अगर आप काम पर किसी को व्हीलचेयर, हियरिंग एड (सुनने वाली मशीन) या किसी भी तरह का सहारा देने वाली मशीन का इस्तेमाल करते हुए देखते हैं तो आप इस बात को लेकर आश्वस्त हो जाते हैं कि वह आदमी विकलांग है। लेकिन सभी तरह की विकलांगता को आँखों से देखना संभव नहीं है। अदृश्य विकलांगता एक ऐसी व्यापक शब्दावली है जो सभी किस्म की अदृश्य अक्षमता या चुनौतियों को अपने अंदर समाहित करती हैं जिनकी प्रकृति मुख्य रूप से तंत्रिका संबंधी (न्यूरोलोजिकल) है।
ऑटिज्म स्पेक्ट्रम विकार, अवसाद, मधुमेह, और सीखने और सोचने में कठिनाई वाली बीमारियाँ जैसे अटेन्शन डेफ़िसिट हाइपरएक्टिविटी रोग (एडीएचडी) और डिस्लेक्सिया आदि अदृश्य विकलांगता के उदाहरण हैं। इस तरह की अदृश्य विकलांगता किसी भी व्यक्ति के काम, निजी और सामाजिक जीवन की रफ्तार को कम कर सकती है या उसमें बाधा पहुंचा सकती है। इस तरह की चुनौतियों को केवल किसी व्यक्ति की चिकित्सीय परेशानी के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। इन्हें सामाजिक दृष्टिकोण के हिसाब से भी देखा जाना चाहिए क्योंकि इसमें उस व्यक्ति के आसपास का वातावरण जिसमें उसके काम वाली जगह भी शामिल हैं, उसकी स्थिति को और बदतर या बेहतर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार कोविड-19 आपातकालीन प्रतिक्रिया प्रयासों के लिए स्वास्थ्य कर्मचारियों की तत्काल तैनाती होने लगी। इस तैनाती से मानसिक बीमारी से पहले से पीड़ित लोगों के लिए मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं के प्रावधान कमजोर होने लगे। मसलन विक्षिप्तता (डिमेन्शिया) से पीड़ित लोगों को महामारी के दौरान अधिक मदद की जरूरत थी क्योंकि उन्हें कोविड-19 से जुड़ी दिशानिर्देशों को याद रखने और उनका पालन करने में परेशानी होती थी। इसके अलावा कंपनियों में लोगों को काम से निकालने और उनके वेतन में कटौती करने; काम की जगह का पूरी तरह से डिजिटलीकरण होने और इसलिए कई लोगों तक उसकी पहुँच में कमी आने; लंबे समय तक अकेले रहने और सामाजिक दूरी का पालन करने आदि का प्रभाव भी इस पर पड़ा है। यह कहने की जरूरत नहीं है कि शोध की कमी के कारण हम अब भी यह नहीं जानते हैं कि मानसिक बीमारी से ग्रस्त लोगों पर कोविड-19 की दवाइयों का क्या और कैसा दुष्प्रभाव हो सकता है। इन सभी कारकों का लोगों पर मनोवैज्ञानिक असर पड़ा है और विकलांग लोग इससे अपेक्षाकृत अधिक प्रभावित हुए हैं।
देश के सभी दफ्तर और काम करने की जगहें दोबारा खुलने लगी हैं। इसलिए ऐसी नई रणनीतियों पर काम करना बहुत जरूरी हो गया है ताकि उनकी मदद से पहले से अधिक सहायक कार्यस्थल बनाए जा सकें। यह विशेष रूप से जरूरी है क्योंकि अक्सर लोग अपनी अक्षमताओं के बारे में दूसरों को नहीं बताते हैं। उन्हें यह डर होता है कि उनके बारे में उनके सहयोगियों का नज़रिया बदल जाएगा और साथ ही इसका असर संगठन के अंदर उनकी पेशेवर यात्रा पर भी पड़ेगा।
अमरीका में सेंटर फॉर टैलंट इनोवेशन द्वारा 2017 में आयोजित एक अध्ययन के अनुसार व्हाइट-कॉलर कर्मचारियों का लगभग 30 प्रतिशत हिस्सा अदृश्य अक्षमता से ग्रसित है। अक्सर इसपर किसी का ध्यान तब तक नहीं जाता है जब तक कि लोग खुद इसके बारे में खुलकर बात नहीं करते हैं। दुर्भाग्यवश, भारत में इससे जुड़ा किसी तरह का पर्याप्त आंकड़ा नहीं है इसलिए हम समस्या की व्यापकता से अवगत नहीं हैं। हमें सिर्फ इतना मालूम है कि जब बात हमारे आसपास के लोगों की अक्षमता के कारण उनके जीवन में आने वाली रोज़मर्रा की परेशानियों की आती है तब हम अमूमन इससे अनजान होते हैं। उदाहरण के लिए, थकान की अपनी पुरानी बीमारी के कारण जब कोई आदमी काम के बीच में कुछ मिनटों का आराम चाहता है तब हम उसे आलसी समझ लेते हैं। समस्या की जड़ को समझने और उस हिसाब से ही नीतियों को बनाकर हम लोगों के लिए अधिक सहायक वातावरण तैयार कर सकते हैं।
