे समय तक चलने वाली साझेदारी 2011–12 में समाप्त हुई। सरकार के साथ इन साझेदारियों के परिणामस्वरूप 18 राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों में कार्यक्रम का अखिल भारतीय स्तर पर विस्तार हुआ और इससे 1.92 लाख युवा प्रभावित हुए। कार्यक्रम की सफलता के बावजूद भी तीन ऐसे तथ्य थे जिनके कारण डीआरएफ़ ने नए सरकारी अनुदान के लिए आवेदन नहीं दिया, विशेष रूप से कौशल आधारित कार्यक्रमों के लिए:

डीआरएफ ने 2018 के अंतिम दिनों तक कौशल कार्यक्रमों के लिए किसी भी तरह का अनुदान प्रस्ताव सरकार के सामने नहीं रखा था। हालांकि, इसने राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (एनएसडीसी) और विकलांगों के लिए कौशल परिषद जैसे सरकारी विभागों के साथ अपने कौशल कार्यक्रमों द्वारा प्राप्त अनुभव को लगातार साझा करते हुए अपने संबंध को बरकरार रखा था। इसके पीछे की सोच यह थी कि अगर इसमें एक भी नए मॉडल का परिणाम बेहतर दिखाई दिया तो डीआरएफ सरकार से अनुरोध करके इसे ऊपर ले जाने के लिए कहेगा।

2018 में, डीआरएफ ने एक नया कार्यक्रम तैयार करना शुरू किया जो गुणवत्ता वाले ‘संबद्ध स्वास्थ्य पेशेवरों’ को तैयार करने पर ध्यान केंद्रित करेगा, खासकर उन क्षेत्रों में जहां अधिक कमजोर आबादी थी। इसे बड़े पैमाने पर करने के लिए हमें एक बार फिर सरकार के साथ मिलकर काम करना होगा। हम यह भी जानते थे कि कॉरपोरेट्स ऐसे कार्यक्रमों के लिए धन देने को तैयार नहीं हो सकते हैं, क्योंकि दूरस्थ आबादी तक पहुंचना अधिक महंगा है, और कार्यक्रम की शुरुआत में परिणाम स्पष्ट रूप से दिखाई नहीं दे रहे हैं।

इसलिए, हमने आंध्र प्रदेश के आदिवासी कल्याण विभाग (टीडब्ल्यूडी) के साथ काम करने का चुनाव किया और अक्टूबर 2018 में उनके साथ साझेदारी में अपना नया हेल्थकेयर स्किलिंग प्रोग्राम शुरू किया।

आंध्र प्रदेश के महिला एवं बाल कल्याण विभाग, आंध्र प्रदेश राज्य कौशल विकास निगम और गुजरात के जिला खनिज फाउंडेशन के साथ रणनीतिक साझेदारी करके कार्यक्रम को तेजी से बढ़ाया गया।

सरकार के साथ काम करते हुए सीखी गई कुछ प्रमुख चीजें इस प्रकार हैं:

रणनीति बनाकर काम करें

आंध्र प्रदेश सरकार के साथ एक रणनीतिक साझेदारी शुरू करने के लिए हमारी दोनों शक्तियों के संयोजन पर आधारित

दृष्टिकोण बहुत ही मददगार साबित हुआ:

निष्पादन क्षमता और तत्परता सुनिश्चित करें

कार्यक्रम शुरू करने से पहले सही निष्पादन क्षमता को सुनिश्चित करने से हमें कार्यक्रम को बेहतर ढंग से डिजाइन और कार्यान्वित करने में मदद मिली। इसका एक प्रमुख घटक कार्यक्रम का नेतृत्व करने के लिए सही प्रबंधक को काम पर रखना है।सरकारी पारिस्थितिकी तंत्र सीएसआर पारिस्थितिकी तंत्र से अलग तरह से काम करता है।और यदि आप दोनों प्रणालियों को एक ही तरीके से देखते हैं तो इसके असफल होने की संभावना बढ़ जाती है।

सहकर्मी एक साथ मिलकर बिखरे हुए टुकड़ों को जोड़ रहे हैं_सरकार सामाजिक क्षेत्र
निष्पादन क्षमता सुनिश्चित करना किसी भी साझेदारी में महत्वपूर्ण मूल्य जोड़ता है, चाहे वह सरकारी हो या निजी | चित्र साभार: रॉपिक्सेल

