March 9, 2022

विकलांगता के अनुकूल कार्यस्थल का निर्माण: समावेशिता क्यों मायने रखती है

एक समावेशी नेतृत्वकर्ता ‘हम लोग बनाम वे लोग’ के कथन को केंद्र में रखकर काम नहीं करता है। उन्हें कार्यस्थल में अपने और उन लोगों के बीच मौजूद समानताओं पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए जिनसे उनका संवाद स्थापित होता है।
8 मिनट लंबा लेख

एक समावेशी नेतृत्वकर्ता ‘हम लोग बनाम वे लोग’ के कथन को केंद्र में रखकर काम नहीं करता है। उन्हें कार्यस्थल में अपने और उन लोगों के बीच मौजूद समानताओं पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए जिनसे उनका संवाद स्थापित होता है।

नाइजीरिया की लेखिका चिमामांडा नगोजी अदिची ने अपने प्रसिद्ध भाषण ‘द डेंजर ऑफ ए सिंगल स्टोरी’ में हम लोगों को किसी व्यक्ति के बारे में कही गई इकलौती बात—स्टीरियोटाइप—को लेकर आगाह किया था। अदिची ने ज़ोर देते हुआ कहा कि ऐसा इसलिए नहीं है क्योंकि स्टीरियोटाइप सच नहीं हैं, बल्कि इसलिए है क्योंकि ये अधूरे हैं—“वे एक कहानी को ही कहानी बना देते हैं।” कार्यस्थल पर विकलांग लोगों के साथ होने वाले हमारे संवाद के संदर्भ में यह एक वास्तविकता है। साथ ही जीवन के अन्य पहलुओं के संदर्भ में भी सच है। अदिची के अनुसार इस इकलौती कहानी का परिणाम यह होता है कि यह लोगों की गरिमा को प्रभावित करती है। “यह हमारी समान मानवता की मान्यता को कठिन बना देता है।” मेरे भाई हरी का उदाहरण लेते हैं। उसने नरसी मोंजी इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज के एमबीए कार्यक्रम में पहला स्थान पाया था। उसे दृष्टि दोष है, और उसने अपनी पढ़ाई ऑडियो कैसेट, स्क्रीन रीडर सॉफ्टवेयर और इंटरनेट के माध्यम से पूरी की। लेकिन जब उसके नौकरी की बात आई तब उसके ‘अंधेपन’ के कारण एक भी नियोक्ता उसे काम पर नहीं रखना चाहता था। उसने 70 इंटरव्यू दिये थे। समस्या यह नहीं थी कि इंटरव्यू लेने वाले सभी लोग उसे एक ऐसे आदमी के रूप में देख रहे थे जिसे दृष्टि दोष है, बल्कि समस्या यह थी कि वे लोग उसकी सिर्फ एक ‘कहानी’ को ही देख रहे थे—उसकी विकलांगता। इस स्थिति ने भय और बेचैनी पैदा कर दी और किसी भी दूसरी ऐसी कहानी को बगल कर दिया जिससे उसके साक्षात्कारकर्ताओं को उसके व्यक्तित्व को समझने, इंटरव्यू आयोजित करने और उस्की क्षमता का आकलन करने में मदद मिल सकती थी।

विकलांगता, शिक्षा तक पहुँच की कमी और गरीबी अक्सर एक दूसरे से जुड़े होते हैं।

उन्होनें उसकी असमानताओं पर इतना अधिक ध्यान केन्द्रित कर दिया कि वे समानताओं को देख ही नहीं सके। हरी को क्रिकेट पसंद है, एक ऐसा खेल जिसे पूरे देश में करोड़ो लोग पसंद करते हैं, और यह बातचीत शुरू करने के लिए एक अच्छा विषय हो सकता था। और उन लोगों में कुछ लोग सिर्फ इतना कह सकते थे कि, “नमस्ते, मैं आज तक किसी भी दृष्टि बाधित आदमी से नहीं मिला हूँ। मैं आपका इंटरव्यू कैसे कर सकता हूँ?”

