उत्तर प्रदेश

चप्पल पहने हुए एक महिला_चप्पल प्रथा
April 30, 2025
बुंदेलखंड की चप्पल प्रथा: स्वाभिमान की कीमत पर सम्मान
बुंदेलखंड इलाके के ललितपुर जिले में आज भी चप्पल प्रथा कायम है जो दलित समुदाय खासकर, महिलाओं के लिए अपमान और असुविधा का कारण बन रहा है।

ललितपुर जिले में सदियों से पुरुषों के सामने चप्पल पहनकर निकलना महिलाओं के लिए बड़ी समस्या रही है। जब खेत जाती हैं तो चप्पल पहन लेती हैं लेकिन गांव के अंदर आते ही चप्पल उतार लेती हैं, ताकि मर्यादा भंग न हो। गांव में कोई महिला चप्पल नहीं पहनती। जहां एक तरफ महिलाएं पुरुषों से […]

खबर लहरिया | 3 मिनट लंबा लेख
गांव में बैठक करते कुछ लोग_जन-संगठन
November 20, 2024
जन-संगठन आर्थिक आत्मनिर्भरता कैसे हासिल कर सकते हैं?
जमीनी संगठनों के लिए समुदाय से रिश्ता बनाए रखना सबसे अधिक जरूरी है क्योंकि समुदाय, यदि संगठन की अहमियत समझेगा तो वह उसकी आर्थिक जरूरतों का भी खयाल रखेगा।

हमारे देश में हजारों छोटे-बड़े जन संगठन मौजूद हैं जो जनता के मुद्दों पर लगातार संघर्ष कर रहे हैं। यहां जन-संगठन से अर्थ उन संस्थानों से है जो समुदायों के साथ सीधे जमीन पर काम कर रहे हैं। इन्हें समाजसेवी संस्थाओं या एनजीओ से अलग देखे जाने की जरूरत है।पारंपरिक संस्थाओं से अलग जन संगठनों […]

ईंट भट्ठे पर ईंटे बनाते श्रमिक-जलवायु परिवर्तन
July 23, 2024
कैसे जलवायु परिवर्तन ने ईंट भट्ठा मज़दूरों को कर्ज़ में डुबो दिया है?
ईंट का कारोबार मौसम पर निर्भर है लेकिन ग्लोबल वॉर्मिंग और जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ रही चरम मौसमी घटनाएं इस उद्योग को प्रभावित कर रही हैं।

जलवायु परिवर्तन मज़दूरों की ज़िंदगी पर सबसे क्रूर प्रभाव डालता है और 2024 के पूर्वानुमान बता रहे हैं कि हीटवेव, सूखे और अनिश्चित मॉनसून की चरम मौसमी घटनायें इस सेक्टर को बहुत प्रभावित करेंगी। मार्च के पहले हफ्ते में ही देश के कई हिस्सों में तापमान 41 डिग्री के बैरियर को पार कर गया और […]

रामचंद्र और सहबिनया राना_थारू आदिवासी
June 10, 2024
थारू आदिवासी: जहां प्रतिरोध एक परंपरा है
लखीमपुर खीरी के थारू आदिवासी, दुधवा नेशनल पार्क की स्थापना के समय से ही वन विभाग के साथ संघर्ष कर रहे हैं और अब उनकी दूसरी-तीसरी पीढ़ी इसे आगे बढ़ा रही है।

उत्तर प्रदेश के घने जंगलों वाले ज़िले लखीमपुर खीरी में, दुधवा नेशनल पार्क की स्थापना साल 1977 में की गई थी। तब से इलाके के थारू आदिवासी, अपने गांवों में बसे रहने के लिए वन विभाग के साथ संघर्ष कर रहे हैं। इन्हें विस्थापित करने का इरादा रखने के अलावा वन विभाग, वन संसाधनों जैसे […]

