आजीविका
July 27, 2022

युवाओं की ज़रूरतों को नहीं, उनकी इच्छाओं को समझना

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अशोक द्वारा समर्थित
एक युवा भारतीय केवल आमदनी के लिए रोज़गार नहीं चाहता है बल्कि वह स्वस्थ माहौल में ऐसा काम करना चाहता है जो उसके उज्जवल भविष्य की योजनाओं में मददगार हो।
9 मिनट लंबा लेख

भारत के पास दुनिया भर के कुल युवाओं का पांचवां हिस्सा है और इसके साथ ही दुनिया का सबसे बड़ा युवा कार्यबल भी है। कामकाज के लायक़ युवाओं की इतनी बड़ी संख्या को काम पर लगाने के लिए देश को बड़े स्तर पर रोज़गार के अवसर पैदा करने की जरूरत है। इससे भी अधिक ज़रूरी इस पीढ़ी की इच्छाओं और महत्वाकांक्षाओं पर आर्थिक, सामाजिक, तकनीकी और स्थिति के अनुसार नज़रिया रखकर विचार करना है।

आर्थिक आत्म निर्भरता से स्वतंत्रता और स्वाभिमान आता है

आज के युवाओं के लिए धन कमाना और इससे मिलने वाली आर्थिक स्वतंत्रता एक बड़ी बात है—इससे इन्हें अपने जीवन से जुड़े फ़ैसले लेने का अधिकार और आज़ादी मिलती है। महिलाओं के लिए यह विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि आर्थिक रूप से सक्षम होने पर वे शादी और बच्चे पैदा करने जैसे फ़ैसलों को लेकर अपने परिवार से बातचीत कर सकती हैं। इसके साथ ही व्यक्तिगत और पेशेगत स्थितियों में कुछ हद तक अपनी शक्ति और प्रभाव का इस्तेमाल कर सकती हैं।

पैसे कमाने को सम्मान और तरक्की का साधन भी माना जाता है। जब कोई युवा कमाई करने लगता है तो वह अपने आप ही परिवार के अन्य सदस्यों के सम्मान और विश्वास का पात्र बन जाता है।

आज युवा के लिए पैसे कमाना एक शुरूआत भर है। इसके अलावा तमाम ऐसी वजहें हैं जिन्हें ध्यान में रखकर युवा वर्ग कामकाज के मौक़े खोजता या करियर के विकल्प चुनता है।

युवा क्या चाहते हैं?

1. युवा अपने घर के नज़दीक उपलब्ध अवसरों का चुनाव कर रहे हैं

बड़े पैमाने पर युवाओं को यह अहसास होने लगा है कि रोज़गार के लिए किसी बड़े शहर में बसने से उनकी आय का एक बड़ा हिस्सा रोज़मर्रा की ज़रूरतों पर खर्च हो जाता है। इसके कारण उनके पास बचत करने या भविष्य के लिए निवेश करने के नाम पर बहुत थोड़ा कुछ ही बच पाता है। भारत के किसी शहर में काम करते हुए यदि उनकी मासिक आय 8,000–10,000 रुपए भी होती है तब भी उन्हें लगभग दिहाड़ी मज़दूरों जैसा जीवन जीना पड़ता है।

वहीं, बड़े शहरों के विस्तार के बाद या गांव से शहर में विकसित हो रहे (पेरी-अर्बन) इलाक़ों में मिलने वाला वेतन शहरों के मुक़ाबले उतना कम भी नहीं होता है। इन क्षेत्रों में रिटेल और सर्विस सेक्टर से जुड़ी नौकरियों में लगभग बराबर ही पैसे मिलते हैं। टियर-I और टियर-III शहरों में काम करने वाले युवा महीने में 6,000–8,000 रुपए कमाते हैं, वे अपने गांव के नज़दीक रहते हैं और रहन-सहन पर कम खर्च होने के कारण अच्छी बचत कर लेते हैं। इसलिए हम युवाओं के एक बड़े तबके को पेरी-अर्बन इलाकों की ओर रुख़ करते देख रहे हैं। पेरी-अर्बन इलाक़े, न तो शहरी हैं और न ही पूरी तरह से ग्रामीण बल्कि ये वो इलाक़े हैं जहां रोज़गार के नए अवसर बढ़ रहे हैं।

हम देख रहे हैं कि पेरी-अर्बन इलाक़ों में जहां रोज़गार के मौक़े बढ़ रहे हैं, वहीं शहरी क्षेत्र अब भी पहले से मौजूद उद्यमों का मुख्य केंद्र है। उन्हीं के विस्तार का काम पेरी-अर्बन इलाक़ों में हो रहा है। कोविड-19 महामारी से पहले डोमिनोज, सबवे और पिज़्ज़ा हट जैसे वैश्विक फ़ूड चेन और रिलायंस, वेस्टसाइड और डीमार्ट जैसे रिटेल ब्रांड्स ने भी इन इलाक़ों में अपनी शाखाएं शुरू कर दीं थीं। पेरी-अर्बन इलाक़ों में उपलब्ध मौक़ों और बेहतर जीवन की चाह के चलते युवा इन इलाक़ों को तवज्जो देने लगे हैं।

