मेरा नाम प्रीति बेले है। मैं महाराष्ट्र के यवतमाल जिले के घाटंजी ब्लॉक में अपने गांव मुरली की एक सामुदायिक संसाधन व्यक्ति (सीआरपी) के रूप में काम करती हूं। मैं दो छोटे बच्चों की अकेली मां हूं और कई तरह की ज़िम्मेदारियां उठाती हूं। मैं एक मां, एक गृहिणी और अपने परिवार की कर्ताधर्ता, सब कुछ हूं।
घाटंजी, विदर्भ के एक सूखा-प्रभावित इलाक़े में आता है – एक ऐसा इलाक़ा जिसकी पहचान ही यह है कि इस क्षेत्र का कृषि संकट यहां की ग्रामीण आजीविका को प्रभावित करता है। रसायनों के अत्यधिक उपयोग, नकदी फसल, भूजल के अत्यधिक दोहन और जंगलों के क्षरण के कारण यह संकट पिछले कुछ वर्षों में जटिल हो गया है। सीआरपी के रूप में मेरी भूमिका मेरे समुदाय को उनकी आजीविका में सुधार करने में मदद करना है। इसके अलावा मैं प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिए सामूहिक गतिविधियों को बढ़ावा देने और निर्णय लेने की प्रक्रिया में समुदाय – विशेष रूप से महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाने की दिशा में भी काम करती हूं।
सुबह 5.30 बजे: जागने के बाद, मेरे सुबह के कुछ घंटे घर के कामों में लगते हैं। पिछले दिन के बर्तन साफ़ करने, नाश्ता और दोपहर का खाना तैयार करने और बच्चों को स्कूल भेजने जैसे काम निपटाने के बाद मैं घर की सफ़ाई करती हूं। इन सब कामों के बाद मैं रंगोली बनाती हूं और पूजा करती हूं।
सुबह 10 बजे: मैं विभिन्न सामाजिक सुरक्षा योजनाओं और ऐसे अन्य प्रावधानों के बारे में जानकारी साझा करने के लिए निकल जाती हूं। मैं अपने समुदाय के सदस्यों के साथ समूहों या बैठकों में बातचीत करती हूं। यह जानकारी उन योजनाओं और प्रावधानों की होती है जो समुदाय के लोगों के लिए लाभदायक होती हैं। हाल ही में मैंने अपने गांव में एक शिविर का आयोजन किया था जिसमें समुदाय के सदस्यों ने अपने पैन कार्ड के लिए आवेदन दिए और अपने बैंक खातों को आधार कार्ड से लिंक करवाया। ये सभी प्रक्रियाएं बहुत जटिल होती हैं और इनके लिए कई तरह के दस्तावेज़ों की ज़रूरत होती है। लोगों को कई बार सरकारी दफ़्तरों के चक्कर लगाने पड़ते हैं और नियमित रूप से उसकी स्थिति का पता लगाना पड़ता है। मैं उन लोगों के लिए ये सारे काम करती हूं जो वे खुद नहीं कर सकते।
कभी-कभी मैं इस समय का इस्तेमाल किसानों से मिलने और उनकी ज़रूरत के अनुसार जैविक खाद/कीटनाशक बनाने में उनकी मदद के लिए भी करती हूं। मैं ये सारे काम 2019 से कर रही हूं, तब से जब पहली बार फाउंडेशन फॉर इकोलॉजिकल सिक्योरिटी (एफईएस) के तहत मैं अपने गांव की सीआरपी नियुक्त हुई थी। मैंने जैविक खेती पर कई प्रशिक्षण कार्यक्रमों में भाग लिया और सीखा कि जैविक खादों और कीटनाशकों के प्रयोग के तरीक़ों के बारे में कैसे बताया जाता है। शुरुआत में मेरे प्रदर्शनों का विरोध किया गया और समुदाय ने उनका मजाक भी उड़ाया। लेकिन जब संतोष घोटने नाम के एक किसान ने इन तरीक़ों को अपनाने में रुचि दिखाई और डेमो देने के लिए कहा तो उसके बाद से दूसरे लोगों का नज़रिया भी बदलने लगा।
