समाजसेवी संस्थाओं के लीडर और प्रोजेक्ट मैनेजर अपने संगठनों और परियोजनाओं के डिजिटलीकरण की बढ़ती आवश्यकता और अपने इरादों को सामने ला रहे हैं। बड़ी परियोजनाओं, ख़ासकर राज्य और केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों के साथ साझेदारी में काम करने वाली कई समाजसेवी संस्थाओं ने पहले से ही अपने कार्यक्रमों में तकनीक के इस्तेमाल को अपना लिया है। इसके बावजूद, हमने पाया है कि तकनीकी समाधानों या आंकड़ों से जुड़ी विश्लेषण प्रक्रिया में ज़्यादातर समाजसेवी संस्थाएं हिचकिचाहट दिखाती हैं। शायद ऐसा पूरी तैयारी न होने की भावना के कारण होता हो। आसान शब्दों में कहा जाए तो समाजसेवी संस्थाओं के लीडर्स तकनीक का बेहतर उपयोग करना तो चाहते हैं लेकिन अक्सर उन्हें इसके तरीक़ों की जानकारी नहीं होती है। कई लोग तकनीक को महंगे संसाधन की तरह देखते हैं। वे मानते हैं कि जब तक फंडर इसकी मांग न करे और इस खर्चे का वहन न करे, तब तक इसे टाला जा सकता है।
हमें समाजसेवी संस्थाओं के संदर्भ में डिजिटलीकरण (डिज़िटाइज़ेशन) को समझना आवश्यक है। हमारे अनुभव के आधार पर, हमने निम्नलिखित श्रेणियों का वर्गीकरण किया है जिसमें समाजसेवी संस्थाओं की लगभग सभी डिजिटलीकरण आवश्यकताएं शामिल हैं:
क्षेत्र-विशिष्ट उपयोग के मामले भी हैं, जैसे कि स्वास्थ्य के मामले में रोगी प्रबंधन या शिक्षा के मामले में शिक्षा और कक्षा प्रबंधन।
निवेश के क्षेत्र को पहचानने के लिए समीक्षा की आवश्यकता होती है ताकि सहकर्मियों की उन चुनौतियों और बाधाओं के बारे में जाना जा सके जिन्हें तकनीक के उपयोग से दूर किया जा सकता है। जहां एक तरफ़ सभी समस्याओं का त्वरित समाधान तकनीक को स्वीकार करना नहीं हो सकता है (नहीं होना चाहिए)। वहीं, इसका इस्तेमाल उचित स्थान पर करने से मदद अवश्य मिल सकती है। उदाहरण के लिए, क्या किसी क्षेत्र में डिजीटलीकरण करने से टीम के समय, खर्च या मेहनत को बचाया जा सकता है? क्या इससे टीम की उत्पादकता में वृद्धि आएगी? क्या यह तात्कालिक आधार पर कुछ महत्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध कराएगा? क्या इससे प्रोजेक्ट या संगठन का आकार बढ़ाने में मदद मिलेगी? किसी भी प्रकार की तकनीक का मूल्यांकन और उसकी प्राथमिकता तय करते समय ऐसे प्रश्न महत्वपूर्ण होते हैं और इन पर विचार किया जाना चाहिए।
ऊपर ज़िक्र किए गए सभी बिंदुओं के लिए, बाजार में कई ऑफ-द-शेल्फ सिस्टम उपलब्ध हैं। हो सकता है कि ये सिस्टम आपकी जरूरत के मुताबिक स्पेसिफिकेशन्स, लुक और फील या यूज़र एक्सपीरियंस की आवश्यकताओं को पूरा ना करें, लेकिन अक्सर ये कम खर्चीले होते हैं। साथ ही, इन्हें नया सिस्टम बनाने की तुलना में आसानी से और कम समय में इस्तेमाल में लाने के लिए तैयार किया जा सकता है। चूंकि इनमें से ज़्यादातर सिस्टमों का अक्सर मुफ़्त ट्रायल वर्जन उपलब्ध होता है, इसलिए आप इस्तेमाल के पहले दिन से ही इनके बारे में जान सकते हैं। इसके अलावा, इनमें से अधिकतर मासिक सब्सक्रिप्शन पर उपलब्ध होते हैं।
