तालाब पुनर्जीवन से आजीविका हासिल करता धीवर महिला समूह

तालाब में कुछ महिलायें_मछली पालन
जब हमने पहली बार तालाब के पट्टे के लिए ग्राम पंचायत से संपर्क किया तो उन्होंने कहा, ‘महिलाएं मछली कैसे पकड़ सकती हैं?’ | चित्र साभार: दुधराम मेश्राम

साल 2021 में, पूर्वी महाराष्ट्र में पड़ने वाले गांव बोरतोला और सांवरतोला की महिलाओं ने, मछली पालन के लिए ग्राम पंचायत से एक तालाब पट्टे (लीज़) पर लिया। हममें से ज्यादातर महिलाएं धीवर समाज से आती हैं जहां पारंपरिक रूप से मछली पकड़ने का काम पुरुष ही करते आए हैं। लेकिन कोरोना महामारी के दौरान, जब हमें ईंट-भट्ठे पर काम करने के लिए गांव छोड़ना पड़ा तो हमने भी आजीविका के लिए मछली पालन करने के बारे में सोचा।

बोरतोला का तालाब 4-5 सालों से सूखा पड़ा था। बीच में समुदाय के पुरुषों ने वहां मछली पालन की कोशिश की थी पर सफल नहीं हुए। लेकिन जब हमने यह काम हाथ में लिया तो तालाब में बेहतरी दिखने लगी। हर किसी को आश्चर्य हो रहा था कि हमने यह कैसे किया। तालाब पुनर्जीवन इसका जवाब है। 

जब हमने अपना काम शुरू किया तो फाउंडेशन फॉर इकनॉमिक एंड इकलॉजिकल डेवलपमेंट (फ़ीड) संगठन ने हमें तालाब की जैव विविधता को बनाए रखने का महत्व समझाया और हमें बताया कि इसे कैसे दोबारा जीवित किया जा सकता है। उस समय तालाब में कंटीली झाड़ियों और खरपतवार का क़ब्ज़ा था और हमें तालाब में पानी भरने से पहले इन्हें साफ़ करना था। इसके लिए हमने तालाब की तलहटी को ट्रैक्टर से जुतवाया और जलीय पौधे लगाए जिससे मछलियों को भोजन मिल सके और एक स्वस्थ तालाब तंत्र (इकोसिस्टम) तैयार हो सके। हमने खाद के लिए ज़मीन में गाय का गोबर, सुपरफास्फेट्स और यूरिया वग़ैरह भी मिलाया। इस तरह हमने मछली पालन के लिए तालाब तैयार किया।

जब बारिश हुई तो तालाब के पानी का रंग मटमैले भूरे से हरा (पानी पर तैरने वाले जलीय सूक्ष्मजीव, प्लैंकटन के कारण) हो गया। इससे हमें पता चला कि अब मछली के बीज डालने का समय आ गया है। हमने प्रमुख भारतीय क़िस्में रोहू, काला और मृगल जैसी मछलियों का पालन शुरू किया।

मछलियों को खाना खिलाने की ज़िम्मेदारी महिलाओं ने आपस में बांटी। हम उन्हें धान की भूसी के गोले और सरसों की खली खिलाते थे। हमारे दिए भोजन के अलावा, तालाब में मौजूद वनस्पतियों से मछलियों ने पोषण हासिल किया और बढ़ने लगीं। इतना ही नहीं बारिश के पानी के साथ देसी प्रजाति की कुछ ऐसी वनस्पतियां भी तालाब में पहुंची जो मछलियों के लिए फ़ायदेमंद थीं। इसी के साथ हमने तालाब में मछलियों की नई प्रजातियां भी देखीं।

तालाब की सेहत बनाए रखने के लिए यह सुनिश्चित करना ज़रूरी है कि एक मानक जल स्तर बना रहे। शुरूआत में, किसान अपने खेतों की सिंचाई के लिए तालाब से पानी लेते थे जिसके कारण जल स्तर गिरने लगा। इसके लिए, हमने पंचायत से बातचीत की और कुछ नियम तय किए जो बताते हैं कि किसान कितना पानी ले सकते हैं।

इस बीच, मछलियां बड़ी होने लगीं। यह परखने के लिए कि क्या मछलियां ठीक से बढ़ रही हैं या नहीं, या कहीं उन्हें और पोषक तत्वों की ज़रूरत तो नहीं हैं, हम हर हफ़्ते कुछ मछलियां पकड़ते हैं और उनका वजन करते हैं। अगर उनका वजन कम होता है तो हम पानी में और पोषक तत्व मिलाते हैं। पहले साल एक वयस्क मछली का वजन 500 ग्राम अधिक था। तालाब की अच्छी देखभाल के चलते दूसरे साल यह 2 किलोग्राम और तीसरे साल 3 किलोग्राम तक हो गया। फ़ीड संस्था के लोगों और समुदाय के पुरुषों ने हमें मछली पकड़ना सिखाया। पहले हम डर रहे थे क्योंकि मछली पकड़ने का मतलब था, सीने तक भरे पानी में उतरना और हमने पहले कभी ऐसा किया नहीं था। लेकिन हम जल्दी ही सीख गए।