ज़रूरी नहीं है कि छात्र अपने जीवन में जो करना चाहते हों वह उपलब्ध रोज़गार से जुड़ा हुआ ही हो।

महामारी ने युवाओं के चयन की जटिलता को थोड़ा और बढ़ा दिया है। परिवार के लोग सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए अब अपने बच्चों को नौकरी के लिए बहुत दूर नहीं जाने देना चाहते हैं। महामारी के दिनों में तकनीक के क्षेत्र में मांग बढ़ने के कारण इलेक्ट्रॉनिक्स एसेंबली से संबंधित नौकरियों में उल्लेखनीय तेज़ी आई। इससे ख़ासकर मैन्युफ़ैक्चरिंग के क्षेत्र में प्रशिक्षण प्राप्त आईटीआई छात्रों के लिए रोज़गार के बढ़िया मौके पैदा हुए हैं। हालांकि यह मौक़े उन कारख़ानों में है जो औद्योगिक केंद्र बन चुके बड़े शहरों में स्थित हैं। लेकिन उनमें काम करने के लिए घर से बाहर जाना पड़ेगा जहां अब माता-पिता अपने बच्चों को भेजना नहीं चाहते हैं। इसलिए कम आमदनी के बावजूद माता-पिता उन्हें इस तरह की नौकरियां करने के लिए हतोत्साहित करते हैं। नतीजतन, एक तरह के विरोधाभास की स्थिति बनने लगी है।

2. पहली नौकरी मनचाहे करियर के लिए एक नींव भर है

ज्यादातर संगठन जो युवाओं को किसी काम में कुशल बनाने का कार्य करते हैं, वे नौकरी ढूंढने पर केंद्रित होते हैं। लेकिन ज़रूरी नहीं है कि छात्र अपने जीवन में जो करना चाहता है, वह उपलब्ध रोज़गार के मौक़ों से ही संबंधित हो।

उदाहरण के लिए, अगर सर्विस या मैन्युफ़ैक्चरिंग सेक्टर में नौकरियां उपलब्ध हैं तो युवा इन नौकरियों को अपने मनचाहे करियर तक पहुंचने का आधार बना लेते हैं। अक्सर वे कहते मिल सकते हैं कि ‘मैं नर्स बनना चाहती हूं लेकिन मैं कैफ़े कॉफ़ी डे के इस आउट्लेट में नौकरी करुंगी ताकि पैसे कमा सकूं। ऐसा करते हुए मैं यह सीख सकती हूं कि लोगों से कैसे व्यवहार करना है। मैंने हेल्थकेयर प्रोफेशनल के तौर पर काम करने के लिए पढ़ाई की है और जब तक मैं वह नहीं बना जाती यह काम करती रहूंगी।’ इस तरह पहली नौकरी एक ट्रांज़िशन जॉब है। यह थोड़े पैसे कमाने की शुरूआत भर है जिससे युवा मनचाहे करियर गोल तक पहुंचने के दौरान अपना खर्च उठा सकें और अपने परिवार की मदद कर सकें।

युवा और उनका परिवार दोनों ही उनके लिए ऐसे क्षेत्रों में रोज़गार चाहते हैं जहां उन्हें लोगों से मिलने-जुलने की बजाय मशीन और कम्प्यूटर के साथ समय बिताना पड़े। | चित्र साभार: क्वेस्ट अलाइयन्स

3. युवा भावी पीढ़ी के लिए अपना योगदान देना चाहते हैं

बहुत सारे युवाओं के लिए यह गरिमामय और आत्मसम्मान बढ़ाने वाली बात होती है जब वे अपने समुदाय और सीखने की जगहों की मदद करने में सक्षम हो पाते हैं। इसका एक उदाहरण वह छात्र है जो बेकर बन गया और उसने उसी संस्थान में वापस लौटकर सभी नए छात्रों के लिए पेस्ट्री बनाई जहां उसने पढ़ाई की थी। इससे छात्रों को ऐसा महसूस होता है कि वे अपने संस्थान को कुछ वापस लौटा रहे हैं और यह नेकी की श्रृंखला बनाने जैसा है।