इस कार्यक्रम के मामले में, किसी ऐसे व्यक्ति का होना महत्वपूर्ण था जो सरकारी पारिस्थितिकी तंत्र को समझता हो और सरकार के विभिन्न विभागों के बारे में अच्छी तरह से जानता हो और उनसे जुड़ा हुआ भी हो। उदाहरण के लिए, हालांकि हमारा काम टीडब्ल्यूडी के साथ था लेकिन हमने सुनिश्चित किया कि हम एनएसडीसी के अधिकारियों को भी इसकी जानकारी होनी चाहिए क्योंकि यह एक कौशल कार्यक्रम था। हम सभी संबंधित विभागों के नौकरशाहों को आमंत्रित करते थे (भले ही वे परियोजना के लिए जिम्मेदार न भी हों) और कभी-कभी मंत्रियों को भी बुलाते थे। यह सबकुछ सिर्फ इतना सुनिश्चित करने के लिए किया जाता था कि प्रत्येक व्यक्ति इस कार्यक्रम के बारे में जानता है और खुद को इससे जुड़ा हुआ महसूस करता है।

बड़े सरकारी कार्यक्रमों के प्रबंधन के लिए यह ‘ऑलवेज-ऑन’ मोड एक पूर्व-आवश्यक चीज है।

निष्पादन क्षमता का अर्थ बैठकों में उपस्थित होने और हर समय रिपोर्ट के लिए सरकार की मांग का जवाब देने की क्षमता भी होता है। बड़े सरकारी कार्यक्रमों के प्रबंधन के लिए यह ‘ऑलवेज-ऑन’ मोड एक पूर्व-आवश्यक चीज है। सीएसआर के साथ, बैठकों को पुनर्निर्धारित करने या रिपोर्ट जमा करने के लिए अधिक समय मांगने की सुविधा है। यदि परियोजना के नेतृत्वकर्ता को सीएसआर साझेदारी वाले वातावरण में काम करने की आदत है तो उस स्थिति में उनके लिए सरकारी परियोजना को समझना और उसके लिए प्रभावी होना मुश्किल होता है। 

हमनें सबसे महत्वपूर्ण बात जो सीखी वह यह थी कि निष्पादन क्षमता को सुनिश्चित करने से यह साझेदारी में महत्वपूर्ण मूल्य जोड़ता है, चाहे वह साझेदारी सरकारी हो या निजी। समय के साथ, हमनें ‘निष्पादन क्षमता और तत्परता मूल्य’ (ईसीआरए) उपकरण का निर्माण किया जो हमें किसी भी परियोजना के लिए अपनी तैयारी का आकलन करने और डिज़ाइन के स्तर पर ही इसके लिए योजना बनाने में मदद करता है।

अच्छी तरह से निष्पादित करें

हमने इस बात की खोज की कि किसी भी संस्थान को सरकार के साथ उसी स्थिति में साझेदारी करनी चाहिए जब वह इस बात को लेकर आश्वस्त हो कि वे अपने कार्यक्रमों के माध्यम से महत्वपूर्ण परिणाम हासिल कर सकते हैं। अच्छे परिणाम सरकार के साथ संबंधों को आगे बढ़ाएंगे, कार्यक्रम के उनके स्वामित्व को बढ़ाएंगे और विश्वास बनाने में मदद करेंगे।

हमने ‘संबद्ध स्वास्थ्य पेशेवरों’ को विकसित करने के लिए प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों पर ध्यान केंद्रित किया। कॉर्पोरेट अस्पतालों और निजी क्लीनिकों में इनकी बहुत अधिक मांग थी। गुणवत्तापूर्ण पाठ्यक्रम और कौशल प्रयोगशालाओं को डिजाइन करने के साथ-साथ, हमने यह सुनिश्चित किया कि उम्मीदवारों को मुख्य रोजगार योग्यता कौशल पर प्रशिक्षण मिले, प्रमाणित प्रशिक्षकों को काम पर रखा जाए और व्यापक नियोक्ता जुड़ाव का संचालन किया जाए। सहमति हासिल किए गए परिणामों को प्राप्त करने में हमारी मदद के लिए यह महत्वपूर्ण था।

आभार विश्वास को बढ़ाने का काम करेगा और इसके कारण सरकारी अधिकारी अतिरिक्त काम करेंगे।

जब सरकारी अधिकारियों ने पहले के कुछ चरणों के सफल समापन को देखा तब कार्यक्रम के प्रति उनकी ज़िम्मेदारी बढ़ गई और वे अन्य जिला, राज्यों और विभागों के अपने सहकर्मियों के बीच इसे प्रचारित करने लगे। इससे हमें अन्य क्षेत्रों में आगे बढ़ने में मदद मिली।

