मैं हिंदी भाषा सीखने के लिए मिजोरम से असम गया

शहर को देखता युवा_हिन्दी भाषा
भाषा के ज्ञान से मुझे अंजान शहर में भी रास्ता ढूंढने में मदद मिली। | चित्र साभार: श्रिया रॉय

मैं मिजोरम के मामित जिले के दमपरेंगपुई गांव का एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म निर्माता हूं। मैं ब्रू समुदाय से ताल्लुक रखता हूं, इसलिए बचपन से घर पर ब्रू भाषा में ही बात करना सीखा। मैंने स्कूल में मिज़ो भाषा सीखी क्योंकि यह सभी छात्रों के लिए अनिवार्य थी, और राज्य में रहने वाले अधिकांश लोगों के लिए यह पर्याप्त थी। मिज़ो यहां सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है और लोग आमतौर पर अपनी ही भाषा में बातचीत करना पसंद करते हैं। हालांकि, 2016 में मैंने तय किया कि मुझे हिंदी सीखनी है।

मुझे लगा कि हिंदी जानना राज्य के भीतर और बाहर रोजगार के अवसरों को ढूंढने के लिए अहम है, और यह मिज़ोरम के बाहर के लोगों से जुड़ने, बातचीत करने और विचारों का आदान-प्रदान करने का माध्यम भी है।

हिंदी सीखने के लिए मैं उसी साल गुवाहाटी, असम चला गया और अलग-अलग होटलों और रेस्टोरेंट में काम करना शुरू किया। मैंने संचालकों से कहा कि मुझे हिंदी भाषा सीखनी है, इसलिए कोई भी काम करने के लिए तैयार हूं। मेरी पहली नौकरी एक मिज़ो रेस्टोरेंट में थी, जहां मैंने रसोई में काम किया। चूंकि ये भाषा सीखने के शुरुआती दिन थे तो एक परिचित माहौल में रहना मेरे लिए मददगार साबित हुआ। मैं वहां काम करने वाले सभी लोगों से हिंदी में बात करने का आग्रह करता था, और उनसे कहता था कि अगर मैं कोई गलती करूं तो मुझे सुधार दें। धीरे-धीरे जब मैंने भाषा को समझना शुरू किया तो मुझे रसोई से हटा कर रिसेप्शन पर काम दे दिया गया क्योंकि इसमें ग्राहकों के साथ बातचीत शामिल थी, जिनमें से कई अन्य राज्यों के केवल हिंदी बोलने वाले टैक्सी ड्राइवर थे। जब मेरी भाषा में और सुधार हुआ, तो मैंने एक गैर-मिज़ो रेस्टोरेंट में शेफ (बावर्ची) की नौकरी कर ली, जिससे मुझे अच्छा वेतन मिला। भाषा जानने से मुझे एक अंजान शहर में भी आसानी से घूमने-फिरने में मदद मिली। बाहरी होते हुए भी मैं ऑटो ड्राइवरों और दुकानदारों से बात कर सकता था और इस बात का ध्यान रखता था कि कोई मुझसे ज्यादा पैसे न ले।

जब मिज़ोरम वापस आया, तो मैंने ऐसे कोर्स और फेलोशिप्स की तलाश शुरू की जो मुझे बेहतर कौशल सिखा सके, भले ही इसके बदले एक बार फिर घर से दूर रहना हो। मुझे साल 2022 में ग्रीन हब फेलोशिप के लिए चुना गया, जो पर्यावरणीय फिल्म निर्माण पर आधारित एक आवासीय कार्यक्रम है। एक बार फिर मैंने नियमित रूप से हिंदी बोलना शुरू किया। चूंकि कक्षाओं का संचालन अंग्रेजी और हिंदी में होता था, हिंदी जानने से मुझे अपने विचार और राय सही तरीके से व्यक्त करने में मदद मिली और फिल्म निर्माण के बारे में लोगों से बातचीत करने का मौका मिला। जब मैंने फेलोशिप पूरी की और मिज़ोरम से एक नए बैच के फेलो शामिल हुए, तो मैं उनके और मेंटर्स के बीच एक सेतु बन गया, जब तक कि वे फेलो हिंदी या अंग्रेजी में बातचीत करना नहीं सीख गए।