बड़े पैमाने पर और दीर्घकालिक कार्यक्रमों की चरण-दर-चरण प्रक्रियाओं द्वारा संचालित, बहुत अनुकूलित (कस्टमाइज) समाधानों से जुड़े मामलों में, ऑफ-द-शेल्फ सिस्टम आपकी विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करने में सक्षम नहीं होते हैं। उत्पादों को संशोधित या बड़े पैमाने पर अनुकूलित करने की उनकी अपनी सीमाएं होती हैं। ऐसी स्थिति में अपनी जरूरत के मुताबिक कस्टम सॉल्यूशन तैयार करने के प्रयास और लागत को उचित ठहराया जा सकता है।
यदि आपका संगठन, आपकी परियोजना या प्रक्रियाएं नई हैं या लगातार विकसित हो रही हैं तो आपको तब तक डिजिटलीकरण से बचना चाहिए जब तक कि आप एक स्थिर अवस्था में न पहुंच जाएं। यह इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि किसी भी प्रयास के प्रारंभिक चरणों के दौरान डिजिटलीकरण करने से भविष्य में उस पर दोबारा बहुत अधिक काम करना पड़ सकता है और पहले से तैयार किसी उत्पाद के लिए दोबारा अनुकूलित करना एक मुश्किल काम है जिससे कि समय के साथ टीम के लोग इसके प्रयोग से बचते हैं।
यदि आप अपने संगठन में प्रक्रियाओं को डिजिटाइज़ करना चाहते हैं, तो प्रमुख सेवाओं (वर्टिकल्स) या प्रोजेक्ट से शुरुआत करें। आरंभिक चरण में शुरुआती परियोजनाओं पर ध्यान दें और उनके ठीक तरह स्वीकृत हो जाने के बाद उस तकनीक को आप अन्य टीम या परियोजनाओं में भी प्रयोग करने का प्रस्ताव दे सकते हैं। उदाहरण के लिए, यदि आपको एम&ई डेटा कलेक्शन, विश्लेषण और डैशबोर्ड पर विजुअलाईजेशन के लिए तकनीक की ज़रूरत है तो आप डेटा कलेक्शन को डिजीटाईज़ करने के लिए एक मोबाइल ऐप के प्रयोग के बारे में सोच सकते हैं। इसके बाद, डेटा कलेक्शन प्रणाली स्थिर होने के बाद आप डेटा विश्लेषण और विज़ुअलाइज़ेशन को डिजिटाइज़ कर सकते हैं। मूल तथा ठोस समस्याओं का समाधान पहले किया जाना चाहिए। इससे टीम के सदस्यों को समझने और सहज होने का भी समय मिल जाता है।
आपके सभी प्रकार के डिजिटल समाधान आपकी टीम और भौगोलिक उपस्थिति के विकास के अनुरूप विकसित होने में सक्षम होने चाहिए। और, यह आपके टेक वेंडर पर आपकी निर्भरता के बिना ही होना चाहिए। इसके अतिरिक्त, बड़े आकार की टीम और परियोजनाओं को अक्सर भूमिका-आधारित या सीमित पहुंच वाले आंकड़ों की ज़रूरत होती है। इसे देखते हुए आपके द्वारा निर्मित तकनीक में सेल्फ़-कंफिगरेशन यूज़र प्रबंधन या अनुमति मोडयूल (परमिशन मोडयूल) होना चाहिए।
किसी भी नई आईटी प्रणाली (सिस्टम) से रातोंरात चमत्कार की उम्मीद न करें। इसकी आवश्यकता के अनुरूप व्यवहार में परिवर्तन को देखते हुए किसी भी नई प्रणाली को अक्सर ही प्रतिरोध का सामना करना पड़ता है। यह एक तथ्य है कि मानव का स्वभाव परिवर्तन का प्रतिरोध करता ही है। इन कारणों को देखते हुए हमेशा एक परिवर्तन प्रबंधन प्रणाली की योजना तैयार करनी चाहिए जो शुरुआत से ही आपके मुख्य हितधारकों को इसमें शामिल करे। ताकि वे इस बात को समझ सकें कि यह नई प्रणाली उनको किस प्रकार लाभ पहुंचाएगी। हमारे अनुभव में, किसी भी नई आईटी प्रणाली को स्थिर होने में कम से कम तीन से छह महीने लगते हैं।
