November 23, 2022

रोज़गार को लेकर भारतीय युवाओं को भविष्य से क्या उम्मीद करनी चाहिए

रोज़गार के मामले में वैश्विक स्तर पर हो रहे बदलाव युवाओं के कौशल विकास और उनकी तरक्की की उम्मीद जगाते हैं।
9 मिनट लंबा लेख

इंटरनेशनल लेबर ऑर्गनाइजेशन (आईएलओ) ने हाल ही में ग्लोबल एम्प्लॉयमेंट ट्रेंड्स फॉर यूथ 2022 जारी किया है। आईएलओ की इस रिपोर्ट में कुछ ऐसी दिलचस्प जानकारियां हैं जिनसे यह स्पष्ट होता है कि रोजगार हासिल करना वैश्विक स्तर पर युवाओं के लिए सहज नहीं रह गया है। इस रिपोर्ट के अनुसार, 2019 और 2020 के बीच, 25 वर्ष से अधिक आयु वालों की तुलना में 15-24 वर्ष के आयु वर्ग में बेरोज़गारी की दर अधिक है। रिपोर्ट यह भी कहती है कि ज़्यादातर नियोक्ता नए लोगों की भर्ती की बजाय पहले से काम कर रहे कर्मचारियों की नौकरियां बचाना चाहते थे। नतीजतन, इसका सीधा असर युवाओं और उनके रोज़गार पर पड़ा।

जहां ऐसी उम्मीद की जा रही है कि उच्च-आय वाले देश 2020 के अपने रोज़गार घाटे से 2022 तक उबर जाएंगे। वहीं, निम्न-आय वाले देश इतनी जल्दी इस अंतर को कम नहीं कर पाएंगे। भारत के मामले में यह स्थिति अधिक चुनौतीपूर्ण है क्योंकि यह एकमात्र ऐसा देश है, जहां युवा 2020 की तुलना में 2021 में और अधिक पिछड़ गया है। यहां पर इस बात पर ध्यान दिया जाना चाहिए कि रिपोर्ट के मुताबिक, युवा भारतीय पुरुष ग्लोबल वर्कफोर्स का 16 फ़ीसदी हिस्सा हैं, और युवा भारतीय महिलाओं के मामले में यह आंकड़ा 5 फ़ीसदी है।

कामकाज का भविष्य तकनीकी आविष्कारों, जनसांख्यिकीय बदलावों, जलवायु परिवर्तन और वैश्वीकरण से प्रभावित होगा।

अब जब व्यवस्थाएं महामारी से हुए नुकसान से उबरने के लिए समाधान तैयार करने में लगी हैं। वहां, यह रिपोर्ट भविष्य के निवेश के लिए रणनीति निर्धारित करते समय मानव-केंद्रित दृष्टिकोण अपनाने पर जोर देती है। यह स्पष्ट हो चुका है कि कामकाज का भविष्य तकनीकी आविष्कारों, जनसांख्यिकीय बदलाव, पर्यावरण/जलवायु परिवर्तन और वैश्वीकरण से प्रभावित होगा। युवाओं को रोजगार के मौके देने वाले कामकाज के बड़े दायरे को देखें तो यह रिपोर्ट बताती है कि तीन तरह की अर्थव्यवस्थाओं में भविष्य में अधिक निवेश देखने को मिलेगा।

  • हरित अर्थव्यवस्था (ग्रीन इकॉनमी): वे भूमिकाएं जिनका उद्देश्य पर्यावरण से जुड़े संकटों का समाधान करना हैं।
  • देखभाल अर्थव्यवस्था (केयर इकॉनमी): वे भूमिकाएं जो मानव कल्याण और स्वास्थ्य देखभाल पर ध्यान केंद्रित करती हैं।
  • डिजिटल अर्थव्यवस्था: वे भूमिकाएं जो इंटरनेट और अलग-अलग तरह की डिजिटल टेक्नॉलजी से संबंधित हैं।

आज इन्हें भले ही एक ख़ास तरह की व्यवस्था (इकोसिस्टम) माना जाता है, लेकिन इनमें से हर एक अर्थव्यवस्था भविष्य के युवाओं के लिए अधिक स्थायी मार्ग होगा।

