November 30, 2022

प्रभावी संचार से जुड़ी तमाम जानकारियां जो एक भारतीय एनजीओ के लिए जरूरी हैं

वन-पर्सन कम्युनिकेशन आर्मी, या कहें सीमित संसाधनों में प्रभावी संचार रणनीति बनाने के उपाय और उपकरण।
6 मिनट लंबा लेख

कई समाजसेवी संस्थाओं के लिए संचार एक बड़ी चुनौती हो सकता है। हालांकि लगातार उचित संवाद बनाए रखने और उन्हें आगे बढ़ाए जाने का अपना महत्व है। लेकिन समाजसेवी संस्था के काम के नतीजों पर सीधे असर डालने वाले कई और काम भी होते हैं। इन कामों का दबाव अधिक होने के कारण संचार रणनीति बनाना संस्थाओं की प्राथमिकता नहीं रह जाती है और उन्हें बाद के लिए टाल दिया जाता है।

यह एक आम धारणा है कि अपने उद्देश्यों के बारे में जागरूकता लाने और फ़ंडिंग हासिल करने की अपनी एक क़ीमत होती है। इसके साथ ये भी माना जाता है कि ऑनलाइन भीड़भाड़ में अपनी बात कहने के लिए कम्युनिकेशन प्रोफेशनल्स की एक सेना में निवेश करना पड़ता है। इसलिए संस्थाएं संचार को या तो पूरी तरह से नज़रअन्दाज़ कर देती हैं या इसे अस्थाई तरीके से किया जाता है। इसके कारण कई बार वे क्या कहना चाह रहे हैं, इसका असर कम हो जाता है। लेकिन चुपचाप बैठे रहने से कुछ कहना बेहतर होता है ना?

एक असरदार संचार नीति आपको अपने लोगों से गहराई और वास्तिकता के साथ जोड़ती है। साथ ही, यह उन्हें आपके द्वारा चाहा गया कदम उठाने के लिए भी प्रेरित करती है। यह आपके उद्देश्य के लिए निष्क्रिय उपभोक्ताओं को चैंपियनों में बदलने की क्षमता रखती है। संचार रणनीति को बेहतर बनाने के लिए कुछ सुझाव दिए जा रहे हैं:

1. अपनी ऑडियंस की सही पहचान करें

प्रभावी तरीक़े से संचार करने के लिए सबसे पहले उन लोगों की पहचान आवश्यक है जिनसे आप बातचीत करने जा रहे हैं। कोई छूट न जाए, इससे बचने के लिए अपने संदेश के विषय को व्यापक रखना सुरक्षित विकल्प लग सकता है। लेकिन दुर्भाग्यवश, अधिक विस्तार आपकी बात के प्रभाव को कम कर सकता है। उदाहरण के लिए, यदि आप शिक्षकों और स्कूल के पदाधिकारियों से बात कर रहे हैं तो उन्हें भारतीय शिक्षा को प्रभावित करने वाली नीतियों की जानकारी होती है। इसलिए यदि आपका संदेश विशेष रूप से उन्हें लक्षित करके तैयार किया जाता है तो इसमें अधिक से अधिक बारीकियों को शामिल किया जा सकता है। वहीं दूसरी ओर, यदि आप चाहते हैं कि आपका संदेश आमजन तक आसानी से पहुंच जाए तो आपको केवल मुख्य बातों (मुख्य दर्शकों का ध्यान भटकने के जोखिम के साथ) तक सीमित होना पड़ सकता है।

फेसबुक बैनर_आईडीआर हिन्दी

साथ ही, यह याद रखना जरूरी है कि प्रत्येक संगठन की अपनी एक खास ऑडियंस होती है जिस तक उसे पहुंचना होता है। उदाहरण के लिए, यदि आप शिक्षा के क्षेत्र को अपना लक्ष्य बना रहे हैं तो इस समुदाय में शिक्षक, स्कूल के अधिकारी, सरकारी अधिकारी, अभिभावक और शिक्षा पर ध्यान देने वाली समाजसेवी संस्थाएं शामिल हो सकती हैं। इनमें से प्रत्येक इकाई की अपनी अलग रुचि, प्राथमिकताएं और व्यवहार होगा। इसलिए, एक विशेष उद्देश्य की प्राप्ति के लिए आपको इसके अनुरूप दृष्टिकोण अपनाना होगा।

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सावधान रहें और अपने संचार को उन निराधार धारणाओं पर निर्मित न करें जिनसे उनकी सफलता में कमी आ सकती है। | चित्र साभार: कैन्वा प्रो

