लखनऊ। सुबह के लगभग 8 बज रहे होंगे। शैलेंद्र अपने ट्रैक्टर पर हल्के हाथ से कपड़ा मारते हैं और सीट पर बैठकर चाबी लगा देते हैं। बगल वाली सीट पर अपने सहयोगी को बैठाते हैं और गाड़ी लेकर निकल जाते हैं। कभी इस समय वे अपने खेतों में होते थे।पिछले साल धान लगाया। शुरू में बारिश नहीं हुई। डीजल मशीन से सिंचाई करनी पड़ी। फसल पकी तो इतनी बारिश हुई कि आधी फसल पानी में डूब गई, जो बाद में सड़ गई। उससे पहले मेंथा में नुकसान हुआ था। इसके बाद पहली बार आधे खेत में मक्का लगाया। नुकसान तो नहीं हुआ। लेकिन फायदा भी नहीं हुआ। ऐसा कई साल से चल रहा। इसलिए मैंने अपने खेत का एक हिस्सा एक प्राइवेट कंपनी को दे दिया। अब खेत कम है तो काम भी कम है। ट्रैक्टर से अब दूसरे खेत जोतता हूं और पैसे मिलने पर दूसरे काम भी करता हूं।’
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से लगभग 60 किलोमीटर दूर जिला बाराबंकी के तहसील फतेहपुर के टांडपुर में रहने वाल शैलेंद्र शुक्ला (46) खुश तो नहीं हैं। लेकिन उन्हें मजबूरी में खेत का एक बड़ा हिस्सा प्राइवेट कंपनी को देना पड़ा।
‘पिछले दो साल में खेती से बस नुकसान ही हुआ है। पिछले साल मार्च में हुई बारिश से पांच एकड़ में लगी आलू की फसल लगभग 20% तक खराब हो गई। दो से तीन रुपए प्रति किलो का भाव मिला। मार्च की बारिश की वजह से मेंथा की बुवाई पिछड़ गई। इसलिए पहली बार मक्का लगाया। शुरू में मक्के के पौधों में कीड़े लग गये। सही रेट की समस्या तो किसानों को पहले भी थी। लेकिन अब मौसम हमारा सबसे बड़ा दुश्मन बन गया है।’ शैलेंद्र इन सबके लिए बदलते मौसम को कसूरवार ठहराते हैं।
भारत मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार फरवरी 2023 में अधिकतम तापमान 29.66 डिग्री सेल्सियस (ºC), मिनिमम 16.37ºC और औसत तापमान 23.01ºC था जबकि 1981-2010 की अवधि के अनुसार ये तापमान क्रमश: 27.80 ºC, 15.49 ºC और 21.65 ºC था। विभाग ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि पूरे भारत में फरवरी 2023 के दौरान औसत अधिकतम तापमान 1901 के बाद से सबसे अधिक 29.66 ºC रहा और इसने 29.48 ºC के पहले के उच्चतम रिकॉर्ड को तोड़ दिया जो फरवरी 2016 में था।
इंडियास्पेंड हिंदी, शैलेंद्र को पिछले एक साल से फॉलो कर रहा है। दरअसल हम देखना चाहते थे कि किसान बदलते मौसम से कितना प्रभावित हो रहे हैं। इस कड़ी में हमने कुछ ऐसे किसानों से भी बात की जिनसे हम खेती-किसानी के मुद्दों पर पहले भी बात कर चुके हैं। कई किसानों ने हमें बताया कि बदलते मौसम की वजह से उन्हें नुकसान तो उठाना ही पड़ रहा, फसली चक्र भी बदलना पड़ा है जिसकी वजह से हमारा नुकसान और बढ़ रहा।
‘पिछले कुछ वर्षों से खेती से कमाई बहुत अनिश्चित हो गई। निजी कंपनी हमें प्रति बीघा के हिसाब से 12 हजार रुपए सालाना देगी। हमने अपना 18 बीघा खेत कंपनी को दे दिया जो यहां पराली से बायो ईंधन बनाने का प्रोजेक्ट लगा रही है।’
