पारंपरिक रूप से, ऐसा माना जाता है कि आमने-सामने बैठकर साक्षात्कार (जहाँ सर्वेक्षण करने वाले और जवाब देने वाले के बीच बेहतर जुड़ाव होता है) करने से बेहतर नतीजे मिलते हैं। लेकिन कोविड-19 महामारी के कारण शोध और मूल्यांकन के लिए स्नेहा में हमारी टीम को आँकड़े जुटाने के लिए मजबूर होकर रिमोट तरीके अपनाने पड़े। इस प्रक्रिया से हम लोगों ने निम्नलिखित बातें सीखीं:
प्राथमिक आँकड़े जुटाने में उत्तरदाता के साथ पारदर्शी और विश्वास-आधारित संबंध बनाना महत्वपूर्ण होता है। फील्ड में काम करने के दौरान सर्वेक्षक अपने पहचान पत्र या अपने संस्थान के लेटरहेड के साथ अपनी पहचान को जाहिर कर सकते हैं। फोन पर साक्षात्कार के दौरान ऐसा कर पाना मुश्किल हो जाता है। इस बात की समझ पैदा करना ज़रूरी होता है कि साक्षात्कार करने वाले ने जवाब देने वाले उस व्यक्ति का नंबर कैसे हासिल किया और उसके सर्वेक्षण का मकसद क्या है।
डेटा कलेक्शन के बारे में हमनें जो पहली चीज सीखी वह यह है कि उत्तरदाताओं को सूचित करके उनसे सहमति लेना बहुत महत्वपूर्ण होता है। इस काम को करने के लिए साक्षात्कर्ता को यह सुनिश्चित करना पड़ता है कि उत्तरदाता डेटा संग्रह के उद्देश्य और उनसे की जाने वाली उम्मीद को पूरी तरह समझ रहा है। संवाद में शामिल किए जाने वाले कुछ महत्वपूर्ण बिन्दु इस प्रकार है:
जब हम यह योजना बना रहे थे कि हमारी टीम जवाब देने वाले व्यक्तियों से कितने अंतराल पर कॉल बैक करेगी तब हम लोगों ने एक प्रोटोकॉल बनाया कि एक उत्तरदाता को तीन दिनों तक प्रतिदिन अमूमन दो या तीन घंटे के अंतराल पर तीन बार फोन किया जाएगा। इसके बावजूद, उत्तरदाताओं के हालात के हिसाब से हमें इसमें बदलाव लाने की जरूरत पड़ी। उदाहरण के लिए, हम जिन क्षेत्रों में काम कर रहे थे उनमें से एक क्षेत्र में, औरतों को सुबह के समय फोन करने से बहुत कम जवाब मिलते थे, क्योंकि उस इलाके में लोगों के घरों में सुबह के समय बस कुछ घंटों के लिए पानी आता था। इन तरह की वास्तविकताओं और स्थानीय परिस्थिति की समझ के अनुसार हम लोगों ने अपनी व्यवस्था में बदलाव किए।
जैसा कि शोधकर्ताओं द्वारा ज़ोर देकर कहा जाता है कि एक आदर्श फोन साक्षात्कार की अधिकतम अवधि बीस से तीस मिनट से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। हम लोगों ने यह महसूस किया कि सामाजिक-आर्थिक और भौगोलिक बातों से जुड़े बहुत अधिक सवाल पूछने से (जैसे कि संपत्ति के आकलन के लिए घर के चीजों को सूचीबद्ध करना) साक्षात्कार का समय बढ़ जाता है।
