मेरा नाम नील जेटली है। मैं अपने ही शहर शिलांग में राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (नेशनल एड्स कंट्रोल ऑर्गनायज़ेशन या एनएसीओ) में प्रोजेक्ट मैनेजर हूँ। इसके अलावा मैं मेघालय यूसर्स फ़ोरम का अध्यक्ष भी हूँ। मैं एक ठीक होने वाला व्यसनी भी हूँ। मैंने 16 सालों तक नशे का सेवन किया। लेकिन अब नॉर्काटिक्स अनॉनमस में नशे की आदत छुड़वाने के 12-चरण वाले कार्यक्रम को पूरा कर लिया है और आने वाले दिसम्बर में मुझे नशा मुक्त हुए पूरे दस साल हो जाएँगे।
मैं जानता था कि अगर मैं ख़ुद नशामुक्त नहीं हो पाया तो मैं दूसरों की मदद नहीं कर पाऊँगा।
अपने सबसे बुरे दिनों में मैं एक भूखा, बेरोज़गार और बिना किसी लक्ष्य के जीने वाला आदमी था जिसके सिर पर छत भी नहीं थी। यही वह समय था जब मुझे लगा कि मुझे अपने जीवन को बदलना है। मैं जानता था कि अगर मैं ख़ुद नशामुक्त नहीं हो पाया तो मैं इस काम में दूसरों की मदद नहीं कर पाऊँगा। इसलिए भले ही नशामुक्त होने की मेरी प्रक्रिया धीमी थी लेकिन यह निश्चित थी। और पूरी तरह से नशामुक्त होने के बाद मैं उन लोगों के लिए काम करना चाहता था जो अब भी नशे की लत में डूबे हुए थे।
2015 में एनएसीओ ने मुझे इस क्षेत्र में काम करने का मौक़ा दिया। उन्होंने मुझे आउटरीच कर्मचारी की नौकरी दी और कई वर्षों तक मैंने इसी पद पर रहकर अपना काम किया। आज की तारीख़ में मैं उनके एचआईवी/एड्स कार्यक्रम के लिए एक प्रमाणित सलाहकार की हैसियत से काम करता हूँ। इसके साथ ही मैंने मेघालय यूसर्स फ़ोरम की शुरुआत की जो नशीली पदार्थों के सेवन और मानसिक स्वास्थ्य संबंधी मामलों में युवाओं की मदद के लिए बनाया गया एक समुदाय-आधारित संगठन है।
एनएसीओ के प्रोजेक्ट मैनेजर के रूप में मैं 400 से अधिक लोगों के मामलों पर काम करता हूँ। ये सभी लोग 18 से 45 वर्ष के बीच की उम्र के हैं। हम उन्हें मुफ़्त चिकित्सीय जाँच, दवाएँ और सलाह देते हैं। हम शराब आदि की लत छोड़ने में भी उनकी मदद करते हैं। दूसरी तरफ़ फ़ोरम में मैं अपना ज़्यादातर समय साथ काम कर रहे युवाओं के स्वास्थ्य और क़ानूनी अधिकारों को हासिल करने में लगाता हूँ। इसके अलावा मैं राशन कार्ड जैसे ज़रूरी दस्तावेज़ों को ठीक करवाने, मुफ़्त इलाज की जानकारी देने आदि में भी उनकी मदद करता हूँ ताकि उन्हें उनका अधिकार मिले।
अपने निजी अनुभव और इन युवा लड़के-लड़कियों के साथ किए गए काम से मैंने महसूस किया है कि नशीली पदार्थों के सेवन से जुड़े मुद्दे को अलग नज़रिए से देखने की ज़रूरत है। नशीली पदार्थों के सेवन और उसकी लत को मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दे के रूप में देखा जाना चाहिए और नशे की लत से उबरने के लिए मानसिक और भावनात्मक साथ की ज़रूरत होती है। एक दूसरी बड़ी समस्या नशे से जुड़ा कलंक है जिससे निबटने की ज़रूरत है। एचआईवी/एड्स, नशे की लत और मानसिक अस्वस्थता से अब भी कलंक की भावना जुड़ी हुई है। सामाजिक कारकों से पैदा होने वाले मुद्दों के बजाय लोग अब भी इसे निजी विफलता मानते हैं।
