1970 के दशक में ओडिशा के नयागढ़ जिले में सुलिया जंगल 30 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैला हुआ था। जंगल के आसपास के छत्तीस गाँव अपनी आजीविका और दूसरी जरूरतों के लिए इसपर निर्भर थे। हालांकि 1980 के दशक की शुरुआत में इन संसाधनों के अनियोजित उपयोग के कारण जंगल का बहुत बड़े स्तर पर क्षरण हुआ। इस क्षेत्र के पाँच छोटे गाँवों—रघुनाथपुर, कुशपांडेरी, बारापल्ला, पांडुसारा और कल्याणपुर—ने एक साथ मिलकर 1980 के दशक के मध्य में इसे बचाने की बहुत अधिक कोशिश की। इन तरीकों में एक तरीका थेंगापाली भी है जिसका साधारण अनुवाद है ‘छड़ी की बारी’ (थेंगा का मतलब छड़ी और पाली मतलब बारी)। इसमें ग्रामीण लोग चौबीसों घंटे बारी-बारी से जंगल की रखवाली करते हैं।
दशकों की कड़ी मेहनत के बाद यहाँ की हरियाली वापस लौट आई। धीरे-धीरे जंगल दोबारा उगने लगा, जंगली जीवन वापस लौट आया और झरनों में पनि वापस लौट आया। लेकिन यह सब बहुत कम समय तक ही रहा। बाकी के 31 गांव जंगल की सुरक्षा के बारे में बिना सोचे समझे इसका दोहन करने लगे। उन्होनें दोबारा गैर-कानूनी तरीके से लकड़ियों को काटना और जंगली जानवरों का शिकार शुरू कर दिया। अपनी आर्थिक शक्ति और उच्च जाति के होने और उच्च जाति के लोगों के साथ संपर्क होने के कारण इन 31 गांवों के पास उन पाँच छोटे गांवों की तुलना में अधिक ताकत थी। इसलिए जंगल की सुरक्षा को बनाए रखने के लिए इन पाँच गांवों ने बृक्ष्य ओ जीवर बंधु परिषद, केशरपुर और जंगल सुरख्या महासंघ, नयागढ़ से मदद की गुहार लगाई। ये दोनों ही समुदाय-आधारित संगठन हैं और आसपास के लोगों में जंगल की सुरक्षा के बारे में जागरूकता फैलाने का काम करते हैं। साथ ही ये आसपास के समुदायों को जंगल की सुरक्षा की जिम्मेदारी उठाने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।
1995 में इन दोनों संगठनों ने इस मामले को सुलझाने के लिए 36 गांवों के लोगों के साथ मिलकर कई बैठकें की और हस्तक्षेप किया। एकमत के साथ यह फैसला लिया गया कि सभी गांवों के प्रतिनिधि जंगल की सुरक्षा के लिए एक साथ मिलकर काम करेंगे। ज़िम्मेदारी का एहसास पैदा करने के लिए समिति ने एक ग्राम सभा का आयोजन किया। इस सभा में यह फैसला लिया गया कि 36 गांवों के सभी निवासियों को जंगल का हितधारक बनाया जाएगा। एक साथ मिलकर इन लोगों ने जंगल के संसाधनों के संचालन के लिए कुछ नियम और कानून बनाए। उदाहरण के लिए, समिति की पूर्व अनुमति के बिना जंगल में कोई भी प्रवेश नहीं कर सकता है, जंगल से मिलने वाले सभी संसाधनों को सभी गाँववासियों में बराबर बांटा जाएगा और जंगल-संबंधी किसी भी तरह की समस्या का निवारण यह समिति करेगी।
जब हम लोग अपने सार्वजनिक संसाधन की सुरक्षा के बारे में बात करते हैं तब इस प्रक्रिया में सभी हितधारकों को बिना शामिल किए ऐसा करना असंभव है। दो से अधिक दशकों के बाद समुदायों के बीच समझ और आपसी विश्वास ने ही सुलिया जंगल को फिर से जीवित करने में मदद की है। कुशपांडेरी के एक ग्रामीण का कहना है कि “आप निगरानी वाले कैमरे लगा कर जंगल को नहीं बचा सकते हैं। इसे तभी बचाया जा सकता है जब इसके हितधारकों की आँखें खुली हों।”
नित्यानन्द प्रधान और सास्वतिक त्रिपाठी फ़ाउंडेशन फॉर इकोलॉजिकल सिक्योरिटी में जिला समन्वयक के रूप में काम करते हैं।
