साल 2022 में असम में गम्भीर बाढ़ और भूस्खलन होने से जान और माल को बहुत अधिक नुकसान हुआ और सात लाख से अधिक लोग बेघर हो गए। ब्रह्मपुत्र में स्थित एक नदी-द्वीप माजुली इस बाढ़ और कटाव में बहुत तेज़ी से उभर कर सामने आया। पिछले कुछ सालों में इसके 69 गांव नदी तट के कटाव के कारण और 96 गांव बाढ़ की चपेट में आने के कारण ख़त्म हो गए।
माजुली के मिसिंग जैसे स्थानीय समुदाय ऐसे जलवायु-संबंधी खतरों से बहुत बुरी तरह से प्रभावित होते हैं और भारी मानसिक यातना झेलते हैं। समुदाय की सदस्य दीपा पायुन इस बात पर प्रकाश डालती हैं कि कैसे किसी के घर और पर्यावरण के नुकसान से दुख, स्वायत्तता की हानि और असहायता की भावना पैदा हो सकती है। ‘हमें बहुत दुःख हुआ था। पिछले कटाव के दौरान हमें पांच बार अपनी जगहों से विस्थापित होना पड़ा था। हर बार पुनर्वास के समय हमारा एक ही सवाल होता था – क्या यह जगह भी हमारे पिछले घर की तरह नष्ट हो जाएगी या बाढ़ में डूब जाएगी?’
दीपा वे वजहें गिनाती हैं जिनके कारण मिसिंग समुदाय को इन भयावह अनुभवों से गुजरना पड़ा। ‘हमारे पास अपनी कोई ज़मीन नहीं है। हम अपने पूर्वजों को इस बात के लिए कोसते हैं कि उन्होंने रहने के लिए इन बाढ़ के मैदानों का चुनाव किया। वहीं ऊंची जाति के लोग ऊंचे इलाकों में रहते हैं।’
असम में बाढ़ नियंत्रण का उद्देश्य आम तौर पर शहरी आर्थिक केंद्रों की रक्षा करना है, जो ग्रामीण क्षेत्रों की कीमत पर होता है। माजुली में बांधों और तटबंधों की मदद से मिसिंग बस्तियों को छोड़कर राजस्व पैदा करने वाले गांवों की रक्षा की गई है।
मिसिंग समुदाय के लोगों को उनकी आर्थिक स्थिति, भूगोल और जातीयता के कारण हाशिए पर रखा गया है – ये सभी कारक एक-दूसरे से जुड़े हैं और उन्हें बेहद असुरक्षित बनाते हैं। लेकिन मिसिंग समुदाय के लोगों ने बाढ़ और कटाव से निपटने के लिए अपने स्थानीय ज्ञान, प्रथाओं और संसाधनों को उपयोग में लाया है। बार-बार आने वाली इस बाढ़ के प्रति उनकी प्रतिक्रिया लम्बे समय से जांची-परखी, प्रकृति-आधारित वैकल्पिक समाधानों पर आधारित है। उदाहरण के लिए, बाढ़ प्रतिरोधी चांगघर, मिसिंग लोगों के पारंपरिक घर, पर्यावरणीय खतरों के प्रति एक अद्वितीय स्वदेशी उपाय है। दीपा कहती हैं कि ‘चांग घर वास्तव में बहुत उपयोगी होते हैं, विशेषरूप से बारिश के दौरान। हम अपने रहने के लिए बांस के खंभों के सहारे चांग पर चांग (कई मंजिलें) बनाते हैं और नीचे अपना सामान (जैसे साइकिल) रखते हैं।’ ये घर बाढ़ के पानी, कीड़ों और जंगली जानवरों को दूर रख सकते हैं।
मिसिंग के जलवायु-संवेदनशील खेती के तरीके; उपयुक्त फसल किस्मों को उगाने में विशेषज्ञता; और कुछ लागत प्रभावी प्रथाओं का उपयोग, जैसे कि भारतीय कपास की लकड़ी, बांस, नारियल और सुपारी का रोपण, मिट्टी संरक्षण के लिए प्रकृति-आधारित समाधानों को सफलतापूर्वक बढ़ावा देता है। यह विशेष रूप से प्रासंगिक है क्योंकि तटबंध, बांध और रेत की बोरियां के टूटने और बहने की सम्भावना होती है।
दीपा तटबंध निर्माण जैसे तकनीकी-प्रबंधकीय बाढ़-नियंत्रण उपायों द्वारा स्वदेशी ज्ञान प्रणालियों के हाशिए पर जाने की बात पर जोर देती हैं। वे कहती हैं कि ‘हमें नदियों के किनारे रहने का सालों का अनुभव है, फिर भी बाढ़ नियंत्रण से जुड़े कार्यक्रमों में इंजीनियर हमें शामिल नहीं करते हैं।’