यह सुनिश्चित करने के लिए कि हम लक्षित उत्तरदाताओं तक पहुँच पा रहे हैं या नहीं हम लोगों ने कुछ और सवालों को जोड़ दिया और अतिरिक्त सत्यापन के लिए साक्षात्कार करने वालों को पूरक सूचनाओं की एक सूची दे दी। इसमें घर/गली का पता या गर्भवती महिलाओं के मामले में उनकी गर्भावस्था के इतिहास से जुड़े सवाल शामिल किए गए, जिनकी जानकारी सिर्फ उन्हें होती है।
सर्वेक्षणकर्ता ने उत्तरदाता से पूछकर यह सुनिश्चित किया कि वह लगातार बात करने में सहज है।
हासिल होने वाले अनुभवों के आधार पर, हमारे सर्वेक्षक उत्तरदाताओं से मिलने वाले गैर-मौखिक संकेतों (अगर फोन स्पीकर पर रखा गया है तब आवाज़ के उतार-चढ़ाव, आसपास की आवाजों या प्रतिध्वनि की पहचान) को समझने में कुशल हो गए।इसके अलावा आँकड़ों की प्रविष्टि में आने वाली त्रुटियों को रोकने के लिए हमने सॉफ़्टवेयर चेक का प्रयोग किया। इसके माध्यम से हमने मोबाइल एप्लिकेशन में प्रतिक्रियाओं के लिए ड्रॉप डाउन मेनू बनाए।
वर्षों के अनुभव के बावजूद, हमारे सर्वेक्षक शुरू में फोन सर्वेक्षणों को लेकर आशंकित थे। अपने लक्ष्यों को पूरा करने की चिंता के अतिरिक्त वे साक्षात्कार के दौरान प्रतिवादी की समझ का आकलन करने और परिवार के सदस्यों के आसपास अधिक संवेदनशील प्रश्न पूछने के बारे में चिंतित थे।
इसे देखते हुए हमारी टीम ने समुदाय के लोगों से बातचीत शुरू करने से पहले साक्षात्कार करने वालों लोगों और स्नेहा कर्मचारियों के साथ मिलकर एक फ़ोन सर्वेक्षण किया था। इसके अलावा, हमने उन्हें याद दिलाया कि फोन सर्वेक्षणों के लिए प्रतिक्रिया दर कम होगी, जिसके कारण दैनिक लक्ष्य निर्धारित करने की प्रथा को हटा दिया गया था।
महामारी के दौरान अपने अनुभव के आधार पर, हम स्वयंसेवकों, स्वास्थ्य प्रणालियों के कर्मचारियों और सामुदायिक नेताओं जैसे हितधारकों के साथ सर्वेक्षण के लिए दूरस्थ डेटा संग्रह की सलाह देते हैं।
अंत में, हमने साक्षात्कारकर्ताओं को उन संभावित परिदृश्यों से परिचित कराया जिनका वे सामना कर सकते हैं—उदाहरण के लिए, यदि कोई उत्तरदाता उदास लग रहा था या यदि राशन या चिकित्सा सेवाओं के लिए कोई आवश्यकता व्यक्त की गई थी, तो उन्हें उचित रेफरल लिंकेज के बारे में बताया गया था।