ऐसे भी युवा थे जिन्होंने अपनी जान ले ली, यह एक ऐसी घटना थी जिसे टाला जा सकता था।
इस दृष्टिकोण से सामने आने वाले परिणामों को कोविड-19 के दौरान देखा गया। चूँकि लॉकडाउन अचानक लगाया गया था इसलिए स्वास्थ्य कर्मचारी ऐसे युवाओं को भी नियमित रूप से दवाइयाँ या सेवाएँ नहीं दे पा रहे थे जो उनपर पूरी तरह से निर्भर थे। इसके परिणाम स्वरूप हमारे कुछ युवाओं ने आत्महत्या कर ली। यह एक ऐसी परिस्थिति थी जिसे टाला जा सकता था।
आज की तारीख़ में हमारे पास 11-12 साल के ऐसे बच्चे हैं जिन्होंने नशे की सूईयाँ लेनी शुरू कर दी है और इनमें से ज़्यादातर बच्चों ने इससे पहले कभी सिगरेट भी नहीं पी थी। अपने काम से मैं लोगों को यह समझना चाहता हूँ कि ऐसा क्यों होता है और इसे ख़त्म करने के लिए हम क्या कर सकते हैं।
सुबह 2 बजे: मुझे पुलिस स्टेशन से फ़ोन आया और उन्होंने बताया कि एक लड़का दुकान से सामान चोरी करते हुए पकड़ा गया है और उनका ऐसा मानना है कि वह नशे की लत वाला इंसान है। चूँकि फ़ोरम में मेरा काम क़ानून लागू करवाना है इसलिए ऐसी कोई घटना होने पर आमतौर पुलिस, एंटी-नारकोटिक्स टास्कफ़ोर्स और ज़िला बाल संरक्षण आयुक्त के लोग मुझसे सम्पर्क करते हैं।
उसके बाद मैं थाने जाकर उस नाबालिग की तरफ़ से मामले में हस्तक्षेप करता हूँ। हमारे साथ कुछ ऐसे वकील भी जुड़े हुए हैं जो घटना में शामिल सभी पक्षों के बीच मामले की समझ को स्पष्ट करने में मदद करते हैं। आमतौर पर अगर पकड़ा गया नाबालिग इलाज करवाने या हमारे कार्यक्रम में शामिल होने के लिए तैयार हो जाता है तो उस स्थिति में उनके ख़िलाफ़ किसी तरह की क़ानूनी कार्रवाई नहीं होती है।
कभी-कभी युवा लड़के और लड़कियाँ आधी रात में मुझसे सम्पर्क करते हैं। ऐसा अक्सर उस स्थिति में होता है जब या तो उनका परिवार उनके साथ मारपीट करता है या फिर स्थानीय लोग उन्हें परेशान करते हैं या फिर उन्हें घर से निकाल दिया गया होता है। इन स्थितियों में हम उनके रहने-खाने और इलाज की व्यवस्था में मदद करते हैं।
चूँकि लोग मुझे अक्सर ही बीच रात में फ़ोन करते हैं इसलिए मेरा फ़ोन कभी भी स्विच ऑफ़ नहीं होता है।
सुबह 10 बजे: मैं अपने दफ़्तर जाकर कुछ काग़ज़ी काम निबटाता हूँ। फ़ोरम में हम कई तरह का काम करते हैं। इन कामों में हमें हमेशा ज़्यादा सुविधाओं, और अधिक कार्यक्रमों और मज़बूत नेटवर्क के लिए लोगों से हमेशा लड़ाई करते रहनी पड़ती है। मेघालय में नशे की लत से जूझ रहे और मानसिक रूप से बीमार युवाओं के लिए इनमें से कुछ भी उपलब्ध नहीं है। संसाधन की कमी का दूसरा अर्थ सीमित फ़ंडिंग भी है। दरअसल फ़ोरम द्वारा किए जाने वाले ज़्यादातर कामों के लिए मैं अपनी तरफ़ से भुगतान करता हूँ। इसमें हमारे सदस्यों के परिवहन का खर्च, लड़के-लड़कियों को सदर अस्पताल ले जाने का खर्च और ऐसे ही कई खर्च शामिल हैं। हालाँकि मैं इसे इस तरह देखता हूँ कि एक बार मुझ जैसे बेघर को दूसरा मौक़ा मिला था। इसलिए अगर मैं सक्षम हूँ तो मैं भी दूसरों के लिए ऐसा ही करना चाहूँगा।