एनेबल इंडिया का समावेशिता का विचार—सभी को शामिल करने की योग्यता—इस और इस जैसे कई अनुभवों से निकलकर आया है जो विभिन्न संगठनों के नेतृत्वकर्ताओं, प्रबन्धकों और कर्मचारियों से मुझे हासिल हुआ। मैंने महसूस किया कि मतभेदों के बारे में जागरूकता समावेशिता के लिए बाधा नहीं है। सबसे बड़ी बाधा इस बात की अयोग्यता है कि बातचीत के लिए एक आम जगह का निर्माण नहीं हो पाता है जिसके लिए रणनीतिक योजना और निर्माण योग्यता की जरूरत होती है। 

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समावेशनीयता का गुणक क्या है?

एक समावेशी नेता बनने के लिए जिसे हम समावेशिता गुणक कहते हैं (IncQ), को विकसित करने की जरूरत होती है—नेताओं के लिए एक सक्षमता ढांचा कि कैसे अपने संगठन में विविध लोगों को शामिल किया जाए। उच्च IncQ वाला एक नेता अपने टीम के सदस्यों से अधिकतम योगदान हासिल कर लेता है और तीन मुख्य सिद्धांतों द्वारा निर्देशित होता है: 

1. परिदृश्य को आंतरिक बनाना 

एक समावेशी नेता जानता है कि सभी लोग एक ही जगह से नहीं आते है और न ही सबके पास एक ही तरह की विशेष सुविधा होती है। वे उन व्यवस्थागत बाधाओं से परिचित होते हैं जो विभिन्न लिंगों, वर्गों या योग्यताओं वाले लोगों के बीच के संवाद पर हावी होता है। वे यह भी जानते हैं कि कैसे ये बाधाएँ एक दूसरे को काटती हैं और फिर इन बाधाओं को दूर करने के लिए सक्रिय रूप से रणनीतियों की योजना बनाते हैं।

उदाहरण के लिए, विकलांगता, शिक्षा तक पहुँच और गरीबी अक्सर एक दूसरे से जुड़े होते हैं। इससे निजात पाने के लिए हम लोगों ने बहुराष्ट्रीय कंपनियों में काम करने वाले उन नेतृत्वकर्ताओं से बात की जिनके साथ हम लोगों ने काम किया था। हमने उनसे उन विकलांग लोगों को काम पर नियुक्त करने की गुजारिश की जिन्के पास डिप्लोमा की डिग्री थी—ऐसे पदों के लिए जिनके लिए स्नातक के डिग्री की जरूरत होती है। नेताओं ने उन्हें नियुक्त करने का सही फैसला लिया और साथ ही इस परिदृश्य के साथ आने वाली असमानताओं से निबटने के लिए एक स्तर वाले क्षेत्र मुहैया करवाए। अगला चरण इन कर्मचारियों को छात्रवृति प्रदान करना था ताकि वे अपने स्नातक की पढ़ाई पूरी कर सकें। इसी तरह से, सूचना तकनीक (आईटी) क्षेत्र में काम करने वाली ऐसी बहुत सारी कंपनियाँ हैं जो विकलांग लोगों को आसानी से कार्यस्थल पर पहुँचने के लिए संशोधित दो पहिये वाहन खरीदने के लिए उधार देती है। यहाँ दिये गए प्रत्येक उदाहरण में, नेतृत्वकर्ताओं ने ‘बहाने’ से आगे बढ़कर एक स्तर वाले क्षेत्र के निर्माण के लिए अपनी क्षमता का उपयोग किया है।

2. असमानताओं को सामान्य बनाना 

असमानताओं से परे जाने के लिए एक नेतृत्वकर्ता को अपने और उस आदमी के बीच की समानता पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए जिससे वे बात कर रहे हैं। एक समावेशी नेतृत्वकर्ता ‘हम लोग बनाम वे लोग’ के कथन को केंद्र में रखकर काम नहीं करता है। वे उचित भाषा और संवाद को शुरू करने वाली बातों का उपयोग करके संवाद को आसान बनाने की सक्रिय कोशिश करते हैं। हालांकि सभी अन्य बातचीत की तरह ही असमनताओं का यह सामान्यीकरण भी दो-तरफ़ी प्रक्रिया है। विकलांग कर्मचारियों को खुद की वकालत करने वाले माध्यमों और तरीकों (सेल्फ-एडवोकेसी टूल) को अपनाना होगा जो उन्हें उनकी विकलांगता से अलग और परे जाकर उनकी पहचान बनाने में मदद करे। इन तरीकों में शौक़, विशेषताएँ और ऐसी इच्छाएँ शामिल हो सकती हैं जो बदलाव के लिए चिंगारी का काम करें। 