मैं खेती के टिकाऊ, जैविक तरीकों को अपनाने के लिए गांव में अधिक से अधिक किसानों को प्रोत्साहित करने का प्रयास करती हूं।
खेती के किए जा सकने वाले स्थायी तरीक़ों के महत्व को समझते हुए, उन्होंने मुझे पंजाबराव देशमुख जैविक शेती मिशन के तहत एक किसान समूह बनाने में मदद करने के लिए कहा। हमने कुछ अन्य किसानों को अपने साथ जोड़ा और आखिरकार 2021 में 20 किसानों का एक समूह बनाकर उसका पंजीकरण करवा लिया। ये सभी किसान अब जैविक खेती करते हैं। इन किसानों को सरकार ने कम कीमतों पर जैविक कीटनाशक और कुछ उपकरण (जैसे पंप, जैविक कीटनाशक बनाने के लिए एक टैंक) दिया है।
खेती के स्थाई तरीक़ों में मेरी बहुत गहरी रुचि है, और मैं खेती के टिकाऊ, जैविक तरीकों को अपनाने के लिए गांव में अधिक से अधिक किसानों को प्रोत्साहित करने का प्रयास करती हूं। चूंकि यवतमाल सूखा-प्रभावित इलाक़ा है इसलिए हमें पानी के प्रबंधन के बारे में भी सोचना पड़ता है। पिछले तीन वर्षों से, मैं जल संसाधनों के प्रबंधन के महत्व को लेकर जागरूकता बढ़ाने के लिए समुदाय के सदस्यों के साथ भूजल गतिविधियों और फसल के लिए पानी का बजट बनाने जैसे कार्यक्रमों का आयोजन कर रही हूं। इन गतिविधियों के परिणामस्वरूप, कुछ किसानों ने भराव सिंचाई की बजाय फव्वारा या ड्रिप सिंचाई को अपनाया है। वहीं कुछ अन्य किसान या तो कम सिंचाई वाली फसलों की खेती करने लगे हैं या फिर बहुत कम क्षेत्रफल में अधिक सिंचाई वाली फसलों को बोने लगे हैं।
दोपहर 2 बजे: मैं घर आकर दोपहर का खाना खाती हूं। उसके बाद मुझे रात के खाने की तैयारी शुरू करनी पड़ती है और साथ ही साथ घर के अन्य काम भी निपटाती हूं। ज़रूरत होने पर मुझे सब्ज़ी या अनाज ख़रीदने भी जाना पड़ता है और पढ़ाई में अपने बेटों की मदद भी करनी पड़ती है। अकेले दो छोटे लड़कों को सम्भालना आसान काम नहीं है।
शाम 6 बजे: आमतौर पर, शाम का समय मैं समुदाय की महिलाओं के साथ बिताती हूं। इन महिला-सभाओं में हम महिलाओं की समस्याओं के साथ ही गांव की अन्य बड़ी समस्याओं पर बात करते हैं। ऐसी जगहें बहुत अधिक महत्वपूर्ण होती हैं। इन जगहों पर महिलाओं को अपनी उन समस्याओं के बारे में बताने का मौक़ा मिलता है जिनके बारे में शायद वे बाकी जगहों पर बात नहीं कर पाती हैं या फिर करती भी हैं तो उन बातों को अनसुना कर दिया जाता है। हम इस पर भी बात करते हैं कि कैसे इन मुद्दों को ग्राम सभा में उठाया जाए।
मैंने अगस्त 2018 में दोस्तों और पड़ोसियों की मदद से अपना एसएचजी बनाने का फ़ैसला किया।
मैंने पहली बार एसएचजी आंदोलन के तहत महिलाओं के साथ काम करना शुरू किया था। पांच साल पहले मैं नहीं जानती थी कि स्वयं-सहायता समूह क्या है। मेरे परिवार ने मुझे एसएचजी में शामिल होने की अनुमति नहीं दी थी। इसलिए कि इसका हिस्सा बनने का मतलब था मीटिंग के लिए घर से बाहर जाना, जिनका आयोजन कभी-कभी रात के समय भी किया जाता था। जिज्ञासावश मैंने अपनी परिचित महिलाओं के एक समूह से बातचीत की। ये महिलाएं एसएचजी के माध्यम से पैसों की बचत करती थीं। चूंकि उनके