ओलम्पिका ओजा मारीवाला हेल्थइनिशिएटिव (एमएचआई) में न्यू इनिशिएटिव में सहायक हैं।
यह आलेख आईडीआर के लिए संपादित किया गया है। मूल संस्करण एमएचआई के रीफ़्रेम: मेंटल हेल्थ एंड क्लाइमेट जस्टिस के पांचवें संस्करण में प्रकाशित किया गया था।
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मैं जनवरी 2021 से असम के माजुली जिले में स्थित हमिंगबर्ड स्कूल में शिक्षक हूं। मैं कक्षा 6 से 8 तक के बच्चों को विज्ञान पढ़ाता हूं। हमारे यहां आसपास के कई गांवों से बच्चे पढ़ने आते हैं। सीखने में उनकी मदद करने के लिए वीडियो और तस्वीरों का उपयोग करने के अलावा हम उनसे कई तरह के व्यावहारिक प्रयोग भी करवाते हैं। इन प्रयोगों का उद्देश्य उन्हें यह दिखाना होता है कि विज्ञान किस तरह से हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी का हिस्सा है।
अपने स्कूल के छात्रों को खमीर और सूक्ष्मजीवों के काम के बारे में सिखाने के लिए, हम उनसे राइस बियर बनाने के लिए कहते हैं। राइस बियर एक ऐसी चीज़ है जो यहां के स्थानीय लोग घर पर ही बनाते हैं। माजुली में अचार एक लोकप्रिय चीज़ है इसलिए हम छात्रों को नमक वाले और बिना नमक वाले अचार बनाने को भी कहते हैं। इससे उन्हें खाने को लम्बे समय तक संरक्षित रखने में नमक की भूमिका समझने में मदद मिलती है।
छात्र हर चीज़ पर सवाल करते हैं, यहां तक कि समुदाय की परम्पराओं और आस्थाओं पर भी। उदाहरण के लिए, एक बार हम लोग धारणाओं और उन्हें प्रमाणित और अप्रमाणित करने के विषय पर चर्चा कर रहे थे। छात्रों ने पास के कोलमुआ गांव में भूत होने की अफ़वाह पर हमसे बात की। इस गांव के स्थानीय लोगों ने गांव में नदी से सटे एक इलाक़े को भुतहा घोषित कर उसे प्रतिबंधित कर दिया था। ऐसा कहा जाता है कि इस गांव की एक लड़की ने आत्महत्या कर ली थी और उसे वहीं दफ़नाया गया था। कई लोगों का दावा था कि उन्होंने उस लड़की को रात में नदी के तट पर घूमते देखा है इसलिए उन्हें वहां जाने से डर लगता है। अब धारणा यह थी कि भूतों का अस्तित्व है, लेकिन हम इसे अप्रमाणित कैसे कर सकते हैं? एक छात्र ने सुझाव दिया कि हमें रात में वहां जाकर देखना चाहिए कि भूत है या नहीं।
यदि भूत नहीं दिखता है तो वे मान लेंगे कि कहानी ग़लत है। हमने तय किया कि हम वहां जाएंगे और उस स्थान से थोड़ी दूरी पर अपना टेंट लगाएंगे। वहां मुझे मिलाकर तीन शिक्षक और कुल 14 बच्चे थे। कुछ बच्चे बहुत ज़्यादा डरे हुए थे, लेकिन कुछ में उत्साह था। डरने वाले बच्चों से हमने कहा कि वे हम में से एक शिक्षक के साथ टेंट में ही रुकें और बाक़ी के लोग रात के दस बजे टेंट से बाहर निकल गए।
हमने अगले आधे घंटे तक भूत को उसके नाम से पुकारा लेकिन वह हमारे सामने प्रकट नहीं हुआ। इस तरह हमने इस डरावनी कहानी को ग़लत साबित किया और वापस लौट आए। छात्र तो इतने गर्व के साथ उछल रहे थे, मानो वे युद्ध में जीत हासिल कर लौटने वाले योद्धा हों।
दीपक राजपूत असम के माजुली में हमिंग बर्ड स्कूल में विज्ञान के शिक्षक हैं।
