पिछले नौ वर्षों से भी अधिक समय से, प्रोजेक्ट टेक4डेव (Tech4Dev) के तहत, हम तकनीक संबंधी आवश्यकताओं और चुनौतियों से जुड़े मामलों में भारतीय समाजसेवी संस्थाओं के साथ काम कर रहे हैं। अपने अनुभव से हमने यह जाना है कि समाजसेवी क्षेत्र में तकनीक को लेकर नेतृत्व विशेषज्ञता (टेक लीडरशिप) का अभाव है। और इसीलिए, 2022 के सितम्बर महीने में हमने फ्रैक्शनल CxO1 नाम से एक कार्यक्रम की शुरूआत की। इस कार्यक्रम के तहत कुशल टेक प्रोफेशनल्स समाजसेवी संस्थाओं के साथ पार्ट-टाइम काम करते हैं और उन्हें तकनीकी विशेषज्ञा प्रदान करते हैं। सीएक्सओ में ‘x’ का मतलब आंकड़े, तकनीक या रणनीति हो सकता है।
हमने सात विभिन्न समाजसेवी संस्थाओं के साथ इस कार्यक्रम की शुरूआत की। इसके अलावा इनकी ज़रूरतों को और अधिक गहराई से समझने के लिए 20 से अधिक समाजसेवी संस्थाओं के प्रमुखों से भी बातचीत की।
समाजसेवी संस्थाओं को तकनीक से जुड़ी कुछ अलग और असाधारण समस्याओं का सामना करना पड़ता है। हम इस बात से हैरान थे कि एकदम अलग-अलग तरह की समाजसेवी संस्थाओं की तकनीक संबंधी ज़रूरतें कितनी अधिक मिलती-जुलती थीं। यह स्थिति तब है जब संगठन विभिन्न देशों में और तमाम क्षेत्रों – स्वास्थ्य, शिक्षा, सामुदायिक सशक्तिकरण, शोध से जुड़े काम कर रहे हैं।
नीचे कुछ समस्याओं का जिक्र किया गया है जिनका हमने सामना किया:
इन अनुभवों के आधार पर हमारे कार्यक्रम में फ्रैक्शनल CxOs द्वारा विभिन्न क्षेत्रों में काम कर रही समाजसेवी संस्थाओं के लिए कुछ सुझाव दिए गए हैं।
संगठनों के सामने आमतौर पर आने वाली समस्याओं की पहचान करने के बाद, उनका हल खोजते हुए हमें पता चला कि ऐसे अनगिनत ओपन-सोर्स और मुफ़्त में उपलब्ध प्लैटफ़ॉर्म हैं जो विशेष रूप से इन समस्याओं के समाधान के लिए ही तैयार किए गए हैं। संगठनों को महंगे कस्टम-बिल्ट समाधानों को अपनाने की ज़रूरत नहीं है। इसकी बजाय वे पहले से मौजूद इन समाधानों की ख़रीद कर सकते हैं। ग्लिफ़िक (प्रोजेक्ट टेक4डेव टीम द्वारा विकसित किया गया एक वहाट्सएप-आधारित चैटबॉट प्लैटफ़ॉर्म), डेवलपमेंट डेटा प्लैटफ़ॉर्म (वर्तमान में अपने आरंभिक अवस्था में), अवनी, फ़्रेप्प, और अपाचे सुपरसेट ऐसे ही कुछ ऑफ़-द-शेल्फ मंचों के उदाहरण हैं।
तकनीक विस्तार का एक शक्तिशाली साधन है लेकिन इसकी क्षमता का अनुमान तभी लगता है जब उद्देश्यों, प्रणालियों, मानक संचालन प्रक्रियाओं (एसओपी) और मेट्रिक्स को लेकर, कार्यक्रम पर काम कर रही टीम की समझ स्पष्ट होती है। जब तक स्पष्टता ना हो तब तक संगठन को तकनीकी समाधानों को लेकर विस्तार के बारे में नहीं सोचना चाहिए। स्पष्ट समझ के बिना किसी समाधान में धन एवं समय के निवेश करने से मनचाहा परिणाम न मिलने का ख़तरा बना रहता है। भविष्य में होने वाले कार्यक्रमों के बारे में समझ बढ़ाने के लिए छोटे प्रयोगों में तकनीक का इस्तेमाल करना, एक अपवाद हो सकता है।
