मार्च 2022 में मेरी बात राजस्थान के सिरोही ज़िले के पिंडवारा गांव के भरत कुमार से हुई। उनसे बात करके मैंने जाना कि उन्हें राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (नेशनल फ़ूड सिक्योरीटी एक्ट या एनएफ़एसए) 2013 के तहत मिलने वाला अनाज नहीं मिल पाता है। भरत ने बताया कि हक़दारों की सूची में उनका और उनके परिवार के सदस्यों का नाम शामिल करवाने के लिए उन्होंने कई आवेदन दिए लेकिन हर बार उनका आवेदन अस्वीकृत हो गया।
इस समस्या से निपटने के लिए भरत ने राजस्थान सम्पर्क में एक शिकायत दर्ज करवाई। राजस्थान सम्पर्क जवाबदेही आंदोलन के माध्यम से नागरिकों के लिए राज्य सरकार के पास अपनी शिकायतें दर्ज कराने के लिए एक केंद्रीकृत पोर्टल है। सिरोही के खाद्य और नागरिक आपूर्ति विभाग के इंफ़ोर्समेंट इंस्पेक्टर ने शिकायत के जवाब में कहा कि राज्य के एनएफ़एसए सूची में नए नामों को जोड़ने के लिए प्रयोग किया जाने वाला पोर्टल बंद था। पोर्टल के बंद होने के कारण ही भरत के मामले में उपयुक्त कार्रवाई करना सम्भव नहीं था।
असंतोषजनक जवाब मिलने के कारण शिकायत को आगे विभाग के ज़िला आपूर्ति अधिकारी (डीएसओ) के पास भेजा गया। डीएसओ के जवाब में यह कहा गया था कि विभाग की नीति के अनुसार खाद्य सुरक्षा सूची में नए नामों को जोड़ने पर रोक लगी थी जिसके कारण भरत के मामले में कार्रवाई असम्भव थी। डीएसओ ने अपने जवाब में एक नोटिस का संदर्भ दिया था। इस नोटिस में कहा गया था कि राजस्थान में, भारत सरकार एनएफएसए के तहत अधिकतम 4.46 करोड़ लोगों को अधिकार प्रदान करती है और किसी भी नए आवेदन को इस समय स्वीकार नहीं किया जा रहा है। यह मामला पोर्टल के ‘तकनीकी’ कारणों से बंद होने के मुद्दे से बिल्कुल भिन्न था।
भोजन का अधिकार संवैधानिक अधिकार होने के बावजूद एनएफएसए सूची में नए नाम नहीं जोड़ने का कारण यह है कि राज्य को 2011 की जनगणना के जनसंख्या आंकड़ों के आधार पर केंद्र द्वारा खाद्यान्न आवंटित किया जाता है। यह डेटा 10 वर्ष से अधिक पुराना है। और वर्तमान जनसंख्या अनुमानों के तहत राजस्थान में लगभग 54 लाख लोग एनएफएसए के तहत मिलने वाले लाभों से वंचित हैं। वास्तव में यह स्थिति भोजन के अधिकार की गारंटी देने वाले राष्ट्रीय कानून और कई न्यायिक निर्णयों का उल्लंघन करती है।
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रबारी राजस्थान और गुजरात के कुछ हिस्सों में निवास करने वाली पशुपालकों की एक खानाबदोश जनजाति है। इन्हें रेवारी, रैका, देवसी या देसाई के नाम से भी जाना जाता है। इस समुदाय का काम बकरियों, भेड़, गाय, भैंस और ऊँट जैसे विभिन्न पशुओं को पालना है।
कई अन्य समुदायों की तरह रबारी समुदाय भी तलाक़ को वर्जित मानते हैं। पंचायत सदस्य और समुदाय के अन्य बुजुर्ग तलाक से संबंधित फैसलों में शामिल होते हैं। इस समुदाय में तलाक़ को रोकने के लिए कई तरह की परम्पराएँ हैं। इनमें से एक में यह उन परिवारों पर शुल्क लगाता है जिसमें तलाक़ की घटना होती है। चाहे वह पत्नी का परिवार हो या पति का, तलाक का फैसला करने वाला पहला पक्ष दूसरे पक्ष को मुआवजा शुल्क का भुगतान करता है। तलाक़ लेने वाले पक्ष को समुदाय के सभी पुरुष सदस्यों के लिए भोजन की व्यवस्था भी करनी होती है। कानूनी अलगाव के एवज में अक्सर दो परिवारों के बीच पशुधन, विशेष रूप से ऊंटों का आदान-प्रदान भी होता है।
विवाह की समाप्ति के प्रतीक के रूप में, पति अपनी पगड़ी से कपड़े का एक छोटा टुकड़ा काटकर पत्नी के परिवार को देता है।
इरम शकील लेंड-ए-हैंड इंडिया नाम के एक स्वयंसेवी संस्था के साथ कार्यरत हैं। यह संस्था व्यावसायिक शिक्षा को मुख्यधारा की शिक्षा के साथ एकीकृत करने की दिशा में काम करती है।
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