हम यूथ फॉर यूनिटी एंड वॉलंटरी एक्शन (युवा) संस्था के अंतर्गत महाराष्ट्र के 21 जिलों में अनुभव शिक्षा केंद्र नामक एक युवा-केंद्रित कार्यक्रम चलाते हैं। अनुभव शिक्षा केंद्र, नए-नए तरीकों से शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के वंचित समुदाय के युवाओं में लीडरशिप का निर्माण करता है।
शहरी क्षेत्रों में रहने वाले युवाओं के साथ बातचीत में हमने पाया कि बहुत से ऐसे हैं जिनमें नौकरी ढूंढने से जुड़े कामों में अधिक संघर्ष और तनाव के कारण आत्मविश्वास की काफी कमी होती है।
चूंकि शहरी युवाओं के लिए रोजगार एक बड़ी चिंता है, इसलिए युवा संस्था उन्हें नौकरी के लिए रेफरल (सिफारिश) देकर मदद करता है। एक इसी से जुड़े मामले में, मुंबई के उपनगर मलाड के मालवणी से लगभग 22-23 साल के तीन लड़कों को एक प्रमुख बीमा कंपनी में बैक-ऑफिस की नौकरी मिल गई। वे उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी, बस्ती और गोंडा जिलों से आए थे और तीन साल से मुंबई में रह रहे थे। उनके परिवार जरी का काम करते थे। दो युवाओं ने 12वीं कक्षा पूरी कर ली थी और एक बी.कॉम. की पढ़ाई कर रहा था।
नौकरी मिलने के बाद, लड़कों को ट्रेनिंग के लिए बीमा ऑफिस जाना था। लेकिन बाद में हमें पता चला कि वे ऑफिस के रिसेप्शन से आगे भी नहीं गए। जब हमने पूछा कि क्या हुआ, तो उन्होंने हमें बताया, “ऑफिस एक बहुत बड़ी कांच की इमारत में था और हम ये सब देखकर घबरा गए क्योंकि हम इससे पहले कभी ऐसी जगह पर नहीं गए थे। जब हम रिसेप्शन पर गए और हमने वहां फ्रंट-डेस्क पर बैठी मैडम से बात करनी चाही तो उन्होंने हमसे अंग्रेजी में बात करना शुरू कर दिया। इस सबसे हम डर गए और परेशान हो रहे थे कि हम उनकी बात का जवाब कैसे दें। इसलिए, हमने ट्रेनिंग पूरी न करने का फैसला किया और वापस आ गए।”
हमने ये महसूस किया कि रोजगार के मौकों के अलावा युवाओं में आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए उन्हें नए संदर्भों व परिस्थितियों को पहचानने के लिए बाहरी दुनिया से परिचित कराना भी बहुत जरूरी है।
इस घटना को लेकर हमने अपनी सप्ताह में होने वाली बैठक अनुभव कट्टा में चर्चा की, जहां युवाओं ने चकाचौंध (एलीट) वाली जगहों में जाने से अपने डर के बारे में बात साझा की।
इसको लेकर युवाओं ने खुद ही एक समाधान निकाला कि वे मॉल में इस तरह की बड़ी-बड़ी दुकानों पर जाकर उस माहौल के बारे में जानेंगे। उन्होंने यह फैसला इसलिए किया ताकि उन जगहों पर जाने से उनके मन में जो डर रहता है उस पर काबू पाने में काफी मदद मिलेगी।
इसलिए मैं खुद 20-25 युवाओं को अपने साथ मलाड के इन्फिनिटी मॉल में गया। वहां जाकर मैंने उन्हें एस्केलेटर पर चढ़ने, ट्रेंड्स और क्रोमा जैसे स्टोर में जाने, कपड़े परखने और दुकानें चलाने वाले लोगों से बात करने के लिए प्रोत्साहित किया। उनमें से कई युवा कपड़ों की दुकानों पर गए, लेकिन वे सैलून आदि से जुड़ी दुकानों में जाने से हिचकिचा रहे थे क्योंकि उन्हें लगा कि वहां काम करने वाले लोग उनके प्रति तिरस्कारपूर्ण रवैया रखते हैं क्योंकि वे उन्हें अपने नियमित ग्राहकों जैसे दिखाई नहीं पड़ते थे। लेकिन हमने उनसे कहा, “भले ही दूसरे व्यक्ति को लगे कि आप उनकी दुकान में कुछ ना भी खरीदना चाहते हों, फिर भी आपको इस तरह की दुकान में जाना चाहिए।” इस तरह उन्होंने ठीक ऐसे ही किया।