महामारी के दौरान अपने अनुभव के आधार पर, हम स्वयंसेवकों, स्वास्थ्य प्रणालियों के कर्मचारियों और सामुदायिक नेताओं जैसे हितधारकों के साथ सर्वेक्षण के लिए दूरस्थ डेटा संग्रह की सलाह देते हैं। यह इस तथ्य को देखते हुए विशेष रूप से सच है कि दूरस्थ कार्य ने हमें लगातार ऑनलाइन डीब्रीफिंग टीम मीटिंग आयोजित करने की अनुमति दी, जहां किसी भी चुनौती का तुरंत समाधान किया गया और सह-शिक्षण संभव बनाया गया।हम जानते हैं कि फोन पर किए जाने वाले सर्वेक्षण कभी भी आमने-सामने बैठकर लिए गए साक्षात्कार की जगह नहीं ले सकते हैं, विशेष रूप से तब जब मानव शरीर या अन्य किस्म के मापों को लेने की जरूरत हो। हालाँकि, रिमोट डाटा कलेक्शन की अपनी जगह है, और एक क्षेत्र के रूप में हमें इसका अधिक से अधिक उपयोग करने की क्षमता का निर्माण करने की जरूरत है।
इस लेख में व्यक्त किए गए विचार एक निगरानी, मूल्यांकन, जवाबदेही और शिक्षण (एमईएएल) विशेषज्ञ, दो पर्यवेक्षक और ग्यारह सर्वेक्षक सहित स्नेहा में निगरानी और मूल्यांकन टीम के साथ गुणात्मक अन्वेषण (तीन गहन साक्षात्कार और दो फोकस-समूह चर्चा) के माध्यम से प्राप्त जानकारियों पर आधारित हैं। ।
इस लेख को अँग्रेजी में पढ़ें।
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पिछले दशक में भारत में सामाजिक क्षेत्र ने वित्तपोषण के मामले में अचानक से आए एक बदलाव का अनुभव किया। जहां इसमें कोविड-19 ने नए आयाम जोड़े वहीं इसके आगमन के पहले से ही अन्य कारकों ने अपनी भूमिकाएँ निभानी शुरू कर दी थीं, और स्वयंसेवी संस्थानों और कार्यान्वयन संगठनों को इस लगातार बदलते परिदृश्य में समायोजित करना पड़ रहा था। पिछले कुछ सालों में विदेश से आने वाले धन की निश्चितता में कमी आई है और वित्तपोषण के शब्दकोश में कुछ नई शब्दावलियाँ जुड़ी हैं (‘इम्पैक्ट इन्वेस्टिंग’, ‘पी2पी’, ‘क्राउडफंडिंग’, ‘हैकेथोंस’)। शायद सबसे जरूरी बात यह है कि सीएसआर निवेश ने सेवा वितरण के पक्ष में धन को हटा दिया है, खास कर उनके लिए जो वार्षिक ‘प्रोजेक्ट’ मोड में शिक्षा और स्वास्थ्य पर काम कर रहे हैं।
जहां सामाजिक बदलाव को लागू करने वाले सभी लोगों को नए परिदृश्य के साथ तालमेल बैठाने में निवेश करना पड़ रहा है वहीं इसका सबसे अधिक प्रभाव उन संगठनों पर पड़ा है जो सशक्तिकरण के ढांचे के साथ मुख्य रूप से मानव अधिकार के मुद्दों पर काम कर रहे हैं। उनकी स्थिति को और बेहतर तरीके से समझने के लिए हम लोगों ने कार्यान्वयनकर्ताओं, अनुदानकर्ताओं, मध्यवर्ती संस्थाओं और उन शोधकर्ताओं के प्रतिनिधियों से बात की जो काम करते हैं और मानव अधिकार से जुड़े कामों को अपना समर्थन देते हैं। हम लोगों ने उनसे एक सवाल किया: आपने ऐसे फंडरेजिंग और वित्तपोषण की कौन सी रणनीतियों का प्रयोग किया जो सफल रहीं और जिन्होनें जमीन पर आपके काम को जारी रखने में आपकी मदद की?
