साथ ही जानिए, क्यों समाजसेवियों और फंडर्स को पूर्वोत्तर भारत के लिए सामाजिक क्षेत्र से जुड़े कार्यक्रम बनाने से पहले वहां के स्थानीय संदर्भों को समझ लेना चाहिए।
समाजसेवी संगठन में विविधता, समानता और समावेशन (डीईआई) जैसे प्रमुख तत्वों को लेकर प्रतिबद्धता भर काफ़ी नहीं है बल्कि उन्हें संगठन के मूल तत्वों में बदले जाने की ज़रूरत है।
आईएसडीएम और अशोका यूनिवर्सिटी के सीएसआईपी का यह अध्ययन बताता है कि जन-केंद्रित संस्कृति और काम के लिए सहयोगी वातावरण मुहैया करवाने वाले संगठन प्रतिभाओं को हासिल करने और रोके रखने में सफल होते हैं।