गोवा में उगुएमवासियों को विकास की क्या क़ीमत चुकानी पड़ रही है?

सड़क निर्माण_राष्ट्रीय राजमार्ग
गोवा सरकार ने एक गांव के नजदीक हाइवे की चौड़ाई को बढ़ाया है, और सड़क के इस पुनर्निर्माण से इसकी ऊंचाई 3 मीटर बढ़ गई है। | चित्र साभार: मैत्रेयी घोरपड़े

उत्तर गोवा के उगुएम गांव में रहने वाली भाग्यश्री महाले एक गृहिणी और तीन बच्चों की मां हैं। एक दिन दोपहर में वे अपने किसी पारिवारिक आयोजन में शामिल होने की तैयारी कर रही थीं। उन्हें अपने गांव से 10 किलोमीटर दूर गोवा और महाराष्ट्र की सीमा पर स्थित बांदा कस्बे तक जाना था।

पिछले कई वर्षों में भाग्यश्री कई बार इस जगह जा चुकी हैं। लेकिन पिछले कुछ समय से उनका आवागमन बहुत ख़तरनाक हो गया है। उगुएम राष्ट्रीय राजमार्ग (एनएच 66) के किनारे ही स्थित है। हाल ही में गोवा सरकार ने गांव के नज़दीक वाली सड़क के चौड़ीकरण का काम शुरू कर दिया। सड़क के इस पुनर्निर्माण के कारण इसकी ऊंचाई तीन मीटर और बढ़ गई। इसका सीधा मतलब यह है कि अब गांव की सामने वाली सड़क और गांव के बीच कुल दस फुट ऊंची दीवार खड़ी हो गई है।

जहां पहले लोग बहुत ही आसानी से सड़क किनारे खड़े होकर किराए की टैक्सी या बस ले लेते थे, वहीं अब उन्हें एक मीटर चौड़ी सर्विस सड़क में जाकर हाइवे की रेलिंग के सामने झुककर खड़े होना पड़ता है। जगह की कमी के कारण यह सड़क दुर्घटना-संभावित हो गई है। भाग्यश्री कहती हैं कि ‘मुझे आने-जाने वाली गाड़ियों से डर लगता है, लेकिन मेरे पास कोई और विकल्प भी नहीं है।’

सड़क के इस निर्माण के कारण उगुएम के उन लोगों के सामने एक दूसरी चुनौती भी खड़ी हो गई है, जिनकी खेती वाली ज़मीन सड़क के उस पार है। एक समय था जब किसान बहुत ही आसानी से सड़क के इस पार से उस पार चले जाते थे; लेकिन अब ऐसा कर पाना संभव नहीं है। गांव के ही एक स्थानीय किसान उदय महाले बताते हैं कि ‘हम अब खेती कैसे करेंगे?’

उगुएम के भूतपूर्व सरपंच विनायक महाले का कहना है कि ‘इससे हमारे गांव के लिए बहुत बड़ी समस्या पैदा हो गई है। मुख्यमंत्री ने वादा किया था कि वे इस एलिवेटेड सड़क (ऊंची सड़क) को ‘जीरो लेवल’ यानी कि बराबरी पर लाएंगे। अब हमारी मांग यह है कि सरकार कम से कम हमारे लोगों, मवेशियों और मशीनों के लिए एक सबवे बनवा दे।’

हालांकि अक्टूबर 2023 में स्थानीय लोगों ने इसके खिलाफ़ विरोध प्रदर्शन किया था लेकिन इसका कुछ ख़ास फ़ायदा नहीं हुआ। भाग्यश्री कहती हैं कि ‘हम में से कुछ स्थानीय लोगों ने इसके खिलाफ़ लड़ने की कोशिश की थी लेकिन कुछ नहीं हुआ। मैंने तो अब सारी उम्मीद ही छोड़ दी है।’

मैत्रेय पृथ्वीराज घोरपड़े एक स्वतंत्र पर्यावरण कानूनविद हैं और लैंड कॉन्फ्लिक्ट वॉच के साथ रिपोर्टर के रूप में काम करती हैं।

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