हम लोगों ने जिन 15 लोगों से बातचीत की वह बाल अधिकार, श्रम अधिकार, लैंगिक न्याय और स्वास्थ्य अधिकार (मानसिक स्वास्थ्य और लैंगिकता सहित) से जुड़े मुद्दों पर काम करते हैं। यह उनकी प्रतिक्रियाओं का एक संश्लेषण है—जो उन्होनें आजमाया, परखा और सीखा है।
ज़्यादातर संगठनों ने अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिए बहु-आयामी दृष्टिकोण को अपनाया है। उनके द्वारा आकर्षित किए जाने वाले वित्तपोषण पर इस बात का प्रभाव पड़ता है कि वे अपने काम के किस पहलू को मुख्य रूप से दर्शाते हैं। उदाहरण के लिए, घर से निकाल दी गई या छोड़ दी गई विधवाओं के सशक्तिकरण पर काम करने का एक महत्वपूर्ण घटक सम्मान के साथ जीवन यापन करने के लिए उनकी क्षमता का निर्माण करना है। इसमें कौशल-निर्माण, उद्यमशीलता का विकास और आय सृजन जैसी गतिविधियां शामिल हैं—ये सभी सीएसआर के अधिदेश के अधीन हैं और निवेशकों को उस स्थिति में भी प्रभावित करते हैं जब औरतों के अधिकारों की सिफ़ारिश करने वाली बातें भी उन्हें प्रभावित नहीं कर पाती हैं।
वित्तपोषण की अनिश्चितता से बचे रहने के लिए कम लागत एक मुख्य योगदानकर्ता के रूप में अपनी भूमिका निभाता है। अधिकार-आधारित काम में सेवा वितरण की तुलना में कम लागत वाला लाभ अंतर्निहित होता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि एक समुदाय को उन समान सेवाएँ मुहैया करवाने में लगने वाली लागत की तुलना में अधिकारों तक पहुँचने के लिए सशक्त बनाने के काम में बहुत ही कम खर्च आता है। उदाहरण के लिए, पूरे प्रखण्ड में राज्य के साथ समुदाय और अभिभावकों के एक समूह की बातचीत के माध्यम से सरकारी विद्यालय की व्यवस्था को मजबूत करने की पहल में आने वाला खर्च उतने ही बच्चों की क्षमता वाले नए विद्यालय के निर्माण में आने वाले खर्च से बहुत कम होता है। इससे संगठनों द्वारा धन जुटाने की प्रक्रिया में तेजी आती है क्योंकि इन कार्यक्रमों की ‘दानकर्ताओं के निवेश से मिलने वाले लाभ (रिटर्न ऑन डोनर इनवेस्टमेंट) की दर अच्छी होती है। क्योंकि अंतिम विश्लेषण में, खुद ही काम को आगे बढ़ा सकने वाले लोगों के समुदायों के निर्माण से ज्यादा टिकाऊ कौन सी चीज है?
कानून, नियम, दिशानिर्देश, पंजीकरण, पुनर्पंजीकरण, दस्तावेजीकरण, और बहुत कुछ— अनुपालन के लिए अनिवार्य चीजों की सूची अंतहीन है और समय-समय पर इसमें बदलाव आता रहता है। उनके साथ तालमेल बिठाए रखने के लिए संगठन फोरम (ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों) का उपयोग करते हैं जैसे कि ऐसे वेबिनार और लेख हाल में विदेशी योगदान (विनियमन) अधिनियम (एफ़सीआरए) संशोधनों की व्याख्या करते हैं। इसके अलावा, वे टीम के सदस्यों (खासकर वित्तीय टीम के सदस्यों) को हाल में किए गए संशोधनों के बारे में पता लगाने और उनके अनुपालन को सुनिश्चित करने की ज़िम्मेदारी सौंपते हैं। सबसे जरूरी यह होता है कि वे अपने जैसे अन्य संगठनों के साथ सहक्रियात्मक संबंध बनाए है ताकि वे वास्तविक समय पर उठाए जाने वाले सही कदम और उचित सलाह के स्त्रोत को सुनिश्चित कर सकें।