शैलेंद्र इस बात से खुश हैं कि उनके पास हर हाल में एक निश्चित आय होगी। ‘मेरे पास अभी जो लगभग 20 बीघा खेत है, उसमें गेहूं लगाने की तैयारी कर रहा हूं। इस साल भी फसल पिछड़ चुकी है। जो बुवाई नवंबर के पहले सप्ताह में हो जानी चाहिए थी, वह दिसंबर के पहले सप्ताह तक नहीं हो पाई है क्योंकि अक्टूबर में बारिश की वजह से धान की कटाई पिछड़ गई। अब गेहूं फसल तो प्रभावित होगी ही, पिछली बार की तरह इस बार भी उत्पादन प्रभावित होगा।
‘मौसम में इतना उतार चढ़ाव हो रहा कि किसान परेशान हैं। जब पानी चाहिए तो बारिश होती नहीं। जब फसल कटने वाली होती है तो बारिश हो जाती है। इतना रिस्क शायद ही किसी और काम में हो।’ शैलेंद्र अपनी बात खत्म करते हुए कहते हैं।
वे यह भी कहते हैं कि वर्ष 2022 में भी अक्टूबर महीने में हुई बारिश के कारण धान की फसल तो बर्बाद हुई ही, गेहूं की बुवाई में भी देरी हुई। फिर फरवरी 2023 में ज्यादा तापमान की वजह से पैदावार प्रभावित हुई।
इंडियास्पेंड ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि कैसे फरवरी महीने का उच्च तापमान गेहूं सहित रबी की दूसरी फसलों की पैदावार प्रभावित हो सकती है।
लखनऊ से लगभग 250 किलोमीटर दूर भदोही में रहने वाले किसान पप्पू सिंह (55) पिछले साल की तरह इस साल भी परेशान हैं। पिछले सीजन में पैदावार लगभग 30% कम थी। वे कहते हैं पिछले साल तरह इस साल भी हो रहा।
‘पिछली बार गेहूं की बुवाई इसलिए पिछड़ गई थी क्योंकि देर से हुई बारिश की वजह से धान कटाई में देरी हुई। इस साल भी ऐसा ही हुआ है। अक्टूबर में बारिश हो गई। पिछले साल तो 25 नवंबर को बुवाई कर दी थी। इस साल बुवाई दो दिसंबर तक हो पाई है। अब ऐसे में अगर पिछले साल की तरह फरवरी में तापमान फिर बढ़ा तो पैदावार और कम हो सकती है क्योंकि उस समय बालियों में दाना लगना शुरू होता है।’
वे बताते हैं कि 2021 में प्रति एकड़ लगभग 26 क्विंटल गेहूं निकला था। 2022 में ये घटकर 22 क्विंटल हो गया था। उन्हें आशंका है कि इस साल पैदावार और घटेगी इसलिए उन्होंने इस साल गेहूं 50 बीघा की जगह 30 बीघे में ही गेहूं लगाया।
खरीफ सीजन 2022-23 में 2021-22 में गेहूं का रकबा बढ़कर 304.59 से बढ़कर 314 लाख हेक्टयेर तक पहुंच गया और उत्पादन कुल उत्पादन में भी बढ़ोतरी देखी गई। लेकिन प्रति हेक्टेयर उत्पादन 3,537 किलोग्राम से घटकर (2021-22 की अपेक्षा) 3,521 किलोग्राम पर आ गया।
धान उत्पादन के मामले में देश के दूसरे सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के किसानों पर वर्ष 2022 में दोहरी मार पड़ी थी।
पहले जब जरूरत थी, तब बारिश नहीं हुई। फसल पककर खड़ी हुई तो बारिश इतनी हुई कि खड़ी फसल बर्बाद हो गई। मई और जून का महीना धान की बुवाई के लिए सबसे सही समय माना जाता है। बुवाई के तीसरे सप्ताह से ही पानी की जरूरत पड़ने लगती है। भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के अनुसार 1 जून से 24 अगस्त 2022 के बीच पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 294 मिलीमीटर बारिश हुई थी जो सामान्य से 41% कम थी। इसी दौरान पूर्वी उत्तर प्रदेश में 314.9 मिमी बारिश हुई थी जो सामान्य से 46% कम रही।