कार्यक्रम की शुरुआत में हम समाजसेवी संस्थाओं से कुछ प्रश्न करते हैं। इन प्रश्नों का संबंध तकनीक से न होकर रणनीति से होता है। हम उनसे पूछते हैं कि उन्हें किस प्रकार के परिणाम चाहिए? क्या कार्यक्रम के जरिए इन परिणामों को प्राप्त करने के लिए उनके पास किसी प्रकार की दीर्घकालिक रणनीति है। संगठन में काम कर रहे विभिन्न टीम के सदस्यों के बीच रणनीति की समझ स्पष्ट है या नहीं? एक दीर्घकालिक तकनीक रणनीति किसी भी संगठन की समग्र रणनीति का केवल एक हिस्सा भर होती है। इसके अन्य भागों में प्रतिभा प्रबंधन, फंडरेजिंग और संचार जैसी चीजें शामिल होती हैं। अगले कुछ सालों में अपनी विकास यात्रा को लेकर स्पष्टता रखने वाला संगठन अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए तकनीक का इस्तेमाल प्रभावी ढंग से कर सकने में सक्षम होता है।
संगठन की दीर्घकालिक रणनीति तकनीक के उपयोग की दिशा को बदल सकती है।
संगठन की दीर्घकालिक रणनीति तकनीक के उपयोग की दिशा को बदल सकती है। एक ऐसे समाजसेवी संगठन का उदाहरण लेते हैं जो सुधार कार्यक्रमों के लिए आंकड़े इकट्ठा करता है और सरकार इन आंकड़ों का इस्तेमाल करती है। इस मामले में, तकनीक का चुनाव एग्जिट स्ट्रेटेजी यानी सबकुछ सरकारी संस्थाओं को सौंप देने की रणनीति के आधार पर किया जाना चाहिए। ऐसे में, किसी भी सॉफ्टवेयर तकनीक का उपयोग सरकारी संस्थाओं के कार्य करने के तरीके से बाधित होगा। लागत के अतिरिक्त, निगरानी की कमी और रखरखाव के लिए बाहरी स्त्रोतों पर निर्भर होने जैसे कारकों पर भी विचार करने की ज़रूरत होती है।
हमने देखा है कि कई समाजसेवी संस्थाएं यहां तक कि बड़े पैमाने पर कार्यरत संगठन भी इस बात को लेकर सुनिश्चित रहते हैं कि तकनीकी समाधान विस्तृत स्तर पर कार्यक्रम को सफल बनाने में सहायक साबित होंगे। हालांकि, वे अक्सर डेटा को प्रभावी ढंग से एकत्र करने, उसके विश्लेषण और उपयोग के महत्वपूर्ण पहलू को नज़रअंदाज़ कर देते हैं। उदाहरण के लिए, कोई भी संगठन अपने विभिन्न कार्यक्रमों जैसे कि बाल पोषण, मातृत्व स्वास्थ्य और महिलाओं एवं बच्चों के साथ होने वाली हिंसा आदि के लिए एक ही घर से आंकड़े एकत्रित कर सकता है। इस डेटा को समेकित करना – इस मामले में जिसका अर्थ विभिन्न प्रोजेक्ट से डेटा को क्रॉस-लिंक करना और विभिन्न संकेतकों पर किसी परिवार विशेष की स्थिति का अवलोकन हो सकता है – वास्तविक स्थिति के बारे में जानकारी हासिल करने के लिए महत्वपूर्ण होता है।
संगठन कई बार तकनीकी समाधानों को चरणबद्ध तरीक़े से उपयोग में लाना पसंद करते हैं। इसका अर्थ है कि एक चरण के सफल होने के बाद अगले चरण में जाना। हालांकि यह एक सही तरीक़ा है लेकिन साथ ही इस पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि कोई भी संगठन विस्तार के लिए तकनीक का अधिकतम उपयोग तभी कर सकता है जब उसके पास संगठन की समग्र रणनीति के अनुकूल एक दीर्घकालिक तकनीकी रणनीति भी हो। यह आवश्यक है ताकि कार्यक्रमों, तकनीकों और वरिष्ठ प्रबंधन टीम को इस बात की जानकारी रहे कि कार्यान्वयन का प्रत्येक चरण किस प्रकार अपने पिछले चरण के आधार पर निर्मित होता है और संगठन के एक बड़े उद्देश्य की तरफ़ बढ़ने में इसकी मदद करता है।
इस लेख में विनोद राजशेखरन, अंकित सक्सेना और पियालि पॉल ने अपना योगदान दिया है।
इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ें।
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