2. अपनी ऑडियंस को समझें

शुरूआत लोगों के उन समूहों के साथ करें जिनसे आप जुड़े हैं। इन समूहों में कई संगठन और वे सभी व्यक्ति शामिल हो सकते हैं जिनके साथ मिलकर आप काम करते हैं। उदाहरण के लिए, आप समाजसेवी संस्थाएं जैसे अज़ीम प्रेमज़ी और रोहिणी निलेकनी और/या फ़ाउंडेशन जैसे कि बिल एंड मेलिंडा गेट्स फ़ाउंडेशन और फ़ोर्ड फ़ाउंडेशन आदि की सूची तैयार कर सकते हैं।

इसके बाद, आप अपनी टीम के साथ मिलकर प्रत्येक समूह के लिए नीचे दिए गए सवालों के जवाब देने की कोशिश करें:

  • उनसे संवाद स्थापित करना हमारे लिए महत्वपूर्ण क्यों है?
  •  इसके लिए हमें क्या करने की ज़रूरत है?
  • उनकी कमियां और कमज़ोरियां क्या हैं? इन्हें दूर करने के लिए हम किस प्रकार के समाधान प्रदान करते हैं?
  • सलाह के लिए वे किस तरह के स्त्रोतों या मंचों से सम्पर्क साधते हैं?
  • वे किन संचार माध्यमों पर सबसे अधिक समय व्यतीत करते हैं?

इन सवालों का जवाब देने के लिए आप कई तरीके अपना सकते हैं। कोई भी तरीक़ा चुनते हुए, आपको यह ध्यान रखना है कि आपका संवाद केवल अनुमानों पर आधारित न हो, ऐसा करना इसकी सफलता की संभावना को कम करता है। आपको किससे बात करनी है, इस बात की जानकारी रखना आपके लिए संवाद और संचार से जुड़े फ़ैसले लेने में मददगार साबित हो सकता है। इसकी शुरूआत समूहों की प्राथमिकता तय करके की जा सकती है। एक व्यवस्था बनाना जो इस बात का लेखाजोखा रखती हो कि अपने उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए, एक खास समूह के लोगों तक पहुंचने के लिए कितना प्रयास करना पड़ता है, समूहों की प्राथमिकता तय करने में सहायक साबित हो सकता है। 

3. सबसे आसान और लोकप्रिय संचार चैनल का इस्तेमाल करें

एक बार की-ऑडियंस की पहचान कर लेने के बाद आपको यह सोचना है कि आप उनके साथ कैसे संवाद कर रहे हैं और यह कितना सफल है। क्या आप अपने लोगों तक पहुंचने के लिए सही चैनल का इस्तेमाल कर रहे हैं? उदाहरण के लिए, आपको यह पता चल गया कि आपके ज्यादातर दानदाता सबसे अधिक समय लिंक्डइन पर बिताते हैं तो आपको सोशल मीडिया के अन्य चैनलों पर उपस्थित रहने की जरूरत नहीं है। इससे आपका सोशल मीडिया संभालने वालों को भी राहत मिलती है क्योंकि अब उनके पास अच्छी तरह से लिखी गई, टारगेटेड पोस्ट तैयार करने के लिए अधिक समय होता है। 

एक बार आप अपनी ऑडियंस प्रोफ़ाइल का इस्तेमाल करते हुए उन चैनल या फॉरमेट्स (उदाहरण के लिए सोशल मीडिया, आलेख, न्यूजलैटर) की पहचान कर लेते हैं जिन पर अधिक ध्यान देना है तो आप इससे जुड़ी चीजों पर काम करने के लिए अच्छी स्थिति में आ जाते हैं।

4. सही उपकरणों का इस्तेमाल

कई ऐसे डिजिटल उपकरण (टूल) हैं जो सीमित संसाधन वाले संगठनों के लिए गेम चेंजर बन चुके हैं। नीचे दी गई इस छोटी सी सूची में कुछ ऐसे ही उपकरणों के बारे में बताया गया है जो या तो मुफ़्त हैं या समाजसेवी संस्थाओं को भारी छूट प्रदान करते हैं।

अ) विक्स या स्क्वेरस्पेसये मंच कुछ ही घंटों में वेबसाइट बना देते हैं। ये साधारण वेबसाइट बिल्डर हैं जो ड्रैग एंड ड्रॉप शैली में काम करते हैं। ये बिना कोडिंग वाली एक सहज और रिस्पॉन्सिव (जो मोबाइल फ़ोन और डेस्कटॉप दोनों में ही बहुत अच्छा दिखता है) वेबसाइट बनाने में आपकी मदद कर सकते हैं। हालांकि इनकी सुविधाएं मुफ़्त नहीं हैं लेकिन किसी डिज़ाइनर और वेब डेवलपर से काम करवाने की तुलना में इनका इस्तेमाल करना बहुत सस्ता पड़ता है। ये दोनों ही प्लैटफ़ॉर्म किसी भी तरह के बदलाव और नए पेज जोड़ने की प्रक्रिया को बहुत आसान बना देते हैं। जब आप इसके लिए अपनी टीम से बाहर के किसी व्यक्ति पर निर्भर होते हैं तो यह एक बड़ी बाधा बन जाती है।

