असम में बाढ़: महिलाओं ने शौच जाने से बचने के लिए खाना छोड़ा

पच्चीस वर्ष की शाहिदा* भूख से तड़प रही है। असम के नगांव ज़िले का पखाली गाँव एक बाढ़-पीड़ित इलाका है। इस इलाक़े का मुख्य खाना चावल है लेकिन यहां की ज़्यादातर औरतों की तरह शाहिदा ने भी चावल खाना बंद कर दिया है। पखाली गांव की औरतों ने शौच जाने के डर से चावल खाना छोड़ दिया है। मई के महीने में होने वाली बेमौसम बारिश ने असम के लाखों लोगों को बुरी तरह प्रभावित किया है। इस बारिश से होजई, कछार, दरांग, नगांव, विश्वनाथ और दीमा हसाओ ज़िले बुरी तरह चपेट में आए हैं। हालांकि राज्य के बहुत सारे क्षेत्रों से बाढ़ का पानी अब निकलने लगा है लेकिन नगांव ज़िले का हज़ारों हेक्टेयर ज़मीन अब भी जलमग्न है। गांव के लोग, ख़ासकर औरतें शौच से निवृत होने के लिए सूखी ज़मीन की तलाश में परेशान हैं। और यदि उन्हें शौच के लिए सूखी ज़मीन मिल भी जाती है तो पानी की कमी के कारण उन्हें बाढ़ का पानी ही सफ़ाई के लिए इस्तेमाल में लाना पड़ता है। खुले में शौच करना न केवल शर्मनाक है बल्कि इससे महिलाओं को यौन हिंसा के खतरे का भी सामना करना पड़ता है।

कभी-कभी महिलाएं उन लोगों से शौचालय इस्तेमाल करने देने की मांग करती हैं जिनके घर में ही शौचालय बना है। लेकिन यह तरीक़ा भी हमेशा कारगर नहीं होता है। महिलाओं का कहना है कि शौचालय तक उनकी पहुंच की कमी और बहुत लम्बे समय तक मल को रोक कर रखने के कारण उनकी शौच की इच्छा कम हो रही है नतीजतन उन्हें कब्ज की शिकायत रहती है।

शाहिदा का कहना है कि “मेरे कमर का दर्द पहले से भी अधिक बढ़ गया है। मुझे घर के कामों और शौच के बाद के इस्तेमाल वाला पानी लाने के लिए कम से कम 1.5–2 किलोमीटर दूर जाना पड़ता है। हमारी प्राथमिकता यह होती है कि हम शौच का पानी भी घर के कामों के लिए बचा लें।” ऐसी ही बातें कई अन्य महिलाओं ने भी कही।

सलमा* ने हमें बताया कि “मासिक धर्म से गुजर रही महिलाओं के लिए यह स्थिति और बदतर हो जाती है। हमें इस दौरान इस्तेमाल किए जाने वाले कपड़े को धोने के लिए भी पानी नहीं मिलता है। हम पूरा दिन इसे इस्तेमाल करते हैं और फिर फेंक देते हैं। एक बार इस्तेमाल किए जाने वाले पैड ख़रीदने के पैसे हमारे पास नहीं होते।”

इन औरतों का जीवन हमेशा से ही मुश्किल रहा है लेकिन आपदा और विस्थापन बुनियादी स्वास्थ्य और सफ़ाई की सुविधाओं की बदतर स्थिति को उजागर कर रहे हैं।

*गोपनीयता के लिए नाम बदल दिया गया है। 

गीता लामा सेव द चिल्ड्रन के लिए राष्ट्रीय स्तर पर मीडिया पोर्टफ़ोलियो के प्रबंधन का काम करती है।

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असम में बाढ़ का नतीजा है भीगे धान और ख़ाली पेट

असम में मई की शुरुआत से ही होने वाली मूसलाधार बारिश के कारण जहां राज्य में एक तरफ़ बाढ़ और भूस्खलन (लैंडस्लाइड) की घटनाएं हो रही हैं वहीं दूसरी तरफ़ तटबंध के टूटने और जलभराव की स्थिति भी पैदा हो गई है। दक्षिण पश्चिम से आने वाला मानसून जून या जुलाई के माह तक असम पहुँच जाता है। हालांकि इस साल मानसून के पहले ही उम्मीद से ज्यादा बारिश हुई। नतीजतन पूरा असम राज्य जलमग्न हो गया। विशेषज्ञों का कहना है कि बारिश की तीव्रता और इसके आगमन के समय में आए बदलाव का कारण जलवायु परिवर्तन है। इससे भी अधिक चिंता वाली बात यह है कि मानसून के समय होने वाली भारी बारिश का आना अब भी बचा हुआ है। 

आमतौर पर बोरो प्रजाति के चावल की पहली रबी फसल अप्रैल और जून महीने के बीच पक कर तैयार होती है। यह समय मानसून से तुरंत पहले का समय होता है। लेकिन इस बार धान की ज़्यादातर फसलों को या तो नुक़सान पहुँचा है या फिर वे पानी में बह गईं। खेतों में बाढ़ का गंदा पानी जमा हो गया और कम से कम 82,000 हेक्टेयर भूमि में खड़ी फसल बर्बाद हो गई। मिट्टी की उपजाऊ ऊपरी परत को नुक़सान पहुँचा है जिसके कारण नई पौध को अपनी जड़ें जमाने में मुश्किल होगी। खेती वाली ज़मीन में आई कमी का सीधा असर असम की आय और खाद्य सुरक्षा पर पड़ेगा जहां के 75 फ़ीसदी लोगों की आजीविका का साधन खेती ही है। 

मैं नगाँव जा रहा हूं जो बाढ़ से सबसे अधिक प्रभावित ज़िलों में से एक है। नगाँव को गुवाहाटी से जोड़ने वाले हाईवे के किनारे लगभग दो किलोमीटर तक सभी खेतों में कटे हुए धान रखे है। फसल अब भी भीगी हुई है और उसमें से सड़ने की बू आ रही है। हम लोग कुछेक किसान परिवारों से बात करने के लिए रुके और उनसे उनकी बर्बाद हुई मेहनत के बारे में पूछा। बचाए गए धान का ज़्यादातर हिस्सा खाने लायक़ नहीं रह गया है और इसे खाने से दस्त जैसी बीमारियां हो सकती हैं।पूछने पर एक किसान ने कहा, “हम जानते हैं कि ऐसा हो सकता है लेकिन हमारे पास कोई दूसरा विकल्प नहीं है। इसे खाने से कम से कम हमारा पेट भरेगा। इसे बेच नहीं सकते इसलिए हमें ही इसे खाना होगा। भूख से मरने से अच्छा है बीमार होना।” पुरुष, महिलाएँ और बच्चे सभी मिलकर फसल को बचाने के काम में लगे हुए है। बाक़ी सारा काम ठप्प पड़ा हुआ है।

गीता लामा सेव द चिल्ड्रन के लिए राष्ट्रीय स्तर पर मीडिया पोर्टफ़ोलियो के प्रबंधन का काम करती है।

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