यह भारत के लिए अल नीनो वर्ष है जिसकी वजह से मौसम संबंधी घटनाक्रम होते हैं जो मानसून में भिन्नता का कारण बनती है। कहीं असामान्य रूप से बारिश होगी तो कहीं कम बारिश या सूखा। चक्रवात बिपरजॉय और अन्य मौसमी प्रभावों के बाद भी भारत में जून 2023 के अंत तक मानसून बारिश की 10% कमी रही। वहीं इस मानसून सत्र में पूरे देश में 6% बारिश कम हुई जो 2018 के बाद सबसे कम रही। हालांकि खरीफ सीजन में सबसे ज्यादा बोई जाने वाली फसल धान का रकबा बढ़ गया।
देश में गेहूं की बुवाई का रकबा 17 नवंबर, 2023 तक एक साल पहले की तुलना में 4.7 लाख हेक्टेयर यानी 5.5 फीसदी घटकर 86 लाख हेक्टेयर रह गया है। इस बीच केंद्र सरकार ने पिछले साल की तरह इस साल भी गेहूं निर्यात पर रोक लगा दी। क्योंकि केंद्रीय पूल में गेहूं भंडारण की स्थिति पिछले वर्ष की ही तरह इस साल भी कम है। नवंबर महीने तक भंडार में 219 लाख मीट्रिक टन गेहूं था। वर्ष 2022 में इस समय 210, 2021 में 420, 2020 में 419 और 2019 में 374 लाख मीट्रिक टन गेहूं का स्टॉक था।
वर्ष 2022 में 1 से 10 अक्टूबर के बीच 129 मिमी बारिश हुई थी जो सामान्य से 683 प्रतिशत अधिक थी। इसकी वजह से पिछले रबी सीजन में भी गेहूं की बुवाई प्रभावित हुई थी।
पिछले साल की तरह अक्टूबर 2023 में भी देश के कई हिस्सों में भारी बारिश हुई। ये वह समय था जब धान की फसल पक गई थी और कटने को तैयार थी। 17 अक्टूबर 2023 को उत्तर प्रदेश के 13 जिलों में भारी बारिश हुई जिसकी वजह से गेहूं बुवाई में देरी हो रही है।
उत्तर प्रदेश के जिला मिर्जापुर के कछवा में रहने वाले युवा किसान विवेक कुमार (30) का लगभग दो एकड़ में लगी धान की फसल अभी तक कट नहीं पाई है। वे बताते हैं, ‘इन खेतों में इस साल गेहूं लगाना मुश्किल लग रहा। अक्टूबर में हुई बारिश की वजह से खेतों से नमी जा ही नहीं पाई है। धूप बहुत कम हो रही। अब दिसंबर की शुरुआत में ही एक बार फिर बारिश हो रही है। इस साल गेहूं खरीदकर ही खाना पड़ेगा।’
‘इस साल मिर्च भी लगाया था जिसकी लागत बहुत ज्यादा आ गई। गर्मी की शुरुआत में बारिश नहीं हुई जिसकी वजह से खेत सूख गये। जिसकी वजह से पानी की खपत तीन से चार गुना बढ़ गई। डीजल महंगा होने की वजह से बुवाई की लागत बढ़ गई। खेती में हमारे हिस्से नुकसान ही आ रहा।’
मौसम विभाग ने चक्रवात मिगजॉम की वजह से देश के कई हिस्सों में दिसंबर 2023 के पहले सप्ताह में भारी और कई जगह हल्की बारिश की चेतावनी दी है। कई राज्यों में 3 और 4 दिसंबर को भारी बारिश हुई।
हरियाणा के करनाल स्थित भारतीय गेहूं और जौ अनुसंधान संस्थान (IIWBR) के प्रधान कृषि वैज्ञानिक अनुज कुमार (Quality and Basic Science) बताते हैं कि किसान गेहूं की तीन किस्मों की खेती करते हैं। अगेती यानी समय से पहले, समय पर, और पछेती। हर किस्म का दाना पकने में अलग-अलग समय लेता है। सामान्य तौर पर 140-145 दिनों में फसल तैयार होती। 100 दिन की फसल में बाली आने लगती है।