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मेरा नाम लक्ष्मीप्रिय साहू है और पिछले तीन वर्षों से मैं उड़ीसा के नयागढ़ जिले के रानकडेउली गाँव में एक कृषि मित्र के रूप में काम कर रही हूँ। मेरी मुख्य भूमिका इस क्षेत्र के किसानों के साथ मिलकर जैविक खेती को बढ़ावा देना है। मैंने फ़ाउंडेशन फॉर इकोलॉजिकल सेक्यूरिटी (एफ़ईएस) के सहयोग से आयोजित ओड़ीसा लाईवलीहूड मिशन (ओएलएम) से टिकाऊ खेती का प्रशिक्षण लिया था। मेरा प्रशिक्षण मुख्य रूप से चार क्षेत्रों में हुआ था जिसमें बीज सुधार (अंकुरण, चुनाव और उपचार), मिट्टी का स्वास्थ्य, रोग प्रबंधन और बीजों की कटाई और भंडारण शामिल है।
कृषि मित्र के रूप में काम करने से पहले मैं एक घरेलू महिला थी। मेरा ध्यान इस ओर गया कि हम अपनी फसलों को उगाने में बहुत अधिक मात्रा में अजैविक खाद का इस्तेमाल करते हैं। इससे फसल तो अच्छी होती है लेकिन साथ ही यह गाँव के हमारे युवाओं तक को भी मधुमेह (डायबिटीज़) और रक्त-चाप (ब्लड-प्रेशर) जैसी बीमारियों की चपेट में ला देती है। मैं नहीं चाहती कि जब मेरे बच्चे बड़ें हों तो वे खेती में लगातार इस्तेमाल होने वाले रसायनों की वजह से बीमारियाँ का शिकार हो जाएँ। मैं अपने बच्चों के भविष्य को सुरक्षित करना चाहती थी और यही वजह थी जिसने मुझे कृषि मित्र के रूप में काम करने के लिए प्रेरित किया था। एक कृषि मित्र के रूप में मैं जैविक खेती के उस अभ्यास को एक हद तक वापस लाना चाहती हूँ जिसका पालन हमारे पूर्वज किया करते थे। यह खेती का एक ऐसा स्वरूप है जो हमें सिर्फ खाना ही नहीं देगा बल्कि स्वस्थ भी रखेगा।
जब हम अपने लिए खुद ही सब्जियाँ उगा सकते हैं तो हमें बाहर से जहरीली सब्जियाँ खरीदने की क्या जरूरत है?
हालांकि मेरे समूह में 60 किसान हैं लेकिन मैं वास्तव में रानपुर प्रखण्ड के लगभग 150 किसानों के साथ काम करती हूँ। मेरा ज़्यादातर काम छोटे और हाशिये पर जी रहे किसानों और विधवाओं के साथ होता है। ओएलएम कई सारी स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) के साथ काम करता है और उनके माध्यम से ही मैं उन परिवारों तक पहुँचती हूँ जो पोषण संबंधी या कम आय जैसी समस्याओं से जूझ रहे होते हैं। मैं औरतों को बीज देती हूँ और पौष्टिक बगीचों को तैयार करने के लिए उन्हें प्रशिक्षित करती हूँ, जहां वे अपने इस्तेमाल के लिए विभिन्न प्रकार की सब्जियाँ उगाती हैं। जब हम अपने लिए खुद ही सब्जियाँ उगा सकते हैं तो हमें बाहर से जहरीली सब्जियाँ खरीदने की क्या जरूरत है? जब हमने एक साथ काम करना शुरू किया था तब मेरे एक औरत होने की वजह से पुरुष किसान अक्सर मेरी बातों को सुनने से मना कर देते थे। उनका कहना था कि वे अजैविक खादों का प्रयोग जारी रखेंगे क्योंकि इससे फसलों की उपज अधिक होती है और उनके परिवार की जरूरतों को पूरा करने में मदद मिलती है। मैंने उन्हें यह समझाने की कोशिश की कि इससे हमें कई तरह की बीमारियाँ हो जाती हौं और उन्हें यह सुझाव दिया कि वह मेरी इस सलाह को अपनी जमीन के छोटे से हिस्से पर की जाने वाली खेती के लिए लागू करके देखें—लेकिन उन्होंने मना कर दिया।