ब) गूगल एनालिटिक्स (मुफ़्त): यह आपके वेबसाइट पर आने वाले ट्रैफ़िक पर नज़र रखता है और सोशल मीडिया कैंपेन्स और इसकी सामग्री की सफलता को मापता है। उपलब्ध टूल्स में से गूगल एनालिटिक्स एक ऐसा टूल है जिसके कारगर होने के बावजूद इसे सबसे कम महत्व मिलता है। अपनी वेबसाइट लॉन्च करने के बाद आपको सबसे पहले अपना एनालिटिक्स अकाउंट सेट करना चाहिए। एक बार लिंक हो जाने के बाद यह आपको कई तरह के आंकड़े प्रदान करता है। इन आंकड़ों में आपकी साइट पर आने वाले विजिटर्स, उनके द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले सर्च टर्म और आपकी साइट पर उनके द्वारा बिताये गए समय आदि की जानकारी शामिल होती है।

स) कैन्वा (समाजसेवी संस्थाओं के लिए मुफ़्त): इससे उच्च गुणवत्ता वाले ग्राफ़िक्स ब्रोशर, प्रजेंटेशन और रिपोर्ट बनाए जाते हैं। इसके प्रो अकाउंट पर आप अपना लोगो और ब्रांड से जुड़ी बाकी चीजों को अपलोड कर सकते हैं। एक बार ऐसा करना, इन चीजों को आपकी टीम के लिए आसानी से उपलब्ध बनाता है। इसमें अपने हिसाब से बदले जा सकने वाले कई टेम्पलेट हैं जो संस्थाओं के लिए उनके काम में सहयोगी सामग्री बनाना आसान कर देता है। 

ड) बफ़र (50 प्रतिशत छूट पर): यह बहुत ही प्रभावी तरीक़े से सोशल मीडिया पर आपकी उपस्थिति और कॉन्टेंट कैलेंडर का प्रबंधन करता है। यह पोस्ट की योजना, समय और प्रकाशन के लिए एक सरल सा डैशबोर्ड प्रदान करता है। इसका इस्तेमाल करते हुए ऑप्टिमल पोस्टिंग टाइम के लिए हर समय सोशल मीडिया लॉगइन रखने की ज़रूरत नहीं होती है!

ई) मेलचिम्प (15 प्रतिशत छूट पर): अपनी समाजसेवी संस्था की गतिविधियों और उपलब्धियों के बारे में ज़ारी किए जाने वाले न्यूज़लेटर के निर्माण और प्रसार के लिए इस विश्वसनीय टूल का इस्तेमाल कर सकते हैं।

फ) रेज़रपे: इस टूल से कुछ ही मिनटों में ऑनलाइन दान लेने के लिए पेमेंट गेटवे बनाया जा सकता है। केवायसी के लिए कुछ दस्तावेज़ों को जमा करें और आपका गेटवे इस्तेमाल के लिए तैयार हो जाता है। यह आपको अपने अनुपालन को प्रबंधित करने के लिए आवश्यक जानकारी इकट्ठा करने में भी सक्षम बनाता है। साथ ही यह सभी दाताओं को ई-मेल ऑटोमेटेड 80G रसीदें भी प्रदान करता है। लेकिन यह प्लैटफ़ॉर्म प्रत्येक लेनदेन पर दो प्रतिशत शुल्क लेता है।

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लेखक के बारे में
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अमिशी पारेख

अमिशी पारेख एक क्रिएटिव स्ट्रेटेजिस्ट हैं। ये अपने काम से डिजाइन, ब्रांड रणनीति और संचार पर प्रभाव डालती हैं। कुछ समय पहले अमिशी ने एआई सोल्यूशन बनाने वाली एक समाजसेवी संगठन वाधवानी एआई में संचार का नेतृत्व किया है। इससे पहले वे वर्व पत्रिका में फ़ीचर संपादक और क्यूरियस में संपादक के पद पर रह चुकी हैं। समुदायों के निर्माण के उनके जुनून के कारण 2014 में अमिशी ने क्रिएटिव मॉर्निंग्स व्याख्यान श्रृंखला (CreativeMornings lecture series) के मुंबई चैप्टर की शुरुआत की थी।

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