श्रेय दें

वास्तविकता यह है कि सरकार के साथ कई साझेदारियाँ विशिष्ट विभागों की योजनाओं को सफलता प्राप्त करने में सक्षम बनाती हैं। इसलिए, जब कार्यक्रम सफल होता है, तब यह आवश्यक है कि सरकारी तंत्र में काम कर रहे राज्य के अधिकारियों और अन्य लोगों को क्रेडिट दिया जाये जिन्होनें कार्यक्रम को शुरू करने और इसे आगे ले जाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। आभार प्रकट करने से आपसी विश्वास बढ़ेगा और भविष्य में ऐसे कार्यक्रमों में मदद करने के लिए सरकारी अधिकारी हर संभव सहायता देंगे। 

लचीले व्यवहार के साथ संपर्क करें

यह देखते हुए कि पिछले दशक में हमारा अनुभव काफी हद तक सीएसआर भागीदारों और फाउंडेशनों के साथ था, हमारी आंतरिक व्यवस्था—संचालन, वित्त, मानव संसाधन, और अन्य सहायता विभाग—भागीदारों के उस समूह के साथ काम करने के लिए तैयार थी। हमारी आंतरिक टीमों के लिए यह समझना चुनौतीपूर्ण था कि सरकार के साथ काम करने के लिए मानसिकता, कौशल और प्रतिक्रिया देने के समय में परिवर्तन की आवश्यकता थी।

स्त्रोत: डॉ रेड्डीज फाउंडेशन

संगठन के नेतृत्व को सरकारी संस्थाओं के साथ काम करने के लिए टीमों को संरेखित करने में समय और ऊर्जा निवेश करना चाहिए। साथ ही, यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि टीम के सभी सदस्य हमेशा कार्यक्रम के उद्देश्य को ध्यान में रखें और काम करें। इससे टीम और शेयरधारकों के बीच प्रतिदिन निष्पादन स्तर पर आने वाली समस्या को कम करने की संभावना भी बनी रहती है।

विस्तृत मानसिकता के साथ एक लचीले दृष्टिकोण पर चलने से एक बड़ी तस्वीर पर से ध्यान हटाये बिना आने वाली चुनौतियों का सही ढंग से सामना करने और उनका जवाब देने में मदद मिलेगी।

सुनियोजित जोखिम उठाएँ

अंत में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अनुदान में देरी, सरकारी अधिकारियों के स्थानांतरण या कभी-कभी सरकार बदलने से संबन्धित कुछ जोखिम उठाए बिना सरकार के साथ बड़े पैमाने पर भागीदारी संभव नहीं हो सकती है। उदाहरण के लिए, छोटे बजट वाले संगठनों के लिए सरकार के साथ काम करना बहुत अधिक खतरनाक होता है। अनुदान वितरण में होने वाली देरी एक सामान्य घटना है और अगर संगठन के पास अपने संचालन के लिए इतना पर्याप्त मात्रा में नकद का प्रवाह उपलब्ध नहीं कि वह अनुदान मिलने में आई देरी का सामना कर सके तो संभव है कि उसे कार्यक्रम को आंशिक रूप से या पूरी तरह बंद करना पद जाये।

बिना जोखिम उठाए बड़े पैमाने पर सरकारी साझेदारी संभव नहीं हो सकती है।

बड़े संगठनों को इस तरह के कार्यक्रमों का प्रबंधन करते समय कुछ फंड को अलग रखना चाहिए जिससे कि कुछ महीनों की देरी होने पर​ भी घबराहट की स्थिति पैदा नहीं होती है। बड़े पैमाने पर सरकारी साझेदारी शुरू करने से पहले, संगठनों को नकदी प्रवाह, कार्मिक परिवर्तन, नीति परिवर्तन की संभावना आदि जैसे कारकों को ध्यान में रखकर अच्छी तरह से भविष्य में आने वाले जोखिम का मूल्यांकन करना चाहिए।

सरकार के साथ साझेदारी के दूसरे चरण ने हमनें कई नई चीजें सीखीं। बेहतर अभ्यासों का पालन करते हुए, समय के साथ हमनें सरकार के प्रति अपने पूर्वाग्रहों को ख़त्म किया है। अगर हम ऊपर बताए गए कुछ निर्देशों का पालन करें तो सरकार के साथ की जाने वाली साझेदारी बहुत ही लाभदायक साबित हो सकती है।

अस्वीकरण: डॉक्टर रेड्डीज फ़ाउंडेशन सामाजिक क्षेत्र में कम चर्चित विषयों पर शोध और प्रसार के लिए आईडीआर का समर्थन करता है।

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