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ब्रह्मपुत्र नदी पर स्थित द्वीप, माजुली 1950 के दशक में 1250 वर्ग किलोमीटर तक फैला हुआ था लेकिन अब यह सिकुड़ कर 483 वर्ग किलोमीटर रह गया है। कभी यह क्षेत्र दुनिया के सबसे बड़े नदी द्वीप के नाम से प्रसिद्ध था। लेकिन अब इस क्षेत्र की मिट्टी नदी में आने वाली बाढ़ के कारण नष्ट हो रही है। इसका गम्भीर प्रभाव यहां के निवासियों के भरण-पोषण पर पड़ रहा है। माजुली में काम कर रहे SeSTA के इग्ज़ीक्यूटिव कीशम बलदेव सिंह का कहना है कि “मैंने एक साल के भीतर ही [लगभग] 500 मीटर का कटाव देखा है। पिछले साल हमने श्री लुहित पंचायत के पास पिकनिक का आयोजन किया था। इस साल वह जगह गायब हो चुकी है।”
सरकार ने मिट्टी के कटाव को रोकने के लिए नदी के तट पर जियोबैग और कंक्रीट के तिकोने ढांचों का निर्माण करवाया है जिसे पर्क्यूपाईन या साही कहा जाता है। लेकिन इन समाधानों का प्रभाव सीमित है। कटाव के कारण कई गांव ढह गए हैं और वहां के निवासियों को विस्थापित होना पड़ा है। क्षेत्रफल में आई कमी के कारण जानवर अब गांवों का रुख़ करने लगे हैं। इसके चलते उनके और स्थानीय किसानों के बीच टकराव के मामले भी सामने आए हैं।
बाढ़ के कारण क्षेत्र में उपजाऊ जमीन की उपलब्धता और वन्यजीव के प्राकृतिक आवास भी प्रभावित हुए हैं। उदाहरण के लिए, माजुली में पहले बंदर दिखाई नहीं पड़ते थे लेकिन पिछले कुछ सालों में वे गांवों की तरफ़ आ गए हैं और किसानों की फसल को नुक़सान पहुंचाने लगे हैं। माजुली के आसपास फलों का कोई बगीचा या घने जंगल वाला इलाक़ा नहीं है जहां ये बंदर रह सकें और अपना पेट भर सकें। इसलिए वे किसानों की फसल खा जाते हैं और कभी-कभी न खाने लायक़ फसलों को जड़ से उखाड़कर बर्बाद कर देते हैं। अपनी आजीविका को बचाने के लिए किसानों के पास उन बंदरों को मार कर भगाने के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं बचता है।
फसल के लिए उपलब्ध सीमित भूमि ने इलाक़े के अनगिनत किसानों को पशुपालन अपनाने की तरफ भेज दिया है। बेलोगुरी गांव में मुर्गीपालन करने वाली सपना घोष बताती हैं कि मवेशियों को पालने की अपनी चुनौतियां हैं। गांव के भीतर घुस चुकी जंगली बिल्लियों के लगातार हमलों के कारण उसके मुर्गीपालन व्यापार का आकार बहुत छोटा हो गया है। इसलिए उन्होंने अपनी मुर्गियों के लिए एक आश्रय बनवाया है और अपनी मेहनत पर पानी फेरने वाले उन शिकारी बिल्लियों को पकड़ने के लिए पिंजरे भी लगवाए हैं। सपना कहती हैं कि “मैं क्या कर सकती हूं? मैंने पिंजरा बनवाया और तीन जंगली बिल्लियों को पकड़ा। लेकिन पिछले कुछ दिनों से एक भी बिल्ली पकड़ में नहीं आई है। अब वे पिंजरे में नहीं घुसती हैं।”
इंसानों और जानवरों के बीच इस विवाद का मुख्य कारण भूमि पर किया जाने वाला क़ब्ज़ा है। द्वीप का तेज़ी से हो रहा क्षरण इसके निवासियों के बीच स्वामित्व और अस्तित्व के प्रश्न को उठा रहा है।
जैसा कि आईडीआर को बताया गया।
कीशम बलदेव सिंह असम के माजुली में SeSTA के इग्ज़ेक्युटिव हैं। सपना घोष असम के माजुली में मुर्गीपालन का काम करती हैं।