उनकी इस जिद को देखते हुए मैंने अपनी रणनीति में बदलाव लाने का फैसला किया और स्थानीय एसजीएच में काम कर रही औरतों से संपर्क करना शुरू कर दिया। मैं हर दिन अलग-अलग एसजीएच बैठकों में शामिल होती थी और अजैविक खेती से होने वाली बीमारियों और उसकी लागत के बारे में लोगों को जागरूक करती थी। मैंने उन्हें यह बताया कि किस तरह स्थानीय रूप से उपलब्ध जैविक उत्पादों जैसे गाय का गोबर और नीम के पत्ते का इस्तेमाल खेती के लिए किया जा सकता है। इनके इस्तेमाल से हम न केवल उत्पादन की लागत को कम कर सकते हैं बल्कि बीमारियों की रोकथाम भी कर सकते हैं। धीरे-धीरे औरतों ने अपने पौष्टिक बगीचों के लिए जैविक खादों का इस्तेमाल शुरू कर दिया। जब उन्हें यह दिखने लगा कि इस तरीके से अच्छी पैदावार हो रही है तब उन लोगों ने अपने पतियों को भी जमीन के छोटे से टुकड़े पर इस तरीके से खेती करने के लिए प्रोत्साहित किया।
लंबे समय की कोशिश के बाद मैं इस समुदाय के लोगों का भरोसा जीत पाई। शुरुआत में, लोग केवल 0.5–1 एकड़ जमीन पर ही जैविक खेती करते थे लेकिन आज की तारीख में मेरी पंचायत में 50 एकड़ से ज्यादा जमीन पर जैविक खेती की जाती है।
सुबह 9.00 बजे: मैं अपने घर के कामों से निबटकर दिन के पहले दौरे पर निकलती हूँ। हर दिन मैं अपने समूह के 4 से 5 किसानों से मिलती हूँ। हम लोग उन किसानों की हर तरह की समस्या पर चर्चा करते हैं चाहे वह बीमारी हो, कीड़ों की समस्या हो या फिर कीटों की। मेरे प्रशिक्षण के आधार पर हम लोग एक साथ मिलकर उस समस्या का समाधान खोजते हैं। अगर मैं समाधान को लेकर आश्वस्त नहीं होती हूँ तब उस स्थिति में मैं समस्या की तस्वीर लेकर उसे एफ़ईएस द्वारा आयोजित साप्ताहिक प्रशिक्षण सत्र में भेज देती हूँ। यहाँ आजीविका सहायता पेशेवर मेरे इन सवालों का जवाब देता है। अगर वे भी उस समस्या को नहीं सुलझा पाते हैं तब उस स्थिति में उन बैठकों में शामिल प्रखण्ड कृषि पदाधिकारी जैविक तरीकों का इस्तेमाल करके समाधान ढूँढने में हमारी मदद करता है। अगली बार किसान से मिलने पर मैं उसे उस समाधान के बारे में बता देती हूँ। मैं किसानों और अधिकारियों के बीच पुल की तरह काम करती हूँ।
आज मैं एक ऐसे किसान से मिलने जा रही हूँ जिसकी फसल को एफ़िड प्रकोप से नुकसान पहुँच रहा है। इससे निजात पाने के लिए मैंने उन्हें नीम और गाय के पेशाब के छिड़काव जैसे उपायों का सुझाव दिया है। अपने इस दौरे में मैंने ध्यान दिया कि इन उत्पादों के छिड़काव के बाद यह समस्या एक हद तक ख़त्म हो गई।
मैंने मिट्टी जांच में भी प्रशिक्षण लिया है। समय-समय पर किसानों से मिलने जाते समय मैं सॉइल किट रख लेती हूँ ताकि किसानों को उनकी जमीन पर इस्तेमाल होने वाले अजैविक खादों के हानिकारक प्रभावों के बारे में बता सकूँ। मैं उनकी मिट्टी की जांच करती हूँ और अगर उनकी मिट्टी में अम्ल का अनुपात बहुत अधिक होता है तब मैं उन लोगों को यह जानकारी देती हूँ कि वे इस तरह की मिट्टी में अनाज नहीं उगा सकते हैं। उसके बाद हमारा पहला काम खराब गुण वाले मिट्टी को हरे खाद या जैविक उत्पादों की मदद से ठीक करना हो जाता है।