जहां वित्तपोषण के कुछ पारंपरिक स्त्रोत घटते जा रहे हैं, खासकर विदेशी अनुदान, वहीं दानकर्ताओं की एक पूरी ऐसी नई पीढ़ी इस मैदान में कदम रख रही है जो असामान्य कारणों का समर्थन करती है। इस तरह के कुछ फंड पुरस्कारों और प्रतियोगिता, हितों की अभिव्यक्ति (एक्स्प्रेशन ऑफ इंटरेस्ट) की पुकार, शोध अनुदान और फ़ेलोशीप के रास्ते आते हैं। भारत में भी, कुछ दानकर्ताओं ने दुस्साहस दिखाया और खुद को मुख्यधारा वित्तपोषण के विषयों से अलग कर लिया। अधिकार-आधारित संगठनों को यह एहसास हुआ कि धन के इन नए स्त्रोतों की तलाश में लगातार पैनी नजर रखते हुए समय और ऊर्जा खर्च करना बहुत महत्वपूर्ण है।
संगठनात्मक भंडार और कोष के लिए वित्तपोषण एक ख़त्म होते हुए बजट की चीज बन गया है। फिर भी कुछ स्वयंसेवी संस्थाएं एक ठोस आधार-निर्माण के काम में लगी हुई हैं। इन ठोस आधार के तैयार हो जाने के बाद वित्तपोषण के स्त्रोत की अनुपस्थिति में भी ये संस्थाएं कम से कम तीन से छ: महीनों तक अपने बुनियादी काम करने में सक्षम हो सकती हैं। इन संगठनों ने जो अनुभव हासिल किया वह यह था कि कोशिश करना बंद नहीं करना है। हो सकता है कि हर बार प्रस्ताव पेश करने के समय कुल बजट का एक छोटा हिस्सा संगठन के बचत कोष के लिए देने का विचार सफल न हो। लेकिन लंबे समय तक छोटी-छोटी राशियों को जमा करने से आपात की स्थिति में यह राशि महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
क्राउड और खुदरा वित्तपोषण दोनों ही उस चीज का निर्माण कर सकते हैं जिसकी संगठनों को जरूरत होती है—अप्रतिबंधित, असम्बद्ध संसाधनों का एक तालाब:
‘जो लोग जमीन पर अच्छा और अर्थपूर्ण काम करते हैं वे इसका प्रसारण नहीं करते हैं’ एक ऐसा सिद्धान्त है जिसका समय जा चुका है। इसमें निवेश करना और संचार के जिम्मेदार बनने के लिए कौशल का विकास करना, संचार और मिडिया रणनीति को विकसित करना, सोशल मीडिया पर गहरी और लोकप्रिय अपील वाली उपस्थिती को सुनिश्चित करना बहुत आवश्यक है। इसके अलावा दानकर्ताओं और शुभ चिंतकों (भूतपूर्व, वर्तमान और संभावित) के साथ समय-समय पर संवाद बनाए रखने जैसी गतिविधियों को उतना ही महत्वपूर्ण माना जाने लगा है जितना महत्वपूर्ण किसी संगठन का जमीन पर उतरकर वास्तविक काम करना है।
काम करने वालों और दानकर्ताओं के बीच भरोसे की कमी पर विस्तार से बात की जा चुकी है। सामाजिक परिवर्तन प्रारूप के बारे में जानकारी की कमी से पैदा होने वाले, कार्यकर्ताओं के काम करने के तरीके और गैर-जवाबदेही की सामान्य धारणा के कारण अधिकार के ढांचे में काम करने वाले लोगों का घाटा लगातार बढ़ता जा रहा है। इस कमी को कम करने की क्षमता क्षेत्र में कारण विशेष से जुड़े उन काम कर रहे चैम्पियनों (कॉज़-चैम्पियन्स) के पास है जिनपर दानकर्ता विश्वास करते हैं।
उदाहरण के लिए स्वास्थ्य के अधिकारों पर काम कर रहे एक संगठन को अपने दानकर्ताओं से कम से कम तीन वर्षों तक की प्रतिबद्धता हासिल करने में मुश्किल हो रही थी। बातचीत का रुख़ उस समय बदल गया जब उन्होनें सरकारी और निजी क्षेत्र के ऐसे प्रतिनिधियों की मदद लेनी शुरू की जिन्होनें बहु-वर्षीय वित्तपोषण की जरूरत के बारे में बार-बार बताया।