हर आदमी में विकास की क्षमता होती है। एक नेतृत्वकर्ता और प्रबन्धक के रूप में यह हमारी क्षमता की कमी को दर्शाता है कि अक्सर हम इस बात को भूल जाते हैं।

उदाहरण के लिए, जब एक नेतृत्वकर्ता अजय* से मिले, 38 वर्षीय एक ऐसा व्यक्ति जो बौद्धिक विकलांगता से ग्रस्त है और एक शब्दांश में ही बात करता है, इस स्थिति में नेतृत्वकर्ता को यह मालूम नहीं था कि उन्हें क्या कहना है। हालांकि जब अजय ने उन्हें एक ऐसा कार्ड दिया जिसमें उसने खुद को एक क्रिकेट प्रेमी और मिस्टर डिपेंडेबल के रूप में दर्शाया तब नेतृत्वकर्ता ने उससे क्रिकेट के बारे में पूछना शुरू कर दिया। इस विषय के साथ अजय धीरे-धीरे खुलना शुरू हुआ और उसने कुछ वाक्य बोले। नेतृत्वकर्ता अब उसके व्यक्तित्व के बारे में जान सकते थे, जो उस स्थिति में शायद संभव नहीं होता अगर वह ‘बौद्धिक विकलांगता’ शब्द को अपने दिमाग में लेकर चलते। 

एक दूसरे मामले में, एक प्रबन्धक को अपने इंटर्न्स को अमरीकी लहजे में विषय से संबंधित वीडियो से परिचित करवाना था। इसके लिए उन्होने सबसे पहले उसी तरह की सामग्री को भारतीय लहजे में बने वीडियो के माध्यम से दिखाना शुरू किया ताकि बाद में अमरीकी लहजे वाला वीडियो देखना उसके उन इंटर्न के लिए आसान हो जाए जिनके लिए एक गैर-भारतीय लहजा कठिन हो सकता है। यह एक सीखने वाले लोगों को केंद्र में रखकर उठाया गया कदम था जो विभिन्न पृष्ठभूमि से आने वाले लोगों के लिए कारगर साबित हुआ। 

3. बदलती हुई उम्मीदें 

हर आदमी में विकास की क्षमता होती है। हर आदमी में विकास की क्षमता होती है। एक नेतृत्वकर्ता और प्रबन्धक के रूप में यह हमारी क्षमता की कमी को दर्शाता है कि अक्सर हम इस बात को भूल जाते हैं। एक समावेशी नेतृत्वकर्ता एक सराहनात्मक पूछताछ (AI) का उपयोग करता है जो मूल्यांकन का एक ऐसा तरीका है जो कर्मचारियों की कमजोरियों के बजाय उनके ताकत पर केन्द्रित होता है। यह सभी तरह की पृष्ठभूमियों से आए कर्मचारियों पर समान रूप से लागू होता है—चाहे वह आदमी विकलांग हो या नहीं। और यह इस विश्वास के साथ किया जाता है कि आप जिस चीज पर केन्द्रित होंगे वह चीज विकसित होगी। 

जब भी कोई नया कर्मचारी टीम में आता है तब नेतृत्वकर्ता उसके मजबूत पक्ष के बारे में जानता है और उनके द्वारा सामना किए जाने वाली व्यवस्थतात्मक बाधाओं के बारे में समझता है। यहाँ से वे दोनों सह-निर्माण समाधानों की तरफ बढ़ सकते हैं। एक बार जब यह काम पूरा हो जाता है उसके बाद कर्मचारी की क्षमताओं पर ध्यान केन्द्रित करते हुए उन सीमाओं को आगे बढ़ाये जाने की जरूरत है। 

विविध जातीय पहचान, विकलांगता और उम्र वाले लोग-विकलांगता कार्यस्थल
विकलांग कर्मचारियों को खुद की वकालत करने वाले माध्यमों और तरीकों (सेल्फ-एडवोकेसी टूल) को अपनाना होगा जो उन्हें उनकी विकलांगता से अलग और परे जाकर उनकी पहचान बनाने में उनकी मदद करे। | चित्र साभार: फ्लिकर