सुबह 11.30 बजे: मैं किसानों के साथ काम करती हूँ ताकि उन्हें जैविक खेती के तरीकों का प्रशिक्षण दे सकूँ और इस विषय पर उनकी सोच को विकसित कर सकूँ।जब भी किसी तरह की नई चीज, तरीका या तकनीक आती है तो मैं उसका प्रदर्शन करके दिखाना चाहती हूँ, मैं किसानों को अपने प्रदर्शन वाली जगह पर लेकर आती हूँ जिसपर मैंने जैविक खेती से फसल उगाई है। शुरू करने से पहले मैं उन लोगों को मेरी फसलों को देखने और उसमें उन कीड़ों या रोग को खोजने की बात करती हूँ जो उन्हें अपनी फसलों में दिखते हैं। जब उन्हें कुछ नहीं मिलता है तब मैं इस अवसर का उपयोग उनसे जैविक खेती के अभ्यासों के बारे में बात करने के लिए करती हूँ और उन्हें बताती हूँ कि इसके इस्तेमाल से उनकी फसलों में होने वाले रोगों में कमी आएगी और उनके फसल की गुणवत्ता बेहतर होगी।
मेरी चिंता सिर्फ इतनी है कि इस प्रक्रिया को और अधिक टिकाऊ कैसे बनाया जाए।
मैं किसी भी नई तकनीक या तरीके का इस्तेमाल करने के लिए अपनी जमीन का प्रयोग करती हूँ और किसानों को उसके परिणाम दिखाती हूँ। पहले जब मैं जैविक खेती के तरीकों के फायदे के बारे में बोलती थी तब मेरी बातों का विश्वास कोई नहीं करता था। जब किसानों ने अपनी आँखों से इसके प्रभावों को देखा और उसका अनुभव किया तब जाकर उन्हें मेरी बातों पर भरोसा होने लगा और वे नई चीजों को करके देखने के लिए तैयार होने लगे। इस साल हम किसानों की मुख्य फसल धान के लिए रोपनी और आरोपण को बढ़ावा देने की कोशिश कर रहे हैं। इसलिए मैंने अपनी ही जमीन पर पूर्व से पश्चिम की दिशा में कतारबद्ध रोपनी का काम शुरू कर दिया है और साथ ही सूरज की पर्याप्त रौशनी, मिट्टी को हवादार बनाना और समय-समय पर जैविक उत्पादों के इस्तेमाल को सुनिश्चित किया है। किसान अपनी आय के मुख्य स्त्रोत के साथ किसी भी तरह का जोखिम नहीं उठाना चाहते हैं लेकिन जब एक बार उन्हें फायदा दिखने लगेगा तब मेरा विश्वास है कि वे अपनी जमीन पर भी इस तरीके के इस्तेमाल की कोशिश शुरू कर देंगे।
हालांकि ज्यादा से ज्यादा किसानों को जैविक खेती की तरफ जाते देखना सुखद है। लेकिन साथ ही मैं इसे टिकाऊ बनाने की प्रक्रिया को लेकर चिंतित हूँ। वर्तमान में, कृमि खाद और अन्य जैविक उत्पादों की पूर्ति के लिए किसान हम लोगों पर निर्भर हैं। लेकिन जब मैं नहीं रहूँगी तब ये किसान इस प्रणाली को किस तरह बचाए रखेंगे? इसलिए मैंने उन्हें खुद से घर पर ही कृमि खाद, जीवमृत (जैविक द्र्वय खाद), बीजमृत (बीजों के उपचार के लिए) और अन्य प्रकार के खादों के निर्माण प्रक्रिया को सिखाना शुरू कर दिया है। कोविड-19 का लॉकडाउन कई मामलों में कठिन था, लेकिन इस दिशा में आगे बढ़ने के लिए यह एक बहुत बड़ा कदम था। इस दौरान, किसानों के लिए बाजार से अजैविक खाद लेकर आना कठिन था, इसलिए मैंने इस अवसर का उपयोग उन्हें हांडी खाटा (बर्तन वाले खाद), अमृत पानी (एक प्रकार की उर्वरक और बीज अंकुरण खाद) आदि जैसी चीजें खुद से तैयार करने की विधि सिखाने में किया।
दोपहर 2.00 बजे: हर सप्ताह हमारे प्रखंड के 21 कृषि मित्र एक घंटे के एक रिफ्रेशर सत्र में हिस्सा लेते हैं जहां वे पहले सीखी गई चीजों और अपने संशय के स्पष्टीकरणों पर एक नजर डालते हैं। हम जो कुछ भी सीखते हैं उसे वापस लौटकर किसानों को सिखाते हैं। कोविड-19 के पहले हमारे प्रशिक्षण और सलाह के सत्रों में हम लोग आमने-सामने बैठकर बात करते थे। हालांकि, लॉकडाउन के बाद यह सब अब ऑनलाइन होता है। इन सत्रों में हिस्सा लेने के लिए हम लोग अपने स्मार्टफोन में जूम नाम के ऐप का प्रयोग करते हैं और हम लोगों को अपनी हाजिरी दर्ज करवाने और उसे सुनिश्चित करने के लिए एक क्यूआर कोड स्कैन करना पड़ता है।