हम यहां उन कुछ तरीकों के बारे में बता रहे हैं जिससे कोई भी संगठन अदृश्य अक्षमता से ग्रसित अपने कर्मचारियों के लिए एक समावेशी कार्यस्थल तैयार कर सकता है।
संगठनों को समावेशीकरण से जुड़ी सामयिक सूचना और जागरूकता सत्रों से परे जाने की आवश्यकता है और इसके बजाय इन्हें ठोस कार्यान्वयन योग्य उपायों को व्यवहार में लाना चाहिए। इनमें अक्षम लोगों के साथ बातचीत करते समय उपयुक्त और संवेदनशील शिष्टाचार और संचार पर कर्मचारियों को प्रशिक्षित करने के लिए आंतरिक कार्यशाला और नीतियाँ शामिल होनी चाहिए। फिर इन प्रयासों को लगातार प्रतिक्रिया व्यवस्था के आधार पर सुदृढ़ किए जाने की भी जरूरत है।
संगठन साथी वाली व्यवस्था का निर्माण भी कर सकते हैं जिसमें कर्मचारियों को अपने विकलांग सहयोगियों के साथ मिलकर एक जोड़ा बनाना होता है। इस व्यवस्था में दो कर्मचारी अपनी आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए एक अनुकूल, आरामदायक कार्यस्थल बनाने के लिए एक दूसरे के साथ काम करते हैं। जहां वे एक दूसरे से किसी भी मुद्दे या सवाल को लेकर बात कर सकते हैं। इस तरह का सहयोगी नेटवर्क तैयार करने से अक्षम कर्मचारियों को संगठन में बनाए रखने की दर को बढ़ाया जा सकता है।
इन उपायों से कंपनी में एक बेहतर स्वीकृति के निर्माण में मदद मिल सकती है और साथ ही अदृश्य अक्षमताओं से ग्रसित लोगों के लिए एक आरामदायक माहौल तैयार किया जा सकता है ताकि वे अपनी समस्याओं के बारे में और अधिक खुलकर बात कर सकें।
ऐसी संभावना है कि ज़्यादातर लोग इस बात से अच्छी तरह वाकिफ नहीं होंगे कि अदृश्य विकलांगता का क्या मतलब होता है और यह किसी व्यक्ति के जीवन में कैसे आता है। समझ की इस कमी के कारण विकलांग लोगों को लेकर गलत धारणा बन सकती है जो इसके बदले में कार्यस्थल की संस्कृति और उत्पादकता पर असर पड़ सकता है। इसलिए कर्मचारियों को इसके बारे में बताना और उन्हें इसके प्रति संवेदनशील बनाना बहुत जरूरी है और इससे समझौता नहीं किया जा सकता है।
संगठनों को एक समावेशी नौकरी कोच (‘इंक्लूसिविटी जॉब कोच’) को काम पर रखने के बारे में सोचना चाहिए जो विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम 2016 द्वारा विस्तृत और अनिवार्य नियम के आधार पर विकलांग लोगों के लिए संगठन-व्यापी समान अवसर नीतियों को तैयार करने और लागू करने के लिए एचआर टीम के साथ काम करेगा। इस तरह की नीतियाँ—विकलांग लोगों के लिए भौतिक और डिजिटल जगह प्रदान करना, कर्मचारियों की विकलांगता के आधार पर भेदभाव किए बिना समान भूमिका वाले कर्मचारियों को समान वेतन देना, और ऐसी ही अन्य नीतियाँ—विकलांग लोगों के लिए एक समावेशी वातावरण और संस्कृति के निर्माण में मददगार साबित होंगी।