’25 नवबंर से पहले बोई गई फसल मार्च के महीने में तैयार हो जाती है, जबकि 25 नवंबर के बाद बोई गई फसल अप्रैल तक पक जाती है। आखिरी के एक महीने में गेहूं की बालियों में दूध भरने लगता है। इस समय सही तापमान की जरूरत पड़ती है। ज्यादा तापमान के कारण बालियां जल्दी पक जाती हैं जिसकी वजह से दाने पतले हो जाते हैं। ऐसे में दानों की संख्या तो ठीक रहेगी। लेकिन वजन कम हो जायेगा।’ वे आगे बताते हैं।
भारतीय मौसम विभाग ने शीतकालीन मौसम दिसंबर 2023 से फरवरी 2024 तक के लिए मौसम पूर्वानुमान जारी कर दिया है जिसके बाद जानकार चिंतित हैं। विभाग के अनुसार इन महीनों के दौरान देश के ज्यादातर हिस्सों में न्यूनतम और अधिकतम तापमान सामान्य से ज्यादा रहेगा। ठंडी लहरों की संभावना सामान्य से कम रह सकती है। तो क्या ज्यादा तापमान से गेहूं की फसल प्रभावित होगी?
इस बारे में कृषि वैज्ञानिक अनुज कुमार का कहना है कि अभी कुछ भी भविष्यवाणी करना जल्दबाजी होगा।
‘ये बात बिल्कुल सही है कि ज्यादा तापमान से गेहूं की फसलों को नुकसान पहुंचता है। लेकिन यहां देखने वाली बात यह भी कि अगर ज्यादा तापमान एक सप्ताह से ज्यादा तक रहता है तो नुकसान हो सकता है। गेहूं की पैदावार पर असर पड़ सकता है। लेकिन दिन-रात का तापमान देखना होगा। हम कई वर्षों से बदलते मौसम को देख रहे हैं। ऐसे में हम काफी समय से ऐसी किस्मों पर जोर दे रहे हैं कि जो ऐसे प्रतिकूल मौसम से लड़ने में सक्षम है। देश के बहुत हिस्सों में ऐसी ही किस्म लगाई जा रही।’
उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ स्थित कृषि विज्ञान केंद्र के मुख्य वैज्ञानिक डॉ. दीपल राय कहते हैं कि ‘अगर तापमान बढ़ता है तो फसलों पर इसका प्रतिकूल असर तो पड़ेगा ही, लागत भी बढ़ेगी। गेहूं के लिए 20 से 25 डिग्री सेल्सियस तापमान सही माना जाता है। लेकिन हमने पिछले सीजन में इससे ज्यादा तापमान देखा था और गेहूं की पैदावार पर इसका असर भी पड़ा।’
‘अगर इस सत्र में भी ऐसा होता है तो इस बार नुकसान ज्यादा होगा क्योंकि अक्टूबर की बारिश के बाद गेहूं की बुवाई में देरी हो चुकी है। ऐसे में जब गेहूं में दाना आने का समय फरवरी का आखिरी या मार्च का पहला सप्ताह होगा और तब अगर पूर्वानुमान के हिसाब से तापमान बढ़ा तो इस बार पैदावार प्रभावित हो सकती है।’ दीपल चिंता व्यक्त करते हैं।
‘इस साल और देख रहा। अगले साल खेत अधिया (बंटाई) पर देकर कहीं बाहर कमाने चला जाऊंगा। महंगाई के इस दौर पर दिन-रात मेहनत करने के बाद कुछ बचे भी ना तो परिवार कैसे चलेगा।’ विवेक खेती में लगातार हो रहे नुकसान से निराश हैं।
यह आलेख मूलरूप से इंडियास्पेंड हिंदी पर प्रकाशित हुआ है जिसे आप यहां पढ़ सकते हैं।
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