ये सब के बाद जब हमने उनके अनुभवों पर चर्चा की तो उन्हें सच में एहसास हुआ कि इस तरह की बड़ी जगहों पर जाने का डर सिर्फ उनके मन में ही था। क्योंकि जब वे वास्तव में उन जगहों पर गए तो यह उनके लिए कोई बड़ी बात नहीं थी।
युवाओं को अपने स्थानीय इलाकों में ऐसी जगहें तलाश करनी चाहिए, जहां वे खुद को अभिव्यक्त करने के साथ-साथ अपने मन में बैठे डर को दूर करने का समाधान भी खुद ही ढूंढ पायें। हालांकि, खासकर वंचित समुदायों में अक्सर इसकी कमी देखने को मिलती है। अगर इस तरह की असुरक्षाओं के लिए काउंसलर उनके साथ बात भी करते हैं, तब भी वे अपनी चर्चाओं में इन बातों को सामने लाने से हिचकिचाते हैं।
हमने नगर निगम कार्यालयों में भी यही तरीका अपनाया है। हम युवाओं को बीएमसी कार्यालय ले जाते हैं ताकि उन्हें उनके अधिकारों के बारे में जागरूक किया जा सके। इसके लिए हम उन्हें अधिकारियों के साथ बात करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। हालांकि, उन्हें वहां भी डर लगता है, लेकिन इससे उनका आत्मविश्वास बढ़ता है। इससे उन्हें स्थानीय शासन में शामिल होने में मदद मिलती है और सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि उन्हें एहसास होता है कि वे सक्रिय नागरिक (एक्टिव सिटीजन) के तौर पर शासन व्यवस्था से जुड़ सकते हैं।
जहां तक तीनों लड़कों की बात है, उनमें से दो अब ई-कॉमर्स कंपनियों में काम करते हैं और एक मलाड में थोक की दुकान चलाते हैं।
सचिन नचनेकर, यूथ फॉर यूनिटी एंड वॉलंटरी एक्शन (युवा) में कार्यक्रम प्रमुख हैं।
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अधिक जानें: जानें कि क्यों युवाओं की जरूरतों को नहीं, बल्कि उनकी इच्छाओं को समझना जरूरी है।
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सितंबर 2023 में, हमारे नागरिक-नेतृत्व वाले संगठन – गोवंडी न्यू संगम वेलफेयर सोसाइटी – को पहली बड़ी जीत उस समय मिली जब बॉम्बे हाई कोर्ट ने गोवंडी के शिवाजी नगर से बायोमेडिकल अपशिष्ट भट्टी को हटाने का आदेश दिया। हमने अक्टूबर 2022 में एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर करते हुए तत्काल कार्रवाई की मांग की थी, और हाईकोर्ट ने आदेश दिया था कि प्लांट को दो साल के भीतर एक औद्योगिक क्षेत्र में स्थानांतरित किया जाए।
गोवंडी एम-ईस्ट वार्ड का हिस्सा है, जो मुंबई के सबसे बड़े डंपिंग ग्राउंड और इसके एकमात्र बायोमेडिकल अपशिष्ट भट्टी के लिए कुख्यात है। इन कारकों की वजह से यह क्षेत्र तेज़ी से टीबी (तपेदिक), ब्रोंकाइटिस और ऐसी ही अन्य बीमारियों की चपेट में आ रहा है।
मेरा जन्म और पालन-पोषण गोवंडी में ही हुआ है और मैं, हमारे आसपास के इलाकों के प्रति नगरपालिका की उदासीनता के नतीजों का साक्षी रहा हूं। यहां, नागरिक मुद्दों पर कई समाजसेवी संस्थाएं काम कर रही हैं, लेकिन हमें मालूम है कि इसके बावजूद जमीनी हकीकत कुछ और ही है और यहां परिस्थितियों में कोई बहुत अधिक बदलाव नहीं आया है। स्वच्छता की कमी, कुछ खुली जगहें और शिक्षा की खराब सुविधाएं ऐसी समस्याएं हैं जिन्हें प्रशासन के सामने लाये जाने की जरूरत है, और इसके लिए समुदायों के प्रतिनिधियों से बेहतर दूसरा कौन हो सकता है?