वे ऐसा इंसान बनना और दिखना चाहते हैं जो केवल अपने करियर के बारे में ही नहीं बल्कि अपने समुदाय के बारे में भी सोचता है। इसलिए लोग अब ‘अपनी, अपने परिवार, अपने करियर और अपने समुदाय’ वाले विचार के बारे में बात करने लगे हैं। एक संगठन के तौर पर हमें उन पहलुओं को साथ जोड़ने के लिए काम करना चाहिए जिन्हें एक युवा आजीविका तक पहुंचने के अपने सफ़र का हिस्सा मानता है।

4. शहरी युवा अब सरकारी नौकरियों पर उतने निर्भर नहीं है

भारत के गांवों और पेरी-अर्बन क्षेत्रों का युवा सरकारी नौकरियों की परीक्षाओं में सफल होने की आशा के साथ लगभग तीस साल की उम्र तक पढ़ाई में लगा रहता है। लेकिन शहरों में ऐसा कम देखने को मिलता है क्योंकि शहर के युवाओं को ऐसे निजी क्षेत्रों में मौके दिखाई पड़ते हैं जहां पहले से उनके साथी काम कर रहे होते हैं।

इन क्षेत्रों में तरक्की का एक निश्चित क्रम है। खुद युवा और उनके परिवार, दोनों ही उनके लिए ऐसी नौकरियां चाहते हैं जहां उन्हें इंसानों के साथ काम करने के बजाय मशीनों और कम्प्यूटर पर काम करने को मिले। इन क्षेत्रों में काम करने वालों के लिए कम्प्यूटर पर काम करना सम्मान का एक लगभग नया पैमाना बन चुका है। यदि आप अपने लोगों को यह बताते हैं कि आप कम्प्यूटर पर काम करते हैं तो उनकी नज़रों में आपकी उपलब्धि बड़ी होती है। अब ज़्यादातर लोग वे नौकरियां नहीं करना चाहते हैं जिसमें लोगों से मिलने-जुलने की ज़रूरत पड़े। इन नौकरियों में अधिक ऊर्जावान और बातचीत में माहिर होने की ज़रूरत होती है। यह एक ऐसी योग्यता है जो ज्यादातर लोगों में नहीं होती है।

5. तकनीक ने अपने करियर की राह खोजने के लिए एक अलग माहौल दे दिया है

क्वेस्ट अलाइयन्स में हमने युवाओं को कुछ भी सीखने के लिए तकनीक का उपयोग करते हुए देखा है। तकनीक उन्हें ऐसे कौशलों के चुनाव का विकल्प देती है जिसके बारे में उन्हें दूसरों से पूछने-जानने में हिचकिचाहट हो सकती है। साथ ही इससे वे शिक्षकों, माता-पिता और सहयोगियों से मिल सकने वाली आलोचना से भी बच जाते हैं। तकनीक से उन्हें ऐसी चीजों को सीखने और उनका अभ्यास करने में मदद मिलती है जिन्हें समझना कठिन होता है या जिसके उत्तर मुश्किल होते हैं। हम लोगों ने समय के साथ युवाओं और तकनीक के संबंधों को बदलते देखा है। पहले वे परिवार के सदस्यों के साथ साझा डिवाइस इस्तेमाल करते थे जहां निजता और निगरानी एक प्रमुख मुद्दा था। अब इन युवाओं के पास अपनी डिवाइसेज हैं जिस पर वे नॉलेज और कॉन्टेंट तैयार करते हैं। इतना ही नहीं, इसे वे और लोगों के साथ बांट रहे हैं और इन्फ़्लूएंसर्स बन रहे हैं।

तकनीक के इस्तेमाल में हुई इस बढ़त के कुछ नुक़सान भी हैं। कई क्षेत्रों में ऐसे नए रोज़गार सृजित किए जा रहे हैं जिसमें ग्राहक सम्पर्क और ग्राहक सेवा शामिल होता है। वर्चुअल दुनिया में सम्पर्क करने वाली चीजों के लिए एक कम्प्यूटर, फ़ोन या इंटरनेट नेटवर्क की ज़रूरत होती है। अब भी युवा वर्ग के एक बड़े तबके के पास डिजिटल रूप से जुड़ने का साधन उपलब्ध नहीं है जिसके कारण वे ऐसी नौकरियों तक नहीं पहुंच पाते हैं। आर्थिक और सामाजिक रूप से यह महिलाओं के लिए ख़ासतौर पर मुश्किल है। उनके पास न केवल डिवाइस नहीं होती हैं बल्कि उन्हें परिवार के अविश्वास का भी सामना करना पड़ता है। अमूमन परिवार के सदस्य यह मानते हैं कि औरतों के लिए इंटरनेट का इस्तेमाल करना सुरक्षित नहीं है।