हम बारी-बारी से अपने तालाब की रखवाली भी करते थे क्योंकि लोग बढ़ती हुई मछलियों को चुरा लेते हैं या जानवर भी उन्हें खा जाते हैं। इसलिए, क़रीब तीन महीने तक रात 9 बजे से रात 1 बजे तक टॉर्च और डंडा लेकर जाते थे और तालाब के किनारे बैठते थे। ऐसा तब तक चला जब तक मछलियां बेचने लायक़ नहीं हो गईं।

हम अपने समूह को सरस महिला मत्स्य उत्पादन टीम कहते हैं। जब हमने पहली बार तालाब के पट्टे के लिए ग्राम पंचायत से संपर्क किया तो उन्होंने कहा, ‘महिलाएं मछली कैसे पकड़ सकती हैं?’ उन्होंने यहां तक ​​कहा कि अगर हम तालाबों में उतरे तो पानी खराब हो जाएगा। लेकिन हम अपनी बात पर अड़े रहे और तीन साल की लीज़ हासिल की। अब हम इसे पांच साल तक बढ़ाना चाहते हैं। हमने तालाब को फिर से जीवित करने के लिए कड़ी मेहनत की है और चिंता है कि अगर इसे दूसरों को सौंपा गया तो वे इसे खराब कर सकते हैं। तब हमारी सारी मेहनत बेकार हो जाएगी।

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“दिन समय पर शुरू तो होता है लेकिन समय पर ख़त्म नहीं होता”

मेरा नाम किसनी काले है। मैं 29 साल की हूँ और मेरा घर मंगराली है जो महाराष्ट्र के भंडारा ज़िले में एक छोटा सा गाँव है। मैं पेंच में ग्रीन ऑलिव रिसॉर्ट के हॉस्पिटैलिटी विभाग में काम करती हूँ।तीन महिने पहले मुझे इस विभाग का कप्तान नियुक्त किया गया है। हॉस्पिटैलिटी की दुनिया में मेरी यात्रा 2017 में शुरू हुई थी जब मैंने पेंच में प्रथम के हॉस्पिटैलिटी कार्यक्रम में हिस्सा लिया था। उस साल प्रथम टीम में काम करने वाली भारती मैडम इस कार्यक्रम और नौकरी के बारे में उन लोगों से बात करने हमारे गाँव आई थीं जो काम के लिए गाँव से बाहर जाना चाहते थे। मैंने एक सत्र में हिस्सा लिया था जिसमें हमें इस काम की जानकारी और प्रशिक्षण के बारे में बताया गया और मुझे इस काम में रुचि थी। अपने प्रशिक्षण से पहले मैं अपने परिवार के खेत में काम करने के साथ साथ थोड़ा बहुत सिलाई का काम भी करती थी।

मैं दिन में 12–13 घंटे काम करती थी लेकिन मुझे बुरा नहीं लगता था क्योंकि मैं कुछ सीख कर जीवन में आगे बढ़ना चाहती थी।

प्रथम में अपने दो महीने के प्रशिक्षण के दौरान मैंने मेहमानों से सहजता और आत्मविश्वास के साथ बात करना सीखा। इसके अलावा मैंने उनके सामने अपनी बात रखने और हॉस्पिटैलिटी के विभिन्न पहलू जैसे टेबल सर्विस और कमरे के साफ़-सफ़ाई के बारे में भी जाना। मेरे साथ 20 लोगों ने प्रशिक्षण लिया था। प्रशिक्षण ख़त्म होने के बाद मैंने चंद्रपूर के एनडी होटल में एक प्रशिक्षु सहायक के रूप में काम शुरू कर दिया। उस होटल में छः महीनों के दौरान मैंने खाना और पानी परोसने, मेहमानों से बात करने के अलावा और भी कई तरह के काम किए। चूँकि मैं इस काम में नई थी इसलिए मुझे मेहमानों से खाने का ऑर्डर लेने का काम नहीं मिला था। मैं दिन में 12–13 घंटे काम करती थी लेकिन मुझे बुरा नहीं लगता था क्योंकि मैं कुछ सीख कर जीवन में आगे बढ़ना चाहती थी। दरअसल होटल उद्योग में एक कहावत है: आने का समय है लेकिन जाने का समय नहीं है। 