सबसे बड़ी बात यह है कि मैं ड्रग से होने वाली मौतों की संख्या को कम करना चाहता हूँ। और इसके लिए हमें और अधिक पैसों की ज़रूरत है। उदाहरण के लिए शिलांग के ज़्यादातर अस्पतालों में नालोक्सोन नहीं होता है। यह एक ऐसी दवाई है जिसका इस्तेमाल ओवरडोज़ के प्रभाव को कम करने के लिए किया जाता है। इस दवा की मदद से होने वाली मौतों को रोका जा सकता है इसलिए हम चाहते हैं कि यह व्यापक स्तर पर उपलब्ध हो। इसके लिए हम अलाइयन्स इंडिया से जुड़े जिन्होंने मुफ़्त में यह दवा उपलब्ध करवाई। अब मेरे पास दवाएँ उपलब्ध हैं और हर बार आपात की स्थिति में जब पुलिस या एम्बुलेंस वाले मुझे फ़ोन करते हैं तब मैं उनकी मदद कर पाता हूँ। भविष्य में मैं अधिक फंड की व्यवस्था करना चाहता हूँ ताकि भारी मात्रा में इस दवा का इंतज़ाम किया जा सके। दवा की अधिक मात्रा होने से इसे सभी 108 एम्बुलेंसों में उपलब्ध करवाया जा सकता है और लोगों को इसके इस्तेमाल के बारे में बताया भी जा सकता है।
दोपहर 12 बजे: मैं अपने टीम के सदस्यों के साथ मिलकर राज्य एड्स नियंत्रण समाज (एड्स कंट्रोल सोसायटी) और स्थानीय एंटीरेट्रोवाइरल उपचार (एआरटी) केंद्रों से सम्पर्क करता हूँ और यह सुनिश्चित करता हूँ कि हमारे किशोरों को दवाएँ और अन्य ज़रूरी संसाधन मिले। कोविड-19 लॉकडाउन के कारण यह सम्पर्क ज़रूरी हो गया है क्योंकि मणिपुर, नागालैंड, मिज़ोरम और कुछ दूसरे राज्यों से आने वाले छात्र भी यहाँ फँसे हुए थे। चूँकि इन छात्रों का पंजीकरण उनके शहर के एआरटी केंद्रों में था इसलिए उन्हें उनकी दवाइयाँ यहाँ नहीं मिल पा रही थी। जब हमने यह सब देखा तब मेरे सह-संस्थापक और मैंने मिलकर स्थानीय केंद्रों से सम्पर्क साधा और उन लोगों को दवाएँ पहुँचाई जिन्हें इनकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत थी।
दोपहर 2 बजे: दोपहर में मैं कुछ आउटरीच कर्मचारियों के साथ फ़ील्ड में जाता हूँ। इस शहर में कुल 10 ड्रग अस्पताल हैं और हमारी कोशिश रहती है कि हम सप्ताह में एक बार सभी अस्पतालों का दौर करें। इन अस्पतालों का दौरा इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यहाँ इलाज करवा रहे लड़के-लड़कियों के पास इतने पैसे नहीं होते हैं। पैसे नहीं होने के कारण वे हमारे पास आकर हमारी सेवाएँ नहीं ले पाते हैं इसलिए हम सूचनाओं को उन तक पहुँचाने का काम करते हैं।
हमारा लक्ष्य इस जीवन को पीछे छोड़ने में इन युवाओं की मदद करना है।
