हल्का-फुल्का
March 1, 2024

कभी-कभी हेड ऑफिस से आने वाले फील्ड टीम की ‘मदद’ कैसे करते हैं?

कुछ स्थितियां जब हेड ऑफिस से आने वालों को ज़मीनी कार्यकर्ताओं की मदद की ज़रूरत होती है।
5 मिनट लंबा लेख

1. पहले तो… वेरी मच एक्साइटेड!

“मैं कल फील्ड पर ज़मीनी कार्यकर्ताओं की मदद के लिए जा रही हूं।”

चित्र साभार: जिफ़ी

2. होटल पहुंचकर… डर के आगे फोन कॉल है

“मेरे कमरे में छिपकली है! कोई और जगह ढूंढो, मुझे यहां नहीं रहना।”

चित्र साभार: जिफ़ी

3. गांव में, विज़िट पर चलते-थकते

“चलने के लिए बहुत ज्यादा है, सर्वे के लिए इतना दूर का गांव क्यों ले लिया!”

चित्र साभार: जिफ़ी

4. फील्ड पर हर समस्या का हल, एक फोन कॉल

“ओ माई गॉड, अब क्या करूं? गांव में इतने सारे कुत्ते क्यों हैं!”

चित्र साभार: जिफ़ी

5. हो गया सर्वे, हो गई मदद… बस एक और फोन

“यहां सब ठीक ही चल रहा है, मुझे अब वापस निकल जाना चाहिए, मेरे लिए गाड़ी का इंतजाम करो!”

चित्र साभार: जिफ़ी
लेखक के बारे में
इंद्रेश शर्मा
इंद्रेश शर्मा आईडीआर में मल्टीमीडिया संपादक हैं और वीडियो सामग्री के प्रबंधन, लेखन निर्माण व प्रकाशन से जुड़े काम देखते हैं। इससे पहले इंद्रेश, प्रथम और सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च संस्थाओं से जुड़े रहे हैं। इनके पास डेवलपमेंट सेक्टर में काम करने का लगभग 12 सालों से अधिक का अनुभव है जिसमें स्वास्थ्य, शिक्षा, स्वच्छता, पोषण और ग्रामीण विकास क्षेत्र मुख्य रूप से शामिल रहे हैं।
रवीना कुंवर
रवीना कुंवर, आईडीआर हिंदी में डिजिटल मार्केटिंग एनालिस्ट हैं। इससे पहले वे एक रिपोर्टर के तौर पर काम कर चुकी हैं जिसमें उनका काम मुख्यरूप से सार्वजनिक स्वास्थ्य और महिला सशक्तिकरण पर केंद्रित था। रवीना, मीडिया और कम्युनिकेशन स्टडीज़ में स्नातकोत्तर हैं।