नौकरी की सुरक्षा प्रदान करने का अर्थ केवल बिना शर्त रोजगार स्थिरता सुनिश्चित करने से नहीं है। इसका मतलब प्रदर्शन सुधार कार्यक्रमों के साथ कर्मचारी जुड़ाव उपायों से भी हो सकता है। इससे कर्मचारियों को यह संदेश मिलता है कि संगठन ने उनकी भलाई और पेशेवर विकास में निवेश किया है। इसके लिए जरूरी है कि एचआर विभाग सुनिश्चित करे कि ये सभी प्रयास समावेशी हैं। इससे भी ज्यादा, वर्तमान महामारी जैसे असामान्य संकट या कर्मचारी को काम से निकालने के अन्य मौकों पर विकलांग कर्मचारियों के साथ भी दूसरे कर्मचारियों की तरह ही व्यवहार किया जाना चाहिए न कि उन्हें दूसरों से पहले काम से निकालना चाहिए।
अक्सर लोग यह मान लेते हैं कि कार्यस्थल पर विकलांग कर्मचारियों के लिए बनाया गया विशेष आवास बहुत महंगा होता है। लेकिन हमेशा ऐसा नहीं होता है। इस तरह की व्यवस्थाओं पर किए गए निवेश से मिलने वाले मौद्रिक और गैर-मौद्रिक लाभ बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। दरअसल, एक्सेंचर द्वारा 2018 में किए गए एक अध्ययन से यह बात सामने आई कि विकलांग लोगों को नियुक्त करने और उन्हें सहायता देनी वाली कंपनियों ने औसतन 28 प्रतिशत अधिक राजस्व, दोगुनी आय, और अपने समकक्ष कंपनियों की तुलना में 30 प्रतिशत अधिक आर्थिक लाभ कमाया है। इस रिपोर्ट के अनुसार, इन परिणामों के लिए अपना योगदान देने वाला मुख्य कारक यह है कि एक विकलांग कर्मचारी अपनी विशिष्ट जरूरतों के अनुकूल तैयार किए गए काम के एक उत्साहजनक माहौल में काफी बेहतर प्रदर्शन करते हैं।
जहां किसी भी तरह की विकलांगता के साथ जीना अपने आप में एक चुनौती है वहीं भेदभाव, लांछन और ढांचागत सहायता और समर्थन की कमी इस मुश्किल को बदतर बना देती है।
उदाहरण के लिए लंबे समय से किसी बीमारी से ग्रसित आदमी को काम करने के समय को लेकर लचीलेपन की जरूरत हो सकती है या वह दवाइयों के लिए थोड़े-थोड़े समय पर काम से अवकाश ले सकता है। उन्हें ऐसा करने देने से संगठन के अंदर बिना किसी तरह की समस्या पैदा किए स्वत: ही उनकी स्थिति से निबटने में उनकी मदद की जा सकती है। अगर कोई कर्मचारी यात्रा करने में सक्षम नहीं है तब उस स्थिति में घर पर रहकर काम करने की व्यवस्था के निर्माण से उनकी मदद की जा सकती है। अगर टीम के किसी सदस्य को याददाश्त की समस्या है तो उस स्थिति में दिये गए कामों के लिए मौखिक रूप से कहने के बजाय उन्हें लिखने के अभ्यास को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। समस्या की जड़ को समझना और उसी हिसाब से नीतियों का निर्माण करने से लोगों के लिए एक सहयोगी वातावरण तैयार किया जा सकता है। जहां एक तरफ इस तरह की पहल को स्वीकार करने में सहकर्मियों को समय लग सकता है वहीं समय के साथ इस प्रतिरोध की जगह स्वीकृति ले लेती है।
ये समितियां अन्य सहायता व्यवस्था के रूप में एक ऐसा स्वास्थ्य बीमा दे सकती हैं जिसमें मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी प्रावधान हो। या कर्मचारी लाभ पैकेज के रूप में मुफ्त सेवाएँ जैसे कि मानसिक स्वास्थ्य और तनाव के प्रबंधन के लिए कोचिंग प्रदान की जा सकती है।
जहां किसी भी तरह की विकलांगता के साथ जीना अपने आप में एक चुनौती है वहीं भेदभाव, लांछन और ढांचागत सहायता और समर्थन की कमी इस मुश्किल को बदतर बना देती है। इन मुद्दों को सुलझाने के लिए संगठन बहुत सारे कदम उठा सकती है और अब समय आ गया है कि हम अपने सहकर्मियों की मदद के लिए ऐसे प्रयास करें।
अस्वीकरण: डॉक्टर रेड्डीज फ़ाउंडेशन सामाजिक क्षेत्र में कम चर्चित विषयों पर शोध और प्रसार के लिए आईडीआर का समर्थन करता है।
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