डोरमैट की सिलाई करती हुई रौशनी बेगम_महिला उद्यमिता
August 23, 2023
डोरमैट बनाकर उद्यमिता का उदाहरण खड़ा करती उत्तर प्रदेश की महिला
उत्तर प्रदेश के छोटे से गांव में डोरमैट बनाने का काम शुरू करने वाली महिला उद्यमी रौशनी बेगम अन्य महिलाओं को रोजगार और आजीविका दे रही हैं।

रौशनी बेगम उत्तरप्रदेश, भदोही ज़िले के मोहम्मदपुर गांव में रहती हैं। महज़ 15 साल की उम्र में उनकी शादी हो गई थी लेकिन अपने पति के प्रोत्साहन से वे 12वीं कक्षा तक पढ़ाई कर सकीं। परिवार में सबसे बड़ा होने के कारण घर और पांच भाई-बहनों की ज़िम्मेदारी उनके पति पर आ गई जिसे रौशनी […]

शुभा खड़के | 4 मिनट लंबा लेख
एक बीसी सखी दो अन्य महिलाओं से बात कर रही है_महिला बैंक
May 3, 2023
बैंक महिलाओं के वित्तीय समावेशन को कैसे संभव बना सकते हैं
पीएमजेडीवाय जैसी योजनाओं का लाभ उठाने के बावजूद निम्न आयवर्ग वाले घरों की महिलाएं बचत के लिए बैंकों के इस्तेमाल से क्यों झिझकती हैं और उनके नज़रिए को कैसे बदला जा सकता है?

उत्तर प्रदेश के नयागांव मोहम्मदपुर गांव की फूलबानो ज़री का काम करती हैं। अपने तीन बच्चों के साथ वे गांव में ही रहती हैं। जब से फूलबानो के पति काम की तलाश में दिल्ली गए हैं, तब से पूरे घर की जिम्मेदारी उनके कंधों पर ही आ गई है। वे कहती हैं कि “राजेश नाम […]

कल्पना अजयन | 7 मिनट लंबा लेख
एक आदमी पीछे से दूसरे आदमी के कंधे पर हाथ रख रहा है-महिला हिंसा
March 1, 2023
पुरुषों से महिलाओं के साथ हिंसा न करने की मांग करना भर काफी नहीं है
लैंगिक समानता और महिलाओं के साथ हिंसा रोकने वाले कार्यक्रमों में पुरुषों के लिए संवाद की गुंजाइश बनाने की जरूरत है।

2016 में, वाईपी फाउंडेशन के कार्यकारी निदेशक के तौर पर काम करते हुए मैंने लखनऊ के एक कॉलेज में पुरुषत्व (मस्कुलिनिटी/मर्दानगी) पर एक संवाद कार्यक्रम आयोजित किया था। हमारे कार्यक्रम के पब्लिसिटी पोस्टर पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा था ‘मर्दानगी क्या है?’; हम चाहते थे कि उस कॉलेज के लड़के इस सवाल का जवाब ढूंढने […]

मनक मटियानी | 7 मिनट लंबा लेख
नेविश बच्चों को पढ़ा रहा है, सामाजिक कार्य_लिंग संवेदनशीलता
November 16, 2022
“जो आपके रास्ते में है वही आपका रास्ता है”
गोरखपुर के एक गैर-बाइनरी कार्यकर्ता के जीवन का दिन जो छोटे बच्चों को लिंग संवेदनशीलता के बारे में सिखाता है और शहर में पर्यावरण जागरूकता और शिक्षा पर काम करता है।

मैं उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में रहने वाला एक शिक्षक और एक्टिविस्ट हूं। मैंने अपना नाम नेविश रखा है क्योंकि एक ग़ैर-बाइनरी व्यक्ति होने के नाते जन्म के समय मिलने वाले अपने नाम, जाति और लिंग से मैं संबंध स्थापित नहीं कर सका। नेविश शब्द में मेरे पसंदीदा रंग (नीला) के अक्षर के अलावा मेरे […]

नेविश | 7 मिनट लंबा लेख
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