एनडी होटल के बाद वाली नौकरियों में मैंने बैंक्वेट संभालना और रूम सर्विस का काम सीखा। जल्द ही मुझे सीनियर कप्तान बना दिया गया था। सीनियर कप्तान के नाते मैं खाने का ऑर्डर लेती थी, कर्मचारियों के प्रबंधन का काम करती थी और ग्राहकों से बातचीत करती थी। इस तरह के कौशल होने के कारण ही 2020 में मुझे ग्रीन ऑलिव रिज़ॉर्ट में कप्तान की नौकरी मिल गई।

सुबह 7.00 बजे: चूँकि महामारी का प्रकोप अब भी है इसलिए हर सुबह मेरा काम कर्मचारियों के शरीर का तापमान, मास्क और सेनीटाइज़र की जाँच करना होता है। इसके बाद ही हमारा दिन शुरू होता है। एक कप्तान के रूप में मेरी ज़िम्मेदारी अपने 12–13 सहकर्मियों को उस दिन का काम समझाने की होती है। मैं सूची में आरक्षण के आधार पर उस दिन सुबह नाश्ते, दोपहर के खाने और रात के खाने में आने वाले मेहमानों की संख्या देखती हूँ। इसके बाद रसोई और सफ़ाई कर्मचारियों द्वारा किए जाने वाले कामों की स्थिति का जायज़ा लेना और उस दिन पहले से तय कार्यक्रमों की ज़िम्मेदारी लेना भी मेरे काम का हिस्सा होता है। टीम के सभी सदस्यों के इकट्ठा हो जाने के बाद मैं उन में से हर एक को उनका काम सौंपती हूँ।

सुबह होने वाली हमारी बैठक के बाद हम नाश्ते की तैयारी में लग जाते हैं। मैं रिसेप्शन जाकर उस दिन चेक-इन और चेक-आउट करने वाले मेहमानों की संख्या का पता लगाती हूँ। इस आधार पर हम लोग नाश्ते के लिए आने वाले लोगों की संख्या का अनुमान लगाते हैं। एक अनुमानित संख्या मिल जाने के बाद हम खाने वाले हॉल की साफ़-सफ़ाई का काम शुरू होता है और रसोई में काम कर रहे लोगों को इसकी जानकारी दी जाती है।

किसनी खाना परोसते हुए- हॉस्पिटैलिटी सेक्टर कोविड-19
पहले मुझे बातचीत करने में झिझक होती थी लेकिन अब मैं हर दिन नए लोगों से मिलती और उनसे बात करती हूँ। | चित्र साभार: प्रथम

सुबह 11.30 बजे: नाश्ते की भीड़ छँट जाने के बाद हम दोपहर के खाने की तैयारी में लग जाते हैं। दोपहर के खाने के लिए मेनू नहीं होता है (खाना बफे शैली में परोसा जाता है), और होटल के मेहमान सीधे बैंक्वेट हॉल में आकर खाना खाते हैं। इसलिए मैं खाना खाने वाले मेहमानों की संख्या और उनके ठहरने वाले कमरे की जानकारी वाली एक सूची तैयार करती हूँ। मेहमानों की गिनती करने के दौरान मैं अपने सहकर्मियों और रसोई में कर्मचारियों के कामों पर भी ध्यान रखती हूँ ताकि सब कुछ व्यवस्थित ढंग से चलता रहे। 

बैंक्वेट में दोपहर के खाने के दौरान ही हमें रूम सर्विस वाले कर्मचारियों को काम पर लगाना पड़ता है। उनका काम यह देखना है कि अपने कमरे में ही खाना मँगवा कर खाने वाले मेहमानों को समय पर सारी सुविधाएँ मिल रही हैं या नहीं। सहकर्मियों का एक दूसरा समूह मेहमानों को होटल द्वारा दिए जाने वाले विभिन्न प्रकार के पैकेज की जानकारी देना और उनके सवालों का जवाब देने के काम में लगा रहता है। मैं इन दोनों ही प्रकार के सहकर्मियों के कामों का निरीक्षण करती हूँ। 

दोपहर 1.00 बजे: मेहमान के दोपहर का खाना खाने या बाहर जाने के दौरान हम लोग कमरे की सफ़ाई से जुड़ा सारा काम निबटाते हैं। इसमें कमरे और बाथरूम की सफ़ाई, चादर और तकिए के खोल को बदलना और कमरे में मौजूद चाय-कॉफ़ी और खाने की चीजों को फिर से रखने का काम शामिल होता है। कोविड-19 के कारण हाउसकिपींग और सेनेटाईजेशन का काम और भी ज़्यादा महत्वपूर्ण हो गया है। हम कोविड-19 से जुड़े सभी सरकारी निर्देशों का पालन करते हैं जिसमें काम के समय सभी कर्मचारियों का दस्ताने पहनना, सेनेटाईजर का इस्तेमाल, और उचित दूरी शामिल है। 