फेसबुक बैनर_आईडीआर हिन्दी

दुर्भाग्यवश महामारी के दौरान बच्चे और युवा दोनों ही नया कुछ सीखने से वंचित रहे और उन्हें इसका बहुत नुक़सान हुआ। यह नुक़सान भविष्य में उनकी प्रगति को अनिवार्य रूप से प्रभावित करेगा। दुनियाभर के कई देशों में महामारी के दौरान लम्बे समय तक स्कूल बंद रहे। इन देशों में भी भारत उन देशों की सूची में शामिल है जहां सबसे लम्बी अवधि तक स्कूल बंद रहे। विशेषज्ञों का मानना है कि इसका असर न केवल सीखने पर पड़ा है बल्कि लम्बे अंतराल के कारण सीखने की क्षमता में भी गिरावट आई है। इस आर्थिक और शैक्षिक घाटे के चलते हमें कुछ ऐसा देखने को मिल सकता है कि बच्चों में कुछ करने की चाह होते हुए भी उनके पास उसे करने के लिए जरूरी क्षमता होगी, यह जरूरी नहीं। भले ही उनके पास जरूरी संसाधनों की उपलब्धता और जागरुकता कमी न हो। अगर हमारा लक्ष्य युवाओं को भविष्य में कामकाज लिए तैयार करना है तो हमें निम्नलिखित चीजों को बेहतर करने की आवश्यकता है:

1. हरित अर्थव्यवस्था (ग्रीन इकॉनमी) के बारे में जागरूकता

भारत में युवाओं की संख्या को देखते हुए हमें उन्हें इस तरह के भविष्य के लिए तैयार करने की आवश्यकता है। इन क्षेत्रों में अक्सर खास कौशल की ज़रूरत होती है। इसलिए इसे करियर की शुरूआत कर रहे लोगों के लिए बहुत सुलभ नहीं माना जाता है। यह समझना बहुत जरूरी है कि यह केवल हरित अर्थव्यवस्था में करियर बनाने के लिए युवाओं को तैयार करने भर से जुड़ा नहीं है बल्कि करियर के मौजूदा विकल्पों में पर्यावरण को लेकर समझदारी बरतने से है। – निकिता बेंगानी, निदेशक (यूथ प्रोग्राम्स), क्वेस्ट अलाइयन्स

स्कूल की यूनीफ़ॉर्म में बच्चों का एक समूह_युवा रोज़गार
केयर इकॉनमी युवाओं, विशेष रूप से युवा महिलाओं के लिए एक प्रमुख नियोक्ता बनी रहेगी। | चित्र साभार: प्रथम स्किलिंग मीडिया लैब

पर्यावरणीय स्थायित्व को लेकर बढ़ती चिंताओं को देख कर ऐसा अंदाजा किया जा रहा है कि आने वाले वर्षों में हरित अर्थव्यवस्था बहुत सारे रोजगार विकसित करेगी। इसका अर्थ न केवल कामकाज के नए क्षेत्रों से है बल्कि यह मौजूदा उद्योगों (जैसे ऑटोमोटिव, इलेक्ट्रिकल, निर्माण और सेवा क्षेत्र) में हरित परिवर्तन यानी इनके पर्यावरण प्रेमी हो जाने की भी बात करता है। दिलचस्प बात यह है कि हरित अर्थव्यवस्था से यह उम्मीद की जा रही है कि यह प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से लगभग सभी क्षेत्रों को अपने में शामिल करेगा। लेकिन यह बदलाव व्यापक संरचनात्मक परिवर्तनों और निवेश के बिना संभव नहीं होगा। इससे यह सुनिश्चित किया जा सकेगा कि इन उद्योगों से जुड़ने के लिए आवश्यक कौशल से संबंधित पर्याप्त डेटा और जागरूकता युवाओं के पास है। रिपोर्ट के अनुसार, सही संसाधनों (उदाहरण के लिए हरित तकनीक और हरित समाधानों पर शोध में निवेश) के साथ इस क्षेत्र से 2030 तक युवाओं के लिए 8.4 मिलियन नौकरियां सृजित होंगी। यह एक ऐसा अवसर है जिसे सूचना के अभाव के कारण नहीं गंवाना चाहिए।

2. डिजिटल संसाधनों तक पहुंच

“डिजिटलीकरण और प्रौद्योगिकी, वित्त से लेकर स्वास्थ्य सेवा तक सभी क्षेत्रों को तेजी से प्रभावित कर रहे हैं। इस प्रौद्योगिकी-संचालित अर्थव्यवस्था में मानव संसाधनों का शामिल होना लगातार प्रासंगिक बना हुआ है। डिजिटल और प्रौद्योगिकी-आधारित नौकरियां जहां बढ़ती जा रही हैं और अपने साथ कई अवसर भी ला रही हैं। वहीं, इनसे जुड़ी चुनौतियां भी सामने आने लगी हैं जो कि इन कामों के लिए जरूरी कौशल वाले लोगों की नियुक्ति करने और ऐसा करते हुए लैंगिक विविधता बनाए रखने से जुड़ी हैं। आगे बढ़ते हुए यह जरूरी है कि रोज़गार की व्यवस्था में शामिल नीतिनिर्माता, ट्रेनिंग पार्टनर और कंपनियां, कामकाज की जगह पर विविधता (डायवर्सिटी) लाने के लिए मिलकर प्रयास करें।” – देवांशी शुक्ला, शोधार्थी, इनसीड