फ़ील्ड में हम आमतौर पर सलाह देने का काम करते हैं। हम सुरक्षित इंजेक्शन के तरीक़ों, कई लोगों के लिए एक ही नीडल का इस्तेमाल नहीं करने के महत्व के बारे में बताते हैं और साथ ही ओपीयोड सब्स्टिट्यूशन थेरेपी (ओएसटी) को बढ़ावा देने की सलाह देते हैं। यहाँ हमारा लक्ष्य इस जीवन को पीछे छोड़ने में इन युवाओं की मदद करना और उनके उपचार और देखभाल में एक कदम आगे बढ़ाना है। इसके लिए हमारे पास स्थानीय नारकोटिक्स अनॉनमस (एनए) भी है जिसमें बहुत सारे किशोर-किशोरियों ने सदस्यता ली है। कभी-कभी एनए के सदस्य विभिन्न इलाक़ों के दौरे पर हमारे साथ जाते हैं और नशे की लत से जूझ रहे लोगों और स्थानीय नेताओं से मिलकर उनसे जानकारी बाँटते हैं।
शाम 5 बजे: फ़ोरम में हम क़ानून प्रवर्तन में काम करने वाले लोगों के साथ नियमित प्रशिक्षण का आयोजन करते हैं। इन सत्रों में हम पुलिस अधिकारियों से नशे की लत और इस लत से पीड़ित लोगों के व्यवहार के बारे में बातचीत करते हैं। साथ ही हम उनसे यह पूछते हैं कि नशे की लत से पीड़ित आदमी के लक्षण कैसे होते हैं और इन लोगों तक पहुँचने के सुरक्षित तरीक़े क्या हैं। कोविड-19 के दौरान इन कार्यशालाओं को रोक देना पड़ा था। लेकिन हमें आशा है कि इसे दोबारा जल्द ही शुरू किया जाएगा क्योंकि यह सड़कों पर पुलिस कर्मचारियों के व्यवहार में आने वाले बदलाव का एक अभिन्न हिस्सा है।
शाम 7 बजे: शाम में मैं अक्सर हमारे कार्यक्रमों से मिलने वाले आँकड़ों को देखने और हमारे अगले कदम के बारे में सोचने का काम करता हूँ। उदाहरण के लिए, कल हमारे दफ़्तर में एक कार्यक्रम है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य हेपटाईटिस-सी के बारे में लोगों को शिक्षित करना है। शनिवार को हम मानव अधिकार के विषय पर एक कार्यक्रम का आयोजन करने वाले हैं। ये सभी कार्यक्रम शिक्षा-संबंधी हैं और हमारी पूरी कोशिश रहती है कि हम अधिक से अधिक संख्या में ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन कर सकें। लेकिन हम इन्हें चलाने के लिए दान और अनुदानों पर निर्भर रहते हैं। इन कामों को निबटाने के बाद आमतौर पर रात के 9 बजे मेरा दिन ख़त्म होता है।
अपने काम और जीवन को पीछे मुड़कर देखने पर मुझे लगता है कि मैंने कुछ चीजें सीखी हैं। इसमें से पहली चीज़ नारकोटिक्स अनॉनमस जैसे कार्यक्रमों की महत्ता है जिनके कारण आज मैं नशामुक्त, जीवित और दूसरों की मदद करने के लायक़ हूँ। पूरी दुनिया में नशा मुक्ति की लड़ाई में एनए ने मुख्य खिलाड़ी की भूमिका निभाई है। हमें भारत में भी इसकी बहुत ज़्यादा ज़रूरत है लेकिन इसके लिए हमें फंड की भी ज़रूरत है। इसके अलावा मैं ज़ोर देते हुए यह बात कहना चाहूँगा कि मानसिक स्वास्थ्य और नशे की लत दोनों एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। और इसलिए इन लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देना महत्वपूर्ण है। अंत में, मुझे लगता है कि नशे की लत से जूझ रहे लोगों ख़ासकर किशोर और नाबालिगों के साथ काम करते समय उन्हें दंडित करने से ज़्यादा महत्वपूर्ण है उनका समर्थन करना।
जैसा कि आईडीआर को बताया गया।
इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ें।
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