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असम के माजुली जिले में नुक्कड़ नाटक होते दिखाई देना एक आम बात है। यहां की संस्कृति बहुत ही समृद्ध है। ऐतिहासिक रूप से यह प्रदर्शन और कला का वह इलाका है जहां नव-वैष्णव पुनर्जागरण हुआ था। पहले ये नाटक धार्मिक विषयों पर आधारित होते थे। लेकिन इसके एक हालिया संस्करण में महिलाओं के भूमि अधिकार जैसे मुद्दे पर बात होते देखी गई।
महिलाओं द्वारा उनके भूमि अधिकारों का उपयोग न कर पाना माजुली की एक जटिल समस्या है। यहां के अधिकांश खेतिहर परिवारों के पास उस भूमि का मालिकाना हक़ नहीं है जिस पर वे खेती करते हैं। पितृसत्तात्मक सामाजिक ढांचे के कारण महिलाओं के पास पहले से ही ज़मीन का मालिकाना हक़ नहीं है। नतीजतन, ऐसे इलाक़ों में स्थिति और भी खराब हो जाती है जहां भूमि का स्वामित्व आमतौर पर सामान्य से अलग होता है।
माजुली ज़िले में काम कर रही एक समाजसेवी संस्था अयांग ट्रस्ट के फ़ील्ड कोऑर्डिनेटर प्रोनब डोले का कहना है कि “हालांकि खेतों में महिलाएं ही सबसे अधिक काम करती हैं लेकिन फिर भी ज़मीन उनके नाम पर नहीं होती है।” प्रोनब ने ऊपर ज़िक्र किए गए इस नाटक का डिज़ाइन तैयार करने में मदद की थी। माटी और महिला नाम से तैयार किया गया यह नाटक ज़मीन पर महिलाओं को मालिकाना हक़ मिलने की जरूरत पर बात करता है। थिएटर कलाकार, आदिथ ने समुदाय की भूमिहीन महिलाओं के अनुभवों को चित्रित करके और नाटक की अवधारणा बनाने में समुदाय के सदस्यों की मदद की है।
स्थानीय महिलाओं के अनुभवों को दिखाते हुए यह नाटक भूमि अधिकारों के महत्व को दर्शाता है। साथ ही, ज़मीन पर अपने कानूनी अधिकारों को सुरक्षित करने का प्रयास करते समय महिलाओं के सामने आने वाली चुनौतियों पर भी बात करता है। नाटक में भाग लेने वाले लोगों का मानना है कि इसने उन्हें ऐसे दर्शकों तक भी पहुंचाया है जो पर्चे या प्रजेंटेशन के माध्यम से इस विषय की महत्ता को समझने में असमर्थ थे।
नाटक पर काम करने वाली इसी समुदाय की एक अन्य सदस्य प्रोनामिका डोले कहती हैं कि “लोगों को नाटक समझने में आसानी हुई। दर्शकों ने हमें बताया कि इससे पहले उन्होंने भूमि अधिकारों के महत्व को लेकर कभी नहीं सोचा था। विशेष रूप से, विधवाओं और परित्यक्त महिलाओं के लिए जिनके पास अपनी आजीविका सुरक्षित करने का कोई साधन नहीं बचता है।” समुदाय की सकारात्मक प्रतिक्रिया से उत्साहित, नाटक के निर्माण में शामिल स्थानीय लोग भी अब इस क्षेत्र में महिलाओं के लिए भूमि अधिकारों को सुरक्षित करने में मदद कर रहे हैं। प्रोनामिका सरीखे समुदाय के सदस्यों ने भूमि अधिकार प्राप्त करने की प्रक्रिया को बेहतर ढंग से समझने के लिए स्थानीय सर्कल कार्यालय और जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण के तहत प्रशिक्षण प्राप्त किया। प्रोनामिका अब इन मामलों में मदद के लिए उनसे संपर्क करने वाले समुदाय के लोगों का मार्गदर्शन करती हैं।
जैसा कि आईडीआर को बताया गया।
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प्रोनामिका पेगू डोले लेकोप माजुली महिला किसान निर्माता कंपनी के निदेशकों में से एक हैं। प्रोनब डोले अयांग ट्रस्ट के फील्ड कोऑर्डिनेटर हैं।
नाटक माटी और महिला देखने के लिए इस लिंक पर जाएं।
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