समूह में अब जगह नहीं थी इसलिए उन लोगों ने मुझे अपना समूह बनाने की सलाह दी। इसलिए मैंने अगस्त 2018 में दोस्तों और पड़ोसियों की मदद से अपना एसएचजी बनाने का फ़ैसला किया। शुरुआत में मैं घर-घर जाकर महिलाओं को प्रति माह मात्र 100 रुपए की बचत करने के लिए प्रोत्साहित करती थी। हमने सिर्फ़ यही काम किया – पैसे बचाए। धीरे-धीरे मैंने खातों के प्रबंधन का काम भी सीखा और समूह ने निर्विरोध रूप से मुझे इसका सचिव नियुक्त कर दिया। समूह का प्रत्येक सदस्य हर महीने मेरी तनख़्वाह के लिए 10 रुपए का योगदान भी देता है।
कुछ महीने बाद 2019 में मैंने महाराष्ट्र राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन (एमएसआरएलएम) में उद्योग सखी के पद पर होने वाली नियुक्ति के बारे में सुना। मैंने अपने सभी दस्तावेज जमा किए और इस पद के लिए अपना आवेदन दे दिया। मेरे पास काम करने का औपचारिक अनुभव नहीं था और मुझमें विश्वास की भी कमी थी लेकिन मैं लिखित और मौखिक दोनों परीक्षाओं में सफल रही। मेरे चुनाव के बाद मुझसे ज़िला मुख्यालय में प्रशिक्षण में शामिल होने के लिए कहा गया। इसी दौरान मेरे पति बहुत बीमार हो गए और उनकी मृत्यु हो गई। प्रशिक्षण का सत्र उनकी मृत्यु के छह दिन बाद का था। अपना दुःख परे कर मैं प्रशिक्षण में शामिल हुई। इस फ़ैसले में मेरी सास ने मेरा साथ दिया और मैंने लोगों की ज़रा सी भी परवाह नहीं की। यदि मैंने इस अवसर का लाभ नहीं उठाया होता तो आज मेरा जीवन कुछ और होता।
इस प्रकार, मैंने जनवरी 2020 में अपने गांव के लिए उद्योग सखी के रूप में एमएसआरएलएम के साथ काम करना शुरू किया। मेरा पहला काम छोटी दुकानों, भोजनालयों और आटा मिलों जैसे गांव के छोटे उद्यमों का सर्वेक्षण करना था। इस सर्वेक्षण का उद्देश्य यह समझना था कि इन उद्यमों को कौन और कैसे चला रहा है। यह मुख्य रूप से गांव की जरूरतों का विश्लेषण करने और महिलाओं को उद्यमिता में लाने में मदद करने के लिए किया गया था।
इसके बाद, मैंने 14 छोटे स्तर की और पिछड़ी महिला किसानों का एक समूह बनाया, जो व्यवसाय चलाने में रुचि रखती थीं। इन महिलाओं को कृषि आधारित उद्यम शुरू करने के लिए एमएसआरएलएम कार्यक्रम के तहत दो लाख रुपये का ऋण मिला। हमने तय किया कि हम सब्ज़ियां बेचेंगे और ख़रीद-बिक्री की प्रक्रियाओं के बारे में जानने के लिए किसानों के स्थानीय बाजार का दौरा करेंगे। आख़िरकार, हमने अपने गांव एवं आसपास के गांवों में जैविक खेती करने वाले किसानों के साथ सम्पर्क स्थापित किया। एमएसआरएलएम ने हमें सहयोग दिया और यवतमाल में एक किसान उत्पादक संगठन के साथ अनुबंध करने में हमारी मदद की। इस सहयोग एवं साथ से हमने कुछ ही दिनों में 35,500 रुपये की सब्जियों की बिक्री की। इससे हमें अपने उद्यम को विकसित करने के प्रयास जारी रखने के लिए प्रेरणा मिली। हमने अपने दम पर खेती करने का फैसला किया और ऋण की बाक़ी बची राशि का उपयोग सामुदायिक खेती के उद्देश्य से चार एकड़ जमीन को पट्टे पर लेने के लिए किया। 2022 में हमने जैविक खेती के तरीकों का उपयोग कर सोयाबीन उगाया; अब हम गांव के उन किसानों को बीज वितरित करने की योजना बना रहे हैं जो बाजार से संकर किस्मों के बीज खरीदने की बजाय जैविक खेती के तरीकों को अपनाने के इच्छुक हैं।