जैविक खाद निर्माण प्रक्रिया के तरीकों, आवश्यक सामग्रियों आदि से जुड़े सभी दस्तावेज और पीडीएफ़ पीडीए पार्टीसिपेसन ऐप के माध्यम से उड़िया भाषा में हम तक पहुंचाया जाता है। हम लोग इन दस्तावेजों को डाउनलोड कर सकते हैं और उन्हें व्हाट्सऐप के माध्यम से किसानों के साथ साझा भी कर सकते हैं।
शाम 4.00 बजे: मैं अपनी उस डायरी को अपडेट करने के लिए पंचायत जाती हूँ जिसमें मैं अपने कामों के बारे में लिखती हूँ। दरअसल मेरे काम में खेतों पर जाना, प्रशिक्षण, पौष्टिक बगीचों के लिए जागरूकता फैलाना और अन्य कई तरह की गतिविधियां शामिल होती हैं। इसलिए उस डायरी में मैं उस दिन किए गए विशिष्ट काम के बारे में लिखती हूँ जिसमें उस दिन मिलने वाले किसानों की संख्या, प्रशिक्षण में हिस्सा लेने वाले लोगों का ब्योरा, सहमत और असहमत होने वाले किसानों की संख्या और उनकी सहमति-असहमति के कारण आदि शामिल होते हैं।
मैंने उन्हें समझाया था कि किस तरह 5 रुपए की अजैविक खाद की खरीद का मतलब होता है 50 रुपये की बीमारी खरीदना।
आज मेरे प्रशिक्षण में कुछ पुरुष किसानों ने कहा कि खुद से जैविक उत्पादों के निर्माण में बहुत अधिक मेहनत लगती है; वहीं अजैविक खाद के मामले में वे बाजार से तैयार खाद लाकर उसका इस्तेमाल कर लेते हैं, और साथ ही जैविक खाद ज्यादा महंगा भी है। मैंने उनकी बात सुनी और मैं उनकी चिंता समझती हूँ। मैंने उन्हें समझाया था कि किस तरह 5 रुपए की अजैविक खाद की खरीद का मतलब होता है 50 रुपये की बीमारी खरीदना। इसके बदले अगर वे अभी मजदूरी पर थोड़े से अधिक पैसे निवेश करते हैं तो भविष्य में स्वास्थ्य पर होने वाले 50 रुपए के खर्चे को बचा सकते हैं। मैं उन्हें यह दिखाती हूँ कि किस तरह से अजैविक खेती से पैदा होने वाली उनकी फसल की मात्रा अधिक होती है लेकिन उनका कुल लाभ कम होता है क्योंकि रासायनिक सामग्रियों का रखरखाव महंगा होता है। अगर वे जैविक कृषि के तरीकों का इस्तेमाल करते हैं तो संभव है कि उनकी उपज में थोड़ी कमी आएगी लेकिन उनका कुल निवेश भी कम होगा। मैं उन्हें 1 एकड़ की जमीन पर जैविक खेती के तरीकों का इस्तेमाल करने के लिए प्रोत्साहित करती हूँ और उत्पादन में होने वाले खर्च के अंतर पर नजर बनाए रखने के लिए कहती हूँ।
शाम 5.00 बजे: मैं काम से घर वापस आ जाती हूँ। मैं जल्दी से अपने घर के रोज़मर्रा के काम खत्म करती हूँ और बैठकर कुछ देर सिलाई करती हूँ। जब मैं बहुत छोटी थी तभी मैंने सिलाई का काम सीखा था और अब अपने परिवार की मदद के लिए मैं कपड़े सिलती हूँ। मुझे इस काम में मजा आता है और इसलिए कृषि मित्र के काम के साथ मैं यह काम भी करती हूँ। कृषि मित्र की मेरी इस नौकरी में मेरा परिवार हमेशा मेरा साथ देता है। जब मैंने पहली बार काम करना शुरू किया था तब कोई भी मेरी बात नहीं सुनता था। लेकिन धीरे-धीरे और संयम के साथ मैंने लोगों का भरोसा और सम्मान जीत लिया है। इस तथ्य से मुझे खुशी होती है कि जैविक खेती से लोगों को लाभ होता है और यही कारण है जिससे मुझे प्रेरणा मिलती है और मैं ज्यादा से ज्यादा किसानों को जैविक खेती अपनाने के लिए प्रोत्साहित करती हूँ।
जैसा कि आईडीआर को बताया गया।
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