6. युवा वर्ग अस्थायी या अनियमित रूप से मिलने वाला काम नहीं करना चाहता है

कोविड-19 के बाद से लॉजिस्टिक्स, ई-कॉमर्स, लास्ट-माइल डिलीवरी और डोमेस्टिक सपोर्ट जैसे कुछ उद्योगों में वृद्धि देखी गई है। लेकिन युवा अब इस तरह की नौकरियां नहीं करना चाहता है।
 दिलचस्प बात यह है कि गिग इकॉनमी (अस्थायी या फ्रीलांस कामकाज) को युवाओं के सामने ऐसे मौक़ों की तरह रखा जाता है जिससे वे छोटे स्तर के उद्यमी बन सकते हैं। वे अपना स्वयं का व्यवसाय शुरू कर सकते हैं और अगर उनमें संवाद की कला और डिजिटल दुनिया का ज्ञान है तो वे ऑनलाइन प्रतिष्ठा के साथ-साथ ठीक-ठाक पैसा भी कमा सकते हैं। इस तरह के रोज़गारों को एस्पिरेशनल जॉब्स या महत्वाकांक्षी कामकाज के रूप में पेश किया जाता है।

रोज़गार का चयन अब पूरी तरह से आर्थिक फ़ैसला नहीं रह गया है।

ज़्यादातर लोग बहुत अधिक ऊर्जा और उत्साह के साथ अपना कामकाज शुरू करते हैं। जैसे ही एलगोरिदम बनने लगता है वैसे ही उन्हें अपनी आय में कमी आते दिखने लगती है और साथ ही उनके काम पर से उनका नियंत्रण भी कम होने लगता है। उन्हें कुछ विकल्पों के चुनाव के लिए बाध्य किया जाता हैजैसे गाड़ी आदि ख़रीदने के लिए ऋण लेना, काम के घंटे बढ़ाना, अवकाश नहीं लेना क्योंकि इससे उनकी रेटिंग और आय पर असर पड़ सकता है। इन सबके वित्तीय और सामाजिक अर्थ हैं।

अधिकतर लोगों को नौकरी शुरू करते समय इन बातों का ज़रा भी अहसास नहीं होता है। उन्हें आय की बड़ी राशि दिखाकर प्रभावित कर लिया जाता है। लेकिन समय के साथ एलगोरिदम कंट्रोल के कारण उनके जीवन की गुणवत्ता और आय दोनों में कमी आने लगती है। हाल के समय में भी युवाओं ने इस तरह की समस्या को देखा-सुना है। इसके चलते इस तरह की नौकरियां अब उनका पहला चुनाव नहीं होती हैं।

हमें युवाओं की इच्छा नहीं बल्कि उनकी ज़रूरतों को समझने की ज़रूरत है

यह समझने की कोशिश करते हुए कि आज युवा किस तरह से आजीविका का चयन करता है, संस्थाओं और युवाओं के साथ काम करने वाले दानकर्ताओं के लिए यह ज़रूरी है कि वे बदलते परिदृश्य को समझें। हमारे कुछ दानकर्ता पूछते हैं कि युवा बढ़ती आय वाले विकल्पों का चयन क्यों नहीं करता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि अब नौकरी करना केवल एक आर्थिक निर्णय भर नहीं रह गया है। युवा जानना चाहते हैं कि यह कोई सम्मानित काम है या नहीं, काम का माहौल अच्छा है या नहीं और उनके साथी मददगार हैं या नहीं।

रोज़गार के क्षेत्र में काम करने वाली हमारे जैसी कई स्वयंसेवी संस्थाओं ने पीछे मुड़कर टटोला कि किन चीजों ने सफलता दिलाई। अगर यह आय में बढ़त से कुछ ज्यादा है तो क्या हमें यह देखने की ज़रूरत है कि युवा अपने लॉन्ग-टर्म करियर गोल तक पहुंच पा रहा है या नहीं? युवाओं के मुताबिक़ उनकी तरक्की पहली नौकरी से नहीं होने वाली है, यह अपने लक्ष्यों और आकांक्षाओं को लेकर साफ नज़रिया रखने और उन्हें पूरा करने के लिए विपरीत परिस्थितियों में काम करने से हासिल होगी।

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लेखक के बारे में
आकाश सेठी
आकाश सेठी को शिक्षा और युवा रोज़गार कार्यक्रमों के क्षेत्र में 20 वर्ष से अधिक का अनुभव है। वह विकास के लिए कॉर्पोरेट जिम्मेदारी और प्रौद्योगिकी में ज्ञान निर्माण और नीति वकालत के लिए नेटवर्क विकास के काम से जुड़े हुए हैं। वह क्वेस्ट अलाइयन्स के संस्थापक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं। क्वेस्ट अलाइयन्स बच्चों और युवाओं के लिए स्व-शिक्षण मार्ग विकसित करने के लिए स्कूलों और व्यावसायिक प्रशिक्षण में प्रौद्योगिकी के उपयोग को बढ़ावा देता है।