मैं महिलाओं के लिए स्थायी आजीविका के अवसर पैदा करना चाहती हूं ताकि उनके पास साल भर काम उपलब्ध रहे।
मैं कुनबी समुदाय से हूं और परंपरागत रूप से हमारी महिलाओं को अपने घरों से बाहर निकलने की अनुमति नहीं होती है। लेकिन अब मेरे समुदाय की कई महिलाएं विभिन्न एसएचजी की सदस्य हैं और ग्राम सभाओं में सक्रियता से भाग लेती हैं। मैं उन्हें प्रोत्साहित करती हूं ताकि वे अपनी आजीविका के लिए उद्यम शुरू करें और आर्थिक रूप से आत्म-निर्भर बन सकें। मैंने कम से कम चार से पांच महिलाओं को अपना व्यवसाय शुरू करने और चलाने में मदद की है। आज की तारीख़ में वे गांव के भीतर ही सेनेटरी पैड, साड़ी जैसी चीजें बेचती हैं। तभी मेरा ध्यान इस ओर गया कि कई महिलाओं के पास उनका अपना बैंक खाता नहीं है। इसलिए मैंने बैंक में खाता खुलवाने में उनकी मदद की ताकि वे अपनी बचत को बैंक में रख सकें।
हालांकि यह एक मुश्किल यात्रा थी लेकिन मैंने हार नहीं मानी और लगातार अपना काम करती रही। मैं चाहती हूं कि मुरली की महिलाएं आत्मनिर्भर बनें और गांव के विकास के लिए मिलकर काम करें। मैं महिलाओं के लिए स्थायी आजीविका के अवसर पैदा करना चाहती हूं ताकि उनके पास साल भर काम उपलब्ध रहे।
रात 9 बजे: अपने परिवार के साथ रात का खाना खाने के बाद मैं रसोई का काम निपटाती हूं। उसके बाद मैं उस दिन होने वाली मीटिंग में की गई बातचीत और मुद्दों के बारे में नोट तैयार करती हूं। सोने से पहले मुझे अगले दिन की योजना पर भी काम करना पड़ता है जिसमें मीटिंग के लिए लोगों को फ़ोन करके सूचना देने जैसे काम शामिल होते हैं। योजना बनाकर काम करने से मुझे एक ही समय कई सारे काम करने में सुविधा होती है और इससे बचा हुआ समय मैं अपने बच्चों के साथ गुज़ार पाती हूं। अब वे बड़े हो रहे हैं इसलिए मैं धीरे-धीरे उन्हें अपना काम खुद करने के लिए तैयार कर रही हूं। चूंकि वे दोनों ही लड़के हैं इसलिए गांव के कुछ लोग उन्हें आंगन की सफ़ाई करते हुए या सामान खरीदते देखकर हंसते हैं। मैं उन्हें ऐसे लोगों को नज़रअन्दाज़ करने और अपना काम करने की सलाह देती हूं। आत्मनिर्भर होना बहुत महत्वपूर्ण है और ये सब उस समय आपको खुद को साबित करने में मददगार साबित होता है जब आप उच्च शिक्षा के लिए बाहर जाते हैं और अपने बूते जीना शुरू करते हैं। मैं उन्हें हर प्रकार की परिस्थिति के लिए तैयार करना चाहती हूं।
मेरे बहुत अच्छे दोस्तों का समूह है। ये मुरली के भीतर और बाहर दोनों ही जगह पर हैं। मेरे काम के कारण मैंने लोगों से अच्छे रिश्ते बनाए हैं। उनमें से कई लोगों ने आर्थिक से लेकर भावनात्मक तक, हर तरह से मेरी मदद की है। मेरी सास भी जितना हो सके मेरी मदद करती हैं।
जैसा कि खंजन रवानी को बताया गया।
इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ें।
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