उदाहरण के लिए एक ऐसे एमएनसी का मामला देखते हैं जिसने इंटेर्नशीप के लिए बौद्धिक विकलांगता वाले एक आदमी को नियुक्त किया। शुरुआत के दिनों में वह इंटर्न ज़्यादातर अपने प्रबन्धकों और उस सहकर्मी से ही बातचीत करता था जिसे उसका दोस्त (बडी) नियुक्त किया गया था। समय के साथ उस इंटर्न को प्रेजेंटेशन में शामिल होने के लिए कहा गया, जिससे उसकी रुचि खुद से प्रेजेंटेशन देने में बढ़ गई। एमएनसी की रणनीति यह थी कि वह उस इंटर्न को उसकी पसंद के किसी भी विषय पर एक छोटे समूह के सामने बोलने के योग्य बना सके। दूसरे चरण में प्रबंधन ने उस इंटर्न को अपनी तरफ से एक विषय दिया जिसपर उसे बोलना था। और अंत में इंटर्न को एक औपचारिक प्रेजेंटेशन तैयार करने के लिए कहा गया जिसे एक बड़े समूह के सामने पेश करना था। 

मीटर को धीरे धीरे बढ़ाने की एमएनसी की इस प्रक्रिया ने इंटर्न को लोगों के सामने बोलने का साहस हासिल करने में मदद की और साथ ही बातचीत से तकनीकी ज्ञान हासिल करने में भी मददगार साबित हुई।

इस तरह के हस्तक्षेप से कर्मचारियों को न केवल उनके तात्कालिक नौकरी में मदद मिलती है बल्कि आगे उनके करियर में भी सहायता प्रदान होती है। इसके अलावा, इस तरह की प्रक्रिया को तैयार करने के लिए पर्यपात कौशल वाला कोई नेतृत्वकर्ता समाज के विभिन्न पहलुओं से आने वाले टीम के सदस्यों के साथ काम करने के लिए विश्वास एकत्रित करता है। 

स्वयंसेवी संस्थाओं के लिए सबक

ये सभी चीजें सबसे अधिक इच्छुक नेतृत्वकर्ताओं और प्रबन्धकों के लिए सीखना आसान नहीं है—इसलिए नहीं क्योंकि वे इसमें अपना समय नहीं लगाना चाहते हैं बल्कि इसलिए क्योंकि अक्सर उनके पास ऐसी कोई भाषा नहीं होती है जिसके इस्तेमाल से वे किसी अपने से अलग आदमी से मिलने पर उनके साथ अपने अपराधबोध, अपनी चिंताओं और असहजताओं के बारे में बात कर सकें। 

उस समान भाषा को खोजने के लिए पहले एक नेता और सहयोगी को स्व-समावेशी होने की जरूरत होती है। इसमें अपनी जगह के बारे में जागरूकता प्राप्त करके अपने बारे में सहज महसूस करना शामिल है, जो उन कठिनाइयों के साथ आता है। इसमें अपनी समस्याओं और चिंताओं के बारे में खुलकर बोलने की योग्यता शामिल है—चाहे वह समस्या निजी हो या पेशेवर। एक कार्यस्थल वास्तविक अर्थों में तभी समावेशी हो सकता है। 

संगठनों के साथ काम करने वाले सूत्रधारों के रूप में हमारा काम विभिन्न स्तरों पर इन बातचीत के लिए जगह बनाना है। इसके लिए हमें संगठन बनाने वाले विभिन्न तत्वों की एक सूक्ष्म समझ बनाने की जरूरत होती है—तभी हम उपकरण, विधियों और रणनीतियों के साथ सामने आ सकते हैं। यहाँ वर्षों में हासिल किए कुछ अनुभव के बारे में बता रही हूँ:

1. एक समावेशी कार्यस्थल का अर्थ नेतृत्वकर्ता से अधिक होता है 

जहां समावेशी कार्यस्थल बनाने के लिए नेतृत्वकर्ताओं से बात करना और उन्हें शिक्षित करना एक आवश्यक काम है वहीं इस विचार का पूरे संगठन में समान रूप से प्रवाह भी उतना ही महत्वपूर्ण है। विभिन्न स्तरों पर उस बदलाव को लागू करने के लिए नेतृत्व की भूमिका एक लागूकर्ता के रूप में होनी चाहिए। इसमें ऐसे व्यक्ति शामिल हैं जो एक विकलांग सहकर्मी की जरूरतों के साथ सहज हैं और उनकी जरूरतों को समझते हैं। साथ ही विकलांग लोगों को अपनी विकलांगता से परे जाकर अपनी दूसरी पहचान बनाने में सक्षम होना होगा। 