शुरुआत में मैंने अकेले ही काम किया। मैं सोशल मीडिया पर सड़कों के गड्ढों और स्वच्छता की बदतर स्थिति के बारे में लिखता था। स्थानीय लोगों ने मेरे प्रयासों पर ध्यान दिया और मेरे इस काम की सराहना भी की। इसके बाद, धीरे-धीरे वे मेरे साथ इस अभियान में जुड़ने लगे। 2021 में, हमने अपने संगठन का पंजीकरण करवाया क्योंकि हमारा मानना था कि यह समुदाय के प्रतिनिधियों के रूप में हमारे काम को आधिकारिक बना देगा। हमने अपनी जनहित याचिका का समर्थन करने के लिए स्वास्थ्य और सामाजिक-आर्थिक डेटा इकट्ठा करते हुए, बायोमेडिकल कचरा भट्टी के खिलाफ सक्रिय रूप से अभियान शुरू किया। इनमें टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल स्टडीज की 2015 की रिपोर्ट भी शामिल थी, जिसमें पता चला था कि एम-ईस्ट वार्ड का मानव विकास सूचकांक शहर में सबसे कम था।
हमने सूचना के अधिकार का उपयोग करके एक आवेदन दिया ताकि हम सांस से संबंधित रोगों से जुड़े सरकारी स्वास्थ्य आंकड़े प्राप्त कर सकें। इस आवेदन के बाद प्राप्त आंकड़ों से हमें पता चला कि इस वार्ड में हर साल लगभग 5,000 लोग टीबी से पीड़ित हो जाते हैं।
अदालत का आदेश आने से हमें नई प्रेरणा मिली। अब हम अपने पड़ोसी उपनगर देवनार में वेस्ट-टू-एनर्जी प्लांट स्थापित करने के बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) के फैसले के खिलाफ अभियान चला रहे हैं। हमने अपने समुदाय के लोगों को दिल्ली और ओखला में स्थित इसी तरह के प्लांट से होने वाले प्रदूषण और स्थानीय लोगों के विरोध के बारे में जागरूक किया है।
जानकारी का प्रचार-प्रसार हमारे मुख्य उद्देश्यों में से एक है और इसके लिए हम वीडियो, समाचार क्लिपिंग और सोशल मीडिया पोस्ट जैसे माध्यमों का उपयोग करते हैं।
हम लैंडफ़िल पर पुराने समय से चली आ रही मानव द्वारा मैला ढोने की प्रथा के खिलाफ भी अभियान चला रहे हैं। हम बीएमसी पर एक अतिरिक्त मुस्लिम कब्रिस्तान के निर्माण के लिए दबाव बना रहे हैं; और खुली जगहों को दोबारा ठीक करवाने के लिए काम कर रहे हैं। क़रीब 50-60 सदस्यों की हमारी कोर टीम वार्ड के विभिन्न मोहल्लों के सैकड़ों लोगों का प्रतिनिधित्व करती है। उन समुदायों के पास अपने-अपने व्हाट्सएप ग्रुप हैं जहां स्थानीय समस्याओं पर चर्चा की जाती है। उन समस्याओं को हल करने के तरीके खोजने के लिए कोर टीम महीने में एक या दो बार बैठक करती है।
स्थानीय नेताओं को इस बात का डर सताता रहता है कि हमारे काम का कोई राजनीतिक उद्देश्य है और उन लोगों ने असामाजिक तत्वों की मदद से हमें डराने का प्रयास भी किया। लेकिन हमारी ज़मीन मज़बूत है। समुदाय के कुछ सदस्यों ने भी हमें यह कहते हुए भटकाने की कोशिश की कि हमें अपने जीवन और करियर पर ध्यान देना चाहिए। लेकिन अब, हमारे द्वारा किए गये प्रयासों के सकारात्मक परिणाम के कारण हमने अपने विरोधियों का दिल भी जीत लिया है।
शेख़ फ़ैयाज आलम गोवंडी न्यू संगम वेलफेयर सोसाइटी के प्रमुख हैं।
इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ें।
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