जैसे-जैसे अर्थव्यवस्थाएं कृषि से निकलकर उद्योग और सेवाओं की ओर स्थानांतरित होंगी, डिजिटल तकनीक के उपयोग में वृद्धि स्वाभाविक है। लेकिन इससे पैदा होने वाला रोज़गार ग्रामीण क्षेत्रों के बजाय शहरी इलाक़ों में केंद्रित होगा। साथ ही ये डिजिटल हार्डवेयर और इंटरनेट कनेक्टिविटी की उपलब्धता से काफी प्रभावित होगा। रिपोर्ट के अनुसार, इस क्षेत्र में 2030 तक युवाओं के लिए 6.4 मिलियन नौकरियां और जुड़ने की उम्मीद है। लेकिन यदि हम युवाओं को ऐसे काम के लिए तैयार करने वाले हैं तो इस क्षेत्र में उच्च स्तर के तकनीकी कौशल की मांग होने के कारण प्रशिक्षण पर बहुत अधिक काम किए जाने की ज़रूरत है। अच्छी बात यह है कि भविष्य में सभी नौकरियां पूरी तरह से तकनीकी नहीं होंगी। रचनात्मक अर्थव्यवस्था डिजिटल कौशल पर बहुत अधिक निर्भर है और इन क्षेत्रों में रिक्तियों के भी बढ़ने की उम्मीद है।

3. देखभाल के क्षेत्र में नौकरी की संभावनाएं

“महामारी से सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्रों जैसे स्वास्थ्य, शिक्षा और अन्य ग़ैर-पेशेवर व्यक्तिगत सेवाओं में महिलाओं का वर्चस्व अधिक दिखाई दिया। यह तय करना जरूरी है कि औपचारिक क्षेत्र के काम में, अच्छी नौकरियों में और कम अस्थिर कामों में महिलाओं की संख्या बढ़े। वर्तमान में, उनके हिस्से केवल अनौपचारिक और कम उत्पादक नौकरियां ही हैं। सॉफ़्ट स्किल में प्रशिक्षण, बाज़ार द्वारा महत्व दिए जाने वाले कौशलों का प्रशिक्षण मिलते रहना और रोज़गार के लिये योग्यता बढ़ाने और आत्मविश्वास बनाए रखने के उद्देश्य से की जाने वाली गतिविधियों का प्रयोग कर उन लोगों को काम पर वापस बुलाया जा सकता है जो इसे छोड़ चुके हैं।” – डॉक्टर अनीषा शर्मा, असिस्टेंट प्रोफेसर, अशोका यूनिवर्सिटी

केयर इकॉनमी या देखभाल अर्थव्यवस्था कुछ अनिवार्य सेवाओं जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य और घरेलू कामों के लिए ज़िम्मेदार होती है। लेकिन ज़्यादातर नौकरियों की अनौपचारिक प्रवृति के कारण इस क्षेत्र की अपनी कमजोरियां हैं। इन श्रमिकों के लिए सामाजिक सुरक्षा की अक्सर कमी होती है और अन्य क्षेत्रों की तुलना में भुगतान भी बहुत कम मिलता है। महामारी के दौरान इस क्षेत्र के लोग भारी वेतन कटौती, काम के घंटों में कमी और कोविड-19 से संक्रमण से प्रभावित हुए। उम्मीद है कि भविष्य में केयर इकॉनमी युवाओं, विशेषकर युवा महिलाओं को नौकरियां उपलब्ध करवाती रहेगी। यह सुनिश्चित करने के लिए निवेश की जरूरत होगी ताकि क्षेत्र नैतिक नियमों को लागू करने के लिए नियम-क़ायदे बनाए और अच्छे काम के अवसर प्रदान करे। ऐसा करने से यह क्षेत्र युवाओं को अपनी ओर अधिक से अधिक आकर्षित कर सकेगा।

जीत के लिए कौशल विकास

यह जानकर खुशी हो रही है कि रिपोर्ट ने कौशल विकास और उद्यमिता को स्पष्ट रूप से प्रमुख क्षेत्र के रूप में उजागर किया है। साथ ही, इस पर भी ज़ोर दिया है कि यदि हम युवाओं को कामकाज के मुताबिक ढालना चाहते हैं और बढ़िया नौकरियों के अधिक अवसर पैदा करना चाहते हैं तो सिस्टम को इस क्षेत्र में निवेश करने की ज़रूरत है।