2. ‘पीसटाइम’ बातचीत दूर तक जाती है

हम लोगों ने देखा है कि विकलांग और शारीरिक रूप से स्वस्थ कर्मचारियों के बीच उपयोगी बातचीत उस समय होती है जब वे इसे ‘पीसटाइम’ में करते हैं—एक अनौपचारिक, बिना काम वाले माहौल में। उदाहरण के लिए, एक शारीरिक रूप से स्वस्थ आदमी स्कूल में जब किसी विकलांग आदमी के साथ पढ़ाई करता है या वे दोनों एक साथ स्वयंसेवक के रुप में काम करते हैं तो ऐसा संभव है कि वे विकलांगता और योग्यता की सोच से परे जाकर एक टिकाऊ संबंध बनाने में सक्षम हों। पीसटाइम ऐसे अवसर देता है जहां एक दूसरे को जानने और स्वीकार करने की प्रक्रिया सही तरीके से होती है।

3. सूत्रधारों को आत्म-निरीक्षण करते रहने की जरूरत है

विकलांगों के बारे में बातचीत में भेद्यता की जगह की मांग होती है। यह विकलांगों, विकलांगों के साथ काम करने वाले स्वयंसेवी सूत्रधारों और नेतृत्वकर्ताओं के संपर्क बिन्दु पर भाग लेने वाले सहभागियों के लिए भी सच है। संबंध बनाना, एक-दूसरे का ध्यान रखना और एक दूसरे के लिए सुरक्षात्मक बनना आसान है। हालांकि एक सूत्रधार के रूप में हमें अपने उन कामों के प्रति सावधान रहना चाहिए जो इस तरह की भावनाओं से पैदा होते हैं। 

हमारी सुविचारित सुरक्षा एक व्यक्ति की अपनी सीमाओं को आगे बढ़ाने और रोजगार की प्रतिस्पर्धी दुनिया के लिए तैयार करने में सक्षम होने के रास्ते में खड़ी हो सकती है। 

यह एक अधिक समतामूलक दुनिया के निर्माण के हमारे अपने विचार से एक भटकाव है। इसलिए हमें लगातार अपनी गतिविधियों का मूल्यांकन करने की जरूरत है। क्योंकि अदिची के शब्दों में वह समतामूलक दुनिया—‘एक प्रकार का स्वर्ग’—हमारे अपराधबोध या दया से नहीं उभरेगा बल्कि व्यक्ति विशेष के एकल कथन को अस्वीकार करने से तैयार होगा। 

*गोपनीयता बनाए रखने के लिए नामों को बदल दिया गया है।

गायत्री गुलवाड़ी से मिले सहयोग के साथ। 

लोचदार आजीविका निर्माण पर सबक और दृष्टि को उजागर करने वाली 14-भाग वाली शृंखला में यह पांचवां लेख है। लाईवलीहूड्स फॉर ऑल, आईकेईए फ़ाउंडेशन के साथ साझेदारी में दक्षिण एशिया में अशोक के लिए रणनीतिक केंद्र बिन्दु वाले क्षेत्रों में से एक है।

इस लेख को अँग्रेजी में पढ़ें।

अधिक जानें 

  • विकलांग लोगों के लिए मुख्यधारा की आजीविका हेतु इस सहयोगात्मक प्रयास के बारे में विस्तार से जानें।
  • अपने संगठन को निःशक्तता के अनुकूल बनाने के तरीके के बारे में पढ़ें।

लेखक के बारे में
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शांति राघवन

शांति राघवन एक सामाजिक उद्यमी है और एनेबल इंडिया की सह-संस्थापक हैं, जो विकलांग व्यक्तियों को आर्थिक स्वतंत्रता प्रदान करने की दिशा में काम करती है। वह एक श्वाब सोशल इनोवेटर 2020, अशोक फेलो और विकलांग व्यक्तियों के लिए कौशल परिषद (एससीपीडब्ल्यूडी) की एक शासी परिषद सदस्य हैं। उन्हें बिजनेस टुडे द्वारा 2017 में व्यवसाय में सबसे शक्तिशाली महिलाओं में से एक के रूप में पहचाना गया था। शांति ने कंप्यूटर साइंस में एमएस किया है और उन्हें सॉफ्टवेयर उद्योग में 12 साल का अनुभव है।

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