स्वयंसेवी संस्थाओं की एक आम शिकायत यह होती है कि बोर्ड के कुछ सदस्य संस्था के कामों में या तो बिलकुल भी अपना योगदान नहीं देते हैं या फिर समय नहीं होने की बात करते हैं। उन लोगों में से ज़्यादातर लोग सिर्फ बोर्ड की बैठकों में आते हैं और कभी-कभी तो यह काम भी उनके लिए चुनौती जैसा ही होता है। ऐसी स्वयंसेवी संस्थाएं बहुत कम हैं जो पूरी तरह से अपने उद्देश्य के लिए काम करती है और जिसका बोर्ड सक्रिय है और उसके सभी सदस्य अपनी जिम्मेदारियाँ निभाते हैं।
मैं अक्सर इस रोग के पीछे के कारण के बारे में सोचती हूँ और मुझे इससे भी जरूरी बात यह लगती है कि इस मामले में क्या किया जा सकता है।
संस्थाओं और संस्थापकों/सीईओ के विकास करने के साथ ही बोर्ड से उनकी उम्मीदें भी बदलनी शुरू हो जाती हैं। ऐसा संभव है कि किसी संस्था ने पहले कभी बोर्ड के किसी सदस्य की एक खास प्रतिक्रिया को ‘अनुमति’ दी थी लेकिन इच्छित परिणाम में अचानक आए बदलाव के कारण उसी प्रतिक्रिया को अब स्वीकार करने में कठिनाई हो सकती है। जब बोर्ड के किसी सदस्य को उनकी जिम्मेदारियों के लिए कभी भी ‘दबाव’ नहीं दिया गया है तो उस स्थिति में वे अपने प्रदर्शन को कभी भी बेहतर नहीं बनाएँगे। उम्मीदें दोनों ही पक्ष द्वारा की गई और नहीं की कार्रवाइयों से निर्धारित होती हैं। एक विकासशील संस्था निश्चित रूप से अपने बोर्ड के सामने अपनी अलग-अलग तरह की मांगों को रखेगा और संभव है कि संस्थापक की मदद के लिए शुरुआत में साथ आए लोगों का समूह लंबे समय तक संस्था की उन उम्मीदों को पूरा न कर सके।
कभी-कभी बोर्ड के सदस्य पूरी तरह से या तो निजी संबंध या संस्थापक या अन्य सदस्य के समर्थन के कारण बोर्ड में शामिल हो जाते हैं। ऐसे मामलों में, बहुत हद तक यह संभाव है कि वह सदस्य या कुछ दिनों बाद अपना योगदान देने में असफल हो जाएगा या इसके प्रति उसकी इच्छा या रुचि ख़त्म हो जाएगी। काम की सीमा का अनुमान न होने से, व्यक्तिगत प्रेरणाओं के साथ गलत संरेखण और क्षमता की कमी आदि कारणों से उनकी रुचि में कमी आ सकती है।
बोर्ड के सदस्यों के साथ का संबंध पेशेवर संबंध से आगे जा सकता है जिसके कारण उनके अपने कर्तव्यों के निर्वाह न करने की स्थिति में चीजें खराब हो सकती हैं। जब ऐसा होता है तब बोर्ड का एक निष्क्रिय सदस्य अपने पद पर बना रहता है और दोनों पक्ष एक दूसरे को जाने देने की पहल नहीं करते हैं। यह बोर्ड के दूसरे सदस्यों के साथ एक तरह का अन्याय होता है क्योंकि किसी न किसी को उस सदस्य के बदले काम करना पड़ता है और अतिरिक्त जिम्मेदारियाँ लेनी पड़ती हैं। समय के साथ ऐसे सदस्य भी खुद को काम के बोझ से दबा महसूस कर सकते हैं और उनकी भागीदारी भी कम हो सकती है।
इसका मतलब सदस्यों को बोर्ड योजना के लिए सहमत करना और बोर्ड के सदस्यों से अपेक्षित कामों की एक ऐसी सूची तैयार करना है जो कार्यकारी संगठन की रणनीतिक योजना को पूरा करने में मदद करेगा। यह प्रत्येक सदस्य को मुद्दों पर होने वाली बहस से बाहर निकालने और उनकी भूमिकाओं पर ध्यान दिलवाने का काम करता है जो बोर्ड के सदस्य के रूप में वे निभा सकते हैं। इसके साथ ही यह प्रत्येक सदस्य द्वारा निभाई जाने वाली विशेष भूमिकाओं पर भी काम करता है। यह बोर्ड के ऐसे सदस्यों की ‘छंटनी’ का सुनहरा अवसर होता है जो योजना में शामिल नहीं हो सकते हैं।
रोटेशन नीति एक ऐसा तंत्र है जो बोर्ड और संस्थापक/सीईओ को पारस्परिक रूप से सहमति से तय किए गए समय अंतराल पर बोर्ड के सदस्यों को बदलने की अनुमति देता है।
इस कदम को उठाने के दो कारण हैं:
रोटेशन नीति अपनाने वाले ज़्यादातर संगठन अपने बोर्ड के लिए एक बने रहने या उनकी सेवा को जारी रखने के लिए शर्त की स्थिति रखते हैं। यदि बोर्ड में बने रहने का शर्त योगदान या योजनाओं पर निर्भर है जिन पर सहमति हुई थी तो बोर्ड के किसी सदस्य को निकालने या जाने देने का निर्णय निष्पक्ष रूप से किया जा सकता है।
सलाहकारों की एक मजबूत परिषद के निर्माण और बोर्ड की बैठकों में शामिल होने के लिए उन्हें आमंत्रित करने से बोर्ड के सदस्यों से की जाने वाली उम्मीदें स्वाभाविक रूप से बढ़ जाती हैं। इन सलाहकारों से बातचीत करने से बोर्ड के सदस्यों को दूसरों के योगदानों और मूल्यों को समझने में मदद मिल सकती है और उन्हें एक ऐसा आदर्श (रोल मॉडल) मिल जाएगा जिसका वे अनुसरण कर सकेंगे। अगर बोर्ड का कोई सदस्य ऐसा नहीं कर पाता है तो उस स्थिति में इस बात की संभावना बढ़ जाती है कि वह अपने पद से हट जाएगा।
इसकी संभावना बहुत अधिक होती है कि बोर्ड के कुछ सदस्य सिर्फ अनुपालन की भूमिका निभाएंगे। इस बात को पारदर्शी बनाना चाहिए ताकि यह स्पष्ट रहे कि उनसे किसी अन्य तरह की अपेक्षा नहीं करनी है। दूसरे सदस्य संगठन के उद्देश्य पूर्ति के प्रति अधिक इच्छुक हो सकते हैं और अधिक योगदान दे सकते हैं। यह बहुत महत्वपूर्ण है कि बोर्ड के प्रत्येक सदस्य की प्रेरणा को समझा जाये और उनकी भागीदारी के माध्यम से इसे सुविधाजनक बनाने वाली एक योजना तैयार की जाए।
इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ें।