दोपहर 3.00 बजे: हर दिन दोपहर 3 बजे से 7 बजे तक का समय हमारे आराम का समय होता है। इस दौरान मैं अपने दोपहर का खाना खाती हूँ और अपने कमरे में जाकर आराम करती हूँ। इससे भी ज़्यादा ज़रूरी मेरे लिए इस समय अपनी बेटी नव्या को फ़ोन करना होता है। मैं हर दिन शाम  4 बजे उसे फ़ोन करती हूँ। वह पिछले आठ सालों से गाँव में मेरे माँ-पिता के साथ रह रही है और हर दिन दोपहर इस समय बेसब्री से मेरे फ़ोन का इंतज़ार करती है। लगभग एक घंटे तक हम दोनों हर चीज़ के बारे में बात करते हैं—जैसे कि हम दोनों ने उस दिन क्या किया, हमने क्या खाया या ऐसी कोई भी नई बात जो हमें एक दूसरे को बतानी होती है। मैं अपने काम से जुड़ी हर बात उसे बताती हूँ। वह हॉस्पिटैलिटी की दुनिया में होने वाले कामों के बारे में सब कुछ जानती है और अब तो वह बड़ी होकर होटल प्रबंधन के क्षेत्र में काम भी करना चाहती है!

शाम 7.00 बजे: हम रात के खाने की तैयारी के लिए होटल वापस जाते हैं। इस समय का काम दोपहर के खाने के समय किए जाने वाले काम के जैसा ही होता है। यह हमारे उस दिन का अंतिम सत्र होता है जो शाम से शुरू होकर देर रात तक चलता है। यह समय दरअसल इस पर निर्भर करता है कि उस शाम होटल ने क्या-क्या कार्यक्रम आयोजित किए हैं। आमतौर पर हमारा काम रात के 11-11.30 तक ख़त्म हो जाता है। 

रात 11.30 बजे: मैं होटल के उस कमरे में जाती हूँ जहां मेरे अलावा कुछ और लोग भी रहते हैं। काम पर हम आपस में पेशेवर रिश्ता रखते हैं लेकिन इस कमरे में हम एक दूसरे के दोस्त बन जाते हैं। एक कप्तान के रूप में मैंने इस रिश्ते की गरिमा बनाए रखी है ताकि मेरी टीम के लोग मेरा सम्मान करें। अगर कोई ढंग से काम नहीं करता है तब मैं उसे प्यार से समझाती हूँ। मैं कभी इन लोगों पर चिल्लाती नहीं हूँ। 

मैं होटल में आने वाले मेहमानों को यह बताना चाहती हूँ कि उन्हें होटलों में काम करने वाले लोगों का सम्मान करना चाहिए

जब मैं होटल उद्योग में अपने काम के बारे में सोचती हूँ तब मुझे गर्व महसूस होता है। मैं पहले बहुत शर्मीले स्वभाव की इंसान थी लेकिन अब मैं हर दिन नए लोगों से मिलती और बात करती हूँ। मैं बिना किसी दूसरे पर निर्भर हुए अपने परिवार का ख़्याल रख सकती हूँ और अपनी बेटी के लिए आदर्श बन सकती हूँ। दरअसल मेरे गाँव में लोग अब यह मानने लगे हैं कि मेरा काम अच्छा काम है। लॉकडाउन में सभी होटल बंद हो गए थे इसलिए मुझे अपने गाँव वापस लौटना पड़ गया था। उन दिनों मैं अपने परिवार के खेतों में दोबारा काम करने लगी थी। इसके अलावा आर्थिक रूप से मुश्किल में फँसे लोगों की मदद करने के लिए मैंने मुफ़्त में ही उनके कपड़े भी सिले थे। उन लोगों से बातें करते समय मैं उन्हें अपने होटल की तस्वीरें दिखाती थी और उन्हें अपने काम के बारे में बताया करती थी। जब वे मेरा काम समझ गए तब उन्हें यह कम्पनी के काम और सरकारी नौकरी से बेहतर लगने लगा!

आज मैं जानती हूँ कि मुझे अपना जीवन हॉस्पिटैलिटी उद्योग में ही बनाना है। मैं अपना ख़ुद का रेस्तराँ भी खोलना चाहती हूँ ताकि मैं इस उद्योग में ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को रोज़गार दे सकूँ जैसे मुझे मिला है। मैं होटल में आने वाले मेहमानों को यह बताना चाहती हूँ कि उन्हें होटलों में काम करने वाले लोगों का सम्मान करना चाहिए—हम भी शहर में रहने वाले लड़के और लड़कियों जैसे ही हैं—और हम लोगों से भी उसी तरह बात की जानी चाहिए। 

जैसा कि आईडीआर को बताया गया।

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