लेकिन यह इस बात पर भी प्रकाश डालता है कि कैसे महामारी ने कई कौशल विकास कार्यक्रमों के संचालन ढांचे में एक बड़ी बाधा खड़ी की है। उच्च आय वाले देशों में लगभग 70 प्रतिशत तकनीकी व्यावसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण (टेक्निकल एंड वोकेशनल एजुकेशन एंड ट्रेनिंग या टीवीईटी) प्रदाता दूरस्थ प्रशिक्षण देने में सक्षम थे। लेकिन शायद ही कोई कम आय वाले देशों में, इस तरह की सफलता प्राप्त कर सका। महामारी के दौरान इन कम आय वाले देशों में 50 प्रतिशत से अधिक प्रशिक्षण गतिविधियां बंद हो गईं। 

बहुत कम संगठन ग्रामीण भारत में युवाओं को तेजी से आगे बढ़ने और तकनीक से जुड़े सीखने के अवसर प्रदान करने में सक्षम हैं। बहुत बड़ी आबादी लॉकडाउन के कारण लगे प्रतिबंधों से जूझ रही थी। इसके कारण युवाओं से जुड़ने की उनकी योग्यता में तेज़ी से कमी आई। यह तथ्य पीएमकेवीवाई 3.0 की औसत प्लेसमेंट दर 15 प्रतिशत हो जाने से और स्पष्ट हो जाता है।

हालांकि महिलाओं के रोज़गार में गिरावट आई है लेकिन शिक्षा के क्षेत्र में उन्होंने पुरुषों की तुलना में अधिक संख्या में दाख़िला करवाया है।

इस पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि जहां युवा समग्र रूप से नकारात्मक रूप से प्रभावित थे, वहीं महिलाओं को इस महामारी का अधिक ख़ामियाज़ा भुगतना पड़ा है। रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में महिलाओं के एनईईटी श्रेणी में आने की संभावना अधिक है। इससे पता चलता है कि पिछले दो दशकों में लैंगिक अंतर को ख़त्म करने की दिशा में कोई सकारात्मक कदम नहीं उठाया गया है। ऐसा देखा गया है कि लैंगिक भेदभाव के उच्च स्तर, देखभाल से जुड़े कामों का असमान वितरण और प्रतिबंधात्मक सामाजिक मानदंड का स्तर जितना उंचा होता है एनईईटी श्रेणी में आने वाली महिलाओं की संख्या भी उतनी ही बढ़ती जाती है। लेकिन इस बात से उम्मीद जागी है कि जहां महिलाओं के रोज़गार दर में गिरावट आई है वहीं शिक्षा में उनके नामांकन का दर पुरुषों की तुलना में अधिक है।

प्रथम में हमने हमेशा यह सुनिश्चित किया है कि कौशल विकास इकोसिस्टम  का उद्देश्य केवल युवाओं को प्रमाण पत्र देना भर नहीं है। बल्कि सबसे आसान समाधान न होने के बावजूद इसका उद्देश्य उन्हें सार्थक आजीविका के रास्ते खोजने में मदद करना है। यदि युवाओं को इन नए क्षेत्रों में प्रवेश करना है, तो उन्हें एक से दूसरे तक पहुंचाई जा सकने वाली मूल दक्षताओं से लेकर उच्च स्तर के तकनीकी उद्योग-विशिष्ट ज्ञान जैसी कुशलताओं के साथ तैयार होने की जरूरत है।

भविष्य की इन जरूरतों को पूरा करने के लिए, इकोसिस्टम और इसके सभी हितधारकों को बदलना होगा। जहां एक तरफ़ विकास क्षेत्र आज इन अंतरालों को दूर करने में मदद करने के लिए डिज़ाइन किए गए समाधानों का नेतृत्व कर सकता है। वहीं दूसरी ओर नीति निर्माताओं और परोपकारी लोगों को समान रूप से हाथ मिलाने और निवेश करने की आवश्यकता है जो भविष्य में इन कमजोरियों को कम करने में मदद कर सकते हैं।

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लेखक के बारे में
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एनेट फ्रांसिस

एनेट फ्रांसिस 2018 प्रथम एजुकेशन फ़ाउंडेशन की युवा प्रशिक्षण विभाग की प्रमुख सदस्य हैं। वे कार्यबल विकास और तकनीक-संचालित कौशल प्रशिक्षण की विशेषज्ञ हैं। एनेट ईडनबर्ग यूनिवर्सिटी की भूतपूर्व छात्रा हैं। उन्होंने भारत एवं स्कॉट्लैंड के विभिन्न संगठनों के साथ मिलकर शिक्षण का काम भी किया है। एनेट से [email protected] पर सम्पर्क किया जा सकता है।

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