ध्वनि में हम संगठनों को तकनीकों के वर्तमान उपयोग के आधार पर तीन श्रेणियों में रखते हैं।
आपके संगठन की तकनीकी परिपक्वता के आधार पर, आपकी टीमों को किस प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है, इसका अनुमान लगाना और उस आधार पहले से तैयारी करना मददगार साबित होता है।
जब तकनीक को अपनाने की बात आती है, तो नेतृत्व टीम और मध्य स्तर के प्रबंधन की क्षमता का निर्माण करना महत्वपूर्ण होता है। यह उन्हें डिजिटलीकरण की जरूरतों को स्पष्ट रूप से समझाने में सक्षम बनाता है और संयुक्त रूप से अपने विक्रेताओं के साथ एक उपयुक्त समाधान की पहचान करता है। इसके अतिरिक्त, आईटी सिस्टम के उपयोग को बड़ी टीम के लिए सही संदर्भ में रखता है, और यह भी सुनिश्चित करता है कि उनकी टीम तकनीकी समाधान की विशेषताओं और सीमाओं को सही ढंग से समझती है।
हमने देखा है कि अधिकांश फंडिंग प्रस्तावों में आईटी समाधान के लिए अलग से बजट की मांग नहीं की जाती है और न ही इसे बजट की आवश्यकताओं वाली सूची में रखा जाता है। गिनती में कम ही रहने वाले डोनर्स से सीमित मात्रा में अनुदान लेने के लिए प्रतिस्पर्धा को देखते हुए इसे समझा जा सकता है। हालांकि, यह आदर्श रूप नहीं है क्योंकि अक्सर ही प्रस्ताव पारित हो जाने के बाद यदि टीम द्वारा किसी तरह के डिजिटाईजेशन की ज़रूरत महसूस होती है तो धन उपलब्ध नहीं होता है। इसलिए अक्सर ऐसा होता है कि आईटी पर होने वाला यह खर्च संगठन के पहले से ही तय ख़र्चों के लिए आवंटित धन के बजट से ही निकाला जाता है। नतीजतन या तो खर्च में कमी लानी पड़ती है या किसी और स्त्रोत से मिलने वाले फंड का इस्तेमाल करना पड़ता है। इसके बदले यदि फ़ंडर आईटी समाधानों के प्रति उत्साहित हों तो समाजसेवी संगठनों में अपनी ज़रूरतों को पूरा करने वाले नए समाधानों के प्रयास के लिए आत्मविश्वास की भावना पैदा होगी।
यदि संगठन पहले अपनी जरूरतों को स्पष्ट रूप से समझने के लिए पर्याप्त समय देते हैं, अपनी खुद की तकनीक अपनाने की चुनौतियों का आकलन करते हैं, तकनीक अपनाने के लिए आंतरिक क्षमता का निर्माण करते हैं। साथ ही, जहां भी संभव हो, कुछ ऑफ-द-शेल्फ समाधानों को आजमाते हैं और इन समाधानों को स्थिर होने के लिए पर्याप्त समय देते हैं तो ऐसी स्थिति में डिजिटलीकरण बहुत कुशलता के साथ किया जा सकता है। फंडिंग संगठनों को चाहिए कि वे समाजसेवी संस्थाओं को इन तकनीकों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करें। लम्बे समय में यह बहुत अधिक लाभप्रद साबित होगा।
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