संगठनों ने पाया कि आंकड़ों और प्रमाणों के होने से वित्तपोषण से संबंधित बातचीत नाटकीय रूप से बदल जाती है। जब संगठन ऐसा कहने में सक्षम होते हैं कि वे आंकड़ों पर नजर रखते हैं और इस पर काम करते हैं तब उन्हें अपने मॉडल के लिए एक मामला तैयार करने और साथ ही यह भी बताने में सुविधा होती है कि वित्त की जरूरत न केवल कार्यक्रमों को है बल्कि शोध, और निगरानी और मूल्यांकन (एम&ई) के लिए भी है। शोध के लिए अनुदान की जरूरत, मजबूत एम&ई व्यवस्था में निवेश और सफलता और चुनौतियों के प्रमाण को विस्तृत रूप से साझा करने की प्रक्रियाएँ भी क्षेत्र में जवाबदेही की कमी के बहस का जवाब देने में मददगार साबित हुई है।
अपने संगठन के लिए एक उपयुक्त मध्यस्थता वाले साथी की पहचान भर करने से बहुत अधिक बदलाव आ जाता है। लागू करने वाले संगठन के दृष्टिकोण से एक उपयुक्त मध्यस्थ वह होता है जो न केवल उस अनुदानकर्ता का प्रतिनिधित्व करता है जिसने उसे नियुक्त किया है बल्कि वास्तव में संगठन के कारण, चुनौतियों और क्षमताओं को भी समझता है। वे दानकर्ताओं को असामान्य कारणों, संगठनों और भौगोलिक क्षेत्रों पर विचार करने के लिए तैयार कर सकते हैं। वे वर्तमान में न केवल संगठन के वित्तपोषण इंजन को चलाने की क्षमता को सशक्त बनाने में मदद कर सकते हैं बल्कि भविष्य के लिए कौशल और संचालन व्यवस्था के आधार का निर्माण भी कर सकते हैं। और, वे संगठन को अपने मूल तत्व को खोये बिना अपने कामों के प्रदर्शन के नए तरीकों के बारे में सोचने में उनकी मदद कर सकते हैं। और हाँ ऐसे मध्यस्थ मौजूद हैं!
अधिकार-आधारित, सशक्तिकरण उन्मुख पहलों के समर्थन में भरोसा करने वाले अनुदानकर्ताओं ने यह सीखा है कि जिस तरह से वे उन कामों के प्रभाव को दीर्घकालिक रूप में देखने की उम्मीद करते हैं जिनका उन्होने समर्थन किया है, उसी तरह से उनके वित्तपोषण को भी एक लंबी अवधि वाले दृष्टिकोण की जरूरत है। अनुदानकर्ताओं के बीच ‘प्रगतिशीलता’ का एक सूचकांक उन मुख्य अनिवार्यताओं में निवेश की योग्यता है जो संगठनो को उनके प्रभाव को बनाए रखने में मदद करती है—सामुदायिक नेतृत्व को मजबूत करती है; भविष्य में ड्यू डिलिजेंस के अभ्यासों को आसान बनाने वाले अनुपालनों के निर्माण में मदद करती है; वित्तपोषण के इंजन की स्थापना में निवेश करवाती है; प्रस्ताव लेखन के लिए संगठनों को क्षमता निर्माण के साथ जोड़ती है; और उन्हें प्रासंगिक मध्यस्था वाले साथियों से जोड़ने का काम करती है।
अंत में, ऐसे अनुदानकर्ता संगठनों को इस तरह से मजबूत बना सकते हैं ताकि वे मुख्यधारा के वित्तपोषण की भाषा बोल सकें और अनुपालन के दायरे का मजबूती से जवाब दे सकें, जिससे कि ये संगठन परियोजना के लिए अकेले ही वित्तपोषण करने की प्रक्रियाओं की संकीर्ण सीमाओं से परे जा सकें।
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