इस फेलोशिप ने मुझे डॉक्यूमेंट्री बनाने का तरीका सिखाया और वन्यजीव संरक्षण में मेरी रुचि भी बढ़ाई। इस तरह देखा जाए तो मैंने एक भाषा सीखी और इसने मुझे और कुछ नया सीखने का रास्ता दिखाया। आजकल, जब मैं डॉक्यूमेंट्री नहीं बना रहा होता, तो स्कूलों में पर्यावरण जागरूकता कार्यशालाएं आयोजित करता हूं। मैं हमारे गांव आने वाले वन्यजीव प्रेमियों के साथ भी जाता हूं और उनके लिए दुभाषिए का काम करता हूं, जिससे मुझे कुछ पैसे कमाने और ज्ञान का आदान-प्रदान करने का मौका मिलता है।

रोडिंगलिआन आईडीआर नॉर्थईस्ट मीडिया फेलो 2024-25 हैं।

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मिज़ोरम का ब्रू समुदाय जो अपनी पारंपरिक कला खोता जा रहा है

मामित जिला, मिज़ोरम के डम्पारेंगपुई में रहने वाले बिआकथंग, बांस से चीजें बनाने वाले एक कलाकार हैं। वे ब्रू समुदाय से आते हैं और पिछले कई दशकों से रोजाना इस्तेमाल होने वाली चीजें जैसे नोहखाई (सब्ज़ी और चावल ले जाने की टोकरी) और तोइलंगा (पानी की बोतलों और बर्तनों की टोकरी), लेखो (छोटी टोकरी) और बाइलेंग (चावल साफ करने का बर्तन) वगैरह बना रहे हैं।

अपनी पिछली पीढ़ियों की तरह बिआकथंग ने भी बचपन में ही बांस हस्तशिल्प (बैम्बू हैंडीक्राफ्ट) की कला सीखी थी। वे बताते हैं कि “हर ब्रू परिवार के कुछ सदस्य नोहखाई बनाना जानते थे। लेकिन इस पीढ़ी के लोग नहीं जानते कि इसे कैसे बनाया जाता है।”

रबर और प्लास्टिक से बनी चीजों ने भी ब्रू-लोगों के घरों में जगह बना ली है। बिआकथंग इसकी वजह विकल्पों की मौजूदगी और आवागमन की सुविधा को बताते हैं। साथ ही, वे यह भी जोड़ते हैं कि संरक्षण के अभाव में जंगल के संसाधनों का नष्ट होना भी एक बड़ी वजह है। वे बताते हैं कि “हमारा समुदाय पहले (हैंडीक्राफ़्ट के लिए) रायसोह, सालांग और राई जैसे वन संसाधनों का उपयोग करता था। लेकिन ये अब आसानी से नहीं मिलती हैं और अब हमारे पास पहले की तरह विशाल वन क्षेत्र भी नहीं है। हमने जंगलों को नष्ट कर दिया है और अब जिन सामग्रियों की हमें जरूरत है वे केवल गहरे जंगल में ही मिलती हैं।”

उनके अनुसार, हस्तशिल्प एक महत्वपूर्ण पारंपरिक प्रथा है, इनका खत्म होना ब्रू परंपराओं के खत्म होने जैसा है। बिआकथंग के दरवाज़े हमेशा उन लोगों के लिए खुले हैं जो यह कला सीखना चाहते हैं। वे कहते हैं, “पिछले साल मैंने अपने से बड़ी उम्र के एक व्यक्ति को (नोहखाई बनाना) सिखाया है। अगर तुम कल से सीखना चाहते हो तो मेरे घर आ जाना।” लेकिन वे समझते हैं कि परंपरा के संरक्षण में उनके व्यक्तिगत प्रयास बहुत सीमित ही हैं, इसके लिए समुदाय और सरकार को साथ आना चाहिए और मिलकर प्रयास करना चाहिए।

रोडिंगलिआन, आईडीआर में नॉर्थ-ईस्ट मीडिया फेलो 2024-25 हैं।

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